रविवार, 5 फ़रवरी 2012

हवा बान्ध हरडें


शहर के भीड भरे चौराहें के एक नुक्कड पर अक्सर ही एक नमकीन चनें बेचने वाला मजमा लगा-लगा कर अपने चनें बेचता हुआ दिखाई पडता था. वह अपने चनों का प्रचार निम्न प्रकार से गानें गा-गाकर किया करता था,

‘मेरा चना बना है आला, इसमें डाला गरम मसाला, इसको खायें किस्मत वाला, चना जोर गरम, बाबू, मैं लाया मजेदार, चना जोर गरम.’

ठीक उसी स्थान पर आज जब मैं उधर से निकला तो सदा की भांति उसने मजमा तो लगा रखा था लेकिन आज वह कुछ और ही बेच रहा था। पूछने पर उसने बतलाया कि यह हवा बान्ध हरडें हैं, मैंने आश्चर्य प्रकट किया और कहाहवा बान्ध हरडें ? यह किस काम आती हैं ? वह बोला सा‘ब चुनाव का समय है, नमकीन चने की बजाय आप कुछ दिन हवा बान्ध हरडें खाईये, सभी खरीद रहे है, आप भी चख कर देखिए. मैंने उसे कहा तू अब तक चनें खिलाता था आज हवा बान्ध हरडें खिलारहा हैं. कई जगह फसलें बरबाद होने से कर्ज के मारे किसान जहर खारहे है, मिलें, कारखानें बन्द होने से कामगार घर बैठे गम खा रहे हैं. नवयुवक बेरोजगारी की वजह से घर बाहर फटकार खा रहे हैं. कटटर मजहबियों के चक्कर में पडकर आतंकी जोश खारहे है, जातिगत पंचायतें, खाप इत्यादि प्रेमी युगल पर खार खारही हैं. बडें बडें घोटालोें में लोगों ने देखा, नेता रिश्वत खारहे हैं. अच्छें अच्छें तीस मारखां तिहाड की हवा खा रहे है उपर से अब सब को तू हवा बान्ध हरडें और खिलाना चाहता है ? वह बोला मुझें तो अपना धन्धा करना हैं। किसी बडी हाईटेक पार्टी ने अपना माल निकाला है और मुझे कहा है कि तुम इन्हें सुन्दर पैकिंग में बेच कर हवा बान्धो, हम तुम्हें अच्छा मुनाफा देंगे और उपर से बोनस भी देने का बोलता है, इसलिए अपुन यह माल बेचता है, आप खाकर देखें मैंने उसे कहा तू इतना कह रहा है तो यह हवा बांध हरडें भी मैं खा लुंगा। बचपन में आर्थिक तंगी व गरीबी की वजह से मां की डांट खाता था. स्कूल में मास्’साब की मार खाता था और नौकरी में अफसरों की झिडकियां खाता था तो अब हवा बांध हरडें भी खालूंगा तो कोैनसा आसमान गिर पडेगा ? अब तो वह पीढी आ रही है कि मां-बाप बच्चों की डांट खा रहे हैं. मास्टर विद्यार्थियों की धमकियां खा रहे हैं. पुलीसवालें अपराधियों की घुडकियां खा रहे है, आपसे क्या छिपा हुआ हैं ?इतने में वहां काफी भीड इकटठी हो गई थी, उसमें से एक आदमी बोला, राशन की दुकान पर जाते है तो झिडकियां खाते हैं. थाने पर जाते है तोे पुलीसवालों की गालियां खाते हैं. ऐसे में हवा बान्ध हरडें भी खानी पड जाय तो खा लेंगे लेकिन आखिर इससे होगा क्या ? पडौस में खडे एक और सज्जन ने रहस्योदधाटन किया और बतलाया कि हवा बान्ध हरडें बनाने वालों का दावा है कि हरडें खा-खाकर ज्योतिषी एंव तांत्रिक जोश खा रहे हैं. सटटे बाज भाव खारहे है ओपिनियन पोल वाले ताव खारहे है अगर आम जनता भी हवा बान्ध हरडें खालेगी तो इस चुनाव में प्राइमिनिस्टर वेटिंग, चीफमिनिस्टर वेटिंग के पक्ष में अभीसे हवा बन्ध जायेगी. इस हेतु ‘पेड’विज्ञापनबाजी में खूब खर्चा किया जा रहा हैं. कतिपय पत्रकारों को भी खूब ‘ऑबलाइज’ किया जा रहा है. इनका यह भी दावा है कि यह खानदानी शफाखाने की दवा है ओैर रामबाण की तरह असर करती हैे औेर आप तो जानते ही है कि रामबाण तो अचूक होता हेै. रामबाण से रामायण में ताडकासुत मारिच समुद्र के किनारे जाकर पडा. बाली के लगा तो वह परलोक सिधार गया ओैर रावण परिवार के तो अधिकांश सदस्य एक एक करके रामबाण के शिकार होकर अपनी गति को प्राप्त हुए. वहां लगे मजमें में एक व्यक्ति ने बताया कि इनकी होडाहोड इनके विरोधी हवाखोल हरडें बना रहे है. उनका कहना है कि यह हरडें हवा बांधहरडों का जवाब हैं. यह अगर हवा बांधेंगे तो हम इनकी हवा खोलेंगे. यह आगे आगे हवा बांधते जायेंगे ओैर पीछे पीछे हम हवा खोलते जायेंगे जैसे नाव के पाल खुलते हैे. उनका तो यहां तक कहना हेै कि एक बार हवा खुली तो इनके तम्बुओं के खूंटें तक नही मिलेंगे, देख लेना आप ! चारों ही दलों के लोग धर्म, जाति एवं आरक्षण के झंडाबरदारों को अपने अपने खेमों में जुटा रहे है, उन्हे तरह तरह के लालच दिए जा रहे है, इनको यह नही मालुम कि लोकतन्त्र इनके मजमों से नही चलता. उधर किसी ने पूछा कि ‘नाई नाई कितने बाल है ? तो वह बोला थोडे वक्त में ही सब सामने आजायेंगे, यजमान !

शिव शंकर गोयल

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