हॉ भाई, हॉ भाई, टोटा निकला
राजनीति के चक्कर में,
क्यूं भाई क्यूं भाई, टोटा निकला? हॉ भाई, हॉ भाई टोटा निकला.
ज्यादा ज्यादा मिलता भाषण,
थोडा थोडा मिलता राषन,
हम देते दिल्ली का आसन,
वे देते आष्वासन,
बात बडी वो करने वाला,
दिल का कितना छोटा निकला, हॉ भाई, हॉ भाई टोटा निकला
असेम्बली
में झगडें चलते,
आपस के कुछ रगडे चलते,
किसी की ऑखें तनी हुई है,
किसी की ऑखें चढी हुई है,
किसीके हाथ में लाठी देखी,
किसीके हाथ मंे सोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकला.
भारत की है लाज बचाते,
अन्न कमी में चंदा खाते,
कहते है जनता की सत्ता,
जनता का ही खाते भत्ता,
दुबला पतला चुन कर भेजा,
वहॉ से निकला, ताजा मोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकला.
ये भारत का सच्चा बंदा,
इसने कभी न खाया चंदा,
इसके मन में खोट नही हेै,
इसके घर में नोट नही है,
भाई भतीजें, सालों के घर,
षक्कर, सीमेन्ट का कोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकला.
खाली रही गरीब की थाली,
चमचों के मुख छायी लाली,
राजनीति की यही प्रणाली,
यहॉ पर सिक्कें चलते जाली,
हार हार कर सच सच निकला,
हार पहन कर छोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकलाकर्ज
विदेषी बढता जाता,
नया टैक्स जनता पर आता,
अब कि योजना सफल रही है,
अच्छी खासी फसल रही है,
लेकिन जब यह बजट बनाते,
फिर भी कहते टोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकलाजिनको
हमने चुन कर भेजा,
उनके पास नही था भेजा,
वादों को वह कुचल रहा हेै,
क्यूं बातें क्यूं रहा है,
कभी इधर से कभी उधर से,
बे पेन्दी का लोटा निकला, हॉ भाई हॉ भाई टोटा निकला
रचियताः-श्री घनष्याम अग्रवाल
नई गदगुदी पत्रिका
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