बताते हैं कि किसी स्थान पर एक परिवार की चार पीढिय़ां गुजर गईं, लेकिन परिवार वालों के दांत नहीं उगते हैं। यह बडी दिलचस्प खबर है। आप तो जानते ही हैं कि दांत शरीर के अन्य अवयवों के मुकाबले में ज्यादा ही धोखेबाज होते हैं। जन्म के समय आपके साथ आयेंगे नहीं, चोला छोड़ोगे तब तक साथ रहेंगे नहीं और तो और बीच में भी एक-दो बार अपना रंग-रूप बदल देंगे। अब आप ही बताइये ऐसों का क्या विश्वास, क्या ठिकाना?
इस बारे में गोस्वामीजी ने रामायण के सुन्दर कांड में इसका खुलासा किया है। जब हनुमानजी सीता माता की खोज में लंका गए थे, तब वहां उनकी मुलाकात विभीषण से होती है। दोनों में वार्तालाप होता है। पहले हनुमानजी अपना परिचय देते हैं, उसके बाद विभीषण अपनी बात उनको बताता है और कहता है:-
'सुनउं पवनसुत रहिन हमारी,
जिमि दसनन्हि महु जीभ बिचारीÓ
अर्थात हे! हनुमानजी हमारा रहना भी क्या रहना? हम तो लंका में ऐसे रहते है जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है। विद्वान लोग इस बात का कई प्रकार से गूढ़ अर्थ निकालते हैं और बताते हैं कि विभीषण ने अपनी उपमा जीभ एवं दांतों की उपमा राक्षसों से क्यों की? सब जानते हैं कि दांत दगाबाज होते हैं, सर्वथा साथ नहीं देते और बीच-बीच में अपना स्वरूप बदलते रहते है। दांतों का काम चीरना, फाडऩा, कुचलना है और ये सभी लक्षण राक्षसों के हैं। अब बताइये कि अगर किसी परिवार को अपने आप दांतों अर्थात राक्षसों से छुटकारा मिल गया तो उसे तो अल्लाह का शुक्रगुजार होना चाहिए न?
यह भी सब जानते हैं कि दांत नहीं होने की वजह से व्यक्ति को अधिकतर किसी न किसी पेय पर निर्भर रहना पड़ता है। यह तो उल्टे अच्छी बात है। इक्कीसवी सदी में चारों तरफ तरह-तरह के पेय पदार्थों का जोर है। आए दिन टी.वी. पर अपने फिल्मी और क्रिकेट सितारे विभिन्न पेय की बोतलें लिए उछलकूद करते रहते हैं और कहते है 'ये दिल मांगे मोरÓ। इतना ही नहीं, एक टी. वी. विज्ञापन में तो विशेष पेय पदार्थ 'सोमरसÓ के लिए एक सितारा दावा करता है कि 'हम सोमरस पीनेवालों की बात ही कुछ और है।Ó हां भाई, वास्तव में आप पीने वालों की तो बात ही कुछ और है। सोमरस पीकर ही कई लोग बड़ी बडी 'बहादुरीÓ के कारनामे कर रहे हैं।
अगर किसी व्यक्ति के दांत नहीं हैं तो बचपन में किसी से झगड़ा होने पर किसी ने उसे धमकी नहीं दी होगी कि तेरी बत्तीसी तोड़ दूंगा क्योंकि जब कोई चीज होगी ही नहीं तो तोड़ेगा क्या?
बत्तीसी की बात पर एक किस्सा याद आ गया। दो व्यक्ति लड़ रहे थे। तीसरा व्यक्ति आया और बीच में पड़ कर उन्हें छुड़ाने लगा। लड़ते-लड़ते पहला बोला मैं तेरे बत्तीस तोड़ दूंगा तो दूसरे ने कहा कि मैं चौंसठ तोड़ दूंगा। इस पर वहां खड़े तमाशबीनों में से एक ने पूछा कि दांत तो बत्तीस ही होते हंै, आप चौंसठ कैसे तोड़ दोगे तो उसने जबाब दिया कि बत्तीस मुझसे लडऩे वाले के और बत्तीस बीच में टपकने वाले के।
यह परिवार तो भाग्यशाली है जो इन सब से बच गया वर्ना रोज-रोज की धमकियां कौन सुने? बिना दांत वाला किसी पर भी चाहे जितना हंस ले, उसे कौन डांट पिला सकता है कि 'क्यों बत्तीसी दिखा रहे हो ?Ó उसे तो खूब जम कर हंसना चाहिए। दस तरह की स्टाइल है, किसी भी हास्य क्लब में जाकर यह स्टाइल सीख लें।
आदमी की जिन्दगी में दांतों की अमूमन एक उम्र मुकर्रर है। पहले दूध के दांत आयेंगे, फिर दूसरे दांत आयेंगे, फिर 16 से 18 की उम्र के बीच अक्ल दाढ़ आयेगी अर्थात उसमें अक्ल आनी शुरू होगी। बिना दांत वाले इस परिवार पर यह कोई पाबंदी नही है। सबसे बड़ा फायदा तो इस परिवार वालों को यह है कि यह हाथी और नेताओं की पंक्ति में नही हैं। हाथी के दो तरह के दांत होते हैं, खाने के और दिखाने के और। जैसे कई नेताओं के दो रूप होते हैं, दिखने के और एवं असली में कुछ और।
कहते हैं कि आदमी गुस्से में दांत पीसता है, लेकिन जब दांत होंगे ही नहीं तो क्या पीसेगा? और जब दांत पीसेगा नहीं तो गुस्सा जहां से आया था, वही चला जायेगा। बंदर और कभी-कभी आदमी दांतों से ही घुड़की, झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाता है। दांत न होने की अवस्था में इस समस्या से भी बच गए। इन सब के अलावा बचपन में दांत निकलने से लेकर बुढ़ापे में दांत गिरने की अनगिनत-सी तकलीफों से भी सामना नहीं होगा., क्योंकि न होगा बांस तो न बजेगी बांसुरी। इसलिए अगर किसी परिवार में किसी के दांत नहीं आए हैं तो यह सुनकर आपको दांत दिखाने, खीसें निपोरने, की आवश्यकता नही है।
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
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