शनिवार, 26 नवंबर 2011
बिगाड के डर से ईमान की बात नही कहोगे ?
अटल बिहारी बाजपेयी के षासन के वक्त की बात हैं. इतिहास,
साहित्य आदि विषयों एवं विभिन्न क्लासों की पाठय पुस्तकों इत्यादि में संघ
परिवार की विचारधारा के अनुरुप धडाधड बदलाव किये जारहे थे, ऐसे ही
एक बदलाव में मुंषी प्रेमचन्द की एक कहानी ‘पंचंच परमेष्ेष्वर’ को पाठय
पुस्तकों से हटा कर बीजेपी की महिला नेत्री श्रीमति कुसुम प्रषाद की कोई
कहानी लगादी गई थी जिस पर राज्य सभा में प्रष्न उठाया गया, तब बहस
के दौरान बोलते हुए बीजेपी नेत्री श्रीमति सुषमा स्वराज ने कम्युनिस्ट सदस्यों
की तरफ मुखातिब होते हुए कहा कि आप लोग कब तक मुंषी प्रेमचन्द को
लिए बैठे रहोगे ? अब उन से आगे बढियें, याने उनके कथानुसार मुंषी प्रेम
चन्द अब प्रासंगिक नही रहेइसमें
सबसे दिलचस्प बात यह रही कि अधिकांष कांग्रेसी तब भी उस
संसदीय बहस में या तो मौन रहे या विषय को घुमाते फिराते रहे जैसे कि
इमराना प्रकरण में उनका रवैया था, किसी भी कांग्रेसी सदस्य ने इस प्रकरण
में स्पष्टरुप से अपनी राय नहीदी और खेद का विषय हैं कि श्री मुलायमसिंह
यादव भी अपने वोट बेैंक बचाने के भ्रम में टालमटोल का रवैया अपनाते
रहेप्रसंगवष
देखें तो मुंषी प्रेमचन्द जी की कहानी ‘पंचंच परमेष्ेष्वर’ आज
भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कि उस समय थी जब इसे लिखा गया थाकहानी
के अनुसार एक गांव के दो प्रभावषाली व्यक्ति, अलगू चौधरी एवं
जुम्मन षेख गहरे दोस्त थे, जुम्मन षेख अपनी बेवा खाला की जमीन हडप
लेता हैं तो खाला औरों के साथ साथ अलगू चौधरी से भी न्याय की गुहार
लगाती हैं, चौधरी पंचायत में अपने मित्र के विरुद्ध बोलने में आनाकानी
करता हैं तो खाला उसे कहती है ं ‘क्या बिगाड के डर से ईर्ममान की बात नही
कहोगेगे ?’ इस ललकार का असर चौधरी पर होता है ं और भरी पंचायत में
उसे न्याय की गुहार सुननी पडती हैं और वह अपने परम मित्र जुम्मन षेख
के विरुद्ध फेैसला देता हैंइमराना
प्रकरण में कांग्रेस की चुप्पी रहस्यमय हैं. वह षाहबानो प्रकरण
में धार्मिक कटटरवादियों के सामने घुटने टेक कर गलती कर चुकी हैं उसने
राजीव गांधी के षासन के दौरान संविधान संषोधन तक करा दिया था. इसी
तरह समाजवादी मुलायमसिंह यादव, दारुल उलूम देवबन्द के फतवें को यह
कह कर उचित ठहरा रहे हैं कि यह विद्वान लोगों द्वारा दिया गया आदेष हैं
इसलिए सही ही होगाइध्
ार संघ परिवार इस प्रकरण की आड में एक बार फिर ‘सामान्य
आचार संहिता’ की बात कर रहा हैं. उसे इमराना से कोई हमदर्दी नही हैं,
उसे अपने छिपे एजेन्डें से मतलब हैं वर्ना पिछले कुछ सालों में राजस्थान एवं
हरियाणा के कई गांवों की विभिन्न खापों, जाति पंचायतों ने अपने अलग
अलग प्रकरण, गुडिया इत्यादि, में महिलाओं कंे विरुद्ध कई फैेसले दिये हैं
जिनके खिलाफ संघ परिवार ने आजतक कुछ नही कहा हैं और कहे भी कैसे
? स्वयं उसकी विचार धारा में ही स्त्री को पुरुष के मुकाबले गौण माना गया
हैं. वह उन सभी धार्मिक ग्रन्थों एवं स्मृतियों की ऐसी सभी बातों का आंख
मीच कर समर्थन करता हैं जिसमे कहा गया है ‘स्त्री षूद्रों न धीयाताम ?’
अर्थात स्त्री और षूद्र को पढाना नही चाहिए ! वजह ? स्त्री और षूद्र को
पढाया जायगा तो वह सेवा के काम के नही रहेंगे, दलील करने लगेंगेवैसे
संघ परिवार के कुछ विद्वानों की दलील हैं कि हमारी संस्कृति में
स्त्री का बहुत उॅचा स्थान था, स्त्री घर की स्वामिनी होती थी, गार्गी आदि
स्त्रियां वेदों की व्याख्या करती थी, लीलावती ने गणित लिखी थी, यह तो
विदेषी संस्कृति का फल था कि स्त्रियों को पराधीन बना दिया गया’ लेकिन
यह विद्वान यह नही बताते कि मनुस्मृति क्या अंग्रेजों या औरंगजेब ने लिखी
थी ? या विवाह में कन्या दान के पुन्य का विधान मुगलों ने किया था ?
इतना तो यह जानते ही है कि दान या मोल तोल कभी स्वतन्त्र व्यक्तियों का
नही किया जा सकतासन
2004 के लोक सभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेष बीजेपी के
अध्यक्ष विनय कटियार ने श्रीमति सोनिया गॉधी के विदेषी मूल का मुद्धा
उठाते हुए स्त्रियों के प्रति अपनी संकुचित विचार धारा का परिचय दिया था
और कहा था कि क्लियोपेट्ा, गांधारी ;?द्ध इत्यादि की तरह ही सोनिया गांधी
भी अनिष्टकारी हैं और इनके होने से देष में विपत्ति ही आयेगी. श्रीमति
सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कह डाला कि अगर श्रीमति सोनिया गांधी ने
राज संभाला तो वह अपने बाल कटवाकर, सफेद साडी पहन लेगी, फर्ष पर
सोयेगी इत्यादि, इत्यादिसन
1962 में चीनी आक्रमण के समय तत्कालीन जनसंघ ने लखनउॅ
मे ं ‘मां के अंांासू’ू’ नाम से एक प्रदर्षनी लगाई थी जिसमें महिलाओं के प्रति
अपमानजनक उद्धरण दिए गए थे, आज भी संघकी विचार धारा में महिलाओं
का कोई स्थान नही है. यह सती होने का तो समर्थन करते हैं परन्तु सता
होने के लिए कुछ नही करतेप्रसिद्ध
लेखिका और कादम्बिनी की संपादक श्रीमति मृणाल पान्डे ने
अपने एक लेख में इसी मनोवृति का उल्लेख करते हुए पौराणिक कथाओं से
कुछ उद्धरण दिये हैं जिसमे उन्होंने परषुराम की माता रेणुका एवं ऋषिपत्नि
अहिल्या का उल्लेख करते हुए प्रष्न उठाया हैं कि इन दोनों का ही षीलभंग
पुरुषों ने किया लेकिन हमारे यह ग्रन्थ पुरुषों की बजाय स्त्रियों को ही क्यों
दंडित करते हैं ? अहिल्या पाषाण क्यों बनी ? जिन्होंने उसका षील भंग
किया उन्हे क्या दंड मिला ? जब तक हम इस मानसिकता का विरोध नही
करेंगे तब तक हम इमराना के स्त्रियोचित हक के पक्ष में आवाज कैसे उठा
पायंेंगे ?
वर्तमान में राजस्थान में घटित भंवरीदेवी प्रसंग में जनता एवं भंवरी के
बिलखते बच्चें कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों ही दलों से पूछ रहे है कि ‘क्या
बिगाड के डर से ईर्ममान की बात नही कहोगेगे ?’
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
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