मैं तो आपको यह उपयोगी सलाह इसलिए दे रहा हूं कि सनद रहे और वक्त बेवक्त आपके काम आए। वर्षों पूर्व एक प्रमुख राजनीतिक दल ने लोकसभा चुनाव में एक नारा उछाला था दूर दृष्टि एवं पक्का इरादा। कहीं आप यहां दूर दृष्टि का मतलब नजरों की दूर के दृष्टिदोष से न लगा लें, जिसे चिकित्सा शास्त्र में मायोपिया रोग के नाम से जाना जाता है।
यहां दूर दृष्टि का मतलब है अपने भविष्य के नफे नुकसान की सोचकर चलना। लोगों का मानना है कि जिनके पास दूर दृष्टि नहीं है, वह जिन्दगी में भारी भूल कर रहे हैं। बड़े बूढे तो यहां तक कह गए हैं कि गुजरा वक्त और कमान से निकला तीर वापस नहीं आता, इसी को देखते हुए मेरा तो यही कहना है कि अगर आपको दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मजबूत करना है तो दूर दृष्टि के साथ साथ अपना इरादा पक्का करले कि पहले येन केन प्रकारेण पांचवी पीढी अर्थात युवराज को गद्दी सौंपनी है। रहा सवाल छठी पीढ़ी की ताजपोशी का तो यह काम आप आपकी आने वाली पीढ़ी को सौंप जाएं। आप तो फिलहाल उनका तरोताजा कलेंडर, जिसमें उन्हें आसन्न चुनाव में अमेठी में स्टेज पर बड़ी बड़ी वजनी माला पहने हुए दिखाया गया है, लाकर अपने ड्राइंग रूम में टांग लें, बाकी बातों के लिए अभी काफी समय है।
खबर है कि बाजार में तरह तरह के कलेंडर आ गए हैं। मैं उन सरकारी महकमों अथवा विभिन्न संस्थानों के आलीशान कलेंडरों की बात नहीं कर रहा हूं, जो रेवडिय़ों की तरह बंटते रहे हैं और जिनके लिए कहा जाता है कि अंधा बांटे रेवडिय़ा और फिर फिर अपनों को दे। यह सब सरकारी खर्च खाते पर होते हैं। मैं उन कलेंडरों की बात कर रहा हूं, जो आम जनता के लिए बाजार में बिकने हेतु आते हैं। इनमें तीज-त्यौहारों के साथ साथ सरकारी छुट्टियों को भी दर्शाया जाता है।
एक बार मैं बाजार में एक स्टेशनरी की दुकान पर कुछ खरीदने गया, तभी वहां एक व्यक्ति आया और दुकानदार से बोला कि भाई साहब कोई अच्छा सा कलेंडर हो तो दिखाओ। दुकानदार ने उससे पूछा कि आपको कैसा कलेंडर चाहिए, तो वह बोला कि जिसमें ज्यादा से ज्यादा छुट्टियां हों। दुकानदार ने उसे अंदर से निकाल कर दस रुपए वाला कलेंडर बीस रुपए में दिया और कहा कि इसी कलेंडर में सबसे ज्यादा छुट्टियां हैं। वह उसे लेकर बहुत खुश हुआ। उसी दौरान दुकानदार ने उससे पूछा कि आप किस डिपार्टमेंट में हो, तो उसने बताया कि मैं भेड़ एवं ऊन डिपार्टमेंट में हूं। उसके जाने के बाद जिज्ञासावश मैंने दुकानदार से पूछा कि आपने कैसे जाना कि वह व्यक्ति सरकारी कर्मचारी है, तो दुकानदार बोला ये लो, यह भी कोई मुश्किल काम है, उसने ज्यादा से ज्यादा छुट्टियों वाला कलेंडर मांगा था। यह इस बात का पक्का सबूत था कि वह सरकारी कर्मचारी है।
उसी समय दुकानदार ने एक महत्वपूर्ण बात बताई कि इस साल कलेंडर कुछ ज्यादा ही बिक रहे हैं। इसका कारण है इस वर्ष सरकारी छुट्टियों की अधिकता। इसके सबूत के रूप में उसने मध्यप्रदेश सरकार का राजकीय गजट निकाल कर, बताया जिसमें वर्षभर के अवकाशों का लेखा जोखा था। एक अनुमान के अनुसार सब कुछ मिलाकर एक कर्मचारी साल भर में 102 दिन छुट्टियों-अवकाश, ऐच्छिक अवकाश, सीएल, पीएल इत्यादि का लुत्फ उठा सकता है। उसने तो यहां तक बताया कि इस मामले में यह सरकार इस बार सब राज्यों में प्रथम रही है। उस अवसर पर मेरे मुंह से भी निकल गया वाकई यह उनका प्रशंसनीय कार्य है। चलते चलते दुकानदार ने एक रहस्यपूर्ण बात और बताई। उसने बताया कि मई 2007 में एक कैलेंडर में राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को अन्नपूर्णा देवी के रूप में दिखाया गया था, तब कई ग्राहक आ आ कर उस बारे में पूछने लगे तो हमने भी भारी मांग को देखते हुए थोक में कलेंडर-पोस्टर मंगवा लिये। कुछ दिन उनकी बिक्री भी हुई लेकिन निगोड़ी जनता का कोई क्या भरोसा करे। राज जाते ही, कसम भगवान की, जो एक भी कलेंडर बिका हो। सारा स्टाक बिना बिके पड़ा है। लागत तक के पैसे नहीं मिले और अब ऊपर से चूहे कबाड़ा और कर रहे हैं, लेकिन आजकल तो उस शाही कलेंडर की बम्पर एडवांस डिमांड है, जिसमें राज परिवार की छठी पीढ़ी तक की फोटो होंगी।
हालांकि इस कलेंडर का पहला संस्करण अक्टूबर 2006 में निकला था, जिसे उसी परिवार द्वारा यह ऐतराज, बच्चों को इस तरह सार्वजनिक करने से हमारी निजता पर आंच आती है, करने पर उस समय वह कलेंडर प्रकाशकों, दुकानदारों एवं पार्टी कार्यालय में पड़े रह गए थे, लेकिन अब जबकि यूपी चुनावों में स्वयं उसी परिवार ने छठी पीढ़ी को सार्वजनिक मंच पर उतार दिया है तो उनकी फोटो लगे कलेंडर मार्केट में आने वाले हैं। दूर दृष्टि एवं पक्के इरादे वालों से यही अपेक्षा है कि वे जल्दी करें और खरीद कर घर ले आएं, वर्ना कहीं ऐसा न हो कि बाद में पछताना पडे।
-ई. शिव शंकर गोयल
फ्लेट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75
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