गुरुवार, 3 मई 2012

ग़ज़ल

जिंदगी फूल नहीं कांटे को भी जगह देती है
सूखे से दिल में भी चाहत का सिला देती है
सूखे मटमैले से पत्ते झरते हैं जब शाखों से
बैरन हवा ले कर के फिर दूर तक उड़ा देती है
ज़माना लाख कर दे पैदा दुश्वारिया राह में
मिलने वालो को तो कुदरत भी मिला देती है
माना कि अपनी जुस्तजू में कोई कमी रही
सुना चाह तो पत्थर में भी फूल खिला देती है
प्यार की आस में जीते है बहुत ज़माने में पर
प्यार को हंस के लुटा दे, जिंदगी सीखा देती है
अपनी वफाओ का तकाजा नहीं करते 'आशु'
मगर दिल कहें या ना कहें आंख बता देती है
-आशा गुप्ता 'आशु'
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