रविवार, 9 सितंबर 2012

शरण की आस लिए जोधपुर पहुंचे पाकिस्तानी हिंदू


पाकिस्तानी हिंदुओं का एक बड़ा जत्था भारत में शरण की उम्मीद लिए जोधपुर पहुंचा है. इसमें लगभग 170 लोग शामिल हैं.
ये सभी पाकिस्तानी के दक्षिणी प्रांत सिंध से आए हैं और आदिवासी भील समुदाय से है. इस दल के एक सदस्य ने बीबीसी से कहा, “चाहे जान लेलो, मगर वापस जाने के लिए न कहो.”
इन हिंदुओं के लिए आवाज उठा रहे सीमान्त लोक संगठन ने भारत से इन हिंदुओं को फौरन शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की है.
ये हिंदू ऐसे समय में भारत पहुंचे है जब भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्ण पाकिस्तान के दौरे पर हैं और पाकिस्तान इन खबरों को गलत बताता रहा है कि उसके यहां से हिंदू पलायन कर भारत में पनाह ले रहे हैं.
'ऐसे मुल्क में कैसे रहें'
ये सभी हिंदू उस थार एक्सप्रेस से आए हैं जो हर हफ्ते भारत और पाकिस्तान के बीच चलती है.
जोधपुर रेलवे स्टेशन पर उस वक्त भावुक मंजर था, जब इन हिंदुओं की अगवानी करने उनके चंद रिश्तेदार और संगठन के कार्यकर्ता मौजूद थे.
इनमें से कुछ ने संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा से अपना दर्द साझा किया तो आंखें नम हो गईं.
इस दल में तीस से ज्यादा महिलाएं और अस्सी से ज्यादा बच्चे है. ये सभी धार्मिक यात्रा के वीसा पर आए हैं.
दल के प्रुमख गणेश (बदला हुआ नाम) ने बीबीसी से फोन पर कहा, “वहां जीवन बड़ा दुश्वार था. अभी चंद दिन पहले मेरे पिता का निधन हुआ तो दाह संस्कार के लिए दो गज जमीन भी ना मिली. हम पार्थिव शरीर लिए यहां वहां भटकते रहे मगर हर जगह कहा गया इसके लिए जगह नहीं है. फिर बताएं ऐसे मुल्क में कैसे रह सकते है.
गणेश ने कहा उनकी बहन-बेटियां बाहर नही निकल सकती थी. कदम कदम पर पक्षपात था. इसलिए उनके पास भारत आने के आलावा कोई चारा नहीं बचा था.
भविष्य की चिंता
वो कहते हैं, “हम सिर्फ ये कपड़ने पहन कर आए हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं है. हम ये भी नहीं जानते कल कैसे पेट भरेंगे.”
इन हिन्दुओं का प्रतिनिधिव कर रहे हिंदू सिंह सोढा कहते है कि राजस्थान में लगभग सात हजार ऐसे पाकिस्तानी हिंदू है जो भारत की नागरिकता के लिए गुहार लगा रहे है.
उनके मुताबिक, “हम इनके लिए नागरिकता के अभियान चला रहे है. जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करेंगे. पर अभी हम चाहते है भारत इन हिंदू अल्पसंख्यकों को शरणार्थी का दर्जा दे.”
भारत ने पिछली बार 2005 में तेरह हजार पाकिस्तानी हिंदुओं को नागरिकता दी थी. लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन जारी है. इनमें से हर चेहरे पर अतीत की बीती घटनाओ का दर्द है तो भविष्य के लिए चिंता की रेखाएं भी दिखती हैं.
-नारायण बारेठ

शनिवार, 1 सितंबर 2012

बेटे नहीं बेटी के माथे पर पगड़ी

भारत में पगड़ी की रस्म से बेटियों को परे रखा जाता है. रस्म है कि पिता के अवसान के बाद पुत्र ही पिता की पगड़ी धारण करता है. लेकिन जयपुर की ज्योति माथुर ने पिता के निधन के बाद पगड़ी की रस्म ऐसे सम्पन्न की जैसे कोई बेटा करता है. ज्योति ने पिता की पगड़ी अपने सिर बाँध बदलाव की इबारत लिखी है. ज्योति कहती हैं वो चाहती है बेटियों को बराबरी का हक़ मिले. जयपुर के महेश नगर में धार्मिक विधि-विधान और मंत्रो के बीच रस्मो रिवाज के अंधेरो से निकली ज्योति यूँ प्रकट हुई जैसे वो बेटियों के लिए रोशनी लेकर आई हो. पिछले दिनों ज्योति के पिता का कैंसर से देहांत हो गया था और ज्योति अपने पिता की अकेली संतान है. लिहाज़ा परिवार की ज़िम्मेदारी ज्योति के कंधो पर ही रही है. मगर जब पगड़ी की रस्म का मौका आया तो सामाजिक रस्म आड़े आ गई. क्योंकि रस्मो रिवाज इस मामले में बेटो की हिमायत करते है. लेकिन ज्योति ने पगड़ी और बेटी के बीच सदियों से बने फासले को मिटा दिया.

पूर्ण समर्थन

नाते रिश्तेदारों की भीड़ जमा हुई और जब पगड़ी की रस्म का अवसर आया, ज्योति ने प्रचलित रस्म का प्रतिकार किया और परिवर्तन की प्रतिमा बन कर खड़ी हो गई. पुरोहित ने मंत्रोचारण किया और ज्योति के माथे पिता की पगड़ी बंधी तो उसके चेहरा बदलाव की रोशनी से दमक उठा. ज्योति ने कहा “मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से भी ज्यादा महत्व दिया.उन्होंने बेटी बेटो में कोई फर्क नहीं किया. मगर उनके निधन के बाद पगड़ी का सवाल आया तो मुझे लगा मेरे दिवगंत पिता की ख्वाहिश पूरी होगी, मैं ही पगड़ी की रस्म अदा करुँगी. ये सभी बेटियों के हको का सम्मान है”. ज्योति कहती है कि जब मेरे पिता ने कभी भेद नहीं किया तो समाज में ये बेटियों के साथ ये भेद क्यो? शायद ये पहला मौका था जब बेटी के सिर पिता की पगड़ी बंधी. ज्योति की इस परिवर्तनकारी पहल का परिवार और करीबी रिश्तेदारों ने समर्थन किया. ज्योति के मामा दिनेश कुमार कहते है “ज्योति ने जो किया है,वो सराहनीय है. ज्योति ने कदम बढाया तो उसके पति और ससुराल वालो ने पूरी मदद की और हौसला बढाया. हम ज्योति और उसके ससुराल वालो के जज्बे को सलाम करते है.”

‘धर्म के खिलाफ नहीं’

जयपुर में धर्म शास्त्रों के जानकार पंडित के के शर्मा कहते है कि शास्त्र कभी बेटे बेटी में भेद नहीं करते और ना ही बेटी के लिए पगड़ी पर कोई मनाही है. के के शर्मा के अनुसार “अब समय भी बदल गया है. बेटिया भी घर की जिम्मेदारी निभा सकती है.पहले बेटों को ही पगड़ी रस्म का दस्तूर था. क्योंकि पगड़ी की रसम का अर्थ है परिवार के मुखिया के निधन के बाद पगड़ी के जरिये जिम्मेदारी का अंतरण. पहले बेटिया घर से बाहर नहीं निकलती थी, अब वे बेटो के जैसे सभी जिमेदारियो का निर्वहन करने में सक्षम है. “ पगड़ी को इंसान के रुतबे और इज्जत का प्रतीक माना जाता है, पर जब भी पगड़ी सम्मान के लिए आगे बढ़ी, उसने दस्तार के लिए बेटो के माथे का ही वरण किया. मगर अब समय बदला है. इसीलिए ज्योति ने दस्तूर के माथे बेटियो की दस्तारबंदी की तो रस्मो रिवाज खुद ब खुद झुक गई.

-नारायण बारेठ

सचिन पायलट का राजयोग काल सर्प दोष के कारण ही है

आज काल सर्प योग से हर व्यक्ति भयभीत है, मगर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वर्तमान केन्द्रीय दूरसंचार राज्य मंत्री और अजमेर जिले के सांसद सचिन पायलट की कुण्डली में विद्यमान काल सर्प दोष ही उनके राज योग का कारक है। असल में काल सर्प योग के बारे में गलत धारणाएं स्थापित की गई हैं और इसके माध्यम से कथित ज्योतिषी अपना घर भर रहे हैं। यदि ये कहा जाए कि काल सर्प दोष बनाम एटीएम मशीन तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।
आइये, जानें कि सच्चाई क्या है-
एक कहावत है कि संसार मेे उसी वस्तु की नकल होती है, जिसकी मांग अधिक होती है। पिछले कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि काल सर्प दोष किसी अज्ञात भय के समान भारतीय फलित ज्योतिष पर छाया हुआ है। काल सर्प दोष की तथाकथित बनाई गई कलयुगी परिभाषा के अनुसार राहु-केतु के अलावा सभी सात ग्रह राहु-केतु के मध्य में आ जायें तो काल सर्प दोष का निर्माण होता है, जब कि वास्तविकता में इस तथाकथित योग का कोई भी शास्त्रीय आधार नहीं है। सम्पूर्ण भारतीय ज्योतिष में किसी भी ग्रंथ में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। वराहमिहिर, पाराशर, वेदनाथ, मंगेशकर, कल्याण वर्मा आदि किसी ने भी इस योग का कहीं कोई नाम नहीं लिया है ।
 यहां तक कि सारावली, ब्रह्मजातक, पाराशर, होरा शास्त्र आदि में भी सिर्फ  सर्प दोष, नाग दोष आदि योग वर्णित है, जो बारह प्रकार के बताये गये हैं, जिनमें की मुख्यत: तक्षक सर्प योग, अनन्त सर्प योग, वासुकी नाग योग इत्यादि का ही वर्णन किया गया है। इसमें देष के कुछ पंडितों ने इसमें काल जोड़ कर इसे काल सर्प दोष बना दिया है, वहीं से यह बीमारी सम्पूर्ण भारत में आयी है, जिन्होंने की प्राचीन ज्योतिषीय सिद्वान्तों की महत्ता को नकार कर कपोल कल्पित सिद्धान्तों का निर्माण करके इस दोष को नोट उगलने की मषीन बना लिया है, समझ लिया है। इस बात को लेकर कुछ ज्योतिषियों ने यहीं पर सब्र नहीं किया। सर्प से काल सर्प, काल सर्प से विषधर काल सर्प, नागराज काल सर्प तक भी बना दिया है। लोगों के मन में इन लोगों ने इतना भय पैदा कर दिया कि अगर व्यक्ति के थोडी भी परेशानी हो जाये तो लगता है कि काल सर्प दोष आड़े आ रहा है, जब कि पुरातन शास्त्रों में तो यह भी लिखा हुआ है कि यदि कुण्डली में यह योग उपस्थित हो और अगर कुछ अच्छे सहायक योग भी उपस्थित हों तो यही योग सहायक राज योग बन जाता है।
ज्योतिष के योगों के अनुसार यदि बात की जाये तो दो ग्रहों के बीच में आने वाले तीसरे ग्रह को कर्तरी योग के नाम से जाना जाता है। यह सिद्धान्त सिर्फ  एक ग्रह पर लागू होता है, जो ग्रह शुभ कर्तरी हो या पाप कर्तरी न कि सूर्य से शनि तक के सात ग्रहों पर। यदि कुण्डली में सिर्फ  राहु-केतु ही किसी व्यक्ति के भाग्य का निर्णय करने लग गये तो बाकी के सात ग्रह क्या असर दिखायेंगे, जब कि राहु-केतु भारतीय ज्योतिष के अनुसार मात्र छाया ग्रह है। यह जिस राशि पर बैठते हैं, जिन ग्रहों से दृष्ट होते हैं, जिस नक्षत्र में होते हैं, जिस भाव में होते हैं, उसके अनुसार फल देते हैं तो फिर मात्र ऐसे ग्रहों को विचार करके काल सर्प दोष जैसा भयानक नाम क्यों दिया जा रहा है। साधारणतया आम ज्योतिषी यदि राहु या केतु के साथ अन्य ग्रह भी बैठे हो तो और राहु-केतु से डिग्री में आगे हो तो भी काल सर्प दोष का नाम दे देते है जब कि कतिपय ग्रह राहु-केतु की परिधी से बाहर हो चुका होता है और यह योग भंग हो चुका होता है  इन सबके बावजूद भी कालसर्प दोष बुरा ही हो यह कतई सत्य नहीं है।
कथित काल सर्प योग वाले लाखों व्यक्ति यह योग होते हुए भी बहुत ऊंचे पदों पर पहुंचे हैं, जिसमे जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी देसाई, चन्द्रशेखर, अमिताभ बच्चन, देवानंद, सचिन तेंदुलकर, अमेरिकन पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन, फिल्म अभिनेता राजकपूर, भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम। यहां तक कि हमारे देश के वर्तमान केन्द्रीय दूरसंचार राज्य मंत्री और  अजमेर जिले के सांसद सचिन पायलेट के भी कुण्डली में काल सर्प दोष विद्यमान है। उनकी कुुण्डली में तृतीय भाव से नवम् भाव के मध्य यह योग विद्यमान है, जिसे वासुकी नाग योग कहा जाता है। फिर पायलेट इस उंचाई तक कैसे पहुंच गये? वास्तविकता में यही योग इन लोगों के लिए राज योग बन गया। ज्योतिष के पुरातन शास्त्रो में तो यहां तक उल्लेख है कि यदि कुण्डली में ऐसा दोष हो किन्तु कुछ ऐसे अच्छे योग उपस्थित हों तो यहीं काल सर्प योग जीवन में अभिशाप की जगह वरदान बन जाता है। जैसा की ज्योतिष में सिद्धान्त है कि राहु जिसका बिगाड़े उसे कोई नहीं सुधार सकता और राहु जिसका सुधारे उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
इतिहास गवाह है और भारतीय ज्योतिष के ग्रंथ भरे पड़े हैं कि जो कार्य राहु या केतु कर सकते हैं वह अन्य ग्रहों के बस की बात नहीं है । जितने भी बड़े और सम्मानजनक पदों पर व्यक्ति पहुंचे हैं, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सफलता का कारण राहु या केतु ही रहे हैं। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार आकस्मिक लाभ, भू-संपदा, विदेश गमन या विदेश से पैसा और समुद्र का कारक राहु माना गया है तथा नौ ग्रहों में सिर्फ  केतु को ही मोक्ष प्रदाता माना गया है। जिस प्रकार मन्दिर पर ध्वजा फहरती है, उसी प्रकार किसी इन्सान की कीर्ति को मात्र केतु ही फैला सकता है। एक तरफ  जहां हमारे शास्त्रों ने इनकी इतनी तारीफ  और इनको इतना महत्व दिया है, वहीं हमारे ये आजकल के कुछ अपरिपक्व ज्योतिषी इन नामों से लोगों को डरा-धमका कर अपनी दुकानें चला रहे हैं। जब कि ज्योतिष ग्रंथों में स्पष्ट व्याख्यान है कि किसी भी कुण्डली में राहु शनि के समान और केतु मंगल के समान फल देता है। अब यदि कुण्डली में शनि की स्थिति खराब है तो राहु खराब फल देगा और अगर शनि की स्थिति अच्छी है तो अच्छा फल प्रदान करेगा। उसी प्रकार यदि मंगल की स्थिति खराब है तो केतु खराब फल देगा और अगर मंगल की स्थिति अच्छी है तो केतु अच्छा फल प्रदान करेगा। इनके अतिरिक्त भी और भी कई प्रकार के योग ज्योतिष ग्रंथों में दिये गये हैं, जिनसे की यदि यह योग वास्तव में कुण्डली में हो तो भी किसी भी प्रकार से नुकसानदायक नहीं हैं ।
जैसे की यदि राहु छठे भाव में स्थित हो और बृहस्पति केन्द्र में हो तो, जब राहु और चन्द्रमा की युति केन्द्र में हो, यदि शुक्र दूसरे या बारहवें घर में हो तो, यदि बुध आदित्य योग हो तो, यदि लग्न व लग्नेश बलवान हो, यदि कुण्डली में मात्र मंगल बली हो, यदि षनि अपनी राषि या उच्च राषि में केन्द्र में हो इत्यादि कई योग हैं इनमें से कोई भी योग स्थित हो तो यह काल सर्प दोष किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं देता है ऐसी स्थितियों के बावजूद शहर एवं देश के कुछ ज्योतिषियों ने इसे कमाई का मोटा साधन बना रखा है, जो न सिर्फ  आम जनता के साथ बड़े-बड़े विज्ञापन एवं होर्डिंग लगा कर धोखा कर रहे हैं, आम जनता को ठग रहे हैं, बल्कि दुखियों को सताकर उनसे जबरदस्ती पैसा ऐंठ कर उन्हें और दुखी बना रहे हैं। इनसे उन जातकों का भला कतई नहीं हो सकता। हां, करवाने वाले कथित ज्योतिषियों का भला अवश्य हो सकता है, जो कि जाने-अनजाने में इस जीवन में झूठ फरेब से पैसा कमा कर स्वयं अपने लिए अगले जन्म में ये यह योग निर्मित कर रहे हैं। शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि यदि कुण्डली में सर्प दोष या नाग दोष हो तो इसका एक मात्र उपाय है भुजंग दान। भुजंग कहते हैं सांप को। अब यह भी सत्य है कि सांप का दान कौन लेगा, तो इसका सीधा सा मतलब है कि किसी सर्प को आजाद करवाये, सर्पों की सेवा करे, उनकी प्राण रक्षा करेे न कि बड़े-बड़े होर्डिंगों और विज्ञापनों के झांसेे में आकर किसी नदी किनारे या सामूहिक रूप से पूजा करके चांदी के नाग नागिन का जोड़ा दान देवे।
 इस लेख के माध्यम से हम आम जनता को सावधान करना चाहते हैं और सलाह देना चाहते हैं कि झूठे विज्ञापनों और कुछ अपरिपक्व ज्योतिषियों की बातों में आकर इस दोष के माया जाल में नहीं फंसे। मात्र भगवत भक्ति, मात्र पितृ भक्ति, अपने सद्कर्मों के द्वारा यदि यह योग उपस्थित भी हो तो भी इससे छुटकारा पाया जा सकता है। अमूमन देखा गया है कि यदि ज्योतिषी 100 लोगों की कुण्डली में इसे बताते हैं, 100 लोगों को इससे डराते हैं, तो उनमें से मात्र दो लोगों में यह योग वास्तव में पाया जाता है। वह भी शास्त्रों के अनुसार सर्प योग या नाग योग होता है, न कि काल सर्प दोष। उन दो लोगों को भी इस दोष का दुष्परिणाम तभी मिलता है, जब कि कुण्डली में राहु या केतु की महादशा चल रही होती है और गोचर में राहु-केतु खराब स्थिति में चल रहे होते हैं। अत: इस योग से घबराने की कतई जरूरत नहीं है। यह दोष न होकर योग है, अत: मेहनत की कमाई को झूठे भ्रम एवं माया के जाल में फंसकर व्यर्थ करने की आवश्यकता नहीं है। ज्यादा तो मैं कह नहीं सकता हूं, किन्तु इतना अवश्य कहूंगा कि यदि ये राहु-केतु के काल सर्प दोष की दुकानें इसी तरह चलती रहीं तो हर चौराहे पर सभी देवी-देवताओं के मन्दिरों की जगह राहु या केतु के ही मन्दिर होंगे। हर दिन नाग पंचमी होगी, नेता से अधिकारी, और गरीब से अमीर तक अपना कर्म छोड़ कर तीन-तीन बार काल सर्प दोष की पूजा करवाने में व्यस्त होगा।
 इस लेख के माध्यम से हम यह कहना चाहते हैं कि हमारी किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। मात्र आम जनता को सावधान और काल सर्प योग से भयाक्रांत जनता को वास्तविकता बताने के उद्देश्य से ये लेख जनता की सेवा में उपस्थित है। फिर भी यदि इस लेख या इसके किसी भी भाग से किसी को कोई ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
-राकेश गोयल
ज्योतिष अनुसंधानकर्ता


ज्योतिष अनुसंघानकर्ता श्री राकेश गोयल पुत्र श्री ओम प्रकाश गोयल ने डीएलएल की शिक्षा अर्जित की है।
उनका संपर्क सूत्र:-
संस्थान-भव्य ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान केन्द्र,
3, ब्रह्मपुरी, कचहरी रोड, अजमेर-305001
निवास-प्रेम प्रतीक, कुमार कोठी, कचहरी रोड,
अजमेर-305001
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