गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

आइये जानिये जनसंघ से भाजपा की विकास यात्रा

भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को हुई थी। देश को आजाद हुए भी चार वर्ष ही हुए थे। इस बीच 1950 में संविधान लागू हुआ। नेहरू जी के मंत्रिमंडल में अलग-अलग प्रतिभाओं के गैर कांग्रेसी लोग भी थे। इसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर भी थे। देश का विभाजन हो चुका था, लेकिन पाकिस्तान के प्रति नेहरू सरकार की नीतियों के कारण राष्ट्रवादी शक्तियों के मन में अनेक आशंकाएं उत्पन्न हो गयी थीं। कश्मीर पर पाकिस्तान का 1947 में आक्रमण और नेहरू द्वारा बढ़ती हुई भारतीय सेना को युद्ध विराम कर रोक देना तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर विषय को ले जाकर उलझा देना, कई लोगों को यह राष्ट्रहित को क्षति पहुंचाने वाली नीति लग रही थी। यही नहीं, पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं के खिलाफ दमन चक्र चल रहा था और बड़ी संख्या में हिन्दू शरणार्थी बन कर भारत आ रहे थे। पाकिस्तान के प्रति कठोर नीति अपनाने के बजाय नेहरू सरकार नरम नीति अपनाए हुए थी। इस कारण असंतोष पैदा हो रहा था। श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पूर्वी पाकिस्तान के प्रति नेहरू जी के रवैये पर मतभेद होने के कारण मंत्री परिषद से त्यागपत्र दे दिया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पीपुल्स पार्टी नाम की पार्टी बनाई थी, उसको ही आगे भारतीय जनसंघ में परिवर्तित किया गया।
भारतीय जनसंघ की स्थापना के पूर्व डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सरसंघ चालक श्री गोलवलकर जी (श्री गुरूजी) से मिलने गए थे और संघ से सहयोग की अपेक्षा की थी। संघ स्वयं राजनीति में आ जाए, श्री गुरूजी ने इस प्रस्ताव को तो स्वीकार नहीं किया लेकिन राष्ट्रवादी राजनीतिक दल के गठन को अपना सहयोग देने का वादा किया और नये दल को खड़ा करने और प्रारंभिक अवस्था में उसका मजबूत ढांचा बनाने और देशभर में उसके कार्य का विस्तार करने के उद्देश्य से कुछ तपे हुए स्वयं सेवक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दिए। इनमें सर्वश्री पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख, सुंदर सिंह भण्डारी जैसे कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ता थे। इस प्रकार अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रवादी विचारों पर आधारित एक नए राजनीतिक दल की स्थापना हुई, जिसके प्रथम अध्यक्ष स्वाभाविक रूप से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।
पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1952 में हुआ। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने भी इसमें हिस्सा लिया और उसके तीन उम्मीदवार विजयी हुए। संसद में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक फ्रंट का निर्माण किया गया, जिसमें अकाली दल, गणतंत्र परिषद एवं अन्य छोटे-मोटे दल सहभागी हुए। फ्रंट के 31 सदस्य थे और उसके नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। वे भारतीय संसदीय इतिहास के प्रतिपक्ष के पहले नेता थे।
लोकसभा के प्रथम चुनाव में भारतीय जनसंघ को तीन सीटें और 3.07 प्रतिशत मत प्राप्त हुए और उसको मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा प्राप्त हो गया।
जम्मू-कश्मीर राज्य का वहां के राजा हरिसिंह ने भारतीय संघ में विलीनीकरण कर दिया। पं. नेहरू ने नेशनल कांन्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर राज्य का शासक नियुक्त किया। शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर के लिए अलग प्रधान, अलग विधान और अलग निशान लागू किया। इसके विरोध में प्रजा परिषद ने आंदोलन किया। प्रजा परिषद के इस आंदोलन में कई लोग शहीद हुए। प्रजा परिषद का नारा था 'एक देश में दो प्रधान, दो विधान और दो निशान नहीं चलेंगे।� प्रजा परिषद के इस आंदोलन को नवगठित भारतीय जनसंघ ने अपना आंदोलन बना लिया। बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश पर लागू प्रतिबंध को तोड़कर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राज्य में प्रवेश किया। उन्हें 18 मई को गिरफ्तार किया गया और 23 जून 1953 को शेख अब्दुल्ला की कारागार में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। अपनी निर्माणात्मक अवस्था में भारतीय जनसंघ को यह भारी आघात लगा।
भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक की विकास यात्रा को कुछ चरणों में बांट कर जाना जा सकता है:- प्रथम चरण-
यह चरण 1951 से 1973 तक का है। भारतीय जनसंघ यथास्थिति को तोड़कर भारतीय जीवन मूल्यों के अनुकूल और लोकतांत्रिक तरीके से परिवर्तन का आग्रह लेकर राजनीतिक मंच पर उतरा था। 21 अक्टूबर 1951 को स्वीकृत अपने प्रथम घोषणा पत्र में जनसंघ ने भारत को 'शक्तिशाली, सुसंगठित और सुसम्पन्न� बनाने का ध्येय सामने रख, 'भारत को सामाजिक और आर्थिक जनतंत्र� बनाने की बात कही। आर्थिक उन्नति के लिए 'उत्पादन में वृद्धि, वितरण में समानता तथा उपभोग में संयम� पर बल दिया। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने पहले जनसंघ के महामंत्री के रूप में और बाद में कुछ समय के लिए अध्यक्ष के रूप में भारतीय जनसंघ को संगठनात्मक स्वरूप प्रदान किया, उसकी विचारधारा और दर्शन का प्रतिपादन किया। उन्होंने एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया और कार्यकर्ताओं के चरित्र एवं अनुशासन पर प्रबल आग्रह रखा। उन्होंने भौगोलिक राष्ट्रवाद को अस्वीकार किया और चिति या संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भारतीय जनसंघ के राष्ट्रवाद के रूप में प्रस्तुत किया। भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जो जुड़ाव था, उसके चलते आदर्शवाद और लोकतंत्र भारतीय जनसंघ की विचारधारा बना। इस चरण में समर्पित कार्यकर्ताओं की शृंखला खड़ी करके उनमें वैचारिक स्पष्टता लाने और उन्हें आदर्शवाद से अनुप्राणित करने पर बल दिया गया। जनवरी 1965 में विजयवाड़ा के अधिवेशन में 'सिद्धांत और नीति� दस्तावेज स्वीकार किया गया, जो जनसंघ का मार्गदर्शक नीति दस्तावेज बना।
इस चरण में जनसंघ ने 5 चुनाव लड़े और उसका वोट प्रतिशत 3.07 से 7.36 के बीच रहा। 1967 में 9 राज्यों में कांग्रेस सत्ता विहीन हुई और मिलीजुली सरकारें बनी। जनसंघ भी न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर मिलीजुली सरकारों में सहभागी बना। द्वितीय चरण-
यह चरण 1973 से 1980 तक का है। इस चरण की मुख्य घटनाएं हैं- गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन, गुजरात विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस की हार और जनता मोर्चा की विजय, जय प्रकाश नारायण का छात्र आंदोलन को नेतृृत्व देना, बिहार आंदोलन, जयप्रकाश नारायण जी का समग्र क्रांति का नारा, श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहबाद न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन सिन्हा का फैसला, श्रीमती इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया जाना तथा उनको 6 वर्ष के लिए चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य घोषित किया जाना, श्रीमती इंदिरा गांधी से प्रधानमंत्री पद छोडऩे की मांग को लेकर श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्षी दलों का आंदोलन, श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून 1975 को देश में आपात स्थिति की घोषणा कर राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर देना, मीसा कानून का दुरुपयोग, अखबारों पर कड़ी सेंसरशिप, अपने निजी हित के लिए संविधान में एक के बाद एक अनेक संशोधन करना, संघ पर प्रतिबंध लगाना, न्यायालयों पर दबाव पैदा करना, प्रतिबद्ध न्यायपालिका और नौकरशाही के सिद्धांत पर अमल करना और पूरे देश में लोकतंत्र का गला घोंट कर सन्नाटा पैदा कर देना।
इस दौर की अन्य घटनाएं- विपक्षी दलों, लोकतंत्र में आस्था रखने वाले संगठनों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आपात स्थिति के विरोध में सत्याग्रह किया जाना, एक लाख से अधिक लोगों द्वारा सत्याग्रह करना और 25 हजार से अधिक लोगों को मीसा में बंद किया जाना इत्यादि। श्रीमती इंदिरा गांधी अपने तानाशाही चरित्र पर लोकतंत्र का पर्दा डाले रखना चाहती थी, इसलिए उन्होंने 1977 के आरंभ में लोकसभा चुनावों की घोषणा की। जेल में बंद विपक्षी दलों के नेताओं ने मिलजुल कर श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही मिटाने के लिए लोकसभा चुनाव लडऩे का फैसला किया। जनता पार्टी का गठन किया गया। भारतीय जनसंघ ने अपने को जनता पार्टी में विसर्जित कर दिया और जनता पार्टी के रूप में लोकसभा चुनावों में उतरा। जनता पार्टी की शानदार विजय हुई। इंदिरा गांधी पराजित हुईं, तानाशाही समाप्त की गई और जनता पार्टी का शासन प्रारंभ हुआ।
यद्यपि जनता पार्टी ने लोकतंत्र की पुन: स्थापना के लिए प्रभावी कदम उठाए और अच्छा शासन प्रदान किया, किन्तु कुछ घटकों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधों को लेकर जनसंघ से आए सदस्यों के बारे में दोहरी सदस्यता का प्रश्न खड़ा किया। जनसंघ इस विषय को लेकर जनता पार्टी से बाहर आ गया। उसके पश्चात् जनता पार्टी की सरकार गिर गई और इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गई।
तृतीय चरण-
1980 में तीसरा चरण प्रारंभ हुआ। 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक नया राजनीतिक दल बन कर सामने आया। यह चरण 1980 से प्रारंभ होकर 1996 तक फैला हुआ है। इस चरण में लोकसभा के चार चुनाव हुए, जिनमें भाजपा को क्रमश: 7.40 प्रतिशत(1984), 11.49 प्रतिशत(1989), और 20.04 प्रतिशत(1991) मत प्राप्त हुए। 1980 का चुनाव जनसंघ ने जनता पार्टी के अंग के रूप में लड़ा था। इसमें जनता पार्टी को 19 प्रतिशत वोट मिले और उसके 31 उम्मीदवार जीते। इनमें 15 जनसंघ के थे।
इस चरण की महत्वपूर्ण घटनाएं- भारतीय जनता पार्टी नामक एक राजनीतिक दल को सुदृढ़ करने के लिए देशभर में प्रमुख कार्यकर्ताओं का दौरा, इस बीच इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना, इसके तुरन्त बाद लोकसभा चुनावों की घोषणा, इंदिरा जी की हत्या के पश्चात् हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होना, भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटों पर विजयी होना, राजीव गांधी का धीरे-धीरे वोट बैंक की राजनीति में फंसते जाना, शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कानून में संशोधन करके बदल डालना, 1986 में राम मंदिर के द्वार खुलवाना, 1987 में शिलान्यास करवाना, बाद में वोट बैंक की तुष्टिकरणवादी राजनीति के दबाव में राम मंदिर मुद्दे से अपने हाथ खींच लेना, 1989 में पालमपुर(हिमाचल प्रदेष) में भारतीय जनता पार्टी द्वारा राम मंदिर आंदोलन के लिए प्रस्ताव पारित करना, बाद में वी.पी.सिंह का राजीव गांधी का साथ छोड़ कर बाहर आना, बोफोर्स खरीद में भ्रष्टाचार का प्रकरण उठना, भाजपा के सहयोग से वी.पी. सिंह के नेतृत्व में सरकार बनना, वी.पी. सिंह द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना, राम मंदिर मुद्दे के प्रश्न पर भाजपा द्वारा वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापिस लेना, श्री लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा और पूरे देश में राम लहर का निर्माण होना और पी. वी. नरसिंह राव की सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभर कर आना।
चतुर्थ चरण-
1996 में चतुर्थ चरण प्रारंभ हुआ। 1996 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली। 1996, 1998, 1999, और 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्राप्त सीटें और मत प्रतिशत क्रमश: इस प्रकार रहा-161 सीटें (20.29 प्रतिशत), 182 सीटें (25.59 प्रतिशत),182 सीटें (23.74 प्रतिशत) और 138 सीटें (22.16 प्रतिशत)। पहली बार केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई, किन्तु हमारे साथ अन्य दलों की अस्पृश्यता के चलते शिवसेना और अकाली दल को छोड़कर अन्य दल जुडऩे के लिए तैयार नहीं हुए। अत: संख्या बल के अभाव के चलते 13 दिन में यह सरकार गिर गई। 1998 में लोकसभा चुनावों में हम फिर से सबसे बड़े दल के रूप में उभरे। कुछ दलों के साथ मिल कर केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई। यह सरकार लोकसभा में 17 अप्रैल को मात्र एक वोट से पराजित हुई और यह मत भी संदेहास्पद था। इस बीच कारगिल में पाकिस्तान की सशस्त्र घुसपैठ और भारतीय सेनाओं द्वारा आखिरी घुसपैठियों को खदेड़ कर इस क्षेत्र को पाकिस्तान से मुक्त कराने की घटना उल्लेखनीय है।
1999 में हम पुन: सबसे बड़े दल के रूप में उभरे। अन्य दलों के साथ मिलकर हमने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का निर्माण किया और संयुक्त रूप से चुनाव लड़ा। चुनाव एजेंडा में सुशासन और सुराज को आधार बनाया गया तथा गठबंधन की राजनीति का दौर आगे बढ़ा। 1998 से 2004 तक श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में राजग ने केन्द्र में शासन किया। इस दौरान अनेक उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद 2004 के चुनावों में राजग को पराजय का मुंह देखना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार सत्ता में आयी। इस दौर में हमने ईमानदारी से गठबंधन धर्म का निर्वाह किया। सुशासन और सुराज्य के लिए प्रभावशाली कदम उठाये। महंगाई पर नियंत्रण रखा, जरूरी वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ाई, पोखरण में परमाणु विस्फोट कर भारत का विश्व में गौरव बढ़ाया। केन्द्र और राज्यों के रिश्ते बेहतर बनाए। संघात्मक शासन को सुदृढ़ किया और पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंधों की नीतियों पर चले।
इस लम्बी विकास यात्रा में हम समय-समय पर अनेक राज्यों में और फिर 96 में केन्द्र में भी सत्ता में आए। सत्ता के इस दौर का हमारे दल पर भी परिणाम हुआ। चरित्र, आदर्शवाद और अनुशासन, जिनके कारण भाजपा ने अपनी अलग पहचान बनाई थी, उनमें शिथिलता आई। एक ओर हमारा आत्मविष्वास बढ़ा दूसरी ओर आदर्शवाद शिथिल हुआ। आचार संहिता जैसे अपने प्रिय विषयों को स्थगित करने पर मजबूर हुए, इसके कारण पार्टी के कार्यकर्ताओं में नाराजगी पैदा होना स्वाभाविक था। आज हमारे समक्ष निम्नलिखित चुनौतियां हैं-
-गठबंधन राजनीति, जो समय का तकाजा है, के चलते अपनी विचारधारा और आग्रहों पर कैसे टिके रहें?
-विषम परिस्थितियों में भी कार्यकर्ताओं में आदर्शवाद का आग्रह कैसे जगाएं?
-दक्षिण भारत और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पार्टी का विस्तार कैसे करें?
-भारतीय जनता पार्टी के विरोधियों द्वारा लगातार दुष्प्रचार करके हमारी साम्प्रदायिक छवि बनाने का जो प्रयास हुआ है, उसे कैसे दुरुस्त करें?
-दलित वर्ग, अनुसूचित वर्ग और पिछड़े समाज जैसे समुदायों में पार्टी का विस्तार कर उसे सर्वस्पर्शी रूप कैसे प्रदान करें?
-पार्टी के विस्तार के परिणामस्वरूप नये आए कार्यकर्ताओं के लिए संस्कार की प्रभावी व्यवस्था कैसे करें?
-जिन राज्यों में हमारी सरकारें हैं, उनमें सुशासन और सुराज्य के उच्च मानदण्ड कैसे स्थापित करें?

-कंवल प्रकाश किशनानी
जिला प्रचार मंत्री, शहर जिला भाजपा अजमेर
निवास-599/9, राजेन्द्रपुरा, हाथीभाटा, अजमेर
फोन-0145-2627999, मोबाइल-98290-70059 फैक्स- 0145-2622590

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