मंगलवार, 29 मई 2012

ALL SINDHIS HOPE ASSOCIATION AGENDA FOR SINDHIS WELFARE IN INDIA

1. To work for and create unity amongst sindhi community through out world and in India.
2. To work for Social , Educational, Economical and Political Awareness and upliftment programs amongst sindhis
3. To preserve the Constitutional right of sindhis to be declared by the central govt. of India and other states as sindhi community constitutional minority and 8% OBC being linguistic minority in India by amending the constitution.
4. To suggest the central govt. of India to allow those sindhis who are residing in Pakistan to migrate to India without visa in lieu of british govt’s treaty of 1947 of partition of borders and land between India and Pakistan as the land of Sindh has been handed over to Pakistan and land of India have been allotted to hindus of Pakistan when a Pakistani citizen after 50 years coming to India can claim his properties by Enemy property act of India then why Hindus of Pakistan can’t claim their homeland in India as per conditions of british govt’s treaty of 1947.
5. To construct a big building for Sindhu Bhawan at All India Level in the India’s capital Delhi to solve the problems of sindhi community.
6. To suggest the central and state govts to form sindhi development board at central and state levels to solve the constitutional problems of Social, Educational, Economical and Political fields of sindhi community.
7. To suggest the central govt. and state govts. Through sindhi community proposal to declare Cheti Chand (Birthday of God Jhulelal of Sindhi Community) as national holiday just like mahavir jayanti, janmashtmi, gurunanak jayanti, guru govind singh jayanti, gud Friday, ramnovmi, durga ashtmi etc.
8. To form and get register “All India Sindhis Welfare Trust” to work for sindhi community for their awareness and upliftment in Social , Educational, Economical and Political fields.
9. To survey through out India to form sindhi community’s own political party in India for their legal and constitutional survival rights.
10. To work for to safe guard and protect the culture, civilization, heritage and language of sindhi community on this earth and must hope for creation, formation and existence with rebirth of sindh or sindhi state of sindhi community.

Agenda Narrated by : Ashok Matai
Advocate Notary Public, Ajmer

शुक्रवार, 25 मई 2012

दो बूँद पेट्रोल की

यूपीए सरकार ने सत्ता में तीन साल पूरे होने के उपलक्ष में इस देश की आम जनता को कभी ना भूला जाने वाली सौगात दे डाली. शाम को पार्टी में यूपीए के घटक दलों के नेताओ व सांसदों को बिरयानी खिलाई और अगले ही दिन "सुबह सवेरे जनता का पेट्रोल (तेल) निकाल दिया". ऊपर से शाम होते-होते दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के वित्त मंत्रीजी ने इस पर एक तडकता-भड़कता डायलोग दे मारा - "हमारे (सरकार के) हाथ में कुछ नहीं है, हम कुछ नहीं कर सकते. कीमतें तेल कम्पनियाँ तय करती हैं." बाय गोड हमने इतने जिगर वाले वित्त मंत्री आज तक नहीं देखे, जो खुद कबूल कर ले की - हमारे हाथ में कुछ नहीं है. खैर, जनता बेचारी किस्मत की मारी (सॉरी, मिसटेक हो गयी) "जनता बेचारी यूपीए के पेट्रोल की मारी", उस दिन को कोसकर चुपचाप सो गयी - जिस दिन उन्होंने पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी खरीदी थी. जनता व विपक्षी दलों ने सरकार को कोसना व घेरना शुरू कर दिया. सरकार ने अपनी तीन साल की उपलब्धियां गिनाते-गिनाते अपनी मजबूरियाँ गिनना शुरू कर दिया.
तभी, मुझे याद आया की हमरी सरकार के प्रधानमंत्रीजी तो दुनिया के सबसे बढ़िया वित्त मंत्रियों में से एक रह चुके हैं और उनकी अर्थशास्त्र का लोहा तो अच्छे-अच्छे मानते हैं. उनका साथ देने के लिए दादा प्रणब मुखर्जी , पी. चिदंबरम व कपिल सिबल सरीखी गुणी-विद्वानों की फ़ौज है. फिर भी हमारी और हमारे देश की अर्थव्यवस्था की यह हालत कैसे? चारों ओर महंगाई मूंह फाड़ रही है, सोने के भाव माथे पर चढ़ कर बैठे हैं, शेयर बाजार औंधा पड़ा है, रुपया बेचारा गिरता ही जा रहा है, पेट्रोल तोह आये दिन मूंह चिड़ाता रहता है - क्या इनका जवाब भी सरकार के पास यही है - हमारे हाथ में कुछ नहीं है.
भाईसाहब, सब्जी या फल-फ्रूट लेने जाओ तो ऐसा लगता है, मानो दुकानदार इनके भाव बताकर इस देश के आम नागरिक की माली हालत की हंसी उड़ा रहा हो. दूधवाला जब दूध का भाव बताता है तो खुद उसमे पानी मिला कर पीने का मन करता है. दालो-मसालों के भाव तो मानो मिर्ची लगाते प्रतीत होते हैं. आम आदमी तो चलो जैसे-तैसे जुगाड़ कर के दिन-पर-दिन गुजार रहा है, मगर गरीबों का हाल तो पूछो ही मत. हमारे देश में रोजाना ना जाने कितने ही लोग भूखे सोते हैं, मगर हमारे देश की धरती जो सोना उगलती है (अनाज) वो खुले में पड़ा सड़ रहा है. सरकार अनाज को खुल्ले में सड़ने देगी, बारिश में भीगने देगी, बोरियों के आभाव में गलने देगी - मगर इस देश की अभागी व भूखी जनता को नहीं देगी. ख़ैर, वित्त मंत्री साहब ने समझाया ना - सरकार के हाथ में कुछ नहीं है.
पहले ही महंगाई इस देश के आम आदमी का खून STRAW लगा-लगा कर चूस रही है. ऊपर से रुपया भी डॉलर के सामने सरेंडर हो चुका है. अब भैया, रूपये का भाव गिरेगा तो हिंदुस्तान का भाव कैसे बढेगा - समझाइये भला.रूपये का भाव गिरेगा तो भैया इलेक्ट्रोनिक आइटम्स, कच्चे तेल, मोबाइल, फ्रिज, टीवी इत्यादि के भाव तोह बढेंगे ही. उसके भी ऊपर, यदि पेट्रोल का भाव बढेगा तो भैया - अपनी तो टाय-टाय फिस्स. पेट्रोल के भाव के बढ़ते ही ट्रांसपोरटेशन कास्ट बढेगी जिससे आना और जान महंगा होगा, माल की आवाजाही महंगी होगी - फिर आम आदमी की जरुरत की हर चीज़ महंगी होगी. कल टीवी पर एक अंकलजी बोल रहे थे - "यह पेट्रोल किसने बनाया था? और बनाया भी तो बनाते ही उसमे आग क्यों नहीं लगा दी?" अब, उन अंकलजी को कौन समझाए की अगर पेट्रोल को बनाते ही उसमे आग लगा दी जाती, तो हमारी सरकार हमें कैसे चिढाती ? पेट्रोल (के भाव) में आग लगाने का काम तो सरकार का है, अंकलजी.
खैर, भैया यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पल्स-पोलियो की खुराक की तरह पेट्रोल की खुराक भी दो बूँद में ही नसीब होगी - क्यूंकि उससे ज्यादा खरीदने की तो हैसियत नहीं रह जायेगी ना. पेट्रोल के भाव इसी तरह बढेंगे तो पोलियो रविवार की तरह पेट्रोल रविवार मनाने के दिन दूर नहीं रह जायेंगे. तब भैया, आप और हम पेट्रोल पम्प जाकर कहेंगे - "भाईसाहब, आज दिल बहुत खुश है और किसी महंगी चीज़ पर पैसे उड़ाने का मन कर रहा है इसलिए - दो बूँद पेट्रोल की टपका दो".
सादर अपील:- यदि लेख अच्छा लगा हो तो शाबाशी की जगह थोडा सा पेट्रोल भिजवा दें कम से कम गाडी तो चल जायेगी.
साकेत गर्ग लेखक, युवा ब्लोगर व सीए,सीएस के विद्यार्थी हैं
इ-मेल: sketgarg@gmail.कॉम / ब्लॉग: gargsaket.blogspot.com

मंगलवार, 22 मई 2012

रूहानियत के बादशाह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती

अजमेर का नाम दुनिया भर में रोशन कर देने वाले सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का जन्म तो सीस्तान (अब अफगानिस्तान में) हुआ था लेकिन इनकी दरगाह इसी शहर में है। यहीं इनका सालाना उर्स मनाया जाता है जिसमें लाखों जायरीन अकीदत के फूल चढ़ाने आते हैं। आपका जीवनकाल सन् 1133 से 1243 ई. बताया जाता है (टेल्स ऑफ मिस्टिक ईस्ट, राधास्वामी प्रकाशन, पृ. 284) आपकी पीर परस्ती बेमिसाल थी। अपने पीर हजरत हारून चिश्ती को आपने अल्लाह मानकर उनकी खिदमत की।
एक बार हजरत उस्मान हारूनी अपने अनेक शिष्यों को लेकर धार्मिक यात्रा पर निकले। बीच में कहीं एक मंदिर आया। आप बोले - मैं भीतर जा रहा हूँ, तुम लोग बाहर मेरा इन्तजार करना। उधर आधे मुरीद तो उनके मंदिर में जाने से ही खफा होकर चले गए। फिर हुआ यह कि वे नौ माह तक भीतर ही रहे। उनकी प्रतीक्षा करते-करते बचे हुए सारे शिष्य थक कर चले गये, केवल मोईनुद्दीन चिश्ती ही वहां डटे रहे। मंदिर से बाहर आने पर उन्हें सच्चाई का पता चला। अपने उस अडिग मुरीद को उन्होंने गले लगाया और तत्काल भीतर से रोशन कर दिया। पीर ने उनको धीरे-धीरे रूहानियत के उच्चतम मुकाम पर पहुँचा दिया। यही कारण है कि आज लगभग आठ सौ साल बीत जाने के बाद भी दुनिया उनकी दीवानी है। एक लाख जायरीन प्रतिमाह उनके मजार पर सिर झुकाने आते हैं। हर शख्स की मुराद यहां पूरी होती है।
सुना जाता है कि एक बार आपने बड़े पीर साहब अब्दुल कादिर गिलानी के समक्ष कव्वाली सुनने की इच्छा जाहिर की। बड़े पीर साहब के कादरिया सिलसिले में कव्वाली का रिवाज नहीं था फिर भी उन्होंने ख्वाजा साहब की तमन्ना पूरी की - एक मृत कव्वाल की कब्र खोली, उसकी देह में रूह प्रविष्ट की, नहलाकर कपड़े पहनाए और उसे कव्वाली सुनाने का आदेश दिया। उस कव्वाल की अदायगी इतनी असरदार थी कि ख्वाजा साहब पर रूहानी मस्ती चढ़ गई। वे मस्ती में नाचने लगे। उनके 'हाल� से जमीन कांपने लगी। तब बड़े पीर साहब ने अपनी छड़ी जमीन पर टिकाकर धरती के कम्पन को स्थिर किया। ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व होने के फलस्वरूप ही ख्वाजा साहब का रूहानी वर्चस्व आज भी कायम है। अजमेर स्थित आपकी दरगाह का जर्रा-जर्रा चैतन्य है। यहां 800 वर्ष से लगातार विस्तारीकरण व सौन्दर्यीकरण का कार्य चल रहा है।
आरम्भ में यहां ख्वाजा साहब का केवल एक कच्चा मजार था। अजमेर के लोक समाज में ऐसी मान्यता है कि उस समय आसपास कुछ बड़े मंदिर व हिन्दू भवन थे जिन्हें पहले एबक और बाद में इल्तुतमश ने नष्ट कर दिया। ख्वाजा की मजार पन्द्रहवीं (1469 ई.) सदी के पूर्वाद्र्ध तक गुमनाम थी किन्तु 1455 ई. में यहां माण्डू के सुल्तान महमूद खिलजी ने 85 फीट ऊँचा बुलन्द दरवाजा बनवाया, फिर उसके पुत्र गियासुुद्दीन खिलजी ने गुम्बद बनवाया। सन्दलखाना व मस्जिद का निर्माण भी उसी समय हुआ बताते हैं। इसके बाद मुगलकाल में यहां का काया कल्प हुआ। बादशाह अकबर ने यहां एक विशाल मस्जिद बनवाई, लंगरखाना बनवाया और बड़ी देग भेंट की, छोटी देग जहांगीर ने नजर की जो ताम्बे की थी। शाहजहां ने जामा मस्जिद बनवाई और जहांआरा ने बेगमी दालान का निर्माण कराया। सन् 1915 में हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खां ने निजाम गेट बनवाया। बड़ी व छोटी देग में क्रमश: 120 मन व 80 मन चावल पकने की क्षमता है। बड़ी देग का घेरा 13 फीट व गहराई दस फीट है तथा चार सूत मोटी लोहे की चद्दरों से इसे बनाया गया था। सन् 1567 व 1612 तक लगातार प्रति वर्ष उर्स के दौरान यह देग शाही खर्च से पकवाई गई थी। इस तरह दरगाह का जो वर्तमान रूप है वह विगत 500 वर्ष के दौरान होते रहे निर्माण कार्य का परिणाम है। यहां चादर चढ़ाने की भी अनूठी प्रथा है जो ईरान, इराक व अरब देशों में भी नहीं है। अपने खादिम के जरिये जायरीन अपनी हैसियत के अनुसार मजार शरीफ पर कीमती चादरें चढ़ाते हैं। बेहद कीमती चादरें दरगाह के तोशाखाना में रख दी जाती है। यहां बादशाह औरंगजेब द्वारा अपने हाथ से लिखी गई कुरान सुरक्षित है। बेगमी दालान से पूरब दिशा में भिश्ती का मजार है। यह मकबरा उसी दिन के बादशाह भिश्ती का है जिसने चौसा के युद्ध के दौरान नदी में डूब रहे हुमायूं की जान बचाई थी। दरगाह के पिछवाड़े झालरा है। अकबर बादशाह के समय तारागढ़ पहाड़ी के उत्तरी उभार और दरगाह के बीच दो बांध बनाकर झालरे का निर्माण किया गया था जिसकी मरम्मत कर्नल डिक्सन के समय (1843-57) कराई गई थी। जामा मस्जिद, दरगाह परिसर में (1638 ई. में) शाहजहां द्वारा दो लाख चालीस हजार रुपए खर्च करके बनवाई गई थी। मस्जिद की जालीदार दीवार पर नुकीले ग्यारब मेहराब हैं। इस मस्जिद के भीतर इमामशाह में स्वर्णाक्षरों से कलमें उत्कीर्ण हैं। यह सम्पूर्ण दरगाह संगमरमर से निर्मित और नयनाभिराम है।
प्रतिवर्ष रजब की एक से छह तारीख तक यहां ख्वाजा साहब का सालाना उर्स मनाया जाता है। विशाल दरगाह में पांच छोटे दरवाजे हैं, दो पूरब में व तीन पश्चिम में। इसका मुख्य द्वार निजाम गेट उत्तर में है। दरगाह सूफी चेतना का शिल्पधाम है। यहां हिन्दू जायरीन अधिक आते हैं। विश्व की और भारत की अनेक नामी हस्तियां यहां की जियारत कर चुकी हैं।
दरगाह शरीफ में दर्शनीय निर्माण कार्य
1. मजारे मुबारक व दरबार शरीफ का निर्माण सुल्तान महमूद खिलजी ने 859 हिजरी में कराया। अकबर बादशाह ने सीपी का कटहरा बनवाया और बाद में शहंशाह शाहजहां ने कटहरे को चांदी का करवा दिया। गुम्बद के ऊपर सोने का कलश रामपुर के नवाब सालवली खान ने पेश किया।
2. जन्नती दरवाजा ख्वाजा साहब के हुजरे (कमरे) में आने-जाने का द्वार था। इस द्वार का यह नाम बाबा फरदुद्दीन गंज शकर ने अपनी अकीदत से रखा था। यह जन्नती दरवाजा ईद व बकरा ईद के अवसर पर एक-एक दिन के लिए खुलता है। ऐसे ही ख्वाजा साहब के उर्स के दौरान एक से छह तारीख तक खुला रहता है। जायरीन इस दरवाजे के सात चक्कर लगाते हैं।
3. बुलन्द दरवाजा सुल्तान महमूद खिलजी ने 1455 ई. में बनवाया। यह जमीन से 75 फीट ऊँचा है।
4. बड़ी देग 1567 ई. में बादशाह अकबर ने भेंट की और उनके पुत्र जहांगीर ने 1613 ई. में छोटी देग नजर की।
5. सुल्तान महमूद खिलजी ने ही मस्जिद संदल खाने का निर्माण करवाया। मजार शरीफ पर पेश करने के लिए संदल यहीं घोटा जाता था।
6. लटियों वाला दालान दरगाह में वह जगह है जहां अकबर ने जहांगीर के मन्नती बाल कटवाये थे।
7. 1570 ई. में अकबर ने विशाल अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
8. लंगरखाना वाली जगह पर स्वयं बादशाह अकबर ने फकीरों की पंक्ति में खड़े रहकर मिट्टी के बर्तन में लंगर कबूल किया था। 9. शाहजहां ने यहां सफेद संगमरमर से बेहद खूबसूरत शाहजहांनी मस्जिद का निर्माण कराया। इसी शंहशाह ने 1047 हिजरी में शाहजहांनी गेट बनवाया जहां आजकल नौबतखाना है।
10. मजार शरीफ के पूर्वी दरवाजे से लगा हुआ बेगमी दालान है। इसका निर्माण शहजादी जहांआरा ने 1053 हिजरी में करवाया था। इसके सामने वाले सेहन को आहाता-ए-नूर कहते हैं।
11. अर्काट के नवाब ने 1793 ई. में अर्कट का दालान बनवाया जो कि मजार शरीफ के दक्षिण है।
12. महफिल खाने का निर्माण हैदराबाद के नवाब बशीरूद्दौला ने 1891 ई. में करवाया था।
13. औलिया मस्जिद का निर्माण 1358 हिजरी में कटिहार के रईस चौधरी मोहम्मद बक्ष ने करवाया था। यह वही स्थान है जहां ख्वाजा साहब ने अजमेर में पहले दिन नमाज पढ़ी थी।
14. 1911 ई. में इंग्लैण्ड की क्वीन मैरी ने यहां मजार शरीफ पर हाजरी दी और एक हौज का निर्माण करवाया जिसे क्वीन मैरी हौज कहते हैं।
15. निजाम गेट का निर्माण हैदराबाद के निजाम ने बीसवीं सदी के आरंभ में कराया था।
इस तरह अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह जन-जन का आस्था धाम है; यह आपसी सद्भाव का मूर्तिमान रूप है; और सूफी चेतना का कालजयी स्मारक है।
-शिव शर्मा
101-सी-25, गली संख्या 29, नई बस्ती, रामगंज, अजमेर
मोबाइल नंबर- 9252270562

रविवार, 20 मई 2012

Plancess EduSolutions Pvt. Ltd.

Entrepreneurship is an aspiration but it requires a "never say die" attitude. Same goes for we three students currently studying in 4th year in MEMS (Metallurgy ) at IIT Bombay. Mirik Gogri, Nitesh Salvi and Vivek Gupta have launched Plancess EduSolutions Pvt. Ltd. to take engineering entrance & boards exam preparation beyond classroom coaching programs. This initiative is specially focused to overcome two challenges a) highly unaffordable and rising tuition fees of coaching classes and b) limited reach of these classes. To help India curb spending on education and make affordable coaching available to every part of India, Plancess has introduced the new concepts for learning citing the on-going growth in penetration of computers, mobile phones and Internet in urban as well as rural India.
Plancess product suite includes:
a) Video lectures - All PCM topics (11th,12th) delivered by top 100 IIT JEE'09 ( AIR 7,21,22,27,30,54,etc) students divided in two levels (foundation & advanced) available in DVD's. Over 330 Hours of video lectures with Personalized menus in each DVD for quick browsing. It avails a option for aspirants to buy from any one topic (cost INR 200 � 300) to full 11th,12th (cost INR 15,000) with many special packages . For Completeness we also provide a personal IITian mentor who will interact with aspirant on a weekly basis for guidance (only in full package).
b) Notebooks+ (It�s of first kind in India) - 180 pages A4 size notebooks with over 600+ formulae/chemical reactions/ equations printed at the footer of each page (adding value at no extra cost). Please find a attached file of Notebook+
c) Mentor ship Programs - One-to-One free mentor ship and success articles from IITians.
d) Chat with IITians - Connect directly to IITians at a single click on our website.
Please visit www.plancess.com for more details.
Shiksha Planner - मंजिल वही, दिशा नयी - FREE EVENT -
Plancess (founded by three IIT Bombay students) is all set to launch pan India free counseling seminars for engineering aspirants. Having cleared JEE and appeared for many other engineering entrance exams, we know what are the problems faced by students during the preparation phase and how these problems can easily be tackled. To address those challenges in much more detail and motivate these young aspirants to achieve their dreams of getting in the best colleges of the country, we have initiated a journey termed as "Shiksha Planner". We plan to conduct seminars in schools(junior colleges) and auditoriums in different cities.Moreover we also plan to invite entrepreneurs as guest speakers who had achieved tremendous success in their lives. All the three genre of people (current IIT batch, IIT alumnus and guest speakers) will give an overall view of career to the students as all the three genres are at different stages in their lives. We have conducted few counseling in past.
We are looking forward to have an article in your esteemed newspaper so as to create the Awareness.
Vivek Gupta
4th year B-Tech Student
IIT Bombay
09594055567

शुक्रवार, 18 मई 2012

मेंहदी हसन को इलाज के लिए भारत लाने की तैयारी


मेंहदी हसन की तबियत बहुत नासाज है
नारायण बारेठ
शहंशाह-ए-गजल मेंहदी हसन की तबियत बहुत नासाज है. उनके परिवार ने मेहदी हसन को उपचार के लिए भारत लाने की इच्छा जाहिर की है.
राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से हसन के परिजनों को और वीजा स्वीकृत करने का आग्रह किया है.
इससे पहले भारत ने हसन सहित चार लोगों के लिए तुरंत मेडिकल वीजा देना स्वीकार कर लिया. गहलोत ने दोबारा भारत में मेंहदी हसन के इलाज का पूरा खर्च उठाने की पेशकश की है.
इसकी वजह ये है कि मेंहदी हसन मूलत: राजस्थान के सपूत हैं. उनके पुश्तैनी गाँव झुंझुनू जिले के लुना में लोग इस गजल सम्राट की सेहत के लिए दुआ कर रहे हैं.
पुत्र ने गहलोत से गुहार लगाई
मेंहदी हसन अभी पाकिस्तान मे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं. उनके बेटे मोहम्मद आरिफ ने मुख्य मंत्री गहलोत से संपर्क किया और उन्हें अपने वालिद की गिरती सेहत के बारे में जानकारी दी.
आरिफ ने मुख्य मंत्री को बताया, "उनकी हालत बहुत नाजुक है, उन्हें खून की उल्टियाँ हुईं हैं. हम अपने वालिद को तुरंत पाकिस्तान से भारत लाना चाहते हैं."
उन्होंने अपने परिवार के कुछ और लोगों के लिए वीजा दिलाने में मुख्य मंत्री की मदद माँगी.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बारे में भारत के विदेश मंत्री को पत्र लिखा है. मुख्यमंत्री ने विदेश मंत्री कृष्णा से दो और लोगों के लिए वीजा स्वीकृत करने का अनुरोध किया है.
कोई चार माह पहले भी गजल गायक हसन गंभीर रूप से बीमार हो गए थे.
उन्हें पाकिस्तान के एक अस्पताल में जीवन रक्षक उपकरणों पर रखा गया था. तब भी गहलोत ने उनके परिवार से संपर्क किया और कहा कि राजस्थान सरकार उनके इलाज के लिए हर मुमकिन मदद को तैयार है.
पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग के अधिकारी मेंहदी हसन के परिजनों के सम्पर्क में हैं. भारत ने अभी मेंहदी हसन, उनके एक बेटे, पुत्र वधु और एक चिकित्सा सहायक के लिए वीजा स्वीकृत किया है.
पुश्तैनी गाँव में दुआ
इस दौरान हसन के पुश्तैनी गाँव लुना में लोग गजल गायक के स्वास्थ्य के लिए दुआ कर रहे हैं.
लुना के नारायण सिंह नब्बे साल के हो गए हैं. वे हसना के बाल सखा है. फोन पर बात हुई तो हसन को याद कर भावुक हो गए. कहने लगे हम तो उसकी आवाज के कायल है. "मुझे दिखता सुनता कम है. मैं अपने दोस्त को बहुत दिल से याद करता हूँ. भगवान से प्रार्थना है कि उसे स्वस्थ रखे."
लुना के पूर्व सरपंच कुरडाराम एक बार मेंहदी हसन से मिले हैं और दो बार उनसे फोन पर बात हुई है. कहते हैं, "जब भी उनसे बात हुई, वे अपने बचपन के दोस्तों का नाम ले-ले कर पूछने लगे. कहा, अरे वो नारायण सिह कैसे है. वो अर्जुन क्या कर रहा है."
कुरडाराम कहते हैं कि जबसे उनकी बीमारी और गंभीर हालत के बारे में सुना है, पूरा गाँव उनके लिए दुआ कर रहा है. गाँव में उनके पुरखों की याद में कब्रिस्तान में बना एक स्मारक है, जहाँ कभी हसन ने दुआ की थी. वे राजस्थान के शेखावाटी अंचल के लुना में पैदा हुए और फिर बँटवारे के दौरान पाकिस्तान चले गए.
एक और गायिका रेशमा भी इसी इलाके से हैं. धरती जब सरहदों में बँटी तो इंसानों की आवाजाही पर पहरे लगे. मगर फनकारों की आवाज किसी वीजा पाबंदियों से नहीं रूकती. उसे संगीनों के पहरे भी नहीं रोक सकते.
इसीलिए मेंहदी हसन की मखमली आवाज सरहद के दोनों ओर बहुत मनमानी से मुसाफिरी करती रही. मगर अब उस आवाज में बीमारी की दरारें पड़ गई हैं. लिहाजा डॉक्टर दवा तजवीज कर रहे हैं, तो उनके चाहने वाले हाथ उठा कर दुआ कर रहे है. इस पार भी, उस पार भी.
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से बीबीसी से जुड़े हैं

To, All Sindhis of All States In the India.


Kindly let me know in how many states of India we Sindhis have been recognized as minority and declared under OBC reservation particularly in the state of Maharashtra, MP, Gujrat, Delhi, Rajasthan etc. if not we sindhis residing in all these states should be directed to kindly file the representation before the govt. in which they reside for their right to be declared as minority and OBC by the state and the central govt. by amending the constitutional rights under article 341, so many surveys of population, caste creed, religion and family status just as backward and economical backward classes of the country are being conducted now a days through out India in our rajasthan state in the year 2007 a report conducted by national survey for family status is as follows :-
General Class : 22%
OBC class : 45%
SC class : 19%
ST class : 14%
_________________ 100%
___________________ this figure shows that in rajasthan most of the sindhis who are residing in rajasthan have been covered under 45% OBC that is why Mr. Ranveer Sahay chairman OBC Commission has recommended the following sindhi persons to be declared OBC reserved :
1) Bhatt 6%
2) Soni 6% (only sindhi sunar)
3) Satiya Sindhi 7%
4) Sindhi Musalman 8%
notification have been issued by the Govt. of Rajasthan
On the other hand we are linguistic minority in India but only on the point of religion we sindhis are not declared as minority through out India to avail the facilities of minority for our children. constitutionally minority may not be declared on the religion basis because constitution does inequality allow the govt. to do any act which counts to disparity and inequality on religious basis. actually the meaning of minority counts the number of population but the govt. of India has changed the meaning of minority to be based on religious that is why the muslims who are having the population of 25 crores in the country have been declared as minority on religion basis but not on numbering basis of the population.
The mandal Aayog has narrated 11 points as social, political, economical and educational backwardness for minorities we sindhis cover all the 11 points of mandal aayog being capable to be declare as minority but due to the percentage of voting we sindhis in India have been put on back foot because we are not even one crore in India but below one crore.
due to this inequality I filed a PIL writ petition before DB Bench in Rajasthan High Court which directed me to kindly representation be put before the Govt. as the Govt. is only law making body. that is why I am suggesting you to kindly guide the whole sindhis community of India to file representation in all states and before the central Govt. for our right of minority and OBC by amending the law to safe guard our constitutional right. my this letter be directed in all the states to all the sindhis for this pious work and any legal information be shared by us amongst us through India so as to achieve this goal.
Ashok Matai, Advocate

शनिवार, 12 मई 2012

दरगाह ख्वाजा साहब में इस बार लगी देग की रिकार्ड बोली

पता नहीं कि ये आस्था की गहराई है या फिर बढ़ती महंगाई का असर कि इस साल ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ची की दरगाह में सालाना उर्स के दौरान प्रसाद पकाने के लिए दो देगों की नीलामी में रिकॉर्ड बोली लगाई गई है.
इस बार इन दो बड़े मर्तबानों यानी देगों के लिए बोलीदाता को एक करोड़ 89 लाख 25 हजार रुपए देने होंगे. जबकि क्लिक करें पिछले साल इसके लिए बोली एक करोड़ 53 लाख रुपए से कुछ ज्यादा थी.
उर्स के दौरान इन देगों में प्रसाद पकता है और वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है. ये ठेका सिर्फ़ 15 दिनों के लिए है. उर्स 22 मई से शुरु हो रहा है.
शाकाहारी प्रसाद
उर्स के दौरान श्रद्धालु इस दरगाह में पकवान बनवाते हैं, जिसे श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है. कोई श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर भी इस दरगाह में प्रसाद बनवाता है. ये काम दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन की देखरेख में किया जाता है.
अंजुमन के सदर सैयद हिस्सामुद्दीन ने बीबीसी को बताया कि इन देगों में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने पर नियाज यानी प्रसाद पकवाते रहते हैं. वे कहते हैं, ''यकीन मानिए कि इन देगों के लिए साढ़े तीन साल के लिए अग्रिम बुकिंग चल रही है. इस बार बोली में कई खादिम शरीक हुए और ये काम कोई सोलह घंटे से भी ज्यादा चला. बाद में नासीर हाशमी के समूह को इसमें कामयाबी मिली."
अंजुमन के पूर्व सचिव सरवर चिश्ती बताते हैं कि इस नीलामी से मिलने वाली राशि से अंजुमन लंगर चलाती है, बच्चों की तालीम में पैसा खर्च होता है और ऐसे ही सामाजिक कार्यों में मदद दी जाती है.
मुगल बादशाहों की भेंट
इन देगों में पकने वाला प्रसाद खालिस शाकाहारी होता है. इसे बनाने में चावल और मैदे के अलावा जाफरान, घी, गुड़, शक्कर, सूखे मेवे और हल्दी जैसी स्वास्थ्यवर्धक चीज़ें शामिल की जाती हैं.
दरगाह में रखी बड़ी देग मुग़ल बादशाह अकबर ने खाव्जा की शान में भेंट की थी और छोटी देग बादशाह जहाँगीर की आस्था की गवाही देती है.
अंजुमन के मुताबिक बड़ी देग में 4,800 किलोग्राम और छोटी देग में 2240 किलोग्राम सामग्री बनाई जा सकती है. ये इतने बड़े मर्तबान हैं कि कोई चार हजार से ज्यादा लोग इससे भोजन कर सकते हैं. उर्स के अलावा दिनों में अगर कोई श्रद्धालु इन देगों में प्रसाद पकवाना चाहे तो छोटी देग के लिए 60 से 75 हजार और बड़ी देग के लिए कोई एक लाख 40 हजार रूपये जमा करने होते हैं. समय-समय पर इन देगों की मरम्मत भी कराई जाती है.
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से बीबीसी से जुड़े हैं

अशोक गहलोत की सकारात्मक पहल

आज कल बहुत चर्चा हो रही है आमिर खान के नए शो सत्यमेव जयते की पहला एपिसोड उन्होंने कन्या भ्रूण ह्त्या के बारे में दिखाया, मैंने वैसे देखा तो नहीं किन्तु यदि ऐसा कोई शो या लेख देख पढ़ कर कोई एक इंसान भी यदि भ्रूण ह्त्या का विचार त्याग दें तो शायद करोड़ों के बजट से बना हुआ कोई भी शो या फिल्म सार्थक हो जायेगी राजस्‍थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आमिर खान के टीवी शो �सत्यमेव जयते� का पहला ही एपीसोड हिट हो जाने के बाद आमिर से मिलने की आतुरता प्रदर्शित की। आमिर इसी शो में पहले ही कह चुके थे कि वे राजस्थान सरकार को चिट्ठी लिखेंगे कि कन्या भ्रूण हत्या के अपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए राजस्थान में एक विशेष न्यायालय स्थापित करें, जिस से उन का निर्णय शीघ्र हो सके और गवाहों को अधिक परेशानी न हो। राजस्थान सरकार के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि सरकार ने इस तरह के मामलों के लिए विशेष न्यायालय की स्थापना के लिए विचार किया है आमिर खान की पहल और राजस्‍थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आग्रह के बाद गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने कन्या भ्रूण हत्या मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने पर सहमति दे दी। गहलोत ने कन्या भ्रूण हत्या के मामले में ठोस कदम उठाने और फास्ट ट्रैक कोर्ट के मामले को आगे बढ़ाने के लिए शुक्रवार को बैठक की। बैठक में एनजीओ के साथ मेडिकल विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहे। राजस्थान की सरकार भी इस कार्यक्रम के माध्यम से वाहवाही लूटने को तैयार है. एक ही दिन में आमिर ख़ान मुख्यमंत्री से मिले. फिर मुख्यमंत्री मुख्य न्यायाधीश से मिले. दोनों एक ही दिन में सहमत हो गये. 48 घंटे बीतते बीतते मुख्य सचिव का प्रेस में बयान आ गया,ये सारे मामले. फास्ट ट्रॅक कोर्ट में जाएँगे
यद्यपि आमिर द्वारा अपने कार्यक्रम में उठाए गए सभी बिंदु भ्रूणहत्या के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन इसमें एक बड़ी वजह हमारे यहां प्रचलित दहेज जैसी कुप्रथा और हमारी रूढ़िवादी सोच भी है। आज इंसान पर व्यावसायिक वृत्ति हावी है। वह हर चीज में फायदा-घाटा देखता है और रिश्तों को भी इसी घाटे-फायदे के तराजू में तौलता है। जो जितना अमीर है, वह दहेज को उतना अधिक बढ़ावा देता है और फिर गरीब आदमी द्वारा उसकी नकल करना, इस बुराई की जड़ को और मजबूत करता जाता है। आज लोग आमिर जैसे मशहूर और सफल लोगों को आदर्श मानते हैं। ऐसे में उम्मीद है कि बेटियों को बचाने का आमिर का यह प्रयास सकारात्मक परिवर्तन ला पाएगा। आमिर ने तथ्यों-घटनाओं के माध्यम से यह प्रमाणित करने का भी सराहनीय प्रयास किया कि जितनी भ्रूणहत्याएं महानगरों और शहरों में होती हैं, उतनी गांवों में नहीं। अधिकांश गांवों में तो इलाज के लिए डॉक्टर ही नहीं मिलते, फिर भ्रूणहत्या कैसे होगी? यह अलग बात है कि बेटियों के प्रति भेदभाव में ग्रामीण मानसिकता भी अलहदा नहीं है। यह भी सचाई है कि आज जो जितना पढ़ा-लिखा है, उतना ही पाखंडी है। जैसे आज का तथाकथिक जागरूक व्यक्ति ही बेटी की गर्भ में हत्या करवा रहा है। किसी काम की शुरुआत अच्छी तरह की जाए तो सफलता तय होती है। कन्या भ्रूणहत्या जैसी समस्या पर आमिर खान ने ऐसी ही गंभीर पहल की है और तमाम शुभेच्छु जुटा लिए हैं। हमारे समाज में आज भी ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो बेटियों को बोझ समझते है
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ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं!


उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक प्रसिद्ध मिठाई वाले की दुकान पर एक बोर्ड टंगा है, जिस पर लिखा है, ठग्गू के लड्डू, ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं। इस दुकान के लड्डू खाकर अब मैंने भी अपनों परायों को ठगना शुरू कर दिया है। आपको सब कुछ तसल्ली से बताता हूं।
कुछ दिनों पहले की बात है। मैं इंडिया गेट घूमने गया था। एक स्थान पर पानी में कुछ बतखें तैर रही थीं। मैं उन्हें देखने लगा, तभी वहां पुलिस जैसी वर्दी पहने एक आदमी आया और मुझे टोका, ...क्या तुम्हें पता नहीं है कि यहां बतखों को देखने के पैसे लगते हैं। तुमने कितनी बतखें देखी हैं?
पुलिस को देखते ही मैं घबरा गया, फिर भी ऊपर से हिम्मत दिखाते हुए मैंने उसे कहा, जी दस, मैंने सिर्फ दस बतखें देखी हैं। उसने मेरे से कहा कि दस बतखों के पचास रुपए निकालो और वह मेरे से पचास रुपए लेकर चला गया। घर लौट कर मैंने अपनी पत्नी को बतलाया कि आज मैंने एक पुलीस वाले को ठग लिया। जिज्ञासावश उसने पूछा, वह कैसे? मैं बोला, मैंने इंडिया गेट पर पन्द्रह बतखें देखी थीं, लेकिन पुलिस वाले को दस ही बताई और इस तरह पच्चीस रुपए बचा लिए। ये पुलिस वाले सबको ठगते हैं, आज मैंने उन्हें ठग लिया।
ऐसा नहीं है कि मैंने पुलिस वाले को ही ठगा हो। एक बार रेलवे वालों को भी चकमा दिया। हुआ यह कि मैंने किसी को कह कर दिल्ली से मुंबई का सैकंड क्लास स्लिीपर का रिजरवेशन करवाया, लेकिन मैं गया ही नहीं। रेलवे वाले मुझे अब तक ढूंढ़ रहे होंगे। एक बार घरवाली ने सब्जीमंडी से नींबू लाने के लिए कहा। बोली जो भाव वह बताएं, उससे कम कराना। मैं हुलसा हुलसा वहां गया और सब्जीवाले से पूछा कि नींबू क्या भाव दिए तो वह बोला कि बीस रुपए के चार। मैंने उसे कहा कि कुछ कम करो तो वह मुस्कराते हुए बोला कि बीस के तीन ले जाओ। मैंने तीन नींबू छांटे और बीस रुपए पकड़ा कर सरपट चलता बना। सोचा, कही वह बाद में मुकर न जाए। वह ठगा सा देखता रह गया।
मैं रेडीमेड कपड़े नहीं पहनता हूं, इसलिए एक रोज बाजार से 250 रुपए में शर्ट का कपड़ा खरीदा और एवन टेलर के यहां पहुंचा। वहां मास्साब ने नाप लेकर एक सप्ताह बाद आने की कहा। जब एक सप्ताह बाद मैं शर्ट लेने गया तो उसने कहा कि सिलाई के 300 रुपए हुए। मैं उस समय तो किसी तरह बहाना बना कर वहां से आ गया। सोचा, 250 रुपए का कपड़ा और सिलाई के 300 रुपए? मैं दुबारा वहां गया ही नहीं और 300 रू. बचा लिए। वह टेलर मेरा इंतजार ही कर रहा होगा।
इस तरह मेरे द्वारा लोगों को ठगने और चकमा देने के कई किस्से हैं। रही बात किसी और के द्वारा मेरे को ठगे जाने की तो वह मैं आपको नहीं बताऊंगा क्योंकि राजस्थान में एक कहावत है, जिसके अनुसार पिटा हुआ ठाकुर और ठगा हुआ बिनया किसी को बताता नहीं है, तो मैं आपको क्यों बताऊं?
सरकार को चाहिए कि देश में इस ठग इंडस्ट्री की बढ़ोत्तरी को देखते हुए पिंडारी श्री, पिंडारी विभूषण तथा ठग श्री इत्यादि राष्ट्रीय पदवियां प्रदान करने की परम्परा चालू करे। हास्य-व्यंग्य सम्मेलन आयोजित करने वाले अब धर्त सम्मेलन का आयोजन कर सकते हैं ताकि वहां कतिपय नेताओं, बाबाओं और रक्षा सौदों के दलालों को सम्मानित किया जा सके।
-ई. शिव शंकर गोयल
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गुरुवार, 10 मई 2012

रुपहले पर्दे पर भंवरी देवी की दास्ताँ..

उसकी दलित बिरादरी उसे सियासत के सितम का शिकार बताती है. अब जोधपुर की उस मरहूम नर्स - भंवरी देवी की दास्ताँ सिनेमा के रुपहले पर्दे पर होगी.
राजनीति के गलियारों में भंवरी का कथित दैहिक शोषण और फिर उसकी कथित हत्या ने राजस्थान की सियासत में भूचाल ला दिया. अब फिल्म निर्माता रंजीत शर्मा 'भंवरी का जाल ' नाम से फिल्म बनाने अपनी पूरी टीम के साथ जोधपुर जा पहुंचे है. राज्य के जेल विभाग ने उन्हें फिल्म बनाने की अनुमति दे दी है.
रंजीत शर्मा ने बीबीसी से कहा ये फिल्म सत्य पर आधारित होगी. लोग अदाकारा साधिका रंधावा में भंवरी को देखेंगे.
साधिका अपने इस किरदार को लेकर बहुत उत्साहित है. वो भंवरी के हाव भाव, मनोदशा और उसकी जीवन शैली को पढ़ रही है. साधिका इससे पहले एक फिल्म और कई धारावाहिकों में काम कर चुकी है.
खुद राधिका रंधावा का कहना है कि "मैं भंवरी के पति अमरचंद से जेल में मिलने जा रही हूँ. कुछ जानकारी हासिल करुँगी.मैं उसके बाकी परिजनों से मिलूंगी. मैं भंवरी को गलत नहीं मानती, मगर मंजिल के लिए रास्ता भी सही होना चाहिए"
भंवरी का नाम बीते साल तब सुर्खियों में आया जब उसके पति अमरचंद ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. वो इन खबरों के बाद लापता हो गई कि भंवरी का तत्कालीन जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा के साथ अंतरंग संबंधों वाला एक वीडियो बाजार में आ गया है.
इस मामले ने तूल पकड़ा तो पहले मदेरणा को इस्तीफा देना पड़ा और फिर सीबीआई ने जाँच शुरू की तो मदेरणा और कांग्रेस विधायक मलखान सिंह विश्नोई सहित कोई पन्द्रह लोगों को भंवरी के अपरहण और फिर हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
राजनीति और विवाद
अभी सीबीआई को मलखान और इंदिरा विश्नोई की भी तलाश है.इन नेताओ ने हत्या के आरोपों को बेबुनियाद बताया है.
फिल्म के निर्देशक राकेश सैनी ने कहते है भंवरी का जाल की चार दिन की शुरुआती शूटिंग मुंबई में पूरी कर ली गई है. सैनी कहते हैं, ��अब हमारी टीम जोधपुर में है.ये पच्चीस दिन की शूटिंग का कार्यक्रम है.हमें उम्मीद है ये फिल्म अगस्त माह तक परदे पर होगी. इस फिल्म की शूटिंग जेल और उसकी असल जिन्दगी में पात्रो महिपाल, मलखान, अमरचंद, भंवरी के घर और गांव देहात पर केन्द्रित होगी.��
जेल के अधीक्षक एआर नियाजी ने बताया कि जेल के बाहरी आवरण तक शूटिंग की इजाजत दी है. इस फिल्म में सुदेश बेरी मलखान होंगे और कर्मवीर चौधरी में लोग मदेरणा का किरदार देखेंगे.
रंजीत शर्मा कहते हैं, ��ये एक जव्लत विषय था,इसलिए मुझे इस घटना में निहित सच ज़माने के सामने रखने का भाव आया.��
भंवरी की वास्तविक जिन्दगी को लेकर बहुत अफसाने हवा में है. मगर वो अपनी नट (दलित) बिरादरी में पहली ऐसी लड़की थी,जिसने तालीम हासिल की,मर्दों का वर्चस्व तोड़ कर नर्स का प्रशिक्षण लिया और सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में नौकरी हासिल की.
जोधपुर में दलित अधिकार कार्यकर्ता मूलाराम कहते है, ��वो हमारी नायक थी.पारम्परिक समाज में एक दलित लड़की का पढ़ लिख्र कर इस तरह आगे बढना आसान नहीं था.उसने जैसलमेर के दुरूह रेगिस्तान में जाकर नौकरी की.वो अपने तीनों बच्चों को बेहतरीन तालीम दिला रही थी.मगर अफ़सोस उसे जिन्दा नहीं रहने दिया गया.��
दलितों का दुख
महिपाल मदेरणा को भंवरी देवी मामले में गिरफ्तार किया गया था. दलितों को दुःख है कि कुछ जगह मीडिया में उसकी गलत छवि पेश की गई. मूलाराम कहते हैं, ��वो रचनात्मकता की तस्वीर थी. वो खुद एक कलाकार थी. उसने अलबम में काम किया.गीत संगीत में प्रवीण थी. उसमें सर्जन का जज्बा था. नेताओं के सम्पर्क आने से पहले भंवरी पर कोई धब्बा नहीं था.उसकी जिन्दगी बहुत खुशगवार थी.पर उसकी ज़िन्दगी में मोड़ तब आया जब वो अपने तबादले के लिए नेताओं से मिली फिर आप ही बताइए भंवरी को इस मक़ाम तक पहुँचाने के लिए कौन जिमेदार है.��
समय के सलीब पर लटकी औरत का किरदार फिल्म निर्माताओं को लुभाता रहा है. इससे पहले फिल्म निर्माता मरहूम जगमोहन मूंदड़ा ने जयपुर जिले के एक गांव भतेरी की एक साथिन भंवरी की आप बीती को सिनेमा के पर्दे पर उतारा था.
ये भंवरी कथित तौर पर गांव में बाल विवाह का विरोध करने पर 1992 दण्डित की गई और सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी. मूंदड़ा की फिल्म बवंडर ने रजत पट पर धूम मचाई होगी.मगर भंवरी की जिन्दगी वैसी ही है जैसे पहले थी.
जोधपुर की भंवरी ना जाने किस बियाबान मरुस्थल के हिस्से में मौत के घाट उतारी गई.विडम्बना देखिये वो जिन्दगी भर परदे पर आने का ख्वाव देखती रही लेकिन उसका संसार स्थानीय निर्माताओ के छोटे छोटे संगीत अलबम से आगे नहीं बढ़ सका.
अब उसी दिवंगत भंवरी पर फिल्म बन रही है.फिल्म होगी,कलाकार होंगे,किरदार होंगे और तमाशबीन भी होंगे.मगर वो भंवरी उसमे कहीं नहीं होगी.
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े हैं

गुरुवार, 3 मई 2012

इस राज में चाय मिली है, फूंक फूंक कर पी!

खबर है कि योजना आयोग ने घोषित किया है कि अगले वर्ष चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित कर दिया जायगा। इस घोषणा से उन लोगों को थोड़ा आश्चर्य हुआ होगा, जो अभी तक देखते आए हैं कि अधिकांश योजनाओं को आयोग से तब तक आसानी से हरी झंडी नहीं मिलती है, जब तक कि उसमें राज परिवार का नाम न हो। राष्ट्रीय झंडा-तिरंगा, राष्ट्रीय गान-जन गण मन, राष्ट्रीय गीत-वंदेमातरम, राष्ट्रीय फल-आम, राष्ट्रीय पेड़-बरगद की एक लम्बी सूची में अब राष्ट्रीय पेय चाय का नाम जुडऩे जा रहा है।
वैसे चाय का हमारे दैनिक जीवन में बड़ा महत्व है। कई भाग्यशालियों की दिनचर्या चाय से ही प्रारम्भ होती है। किसी भी सरकारी दफ्तर में अकसर किसी को कोई काम निकलवाना हो तो वह शुरुआत चाय से ही करता है। गर्मियों में राजस्थान इत्यादि कुछ प्रान्तों के कई कस्बों शहरों में छोटे छोटे होटल रेस्टोरेंट इत्यादि में इस तरह के इश्तहार लगा दिए जाते हैं, जिसमें लिखा होता है 2 कप चाय के साथ एक गिलास पानी फ्री। इससे आपको राजस्थान में पानी एवं चाय दोनों की महत्वता का पता लगता है।
ऐसे ही किसी किसी रेस्टोरेंट में कभी कभी दिलचस्प घटनाएं हो जाया करती हैं। एक रेस्टोरेंट में कुछ नौजवान मित्र चाय पीने के लिए मेज के इर्द गिर्द बैठे थे। उन्होंने बैरे को चाय का आर्डर दिया परन्तु यह नहीं बताया कि कितनी चाय लानी है। खैर, वह बेचारा अपने अंदाज से पांच कप चाय ले आया और मेज पर रख कर पूछा:-यह चाय काफी है? लड़कों ने उससे मजाक करते हुए कहा:-यह चाय है या काफी? अगर चाय है तो काफी ले आओ और काफी है तो चाय ले आओ!
जगह जगह की चाय की अपनी महत्वता है। मसलन मेडीकल कालेज के बाहर चाय की थड़ी के मुड्डा क्लब की चाय, झमट मल उर्फ झम्मू के होटल की चाय, रेलवे प्लेटफार्म की तथाकथित पेशल चाय, ट्रेन के डिब्बे में चाय के नाम पर उबले पानी वाली चाय, इलाइची वाली चाय, गुजराती कट, हरबल टी इत्यादि सब तरह की चाय सर्वत्र मिलती है।
चाय की खासियत को ही देखते हुए कभी अजमेर के मशहूर शायर बब्बन कव्वाल ने निम्नलिखित शेर कहा था:-
राम राज में
दूध मिला था,
कृष्ण राज में घी,
इस राज में,
चाय मिली है,
फूंक फूंक कर पी!
चाय की इसी महत्वता को देखते हुए अब इसे राष्ट्रीय पेय घोषित किया जाने वाला है। यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन जैसे राष्ट्र पिता, राष्ट्र गीत, राष्ट्र भाषा, राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय मुद्रा को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है, कहीं ऐसा ना हो कि चाय की भी अवहेलना हो जाए।
-ई. शिव शंकर गोयल
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ग़ज़ल

जिंदगी फूल नहीं कांटे को भी जगह देती है
सूखे से दिल में भी चाहत का सिला देती है
सूखे मटमैले से पत्ते झरते हैं जब शाखों से
बैरन हवा ले कर के फिर दूर तक उड़ा देती है
ज़माना लाख कर दे पैदा दुश्वारिया राह में
मिलने वालो को तो कुदरत भी मिला देती है
माना कि अपनी जुस्तजू में कोई कमी रही
सुना चाह तो पत्थर में भी फूल खिला देती है
प्यार की आस में जीते है बहुत ज़माने में पर
प्यार को हंस के लुटा दे, जिंदगी सीखा देती है
अपनी वफाओ का तकाजा नहीं करते 'आशु'
मगर दिल कहें या ना कहें आंख बता देती है
-आशा गुप्ता 'आशु'
रूम नंबर -7,प्रधान डाकघर के सामने,
नगरपालिका मार्केट, पोर्ट ब्लयेर,
अंडमान एवम निकोबार द्वीपसमूह,
पिन:744101
संपर्क:09564789933
Email:ashag754@gmail.com

मंगलवार, 1 मई 2012

शिक्षा का अधिकार कानून अब पूरी तरह संवैधानिक

शिक्षा का अधिकार कानून अब पूरी तरह संवैधानिक हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को पूरी तरह वैध माना है। मुख्य न्यायाधीश एस.एच.कपाड़िया, जस्टिस के.एस.राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने 12 फरवरी को अपने एतिहासिक फैसले में कहा कि यह कानून सरकार से वित्तीय सहायता ले रहे अल्पसंख्यक विद्यालयों पर लागू नहीं होगा। अब शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सभी सरकारी, वित्तीय सहायता प्राप्त व गैर वित्तीय सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीब विद्यार्थियों के लिए 25 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रहेगा। यूं तो यह कानून 2009 में ही पारित हो गया था, लेकिन तब निजी स्कूलों ने इसके खिलाफ याचिका दायर करके कहा था कि यह धारा 19 (1) के तहत कानून निजी शिक्षण संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनका तर्क था कि संविधान की धारा 19 (1) निजी संस्थानों को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपना प्रबंधन करने की स्वायत्तता देता है। यह हकीकत हे कि जब से देश में शिक्षा का निजीकरण प्रारंभ हुआ,तब से शिक्षा को एक वर्ग विशेष तक सीमित रखने के षडयंत्र भी प्रारंभ हो गए। दरअसल शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने की सोच उस पश्चिमी, विशेषकर अमरीकी मानसिकता से प्रभावित है, जो अपनी जरूरत के मुताबिक आम जनता को शिक्षा उपलब्ध कराती है। इसी सोच का नतीजा है कि आज अमरीका में विद्यालयों में बीच में पढ़ाई छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। स्नातक या उससे आगे की उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत बहुत कम है। कुछ दशकों पूर्व तक अश्वेत बच्चों को शिक्षा आसानी से उपलब्ध नहीं थी। यही स्थिति आज भारत की दिख रही है। संविधान में घोषित प्रावधानों के बावजूद दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, अति गरीबों के लिए शिक्षित होना आकाशकुसुम तोड़ने की तरह है। इस वर्ग को शिक्षा से वंचित रखने का मुख्य कारण यही है कि वह चुपचाप दमित होता रहे, शोषण सहता रहे और शारीरिक श्रम के अतिरिक्त उसके पास कोई विकल्प न रह जाए। दुर्भाग्य यह है कि भारत में शिक्षा का व्यापार करने वाले अमरीकी सोच से ही प्रभावित दिखते हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में ऐसे स्कूल बहुतायत में खुले हैं जिनमें तथाकथित भारतीय संस्कृति में विद्यार्थियों को दक्ष करने की बात कही गयी है, लेकिन यह व्यापारिक चतुराई से ज्यादा कुछ नहींहै। आर्थिक संपन्नता को आधार बनाकर सांस्कृतिक विषमता बढ़ाने की यह सोच दरअसल पूरे समाज को ही बांट कर रख रही है। निश्चित रूप से निजी स्कूलों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराशा हुई होगी, क्योंकि अब उनके आलीशान भवनों में गरीब का बच्चा भी पढ़ने जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट से मिली छुट के बाद अल्पसंख्यक विद्यालयों के संचालकों की बल्ले बल्ले हो गई संस्थानों की मण्डली के नेता कोसमोस शेखावत जिला शिक्षा अधिकारी को अल्पसंख्यक विद्यालयों की एक सूचि सोंप कर आ गये की इन 12 स्कूलों पर शिक्षा के अधिकार कानून का प्रभाव नही हे, बेचारे जिला शिक्षा अधिकारी उन्हें इस बारे में कुछ मालूम ही नही सो सूचि चुपचाप लेकर बेठ गये यह सवाल तक नहीं किया की आपके विद्यालय की स्थापना किस अल्पसंख्यक प्रवर्ग के कल्याण के लिए की गई है ? क्या आपके विद्यालय द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शेक्षणिक संस्थान आयोग भारत सरकार नई दिल्ली सेअल्पसंख्यक संस्थान होने सम्बधी मान्यता विधिवत रूप से प्राप्त की गई है ? क्या आपके विद्यालय का पंजिकरण, लोक न्यास अधिनियम 1950 अथवा सोसायटी पंजिकरण अधिनियम 1860 अथवा राजस्थान सोसायटी अधिनियम 1958 अथवा राजस्थान सहकार अधिनियम 1965 के अन्र्तगत करवाया गया है?
दरअसल अल्पसंख्यक संस्थान होने सम्बधी मान्यता प्रप्त स्कूलों के लिए सरकार के नियमों में स्पष्ट प्रावधान है कि राजस्थान सरकार के संकल्प संख्या ए.एस.एस-2008 दिनांक 24 जनवरी 2011 के बिन्दू संख्या 5 (5) (ए) व (बी) के अनुसार अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हेतु कुल स्वीकृत छात्र संख्या का 51 प्रतिशत उस अल्पसंख्यक प्रवर्ग का होना आवश्यक है जिस अल्पसंख्यक प्रवर्ग के कल्याण हेतु उस विद्याालय की स्थापना की गई। अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की अनुपलब्धता की स्थिती में अल्पसंख्यक विद्यालय द्वारा गैर अल्पसंख्यक छात्रों को प्रवेश देने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा जारी संकल्प दिनांक 24 जनवरी 2011 के बिन्दू संख्या (5) (6) (बी) की पालना में अल्पसंख्यक विकास विभाग से विधिवत स्वीकृति लेना अनिवार्य रखा गया है। अब सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर साफ नजर आएगी कि राजस्थान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शेक्षणिक संस्थान आयोग भारत सरकार से अल्पसंख्यक संस्थान होने सम्बधी मान्यता विधिवत रूप 82 स्कूलों ने प्राप्त की हुई है। अब हर मिशिनरी स्कूल यह दावा करके शिक्षा के अधिकार कानून की पालना से बचने की फिराक में है कि वह अल्पसंखयक स्टेट्स का स्कूल है
केंद्र सरकार की दलील यही है कि यह कानून सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की उन्नति में सहायक है। इसके तहत देश के हर 6 से 14 साल की उम्र के बच्चे को मुफ्त शिक्षा हासिल होगी यानी हर बच्चा पहली से आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य रूप से पढ़ेगा। सभी बच्चों को घर के आस.पास स्कूल में दाखिला हासिल करने का हक होगा। सभी तरह के स्कूल चाहे वे सरकारी हों, अर्ध्दसरकारी हों, सरकारी सहायता प्राप्त हों, गैर सरकारी हों, केंद्रीय विद्यालय हों, नवोदय विद्यालय हों, सैनिक स्कूल हों, इस कानून के दायरे में आएंगे। गैर सरकारी स्कूलों को भी 25 फीसदी सीटें गरीब वर्ग के बच्चों को मुफ्त मुहैया करानी होंगी। जो ऐसा नहीं करेगा उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। सभी स्कूल शिक्षित-प्रशिक्षित अध्यापकों को ही भर्ती करेंगे और अध्यापक-छात्र अनुपात 1:40 रहेगा। सभी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं होनी अनिवार्य हैं। इसमें क्लास रूम, टॉइलेट, खेल का मैदान, पीने का पानी, लंच, लाइब्रेरी आदि शामिल हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात कानून में ये हे की कोई स्कूल न तो प्रवेश के लिए कैपिटेशन फीस ले सकते हैं और न ही किसी तरह का डोनेशन। अगर इस तरह का कोई मामला प्रकाश में आया तो स्कूल पर 25हजार से 50हजार रुपये तक का जुर्माना वसूला जाएगा। निजी टयूशन पर पूरी तरह से रोक होगी और किसी बच्चे को शारीरिक सजा नहीं दी जा सकेगी। कुल मिलाकर इस कानून के प्रावधानों को पढ़ने से यही लगता है कि देश में शीघ्र ही इससे आमूलचूल सामाजिक बदलाव होगा। वर्तमान सरकार चाहे तो इसका शब्दश: पालन करवा कर इतिहास की धारा मोड़ कर रख दे। लेकिन पूर्व के अनुभव यही कहते हैं कि लक्ष्य अभी दूर है। कमजोर लोगों की उन्नति की सरकार की दलील सही है, लेकिन दवा का इंतजाम करने की अपेक्षा वह रोग को पनपने लायक माहौल ही खत्म कर दे, तो क्या बेहतर नहीं होगा। निजी स्कूल सरकार के निर्देशों के मुताबिक संचालित होंगे, इसकी संभावनाएं कम हैं, वे कोई न कोई पिछला दरवाजा ढूंढ ही लेंगे। चिंता इस बात की भी होनी चाहिए कि 75 प्रतिशत धनाढय बच्चों के बीच 25 प्रतिशत गरीब बच्चे किस प्रकार की मानसिक स्थिति से गुजरेंगे। अच्छा होता अगर सरकार निजी स्कूलों के बरक्स सरकारी स्कूलों का स्तर ही इतना ऊंचा कर लेती कि शिक्षा का व्यापार चलाने वालों को मुंह की खानी पड़ती। तब बच्चों के बीच न आर्थिक विषमता की खाई होती, न सामाजिक स्थिति का भेद, केवल शिक्षा के जरिए बेहतर भविष्य बनाने के सपने होते। सवाल यह है कि क्या सरकार के भी ऐसे सपने हैं?
Muzaffar Bharti
Cell:no 8764355800
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65 साल बाद भी विस्थापितों का वही दर्द...

पिछले कुछ सालो में भारत आये करीब 5,000 हिन्दू जोधपुर में पनाह लिए हुए है और भारत से नागरिकता के लिए विनती कर रहे है.
भारत विभाजन के 65 साल बाद भी विस्थापन का दर्द इंसानियत का पीछा नहीं छोड़ रहा है.पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक आबादी के लोग लगातार भारत आ रहे है. वो पनाह की मुराद लेकर आते है.
राजस्थान के जोधपुर में ऐसे कोई 5,000 पाकिस्तानी हिन्दू है,जो अपना गांव घर छोड़ कर भारत चले आए. वे भारत से अपनी नागरिकता के लिए गुहार कर रहे है.
भारत में हर सप्ताह ऐसे पाकिस्तानी हिदुओ की आमद दर्ज हो रही है,जो पाकिस्तान में धार्मिक भेदभाव की शिकायत करते है और वापस लोटने से इंकार कर देते है.
यूँ थार एक्सप्रेस हर सप्ताह दो मुल्को के बिछुडो को मिलाती है.मगर अब रिश्तो की ये रेल अपनी सर जमीन से उखड़े परिवारों को भारत लाने का जरिया बन गई है.
राज्य के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले तीन माह में कोई 333 पाकिस्तानी हिन्दू भारत आए. मगर उनमे से 203 ने वापस लोटने से इंकार कर दिया.
पश्चिमी राजस्थान में 7,000 लोग
पिछले कुछ सालो में भारत आये ऐसे कोई 5,000 हिन्दू जोधपुर में पनाह लिए हुए है और भारत से नागरिकता के लिए विनती कर रहे है. सीमान्त लोक संघटन के मुताबिक,पश्चिमी राजस्थान में ऐसे 7,000 लोग है,जो पाकिस्तान के हिन्दू अल्प्ल्संख्य्क है और वहां की नागरिकता को तिलांजली दे चुके है.
पाकिस्तान के सूबा सिंध और पंजाब से हर हफ्ते हिन्दू भारत का रुख कर रहे है.पिछले सप्ताह ही सिंध के रीनमल अपने बारह परिजनों के साथ धार्मिक यात्रा के नाम पर भारत आये और फिर सीधे जोधपुर चले आये.
कहने लगे पुरखो के घर को भीगी पलकों निहारा और फिर पीछे मूड कर देखने की हिम्मत नहीं हुई.
वीजा में अहतियात
भारत ने अब पाकिस्तान के हिन्दुओ को वीजा जारी करने में अहतियात बरतनी शुरू कर दी है.लिहाजा अब लोग हरिद्वार जैसे सथानो की धार्मिक यात्रा के नाम पर इस देश का रुख करते है और फिर शरण के लिए फरियाद करते है.
तीजा बाई पर्दा नशीं है.वो सिंध के टंडो अलियार में रहती थी. कोई दो सप्ताह पहले ही तीजा अपने छह बच्चो के साथ भारत चली आई. तीजा के पति इतने खुसनसीब नहीं थे कि उन्हें भी भारत का वीजा मिलता.
सकुचाई तीजा के बोल नहीं फूटे कि कैसे वो अपना दर्द बयां करे. नई जगह नए लोग,पुराने मुल्क में पति पीछे छूट गये. जोधपुर में पाकिस्तानी हिन्दुओ ने शहर के बाहर बसेरा किया है.
इनमे ज्यादातर दलित है या फिर आदिवासी भील. कहने लगे भारत हो या पाकिस्तान ,दर्जा तो हमारा दोयम ही है. पाकिस्तान से आये किशन कहते है ''यहाँ सुकून है,आज़ादी है ,सविंधान है,हम अपनी बात कह सकते है.''
दिलीप मेघवाल पाकिस्तान के पंजाब में रहते थे. कुछ समय अपने दो बच्चों और सास के साथ भारत चले आये. दिलीप मेघवाल कहते हैं, ''हाल के वर्षो में हिन्दुओ का जीना दुश्वार हो गया,जब से तालिबान का उभार हुआ है,जीवन और भी नारकीय हो गया.बहिन बेटियों का घर से निकलना कठिन हो गया,कभी भी अपहरण हो जाता है और धर्म बदलने के लिए दबाव मामूली बात है.''
आसान नहीं राह
पर भारत में भी उनकी राह आसांन नहीं रही. सरकार ने दिलीप को भारत छोड़ने का नोटिस दे दिया. उनका कहना है, ''वापस जाना मतलब जिन्दगी का खतरा दुगना,हम यहाँ जान दे देगे मगर वापस नहीं जायेंगे, अभी अदालत ने हमारी गुहार सुनी और स्थगन दे दिया.''
सीमान्त लोक संगठन के हिन्दू सिंह सोधा इन हिन्दुओ के लिए आवाज उठाते रहे है. वे कहते है, ''भारत ने अब तक ऐसे उत्पीडित लोगो के लिए कोई नीति नहीं बनाई है. लोग लगातार आ रहे है.भारत को इसे द्विपक्षीय वार्ता में उठाना चाहिए. पाकिस्तान को भी अपने अल्पसंख्यको के लिए कोई नीति घोषित करनी चाहिए,अगर ये लोग भारत नहीं आयेगे तो कहाँ जायेंगे.'' वे खुद भी पाकिस्तान से पलायन कर भारत आये है.
सोधा ने कहा, ''पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरवादी समूहो के ताकतवर होने के बाद अल्पसंख्यको के लिए राह कठिन हो गई है.सबसे बड़ी समस्या महिलाओ के लिए है,उनके अपरहण और फिर जबरन धर्म बदलने की घटनाओं ने पुरे हिन्दू समुदाय को चिंतित कर दिया है.''
पाकिस्तान से आए अजित दलित है. वे कहते है दलितों से जिमींदार या वडेरे जबरन मशकत कराते है और मजदूरी भी नहीं देते. ''हम चारपाई पर नहीं बैठ सकते,सार्वजनिक सथानो पर मटके से पानी नहीं पी सकते,स्कूलों में बच्चो को इस्लामी तालीम के लिए बाध्य किया जाता है,अब आप ही बताइए भारत नहीं आते तो कहाँ जाते.''
भारत ने कुछ साल पहले ऐसे कोई 13,000 हिन्दुओ को अपनी नागरिकता प्रदान की थी.
अपनी जड़ो से उखड़ने का दर्द बहुत गहरा होता है.इस वेदना को या तो डाल से टूटा पत्ता समझ सकता है या नीड से बेदखल कोई परिंदा.मगर सरहदों की सियासत इसे क्यों समझेगी.

लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े हैं।