शनिवार, 21 अप्रैल 2012

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा

दुख्तरे [बेटी] हिंद है। उसके हाथों ने अग्नि को नवाजा तो दुनिया ने भारत की कूवत की तपिश महसूस की। क्या खुशगवार मंजर है। अब्दुल कलाम ने मिसाइल की परविश की, तो तेसी थोमस ने अग्नि को अपने हाथों से परवाज दी। सरहद के उस पार से किसी बुरी नजर ने झांका तो उसके कदम ठिठक गए। एक ऐसा भारत जिसके कौमी परचम की छांव में जात-बिरादरी, धर्म-मजहब और आस्था-अकीदे की लकीरें मिट जाती हैं। गोया पूरी इंसानियत एकाकार है। ये उन लोगों को मादरे हिंद का माकूल जवाब है, जो मानवता को धर्म और जात बिरादिरी के सांचे में बांटना चाहते हैं।
बहुत फख्र होता है, अपने देश पर और दिल कह उठता है- सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा है। तेसी थोमस इसाई है। वो केरल में पली बढ़ी। काश, भारत की माटी का ये पहलु वो लोग समझ पाते, जो कभी कहते हैं महाराष्ट्र एक खास वर्ग का है तो हिंदुस्तान एक खास धर्म का है।
अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति रहे और अपने खुदा के पक्के अकीदतमंद हैं। भारत की रक्षा तैयारियों की कोई कहानी और कामयाबी के किस्से इतिहास में दर्ज होंगे तो उसमे कलाम का नाम सिरे फेहरिस्त होगा। भारत के माथे हिंद ओ पाक जंग में फतह का सेहरा बांधने वाले जनरल मानेकशा पारसी थे। भारत के पहले पांच सितारा एयर मार्शल अर्जन सिंह सिख हैं। भारत की विविधता, उदारता, विशालता और बहुलता एक ऐसा मोहक गुलदस्ता बनाती है, जिसमें हर तरह के रंग शुमार हैं। पर चंद लोग हैं जो इस दिलकश मंजर को एक खास रंग में रंगना चाहते हैं। ऐसे लोग इस धर्म में भी है, और वो उस धर्म में भी। मगर औसत भारतीय का मजहब तो इंसानियत है, क्योंकि सूफी संत, पीर मुर्शिद, मीरा, तुसली, जायसी, सूर, कबीर और रसखान से ये ही सदा बलंद करते रहे हैं।
भारत में मुसलमान एक सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग है। वो कोई पन्द्रह फीसद के आस-पास है। सेना में उनकी तादाद तीन फीसद है। मगर सरहद पर वतन के लिए कुर्बान होने वालों में उनकी संख्या छह प्रतिशत है। ऐसे हैं क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, सिख, इसाई, पारसी और जैन, सब भारत मां के लाडले हैं। बहुत कम लोगों को मालूम होगा उर्दू के शायर मरहूम फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय है। अपने सूबे में उर्दू दुनिया के बड़े दस्तखत हैं शीन काफ निजाम। अदब की दुनिया में बहुत बड़ा नाम है शीन काफ निजाम। उनकी शख्सियत इतनी विराट है कि जात-धर्म के तमगे छोटे हो जाते हैं। कौन जानता है कि उनका नाम शिवकुमार है। इंसानियत के ये रिश्ते इतने मजबूत, मगर एक महीन धागे में बंधे हैं कि कोई तोगडिय़ा और बुखारी इसे तोड़ नहीं सकता।
जयपुर के स्वर्गीय हबीब मियां दुनिया के सबसे बुजुर्ग हाजी और पेंशन याफ्ता माने जाते थे। वे एक सौ तीस साल से भी ज्यादा उम्र तक दुनिया में रहे और इंतकाल कर गए। मगर एक बैंक मैनेजर राजेश नागपाल ने न केवल इस उम्रदराज शख्स की बेटे की तरह खिदमत की, बल्कि उनकी हज यात्रा में मदद भी की। नागपाल ने ये सब किसी सियासी पार्टी से चुनावी टिकिट के लिए नहीं किया, न कभी इश्तिहारों में अपना नाम साया करवाया। ये रिश्ते किसी सियासतदां के भाषण और पार्टियों के घोषणा पत्र से नहीं निकलते। ये उस महान परम्परा का नाम है, जिसे भारत कहते हैं।
हिन्दुस्तान की सरलता और सहजता फिर से दोहराना चाहता हूं। भारत में सतारूढ़ गठबंधन की प्रमुख सोनिया गाँधी, इटली के ईसाई परिवार में पैदा हुई। आज वे भारत में सर्वाधिक ताकतवर नेता हैं। उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल एक मुस्लिम हैं। राष्ट्रपति एक महिला है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद की स्पीकर मीरा कुमार एक दलित के बेटी है। भारत के उपराष्ट्रपति एक मुस्लिम हैं। प्रधानमन्त्री एक सिख हैं। रक्षा मंत्री एक ईसाई हैं। विदेश राज्य मंत्री एक मुस्लिम हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश अल्पसंख्यक पारसी समुदाय से हैं। विश्व की सबसे बड़ी जम्हूरियत में चुनाव करने वाली संस्था के प्रमुख एक मुस्लिम हैं। देश के योजना आयोग के उपाध्यक्ष एक सिख हैं। जस्टिस फातिमा बीबी को भारत में पहली महिला जज होने का गौरव मिला है, जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। उनके बाद ये सम्मान सुजाता मनोहर को मिला।
भारत में हिंदी सिनेमा की तीन लोकप्रिय सितारे सलमान, आमीर और सलमान मुस्लिम हैं। इनमें एक की मां हिन्दू है, दो की पत्नियां हिन्दू हैं। तभी किसी ने कहा कोई बात है की हस्ती हमारी मिटत्ती नहीं। शुक्रिया।

लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े रहे हैं।

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