लोकतंत्र की अजनाब खंड यानि भारतवर्ष की जनता पर विशेष कृपा रही है। इस कृपा एवं स्नेह के कारण ही उसने एक रोज जनता जनार्दन को स्वयंमेव चलाकर कहा कि चंूकि अब सरकार एवं मिलावट करने वाले व्यापारियों के बीच तथाकथित 'शुद्ध के लिए युद्धÓ होने वाला है, इसलिए यदि तुम घर बैठे यह नूरा कुश्ती देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हंू। इस पर जनता जनार्दन ने उत्तर दिया कि मैं अपने कुल के एक हिस्से का संहार सीधे ही स्वयं नहीं देखना चाहता हूं। तब लोकतंत्र ने कहा कि मैं संजय रूपी इलैक्ट्रोनिक एवं प्रिन्ट मीडिया को वह दृष्टि प्रदान करता हूं, जिससे वह तुम्हें इस युद्ध के समाचारों को सनसनीखेज बना कर सुना देगा। ऐसा कह कर लोकतंत्र ने मीडिया को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
आगे संजय रूपी मीडिया जनता जनार्दन को इस तथाकथित युद्ध के समाचार दिखाते-सुनाते हुए कहते हैं:- हे राजन! आप द्वारा चुने हुए बुद्धिमान शिष्य मंत्री के द्वारा 'वज्रव्यूहÓ रचना से खड़ी की हुई सरकारी विभागों की बड़ी भारी सेना को देखिए।
हे बुद्धिश्रेष्ठ ! सरकारी अमले में बड़े बड़े पराक्रमी महारथी हैं, जिनके पास नामी अस्त्र-शस्त्र कानून एवं रथ, गाडी-घोड़े हैं, इनकी सेना में कई योद्धा मंत्री हैं, जो बड़े शूरवीर है, किस -किस का नाम लिया जाए? एक योद्धा तो खेलकूद की क्रीड़ाओं में गुरू द्रोण से भी अधिक माहिर माना जाता हैै और उसी में व्यस्त रहता है। दूसरा जो कि अरब शक्करपति है, कहता है कि मैं राज की निस्वार्थ सेवा करता हंू और सिर्फ एक रुपए पगार लेता हंू और राजन! उस गरूर, परिवर्तित नाम, नामक योद्धा का गरूर देखिए, जो कि सुदूर दक्षिण यानि मलयाली प्रदेश केरल से चल कर इस महाभारत में सम्मिलित होने कुरूक्षेत्र के मैदान में आया है। इसी योद्धा ने कभी 'ग्रेट इंडियन नॉवेलÓ में सम्पूर्ण अजनाब खंड को महाभारत बताते हुए कांग्रेस की तुलना कौरवों से कर दी थी। इतना ही नहीं राजन! मजे की बात देखिए, उसने भारतखंड के एक पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू, को धृतराष्ट्र की संज्ञा देते हुए इंदिर ागांधी को प्रियदर्शिनी की जगह प्रियदुर्योधिनी बतला डाला था और अब पाताल लोक की नौकरी छोड़ कर तथाकथित 'भेड़-बकरियों एवं पवित्र लाचार गायोंÓ के देश पर राज करने चला आया। ऐसे और भी कई योद्धा हैं। इनकी मदद हेतु सेना में बड़े-बड़े आईएएस योद्धा हैं। इनको घेरे हुए खडे हंै राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी। हे महाबाहो! युद्ध में विशेष रूप से पारंगत अपनी 2 अक्षौहिणी सेना लिए कई विभागाध्यक्ष भी खडे हैं, जिन्होंने अपने-अपने अतिरिक्त विभागाध्यक्षों इत्यादि को लेकर इस व्यूह की रचना की है। हे कुलश्रेष्ठ! इस वज्रव्यूह में विभिन्न विभागों के जिलाधिकारी अपने अपने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ खड़े है और इनके साथ खड़ी है, उनके इन्सपेक्टरों की चतुरंगिणी सेना, बड़ा ही अद्भुत दृश्य है राजन!
हे प्रजातंत्रश्रेष्ठ! यह इन्सपेक्टरों की एक अक्षौहिणी चतुरंगिनी सेना मन-बुद्धि से तो सामने वाले मिलावटियों के साथ है, लेकिन शारीरिक तौर पर सरकारी अमले के साथ खड़ी है। इसलिए ही बड़ी भारी दुविधा में है और बलहीन है।
हे लोकतंत्रश्रेष्ठ! दूसरी ओर जो बड़े-बड़े व्यापारिक योद्धा हैं, उनको भी देखिए, उन पर ध्यान दीजिए, इनमें बड़े-बड़े मिलावटिये हैं, जिनके घी-तेल में मिलावट के विशाल गोदाम हैं, जहां इनके कारिन्दे नकली माल को हुबहू असली माल की तरह बना कर शानदार पैकिंग कर देते हैं। सिन्थैटिक दूध बनाने वाले योद्धा भी इनके साथ हैं। इनमें से कुछ तो अक्सर धार्मिक कथाओं में आगे बैठे हुए नजर आते हैं और कभी-कभी भावावेश में नाचने भी लगते हैं। इनके गोदामों में चौथ वसूलने वाले सरकारी इन्सपैक्टरों के सिवाय चिड़ा भी पर नहीं मार सकता है।
हे वज्रबाहू! उधर देखिए उस व्यापारी के पास शहर से दूर अनजान जगहों पर विशाल गोदाम है, जिसमें यह भाव बढ़ाने हेतु दालों-शक्कर इत्यादि का जखीरा रखता हैै। इसी सेना के एक छोर पर दवाइयों में मिलावट करने वाले हैं, जिनके पास आम जनता पर वार करने के अमोघ शस्त्र हंै तो दूसरी ओर किरयाने के सामान में मिलावट करने वाले शूरवीर भी हैं। कोई काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाता है, कोई पिसी मिर्च में ईंट को पीस कर मिलाता है। कोई धनिये में घोड़े की लीद मिलाता है। ऐसे कई महारथी हैं और राजन! उधर देखिए उस छोर पर जो योद्धा खड़ा है, वह बड़ा ही पराक्रमी है, जिसने 'मिलावट के एक सौ एक नुस्खेÓ पुस्तक लिख कर उसे खारी बावली, चावड़ी बाजार, दिल्ली से प्रकाशित कराया है। कहते हैं कि इस पुस्तक को कतिपय क्षेत्रों में खूब सराहा गया है। हो सकता है कि इसे इस बार साहित्य अकादमी से कोई पुरस्कार प्राप्त हो जाए। ऐसे असंख्य शूरवीर हैं, किस-किस का वर्णन किया जाए? मैंने तो कुछ का ही वर्णन किया है। हे बुद्धिश्रेष्ठ! थोडे में ही समझना पर्याप्त है, क्योंकि आप तो सबको जानते ही हैं, आखिर यह सब 'एक ही थैली के ....Ó हैं।
जब दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हो गई तो प्रशासन ने गरज कर ढ़पोर शंख बजाया अर्थात 'शुद्ध के लिए युद्धÓ अभियान की घोषणा की। इसके बाद जगह-जगह से वक्तव्य, घोषणाएं, विज्ञप्तियां और सकर््यूलर निकलने लगे। बड़ा शोरगुल हुआ। तत्पश्चात सरकारी अमले के सेनापति मंत्री महोदय अपने रथ, ऐयरकन्डीशन गाडी पर बैठ कर वहां आए और सचिव से बोले कि मुझे दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़ा किया जाए, ताकि मैं इस युद्ध की इच्छा वालों को देख सकंू। जब उन्होंने दोनों ओर की सेनाओं को देखा तो अत्यंत कायरता से युक्त होकर विषाद करते हुए जनता जनार्दन से बोले:-
हे प्रजातंत्र रक्षक! युद्ध की इच्छा रखने वाले इस कुटुम्ब-समुदाय को युद्ध में दोनों ओर उपस्थित देख कर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मुख सूख रहा है तथा मेरे शरीर में कंपकंपी छूट रही है एवं रोंगटे खड़े हो रहे हैं, हाथ से कलम गिर रही है और त्वचा भी जल रही है और मेरा मन भ्रमित हो रहा है, मैं खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहा हूं।
हे जनता जनार्दन! मैं लक्षणों-शकुनों को भी विपरीत देख रहा हूं और इस तथाकथित युद्ध में दोनों ओर खड़े स्वजनों का नुकसान होता देख कर मुझे कोई लाभ नजर नहीं आ रहा है। हे जनता रूपी प्रभु! इनके विरुद्ध कार्यवाही करके मुझे चुनाव रूपी युद्ध में इनके तन-मन-धन की मदद लेनी होगी तो मैं वह कैसे प्राप्त करूंगा? इन लोगों के विरुद्ध युद्ध करने पर तो मुझे पाप ही लगेगा, जबकि हमारा धर्म तो ऐन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना है, हम धर्म विरुद्ध आचरण कैसे कर सकते हैं? ऐसा कह कर मंत्रीजी बाण सहित धनुष का त्याग करके, कलम-कागज त्याग कर, इस युद्धभूमि में सत्तारूपी रथ के मध्य भाग में बैठ गए और यह तथाकथित युद्ध, शुद्ध छदम युद्ध प्रतीत होने लगा।
तब जनता जनार्दन ने उन्हें समझाते हुए कहा हे पृथानन्दन! तुम इस नपुंसकता को ग्रहण मत करो। सरकारी तंत्र, लोकतंत्र का ही हिस्सा है। उसे निष्काम भाव से अपना कर्तव्य कर्म पूरा करना चाहिए। यही यज्ञ है, यही धर्म है, सिर्फ कर्मकांड अर्थात सरक्यूलर निकालना, अपनी फोटुओं सहित अखबारों में करोड़ों रुपए के बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाना, पहले से ही सूचना लीक कर छापे डालना और फिर इन्हीं जमाखोरों के चन्दे से चुनाव लडऩा धर्म नहीं है। हे पार्थ! अब सिर्फ यह नारा लगाना कि हमारा हाथ गरीबों के साथ है, काफी नहीं है, अत: इस हाथ से गांडीव, धनुष, कानून, का इस्तेमाल करें।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है:-
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजिनीयर्स सोसायटी, प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75
मंगलवार, 10 मई 2011
शनिवार, 7 मई 2011
जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे
देश का नया रिएलिटी शो, तोड़ गया रिकॉर्ड सारे,
शो का नाम था जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे।
शो के हर आइटम हिट थे,
क्योंकि एक ही शो में कई शो फिट थे।
चैनल वालों की बांछें खिल गई,
दिल्ली बिग बॉस की कुर्सी हिल गई।
खतरों के खिलाड़ी, नेताओं का रंग उड़ गया,
बबा रामदेव के आसन में एक और आसन अन्ना आसन जुड़ गया।
अन्ना आसन का अर्थ, अन्न को ना कहो, भूखे रहो।
इसमें ना हवा को लिया जाता है, ना छोड़ा जाता है,
इसमें हवा का रुख हितों के हिसाब से मोड़ा जाता है।
आसन का प्रभाव बाबा खुद जांच रहे थे,
तभी तो आसन के दौरान, डीआईडी स्टाइल में नाच रहे थे।
ना सुर, ना ताल, ना बोल,
एक बाबा इंडियन आइडल, अपनी परफॉरमेंस दे रहे थे।
आत्मा और परमात्मा में घोटालों का रेफरेंस दे रहे थे।
भाषा की अग्नि की, आवेश की, वेल्यू थी फेस की।
इस वेल्यू से सबको धो गए थे।
संत के भेष में सिलेब्रिटी हो गए थे।
शो को बनाना था सनसनीखेज,
महिला पुलिस की तेज-तर्रार इमेज।
लाठी की जगह भाषण बरसा रही थी,
आपकी कचहरी अन्ना की अदालत में लगा रही थी।
फैसला पहले से फिक्स था,
ये चुलबुल पांडे के साथ मुन्नी बदनाम का नया रीमिक्स था।
सब लोग थे रेलमपेल में,
संाप सीढ़ी के खेल में।
एक भूषण सीढ़ी पर चढ़े, फिर उतरे, फिर सीडी शिकंजे ने कस लिया,
निन्यानवे के फेर में, निन्यानवे में आ के समाजवादी सांप ने डस लिया।
लेकिन लाइफ लाइन बच गई,
हॉट सीट जच गई।
करोड़ों की संपत्ति भी अति,
सबको पता है कौन बनेगा करोड़पति।
बच्चे, बूढ़े, जवान सब में करंट था,
ये चैनल पर चहरों का टैलेंट हंट था।
एक चेहरे से पूछा, ये भ्रष्टाचार क्या होता है?
वो बोला कुछ नहीं सुविधाजनक समझौता है।
जिसके विरोध में शोर है,
सुविधा अपनी हो तो बात कुछ और है।
दूसरे से पूछा ये लोकपाल बिल क्या होता है?
वो बोला जब लोक को पालने वाला बिल में सोता है।
हम उसे जगा रहे हैं।
बिल में चूहा नहीं भैंस है,
भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं।
हम समझ गए ये सरकार को भैंस कह रहा है, और भैंस को सरकार।
दोनों ऐंठ गई, अन्ना हजारे क्या उठे, भैंस बैठ गई।
भैंस के बैठने के बाद, सब कर रहे हैं फरियाद,
बाबा बैठो, लेटो, कुछ तो करो, जियो या मरो,
क्योंकि हम जानते हैं, हमारी ये तमन्ना है,
पीपली लाइव का नत्था अपना प्यारा अन्ना है।
नेशनल नेटवर्क का सबसे बड़ा कवरेज है,
ईमानदारी का अंतिम दस्तावेज है,
आजाद भारत का चमत्कार है।
हमें इस शो के सीजन टू का इंतजार है।
यह रचना टीवी रियेलिटी शो लाफ्टर चैलेंज फेम व जाने-माने हास्य-व्यंग्य कवि श्री रास बिहारी गौड़ की है।
उनका संपर्क सूत्र है:-09680073007
शो का नाम था जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे।
शो के हर आइटम हिट थे,
क्योंकि एक ही शो में कई शो फिट थे।
चैनल वालों की बांछें खिल गई,
दिल्ली बिग बॉस की कुर्सी हिल गई।
खतरों के खिलाड़ी, नेताओं का रंग उड़ गया,
बबा रामदेव के आसन में एक और आसन अन्ना आसन जुड़ गया।
अन्ना आसन का अर्थ, अन्न को ना कहो, भूखे रहो।
इसमें ना हवा को लिया जाता है, ना छोड़ा जाता है,
इसमें हवा का रुख हितों के हिसाब से मोड़ा जाता है।
आसन का प्रभाव बाबा खुद जांच रहे थे,
तभी तो आसन के दौरान, डीआईडी स्टाइल में नाच रहे थे।
ना सुर, ना ताल, ना बोल,
एक बाबा इंडियन आइडल, अपनी परफॉरमेंस दे रहे थे।
आत्मा और परमात्मा में घोटालों का रेफरेंस दे रहे थे।
भाषा की अग्नि की, आवेश की, वेल्यू थी फेस की।
इस वेल्यू से सबको धो गए थे।
संत के भेष में सिलेब्रिटी हो गए थे।
शो को बनाना था सनसनीखेज,
महिला पुलिस की तेज-तर्रार इमेज।
लाठी की जगह भाषण बरसा रही थी,
आपकी कचहरी अन्ना की अदालत में लगा रही थी।
फैसला पहले से फिक्स था,
ये चुलबुल पांडे के साथ मुन्नी बदनाम का नया रीमिक्स था।
सब लोग थे रेलमपेल में,
संाप सीढ़ी के खेल में।
एक भूषण सीढ़ी पर चढ़े, फिर उतरे, फिर सीडी शिकंजे ने कस लिया,
निन्यानवे के फेर में, निन्यानवे में आ के समाजवादी सांप ने डस लिया।
लेकिन लाइफ लाइन बच गई,
हॉट सीट जच गई।
करोड़ों की संपत्ति भी अति,
सबको पता है कौन बनेगा करोड़पति।
बच्चे, बूढ़े, जवान सब में करंट था,
ये चैनल पर चहरों का टैलेंट हंट था।
एक चेहरे से पूछा, ये भ्रष्टाचार क्या होता है?
वो बोला कुछ नहीं सुविधाजनक समझौता है।
जिसके विरोध में शोर है,
सुविधा अपनी हो तो बात कुछ और है।
दूसरे से पूछा ये लोकपाल बिल क्या होता है?
वो बोला जब लोक को पालने वाला बिल में सोता है।
हम उसे जगा रहे हैं।
बिल में चूहा नहीं भैंस है,
भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं।
हम समझ गए ये सरकार को भैंस कह रहा है, और भैंस को सरकार।
दोनों ऐंठ गई, अन्ना हजारे क्या उठे, भैंस बैठ गई।
भैंस के बैठने के बाद, सब कर रहे हैं फरियाद,
बाबा बैठो, लेटो, कुछ तो करो, जियो या मरो,
क्योंकि हम जानते हैं, हमारी ये तमन्ना है,
पीपली लाइव का नत्था अपना प्यारा अन्ना है।
नेशनल नेटवर्क का सबसे बड़ा कवरेज है,
ईमानदारी का अंतिम दस्तावेज है,
आजाद भारत का चमत्कार है।
हमें इस शो के सीजन टू का इंतजार है।
यह रचना टीवी रियेलिटी शो लाफ्टर चैलेंज फेम व जाने-माने हास्य-व्यंग्य कवि श्री रास बिहारी गौड़ की है।
उनका संपर्क सूत्र है:-09680073007
एक विचार
जब अमेरिका अपने कमांडो को दूसरे देश पाकिस्तान में भेजकर अपने देश को, अपने देश के नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन को मार सकता है तो क्या भारत जिसने अपने देश में आतंकवादी गतिविधि करने वाले अजमल कसाब को रंगे हाथों पकड़ा था, का कुछ नहीं कर सकता। क्यों उसे गोद में बैठा कर पाल रहा है? क्यों उसके ऊपर इतना पैसा खर्च किया जा रहा है? माना कि भारत गांधीवादी विचारों वाला देश है कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल उसके आगे कर दो। इस हिसाब से तो कसाब जब अपने साथियों के साथ बेगुनाह लोगों की हत्या कर रहा था, तब होटल के बाहर से कुछ और बेगुनाह लोगों को उनके सामने पेश कर दिया जाना चाहिए था कि लो भई! हमारे इन्हें भी मार लो, हम तो गांधीवादी विचारधारा के हैं। इस तरह के विचार अपनी जगह हैं और गुनाहगार को सही समय पर सही सजा देना अपनी जगह है। वहीं दूसरी ओर कसाब की स्थिति देखकर नरक में बैठा ओसामा सोच रहा होगा कि काश! मैं भी भारत में छुपता तो पकड़ में नहीं आता और अगर पकड़ में आ भी जाता तो कसाब की तरह ऐश करता और अभी भी जिन्दा रहता। मुझे सजा नहीं मिलती, केवल तारीख मिलती।
-प्रवीण कुमार, कम्प्यूटर शिक्षक
-प्रवीण कुमार, कम्प्यूटर शिक्षक
सोमवार, 2 मई 2011
घर का भेदी लंका ढावै !
हमारे पुरखे कोई भी कहावत यों ही नहीं बना गए। हर एक कहावत अपना महत्व रखती है। अब आप इस कहावत को ही लें, जिसमें कहा गया है, 'घर का भेदी लंका ढावैÓ अर्थात अपना भेद जानने वाला, मसलन विभीषण ही लंका के पतन में मदद करता है। इस कहावत का ही परिणाम है कि आज तक कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखता।
इतना ही नहीं सारे भारत में विभीषण का कोई स्मारक अथवा मंदिर भी दिखाई नहीं देगा। हां, अलबत्ता धनुशकोड़ी, रामेश्वरम में, एक सुनसान वीरान जगह, जो तीन तरफ समुद्र से घिरी है, उपेक्षित पड़ा छोटा सा विभीषण का स्थान जरूर है। वैसे रामायण के अनुसार विभीषण ऋषि पुलस्त्यजी की ही संतान एवं रावण के छोटे भाई थे। हनुमानजी महाराज जब सीता माता की खोज में लंका का चक्कर लगाते हैं तो विभीषण का घर देख कर बरबस उनके मुंह से निकल पडता है:-
'लंका निसिचर निकर निवासा,
यहां कहां सज्जन कर वासा।Ó -रामचरितमानस सुन्दरकांड
अर्थात यहां तो सब जगह राक्षस ही राक्षस हैं, यहां सज्जन, अर्थात सही, सच बात बोलने वाला, कहां से आ गया? और इसी वजह से वह स्वयं पहल कर विभीषण से मिलते हैं:-
'एहि सन हठि करिहउं पहिचानी,
साधु ते होइ न कारज हानि.Ó -सुन्दरकांड
हनुमानजी सरीखे ज्ञानी-ध्यानी विभीषण को सज्जन एवं साधु मानते हैं। बाद में दोनों में सुखद एवं उपयोगी वार्तालाप होता है। तदोपरांत रावण द्वारा जब विभीषण का अपमान किया जाता है तो वह यह कह कर राम से मिलने लंका से चल देते हैं:-
'रामु सत्य संकल्प प्रभु, सभा कालबस तोरि, मैं रघुवीर सरन अब, जाउं देहु जनि खोरि।Ó -सुन्दरकांड
और यही विभीषण जब रामजी के पास आते हैं तो सुग्रीव द्वारा विपरीत टिप्पणी के बावजूद वह उन्हें अपने साथ ले लेते हैं और संक्षिप्त वार्तालाप के बाद यह कहते हुए राज तिलक कर देते हैं कि यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें लंका का राज देता हूं-
'जदपि सखा तब इच्छा नाही,
मोर दरसु अमोघ जग माही,
अस कहि राम तिलक तेहि सारा,
सुमन वशिष्ट नभ भई अपारा।Ó -सुन्दर कांड 48
यहां तक तो विभीशण के गुणों का बखान किया गया है, लेकिन जैसे ही वह अपने भाई के वध हेतु रामचन्द्रजी को उसकी नाभि कुंड का रहस्य बता देते हैं तो पहले रावण का और अंतत: लंका का पतन हो जाता हैं-
नाभिकुंड पियूश बस याकें,
नाथ जियत रावनु बल ताकें।Ó -लंका कांड 101.3
और इसी कारण से आज तक विभीषण के बारे में उपरोक्त कहावत कही-सुनी जाती रही है। लेकिन कलियुग में इस कहावत को एक मंत्रीजी ने तब चरितार्थ कर दिया जब उन्होंने पाली, राजस्थान में अपने ही कुनबे, दल की आपातकाल में घटित कुछ बातों का रहस्य आम जनता को उगल दिया। लोगों का कहना है कि अगर रहस्य उगलना ही था तो उन्हें चाहिये था कि दिल्ली में बैठे अपने कुनबे के बड़े बड़े महारथियों, वजीरों से कहते कि विदेशी बैंकों में किस-किस का कितना धन है, वह भेद उगलो या जिन्होंने बैंकों से उधार लेकर लोगों का धन हड़प लिया और फिर अपनी कम्पनियों के नाम बदल लिए, वह रहस्य उजागर करो, टैक्स चोरों के नाम बताओ, इतने बडे बडे घोटालें क्यों हो रहे हैं, यह राज खोलो, हार्वर्ड में पढ़े हुए और विश्व बैंक में काम के अनुभवी मंत्रियों एवं योजना आयोग के पदाधिकारियों के होते हुए महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ रही है, यह बताओ। कृषि की विकास दर तो आपके समय में पहले ही गिर ही रही थी, अब औद्योगिक विकास दर भी क्यों नीचे जा रही है? भ्रष्टाचार क्यों फैलता जा रहा है? नित नए घोटाले क्यों उजागर हो रहे हैं? यह सब लोगों को बताओ, लेकिन यह सब तो बतायेंगे नहीं, बीच में ही आपातकाल के 'राजÓ बताने लग गए। इसका नतीजा यह होगा कि लंका तो ढ़हेगी जब ढ़हेगी, फिलहाल तो उन मंत्रीजी का पद भी गया और कद भी गया और लोगों को यह कहने का और मौका मिल गया कि 'घर का भेदी लंका ढ़ावै।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75
इतना ही नहीं सारे भारत में विभीषण का कोई स्मारक अथवा मंदिर भी दिखाई नहीं देगा। हां, अलबत्ता धनुशकोड़ी, रामेश्वरम में, एक सुनसान वीरान जगह, जो तीन तरफ समुद्र से घिरी है, उपेक्षित पड़ा छोटा सा विभीषण का स्थान जरूर है। वैसे रामायण के अनुसार विभीषण ऋषि पुलस्त्यजी की ही संतान एवं रावण के छोटे भाई थे। हनुमानजी महाराज जब सीता माता की खोज में लंका का चक्कर लगाते हैं तो विभीषण का घर देख कर बरबस उनके मुंह से निकल पडता है:-
'लंका निसिचर निकर निवासा,
यहां कहां सज्जन कर वासा।Ó -रामचरितमानस सुन्दरकांड
अर्थात यहां तो सब जगह राक्षस ही राक्षस हैं, यहां सज्जन, अर्थात सही, सच बात बोलने वाला, कहां से आ गया? और इसी वजह से वह स्वयं पहल कर विभीषण से मिलते हैं:-
'एहि सन हठि करिहउं पहिचानी,
साधु ते होइ न कारज हानि.Ó -सुन्दरकांड
हनुमानजी सरीखे ज्ञानी-ध्यानी विभीषण को सज्जन एवं साधु मानते हैं। बाद में दोनों में सुखद एवं उपयोगी वार्तालाप होता है। तदोपरांत रावण द्वारा जब विभीषण का अपमान किया जाता है तो वह यह कह कर राम से मिलने लंका से चल देते हैं:-
'रामु सत्य संकल्प प्रभु, सभा कालबस तोरि, मैं रघुवीर सरन अब, जाउं देहु जनि खोरि।Ó -सुन्दरकांड
और यही विभीषण जब रामजी के पास आते हैं तो सुग्रीव द्वारा विपरीत टिप्पणी के बावजूद वह उन्हें अपने साथ ले लेते हैं और संक्षिप्त वार्तालाप के बाद यह कहते हुए राज तिलक कर देते हैं कि यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें लंका का राज देता हूं-
'जदपि सखा तब इच्छा नाही,
मोर दरसु अमोघ जग माही,
अस कहि राम तिलक तेहि सारा,
सुमन वशिष्ट नभ भई अपारा।Ó -सुन्दर कांड 48
यहां तक तो विभीशण के गुणों का बखान किया गया है, लेकिन जैसे ही वह अपने भाई के वध हेतु रामचन्द्रजी को उसकी नाभि कुंड का रहस्य बता देते हैं तो पहले रावण का और अंतत: लंका का पतन हो जाता हैं-
नाभिकुंड पियूश बस याकें,
नाथ जियत रावनु बल ताकें।Ó -लंका कांड 101.3
और इसी कारण से आज तक विभीषण के बारे में उपरोक्त कहावत कही-सुनी जाती रही है। लेकिन कलियुग में इस कहावत को एक मंत्रीजी ने तब चरितार्थ कर दिया जब उन्होंने पाली, राजस्थान में अपने ही कुनबे, दल की आपातकाल में घटित कुछ बातों का रहस्य आम जनता को उगल दिया। लोगों का कहना है कि अगर रहस्य उगलना ही था तो उन्हें चाहिये था कि दिल्ली में बैठे अपने कुनबे के बड़े बड़े महारथियों, वजीरों से कहते कि विदेशी बैंकों में किस-किस का कितना धन है, वह भेद उगलो या जिन्होंने बैंकों से उधार लेकर लोगों का धन हड़प लिया और फिर अपनी कम्पनियों के नाम बदल लिए, वह रहस्य उजागर करो, टैक्स चोरों के नाम बताओ, इतने बडे बडे घोटालें क्यों हो रहे हैं, यह राज खोलो, हार्वर्ड में पढ़े हुए और विश्व बैंक में काम के अनुभवी मंत्रियों एवं योजना आयोग के पदाधिकारियों के होते हुए महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ रही है, यह बताओ। कृषि की विकास दर तो आपके समय में पहले ही गिर ही रही थी, अब औद्योगिक विकास दर भी क्यों नीचे जा रही है? भ्रष्टाचार क्यों फैलता जा रहा है? नित नए घोटाले क्यों उजागर हो रहे हैं? यह सब लोगों को बताओ, लेकिन यह सब तो बतायेंगे नहीं, बीच में ही आपातकाल के 'राजÓ बताने लग गए। इसका नतीजा यह होगा कि लंका तो ढ़हेगी जब ढ़हेगी, फिलहाल तो उन मंत्रीजी का पद भी गया और कद भी गया और लोगों को यह कहने का और मौका मिल गया कि 'घर का भेदी लंका ढ़ावै।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75
अजमेर के प्रसिद्ध स्थानों की सैर !
अजमेर की अपनी खूबियां हैं। किसी प्रसिद्ध व्यक्ति ने यहां का दौरा करके बताया कि यहां ज्यादातर कर्मचारी वर्ग है। उनमें से कुछ टायर्ड हैं तो कुछ रिटायर्ड। उसका कहना था कि जब रिटायर्ड ही कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो टायर्ड क्या करते होंगे। यह सोचने की बात हैं ? यह भी अजमेर का सौभाग्य है कि जहां गर्मियों में और जगह के लोग दिन में एक बार खुशी मनाते हैं कि चलो आज तो बिजली नहीं गई इत्यादि, वही यहां के लोग दिन में दो-दो बार खुशियां मनाते हैं। एक बार तब जब कि पानी आ जाता है और दूसरी बार तब जब बिजली नहीं जाती है। वर्ना महंगाई के इस दौर में दो-दो बार खुशियां मनाने को कहां मिलती हैं ? 'बड़े भाग यहां मानस तनु पावा!Ó
अजमेर की ही यह खूबी है कि यहां हर साल गर्मियों में होटलों एवं रेस्टोरेन्ट्स में तख्तियां लग जाती हैं, जिस पर लिखा होता है 'कृपया पानी मांग कर शर्मिन्दा न करेंÓ। कहीं कहीं लिखा होता है 'दो कप चाय के साथ एक गिलास पानी फ्रीÓ। जगह-जगह लगे हैन्डपम्प पर लिखा होगा 'काम लायक नहींÓ। हास्य सम्राट काका हाथरसी ने कभी विभिन्न शहरों पर पैरोडिय़ां लिखी थीं। उसी तर्ज पर काफी समय पहले किसी ने साठ के दशक में अजमेर के एक छोटे से हिस्से की सैर की थी। जरा आप भी उसके साथ घूमिये:-
'गोयल आए सोच कर, चलो चलें अजमेर,
दो दिनों की छुटटी में, कर लेंगे कुछ सैर,
कर लेंगे कुछ सैर, ज्योंहि गाडी से उतरा,
गन्दा पाया स्टेशन, जो साफ न सुथरा,
किसी तरह ले सामान, बाहर को आया
मदार गेट की भीड को, धक्का-मुक्की करते पाया
दौड़ाई नजर, न कोई मदारी देखा,
बस किसी ने फल खाकर, किसी पर छिलका फैंका,
आगे बढ़ा मैं, जिधर पुरानी मंडी,
नई-नई किताबों की देखी डन्डी पर डन्डी
दिखी वहां से ही, ऊंची प्याउ गोल,
सिखा रही सेठों को, तोल-बोल औÓ मोल,
मुड़ा जो बांये हाथ को, मिला नया बाजार,
पूछा तो मालूम हुआ, क्या कहते हो यार ?
क्या कहते हो यार, यह नया नहीं है,
सबसे ऑल्ड मार्केट यही है !
है जाली संसार यह, देख-देख कर जी,
कहे घी मंडी जिसे, वहां न कोई घी,
वहां न कोई घी, खजाना गली में आए,
देखी जो असलियत तो बहुत पछतायें,
छोड़ निराशा को, मैं पहुंचा नला बाजार,
देखकर विस्मित हुआ, कहां पहुंचा मैं यार ?
कहां पहुंचा मैं यार, वहां न नला पाया,
थी बाजू में नालियां, यहां भी धोखा खाया,
पार कर दरगाह को, पहुंचा अन्दरकोट,
हुई खूब लड़ाइयां, लेकर जिसकी ओट
लेकर जिसकी ओट, मैं ढ़ाई दिन के झौंपड़े पर आया,
झौंपड़े के स्थान पर, महज एक खंडहर पाया।
भई लोगों क्यों हमको बहकाते हो,
सस्ती कोटड़ी को लाखन कोटड़ी बताते हो ?
यह तो अजमेर के एक छोटे से हिस्से की बात थी। इसके अलावा भी अजमेर के कई स्थान हैं, जो अपनी विशेषता लिए हुए हैं। मसलन आप जिलाधीश कार्यालय यानि कलेक्टरी को ही लें। यहां कई सरकारी कार्यालय हैं। वहां कभी-कभी अजमेर की विशेषता के अनुरूप हास्य-विनोद की छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं। काफी समय पहले की बात है। एक बार एक आदमी वहां आया और तोप के लाइसैंस हेतु आवेदन दिया। जब उससे पूछा गया कि वह तोप का क्या करेगा ? उसने तोप का लाइसैंस क्यों मांगा है ? तो उसने कहा कि जब मैंने चार एकड़ जमीन मांगी तो दो बीघा जमीन मिली, जब लड़की की शादी में दो बोरी शक्कर मांगी तो दस किलो शक्कर मिली, इसलिए मैंने तोप के लाइसैंस हेतु अप्लाई किया है तो रिवाल्वर का लायसैंस तो मिल ही जायेगा। कर्मचारी उसकी बुद्धिमता के आगे हक्के-बक्के रह गए। एक बार वहां एक ग्रामीण व्यक्ति आया और एक कर्मचारी से पूछा कि यहां डबल पेमेंट डिपार्टमेंट कहां पर है ? तो चाय पीते हुए कर्मचारी के कुछ समझ नहीं आया कि ऐसा कौन सा डिपार्टमेंट है, जहां सरेआम डबल पेमेंट होता है। मुस्कराते हुए उसने अपने साथी से इस बाबत पूछा तो उसने कुछ देर सोच कर बताया कि हो न हो यह डवलपमेंट डिपार्टमेंट के बारे में ही पूछ रहा होगा। उसने उसको बताया कि सामने की मंजिल में ऊपर की तरफ है। लोक सेवा आयोग से चयनित होकर एक नवयुवक ट्रेनिंग हेतु कलेक्टरी आया। उसे एसडीएम साहब ने बताया कि हमने शहर में धारा 144 लगाई है, आप भी जाकर स्थिति देख कर आओ और मुझे बताओ। वह गया और लौट कर आकर उसने एसडीएम साहब को कहा कि आप 144 धाराओं की बात करते हैं, मुझे तो वहां एक भी धारा दिखाई नहीं दी। सारा शहर सूखा पड़ा है।
कलेक्टरी के पास ही सिविल लाइन्स है और उससे थोड़ा आगे पुलिस लाइन्स। और दोनों के बीच यानि कि 'बिटविन दी लाइन्सÓ में काजी का नाला बहता है। एक बार की बात है कि कुछ अखबारों में ताजमहल पर अपना वारिसाना दावा ठोकने वाले के बारे में पढ़ कर और अपने पड़ौसी वकील साहब के बार-बार उकसाने पर मोहम्मद हुसैन काजी नामक व्यक्ति ने अदालत में इस नाले पर अपनी मिल्कियत का दावा करने की ठान ली। बताते हंै कि उनके पड़ौसी वकील साहब ने तो काजी जी को यहां तक विश्वास दिला दिया था कि जब गुजरात में एक अदालत से एक वकील साहब ने राष्ट्र्पति तक के नाम वारंट इश्यू करवा दिया तो इस नाले पर 'स्टेÓ लेना कौन सी बड़ी बात है ?
सिविल लाइन्स के पास ही पहाड़ी पर बजरंग गढ़ है। यह दौलतबाग उर्फ सुभाष बाग के एक छोर पर है। यह मशहूर एवं पुज्यनीय जगह है। इसके नीचे तलहटी पर ठेले- खोंमचे वाले खड़े रहते हैं। इन ठेले-खोंमचे वालों की विशेषता है कि जो चीज शहर में दस रुपए की मिलती है, वही चीज यहां आपको पन्द्रह रुपए में मिलेगी। आखिर आपकी श्रद्धा को भुनाने का अवसर और कहां मिलेगा। पास ही भिखारियों का जमघट लगा रहता है। उन पर भी अजमेर की हंसी का रंग चढ़ा हुआ है। चंद उदाहरण आपकी खिदमत में पेश हैं:-
ज्यादातर भिखारियों की जगह निश्चित होती है और वे वहीं बैठ कर भीख मांगते हैं। एक बार मैं बजरंग गढ़ के नीचे ऐसी ही जगह से गुजर रहा था तो मैंने क्या देखा कि एक भक्त ने भिखारी को एक रुपया दिया। इस पर वह मोबाइलधाारी बोला कि पिछले दो मंगलवार के एरियर यानि बकाया भी रहते हैं। मैं यह सुनकर दंग रह गया। एक बार मैं उधर से निकल रहा था कि एक भिखारी मेरे पास आया और दस रुपए मांगने लगा। मैंने नमस्कार की मुद्रा बनाई और आगे बढ़ गया तो उसने मेरा पीछा किया और बोला कि पांच रुपए ही दे दो। मैंने उसे कहा कि माफ करो बाबा और आगे बढ़ गया, लेकिन वह फिर भी नहीं माना और कहा कि अच्छा दो रुपए दे दो, लेकिन मैं आगे बढ़ता ही गया तो अंत में वह एक रुपए मांगने लगा, लेकिन मैंने जब वह भी नहीं दिया तो बोला क्या किसी सरकारी दफतर में अफसर हो ? मैं उसके सटीक अंदाज का कायल हो गया। वैसे सरकारी अफसर की पहचान होने का एक और उदाहरण आपको बताता हूं। यह घटना भी बजरंग गढ़ के नीचे जहां कभी धोबी घाट हुआ करता था, वहीं की है और काफी पुरानी है। हुआ यह कि एक आदमी धोबी घाट पर दलदल में फंस गया और अपने बचाव हेतु जोर-जोर से चिल्लाने लगा, जिसे सुन कर वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ में से कुछ लोग लम्बे-लम्बे बांस ले आए और उस व्यक्ति की तरफ करते हुए चिल्लाने लगे 'देना-देनाÓ यानि तुम्हारा हाथ देना, ताकि बांस को पकड़ सकें, लेकिन उस व्यक्ति ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे वह आदमी दलदल में ज्यादा फंसता चला गया और पानी उसकी नाक तक आ गया। इतने में ही एक बुद्धिमान व्यक्ति उधर से निकला और लोगों से पूछा कि माजरा क्या है ? किसी जानकार ने बताया कि फंला डिपार्टमेंट का सरकारी अफसर है और दलदल में फंस गया है। हम काफी देर से चिल्ला रहे हैं 'देना-देनाÓ लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। इस पर उस व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा कि अब तुम 'देना-देनाÓ की बजाय 'लेना-लेनाÓ पुकारो। लोगों ने वही किया और इतना सुनते ही उस डूबते हुए शख्स ने लपक कर बांस पकड़ लिया और लोगों ने उसे खींच कर बाहर निकाल लिया। तभी क्लियर भी हो गया कि सरकारी अफसरकी पहचान कैसे होती है ?
बजरंग गढ़ के दूसरी ओर आनासागर है, जिसकी पाल पर जहांगीर ने बारहदरी बनवाई। इसके एक छोर पर खामखां के तीन दरवाजे बने हुए हैं। यह पता नहीं कि इनको खामखां नामक आदमी ने बनवाया था या चूंकि यह खामखां बने हुए हैं, इसलिए इनको यह नाम दिया गया है। वैसे यह इतिहास के विद्याार्थियों के शोध का विषय हो सकता है क्योंकि देश में पहले से ही कई खामखां की बातों पर शोध होते रहते हैं। बजरंगगढ़ से कुछ ही दूर सूचना केन्द्र का चौराहा है। कहते हैं कि देश इक्कीसवीं सदी से गुजर रहा है और हमारे प्रधानमंत्री और ऑक्सफोर्ड एवं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ी -लिखी उनकी टीम का दावा है कि देष आर्थिक उन्नति में छलांगें लगा रहा है। लेकिन उनमें से कोई यह नहीं बता पा रहा है कि लू, शीत लहर और बाढ़ से मरने वालों की संख्या हर साल क्यों बढ़ती जा रही है? कुल जनसंख्या का तीस प्रतिशत से अधिक का हिस्सा अभी भी गरीबी की सीमा रेखा से नीचे क्यों है ? सिर पर मैला ढोने की प्रथा का कब अंत होगा ? अर्थशास्त्र के धुरन्धर विद्वानों की मंडली की नाक के नीचे इतना भ्रष्टाचार क्यों पनप रहा है ? नित नये घोटालें क्यों उजागर हो रहे हैं ? नीरा राडिया जैसे बिचौलिए और कितने हैं ? बेकारी और महंगाई क्यों बढ रही है ? ऐसे सभी यक्ष प्रश्न अब सरोवर के किनारे नहीं सूचना केन्द्र के पास आम जनता इन नेताओं को पूछ रही है, जो पिछले 64 साल से देश चला रहे हैं। मजे की बात है कि बीच में जो 6 साल इंडिया शाइनिंग वाले आए थे, उन्होंने भी क्या निहाल किया ? 'वही ढ़ाक के तीन पातÓ । सूचना केन्द्र पर इस बाबत कोई सूचना नहीं है। आप चाहे तो पूछ कर तसल्ली कर लें।
सूचना केन्द्र से आगे चलेंगे तो आपको आगरा गेट की सब्जी मंडी दिखाई देगी। यहंा के लोग भी अजमेर के अन्य वाशिन्दों की तरह जिन्दादिल हैं। गाहे बगाहे सब्जी खरीदने वालों से उनकी नोक झोंक होती ही रहती है। आखिर क्या करें ? रोज का काम है। यह तब की बात है जब केन्द्रीय सरकार जगह-जगह बिक्री में 'वैट सिस्टमÓ लागू कर रही थी। कुछ स्थानों पर यह लागू हो गया था और कुछ पर लोग आनाकानी कर रहे थे। ऐसे में ही एक बार मैं सब्जी मंडी में पहुंचा। कुछ देर भाव ताव करने के बाद जब मैंने दुकानदार को पैसे दे दिए और फल-सब्जी मंागें तो दुकानदार ने बिना तोले ही अंदाज से उठा-उठा कर सामान देना शुरू कर दिया। इस पर मैंने ऐतराज किया तो वह बोला, साहब हमारे यहां अभी वेट सिस्टम लागू नहीं हुआ है, इसलिए हम चीजों को बिना वेट किये ही देते हैं। अब आप ही बतायें, मैं क्या कहता? आजकल सब्जी मंडी में दुकानदार आपको ज्यादा भाव ताव नहीं करने देते और अगर आप करने की जुर्रत करते हैं तो अपने जवाब से आपको निरूत्तर कर देते हैं। जैसे कि पिछले दिनों मेरे साथ हुआ। मैं सब्जी मंडी में केले खरीद रहा था, तो मैंने केले वाले से पूछा, भाई जान! केले कैसे दिए ? बीस के रुपए के पांच, वह बोला। मैंने कहा, कुछ कम करो, तो वह बोला कोई बात नही, बीस रुपए के चार ले जाओ। इतना सुनने के बाद उसका ऑरीजिनल ऑफर मानने के अलावा मेरे पास चारा ही क्या था? यह बात भी नहीं है कि इस मार्किट में ग्राहक हर दम सब कुछ अच्छा ही खरीदने आते हैं। यह तो मौके-मौके की बात है। पिछले चुनाव के दिनों मे, जब-जब भी पब्लिक मिटिंग होती थी, यहां अच्छे टमाटर पन्द्रह रुपए किलो और सड़े हुए टमाटर पच्चीस रुपए किलो तक बिक गए थे। और वह भी कहीं-कहीं तो एडवान्स पैसा देने पर भी उपलब्ध नहीं थे। ऐसा इसलिए होता है कि यह मार्किट जनता की नब्ज के साथ चलता है। सब्जीमंडी के पास ही आगरा गेट है। इसका आगरा से इतना ही संबंध है कि कभी-कभी यहां एक ठेले वाला आगरे के पेठे बेचते हुए मिल जायगा जो 'आगरे का पेठा, बाप खाएं और बेटाÓ की आवाजें लगा कर इन्हें बेचता हैं, वरना आजकल तो घर-घर में यह हो रहा है कि जो बाप खाता है, वह बेटा पसंद नहीं करता और जो बेटा खाता है वह बाप नहीं खाना चाहता।
खैर ख्वाजा की दरगाह भी मशहूर जगह है। दुनियाभर के जायरीन यहां सजदा करने आते हैं। दरगाह के बाहर फकीरों का जमावड़ा लगा रहता है। एक बार की बात है कि मैं वहां से निकल रहा था तो मैंने देखा कि एक फकीर ने एक जायरीन से कहा कि ऐ सेठ! दस का नोट दो। जायरीन ने जेब से दो रुपए निकाल कर उसे देने की कोशिश की तो फकीर बोला कि दो नहीं दस रुपए चाहिए। इस पर जायरीन ने उसे कहा कि जब इस शहर का नगर निगम ही यहां आने वाले जायरीन से दो रुपए लेता है तो आपको दो रुपए लेने में क्या एतराज है ? इस बात पर फकीर ने गुस्सा दिखाते हुए कहा कि आपने मुझे क्या नगर निगम की तरह गया गुजरा समझ रखा है ? दरगाह इलाके में आपको कई झोला छाप डाक्टर भी मिल जायेंगे। एक बार मेरी भेंट एक कान के तथाकथित डाक्टर से हो गई। वह अंदरकोट के पास फुटपाथ पर बैठा था। पूछने पर उसने बताया कि मैं कानों का मैल भी निकालता हूं और कान का इलाज भी करता हूं। मैंने उससे कहा कि तू सबके कानों के मैल निकालता है, सरकार के कान का मैल क्यों नहीं निकालता ? इतनी महंगाई, इतनी बेकारी, इतने घोटाले और इतना भ्रष्टाचार, फिर भी वह कान में मैल डाले बैठी हुई है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराने लगा। इतने में ही वहां एक आदमी आया और बोला कि मुझे कम सुनाई देता है, इसका सस्ते में सस्ता इलाज का क्या लोगे ? उसने बताया कि 100 रुपए लगेंगे और आपकी समस्या हल हो जायेगी। वह व्यक्ति सामने ही बैठ गया। उस डाक्टर ने उससे 100 रुपए लेकर एक कागज पर एक स्लिप बनाई, जिस पर लिखा था 'कृपया जोर से बोलो, मुझे ऊंचा सुनाई देता है।Ó और यह स्लिप उसे देते हुए कहा कि इसे अपनी कमीज के पीछे टांग लेना, आपको कोई दिक्कत नहीं आयेगी।
कचहरी रोड यहां की मशहूर सडक है। यहां आपको कई व्यवसायी ऐसे भी मिल जायेंगे जो आपकी हैसियत देखकर ही आपसे चार्ज करेंगे। नजर के चश्मे वाले की दुकान की बात है। नजर टैस्ट के बाद ग्राहक को कहा गया कि लैन्स की कीमत 300 रुपए है और जब देखा गया कि उस पर कीमत का ज्यादा असर नहीं हुआ है तो तुरन्त कहा गया कि यह एक लैन्स की है, दो के हुए 600 रुपए, परन्तु फिर भी उस पर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ तो बताया गया कि फ्रेम के 500 रुपए अलग से होंगे। वह बेचारा हामी भरता गया। कई डैन्टिस्ट भी हैं। एक जगह एक मरीज गया तो डाक्टर साहब ने कहा कि दांतों को देखने की फीस 100 रुपए होगी। मरीज ने अपने दांत दिखाये। जब वह पेमेंट करने लगा तो डाक्टर साहब ने 300 रुपए मांगे। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि आपने तो अपनी फीस 100 रुपए बताई थी और अब आप 300 रुपए मांग रहे हैं तो डाÓक साहब ने कहा कि आपके दांत देखने के 100 रुपए और उस दौरान आपके चिल्लाने से मेरे दो पेशेन्ट भाग गए तो 200 रुपए उनके।
शहर का पड़ाव भी अपना विशेष महत्व रखता है। कभी देश विभाजन के समय यहां शरणार्थी बंधुओं ने पड़ाव डाला था। तभी से इसे पड़ाव कहते आए हैं। लेकिन अब यहां अनाज मंडी है। और उस पर यूपीए सरकार की मेहरबानी से महंगाई ने 'पड़ावÓ डाल रखा है। यहां के लोग भी खुशमिजाज हैं। एक बार मैं वहां से गुजर रहा था कि मेरे एक जानकार दुकानदार ने आवाज लगाई, गोयल साहब, चावल ले जाओ। मैंने उसे मना करते हुए कहा कि नहीं भाई नहीं चाहिये। वह फिर बोला सरजी! ले जाओ, सस्ते हैं। मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया, क्या भाव हैं ? वह बोला, एक रुपए दर्जन। यह सुनते ही मैं गरदन झुकाए झुकाए आगे बढ़ गया।
पास ही चक्कर है। सुन कर आप भी चक्कर खा गए न? लेकिन यही नाम है इस जगह का। यहां आपको हर किसी बात के लिए चक्कर ही लगाने पड़ेंगे। चाहे पानी का बिल जमा कराना हो, चाहे सब्जी लेनी हो और चाहे किसी वकील साहब से मिलना हो। कहते हैं कि अपने चुनाव चिन्ह 'चक्करÓ की वजह से जनता पार्टी ने अपना चुनाव कार्यालय यहीं खोला था, लेकिन एन वक्त पर जनता ने चक्कर दे दिया।
पास ही रावण की बगीची है। कहते हैं कि काफी अर्से से दो जातियों में इसकी मिल्कियत को लेकर देवस्थान विभाग में विवाद चल रहा है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि यह विवाद मुगलों के समय से ही है, जबकि कुछ इसे अंग्रजों के समय का बताते हैं। जिस दिन तारीख होती है उस रोज बैठने से पहले ही अगली तारीख की बातें होने लगती है। इस से भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि इसमें रावण को या उसके किसी वंशज अथवा अनुयायी को पार्टी नहीं बनाया गया है, जबकि उनकी कोई कमी नही है। बाढ़ै खल बल चोर जुआरा, पर धन पर दारा।Ó दोनों ही पक्षों का रावण से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वर्षों से वकीलों की जेबें भर रहे हैं। ऊपर मैंने अजमेर के कुछ ही स्थानों का जिक्र किया है। बाकी फिर कभी बतऊंगा।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मो. 9873706333
अजमेर की ही यह खूबी है कि यहां हर साल गर्मियों में होटलों एवं रेस्टोरेन्ट्स में तख्तियां लग जाती हैं, जिस पर लिखा होता है 'कृपया पानी मांग कर शर्मिन्दा न करेंÓ। कहीं कहीं लिखा होता है 'दो कप चाय के साथ एक गिलास पानी फ्रीÓ। जगह-जगह लगे हैन्डपम्प पर लिखा होगा 'काम लायक नहींÓ। हास्य सम्राट काका हाथरसी ने कभी विभिन्न शहरों पर पैरोडिय़ां लिखी थीं। उसी तर्ज पर काफी समय पहले किसी ने साठ के दशक में अजमेर के एक छोटे से हिस्से की सैर की थी। जरा आप भी उसके साथ घूमिये:-
'गोयल आए सोच कर, चलो चलें अजमेर,
दो दिनों की छुटटी में, कर लेंगे कुछ सैर,
कर लेंगे कुछ सैर, ज्योंहि गाडी से उतरा,
गन्दा पाया स्टेशन, जो साफ न सुथरा,
किसी तरह ले सामान, बाहर को आया
मदार गेट की भीड को, धक्का-मुक्की करते पाया
दौड़ाई नजर, न कोई मदारी देखा,
बस किसी ने फल खाकर, किसी पर छिलका फैंका,
आगे बढ़ा मैं, जिधर पुरानी मंडी,
नई-नई किताबों की देखी डन्डी पर डन्डी
दिखी वहां से ही, ऊंची प्याउ गोल,
सिखा रही सेठों को, तोल-बोल औÓ मोल,
मुड़ा जो बांये हाथ को, मिला नया बाजार,
पूछा तो मालूम हुआ, क्या कहते हो यार ?
क्या कहते हो यार, यह नया नहीं है,
सबसे ऑल्ड मार्केट यही है !
है जाली संसार यह, देख-देख कर जी,
कहे घी मंडी जिसे, वहां न कोई घी,
वहां न कोई घी, खजाना गली में आए,
देखी जो असलियत तो बहुत पछतायें,
छोड़ निराशा को, मैं पहुंचा नला बाजार,
देखकर विस्मित हुआ, कहां पहुंचा मैं यार ?
कहां पहुंचा मैं यार, वहां न नला पाया,
थी बाजू में नालियां, यहां भी धोखा खाया,
पार कर दरगाह को, पहुंचा अन्दरकोट,
हुई खूब लड़ाइयां, लेकर जिसकी ओट
लेकर जिसकी ओट, मैं ढ़ाई दिन के झौंपड़े पर आया,
झौंपड़े के स्थान पर, महज एक खंडहर पाया।
भई लोगों क्यों हमको बहकाते हो,
सस्ती कोटड़ी को लाखन कोटड़ी बताते हो ?
यह तो अजमेर के एक छोटे से हिस्से की बात थी। इसके अलावा भी अजमेर के कई स्थान हैं, जो अपनी विशेषता लिए हुए हैं। मसलन आप जिलाधीश कार्यालय यानि कलेक्टरी को ही लें। यहां कई सरकारी कार्यालय हैं। वहां कभी-कभी अजमेर की विशेषता के अनुरूप हास्य-विनोद की छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं। काफी समय पहले की बात है। एक बार एक आदमी वहां आया और तोप के लाइसैंस हेतु आवेदन दिया। जब उससे पूछा गया कि वह तोप का क्या करेगा ? उसने तोप का लाइसैंस क्यों मांगा है ? तो उसने कहा कि जब मैंने चार एकड़ जमीन मांगी तो दो बीघा जमीन मिली, जब लड़की की शादी में दो बोरी शक्कर मांगी तो दस किलो शक्कर मिली, इसलिए मैंने तोप के लाइसैंस हेतु अप्लाई किया है तो रिवाल्वर का लायसैंस तो मिल ही जायेगा। कर्मचारी उसकी बुद्धिमता के आगे हक्के-बक्के रह गए। एक बार वहां एक ग्रामीण व्यक्ति आया और एक कर्मचारी से पूछा कि यहां डबल पेमेंट डिपार्टमेंट कहां पर है ? तो चाय पीते हुए कर्मचारी के कुछ समझ नहीं आया कि ऐसा कौन सा डिपार्टमेंट है, जहां सरेआम डबल पेमेंट होता है। मुस्कराते हुए उसने अपने साथी से इस बाबत पूछा तो उसने कुछ देर सोच कर बताया कि हो न हो यह डवलपमेंट डिपार्टमेंट के बारे में ही पूछ रहा होगा। उसने उसको बताया कि सामने की मंजिल में ऊपर की तरफ है। लोक सेवा आयोग से चयनित होकर एक नवयुवक ट्रेनिंग हेतु कलेक्टरी आया। उसे एसडीएम साहब ने बताया कि हमने शहर में धारा 144 लगाई है, आप भी जाकर स्थिति देख कर आओ और मुझे बताओ। वह गया और लौट कर आकर उसने एसडीएम साहब को कहा कि आप 144 धाराओं की बात करते हैं, मुझे तो वहां एक भी धारा दिखाई नहीं दी। सारा शहर सूखा पड़ा है।
कलेक्टरी के पास ही सिविल लाइन्स है और उससे थोड़ा आगे पुलिस लाइन्स। और दोनों के बीच यानि कि 'बिटविन दी लाइन्सÓ में काजी का नाला बहता है। एक बार की बात है कि कुछ अखबारों में ताजमहल पर अपना वारिसाना दावा ठोकने वाले के बारे में पढ़ कर और अपने पड़ौसी वकील साहब के बार-बार उकसाने पर मोहम्मद हुसैन काजी नामक व्यक्ति ने अदालत में इस नाले पर अपनी मिल्कियत का दावा करने की ठान ली। बताते हंै कि उनके पड़ौसी वकील साहब ने तो काजी जी को यहां तक विश्वास दिला दिया था कि जब गुजरात में एक अदालत से एक वकील साहब ने राष्ट्र्पति तक के नाम वारंट इश्यू करवा दिया तो इस नाले पर 'स्टेÓ लेना कौन सी बड़ी बात है ?
सिविल लाइन्स के पास ही पहाड़ी पर बजरंग गढ़ है। यह दौलतबाग उर्फ सुभाष बाग के एक छोर पर है। यह मशहूर एवं पुज्यनीय जगह है। इसके नीचे तलहटी पर ठेले- खोंमचे वाले खड़े रहते हैं। इन ठेले-खोंमचे वालों की विशेषता है कि जो चीज शहर में दस रुपए की मिलती है, वही चीज यहां आपको पन्द्रह रुपए में मिलेगी। आखिर आपकी श्रद्धा को भुनाने का अवसर और कहां मिलेगा। पास ही भिखारियों का जमघट लगा रहता है। उन पर भी अजमेर की हंसी का रंग चढ़ा हुआ है। चंद उदाहरण आपकी खिदमत में पेश हैं:-
ज्यादातर भिखारियों की जगह निश्चित होती है और वे वहीं बैठ कर भीख मांगते हैं। एक बार मैं बजरंग गढ़ के नीचे ऐसी ही जगह से गुजर रहा था तो मैंने क्या देखा कि एक भक्त ने भिखारी को एक रुपया दिया। इस पर वह मोबाइलधाारी बोला कि पिछले दो मंगलवार के एरियर यानि बकाया भी रहते हैं। मैं यह सुनकर दंग रह गया। एक बार मैं उधर से निकल रहा था कि एक भिखारी मेरे पास आया और दस रुपए मांगने लगा। मैंने नमस्कार की मुद्रा बनाई और आगे बढ़ गया तो उसने मेरा पीछा किया और बोला कि पांच रुपए ही दे दो। मैंने उसे कहा कि माफ करो बाबा और आगे बढ़ गया, लेकिन वह फिर भी नहीं माना और कहा कि अच्छा दो रुपए दे दो, लेकिन मैं आगे बढ़ता ही गया तो अंत में वह एक रुपए मांगने लगा, लेकिन मैंने जब वह भी नहीं दिया तो बोला क्या किसी सरकारी दफतर में अफसर हो ? मैं उसके सटीक अंदाज का कायल हो गया। वैसे सरकारी अफसर की पहचान होने का एक और उदाहरण आपको बताता हूं। यह घटना भी बजरंग गढ़ के नीचे जहां कभी धोबी घाट हुआ करता था, वहीं की है और काफी पुरानी है। हुआ यह कि एक आदमी धोबी घाट पर दलदल में फंस गया और अपने बचाव हेतु जोर-जोर से चिल्लाने लगा, जिसे सुन कर वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ में से कुछ लोग लम्बे-लम्बे बांस ले आए और उस व्यक्ति की तरफ करते हुए चिल्लाने लगे 'देना-देनाÓ यानि तुम्हारा हाथ देना, ताकि बांस को पकड़ सकें, लेकिन उस व्यक्ति ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे वह आदमी दलदल में ज्यादा फंसता चला गया और पानी उसकी नाक तक आ गया। इतने में ही एक बुद्धिमान व्यक्ति उधर से निकला और लोगों से पूछा कि माजरा क्या है ? किसी जानकार ने बताया कि फंला डिपार्टमेंट का सरकारी अफसर है और दलदल में फंस गया है। हम काफी देर से चिल्ला रहे हैं 'देना-देनाÓ लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। इस पर उस व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा कि अब तुम 'देना-देनाÓ की बजाय 'लेना-लेनाÓ पुकारो। लोगों ने वही किया और इतना सुनते ही उस डूबते हुए शख्स ने लपक कर बांस पकड़ लिया और लोगों ने उसे खींच कर बाहर निकाल लिया। तभी क्लियर भी हो गया कि सरकारी अफसरकी पहचान कैसे होती है ?
बजरंग गढ़ के दूसरी ओर आनासागर है, जिसकी पाल पर जहांगीर ने बारहदरी बनवाई। इसके एक छोर पर खामखां के तीन दरवाजे बने हुए हैं। यह पता नहीं कि इनको खामखां नामक आदमी ने बनवाया था या चूंकि यह खामखां बने हुए हैं, इसलिए इनको यह नाम दिया गया है। वैसे यह इतिहास के विद्याार्थियों के शोध का विषय हो सकता है क्योंकि देश में पहले से ही कई खामखां की बातों पर शोध होते रहते हैं। बजरंगगढ़ से कुछ ही दूर सूचना केन्द्र का चौराहा है। कहते हैं कि देश इक्कीसवीं सदी से गुजर रहा है और हमारे प्रधानमंत्री और ऑक्सफोर्ड एवं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ी -लिखी उनकी टीम का दावा है कि देष आर्थिक उन्नति में छलांगें लगा रहा है। लेकिन उनमें से कोई यह नहीं बता पा रहा है कि लू, शीत लहर और बाढ़ से मरने वालों की संख्या हर साल क्यों बढ़ती जा रही है? कुल जनसंख्या का तीस प्रतिशत से अधिक का हिस्सा अभी भी गरीबी की सीमा रेखा से नीचे क्यों है ? सिर पर मैला ढोने की प्रथा का कब अंत होगा ? अर्थशास्त्र के धुरन्धर विद्वानों की मंडली की नाक के नीचे इतना भ्रष्टाचार क्यों पनप रहा है ? नित नये घोटालें क्यों उजागर हो रहे हैं ? नीरा राडिया जैसे बिचौलिए और कितने हैं ? बेकारी और महंगाई क्यों बढ रही है ? ऐसे सभी यक्ष प्रश्न अब सरोवर के किनारे नहीं सूचना केन्द्र के पास आम जनता इन नेताओं को पूछ रही है, जो पिछले 64 साल से देश चला रहे हैं। मजे की बात है कि बीच में जो 6 साल इंडिया शाइनिंग वाले आए थे, उन्होंने भी क्या निहाल किया ? 'वही ढ़ाक के तीन पातÓ । सूचना केन्द्र पर इस बाबत कोई सूचना नहीं है। आप चाहे तो पूछ कर तसल्ली कर लें।
सूचना केन्द्र से आगे चलेंगे तो आपको आगरा गेट की सब्जी मंडी दिखाई देगी। यहंा के लोग भी अजमेर के अन्य वाशिन्दों की तरह जिन्दादिल हैं। गाहे बगाहे सब्जी खरीदने वालों से उनकी नोक झोंक होती ही रहती है। आखिर क्या करें ? रोज का काम है। यह तब की बात है जब केन्द्रीय सरकार जगह-जगह बिक्री में 'वैट सिस्टमÓ लागू कर रही थी। कुछ स्थानों पर यह लागू हो गया था और कुछ पर लोग आनाकानी कर रहे थे। ऐसे में ही एक बार मैं सब्जी मंडी में पहुंचा। कुछ देर भाव ताव करने के बाद जब मैंने दुकानदार को पैसे दे दिए और फल-सब्जी मंागें तो दुकानदार ने बिना तोले ही अंदाज से उठा-उठा कर सामान देना शुरू कर दिया। इस पर मैंने ऐतराज किया तो वह बोला, साहब हमारे यहां अभी वेट सिस्टम लागू नहीं हुआ है, इसलिए हम चीजों को बिना वेट किये ही देते हैं। अब आप ही बतायें, मैं क्या कहता? आजकल सब्जी मंडी में दुकानदार आपको ज्यादा भाव ताव नहीं करने देते और अगर आप करने की जुर्रत करते हैं तो अपने जवाब से आपको निरूत्तर कर देते हैं। जैसे कि पिछले दिनों मेरे साथ हुआ। मैं सब्जी मंडी में केले खरीद रहा था, तो मैंने केले वाले से पूछा, भाई जान! केले कैसे दिए ? बीस के रुपए के पांच, वह बोला। मैंने कहा, कुछ कम करो, तो वह बोला कोई बात नही, बीस रुपए के चार ले जाओ। इतना सुनने के बाद उसका ऑरीजिनल ऑफर मानने के अलावा मेरे पास चारा ही क्या था? यह बात भी नहीं है कि इस मार्किट में ग्राहक हर दम सब कुछ अच्छा ही खरीदने आते हैं। यह तो मौके-मौके की बात है। पिछले चुनाव के दिनों मे, जब-जब भी पब्लिक मिटिंग होती थी, यहां अच्छे टमाटर पन्द्रह रुपए किलो और सड़े हुए टमाटर पच्चीस रुपए किलो तक बिक गए थे। और वह भी कहीं-कहीं तो एडवान्स पैसा देने पर भी उपलब्ध नहीं थे। ऐसा इसलिए होता है कि यह मार्किट जनता की नब्ज के साथ चलता है। सब्जीमंडी के पास ही आगरा गेट है। इसका आगरा से इतना ही संबंध है कि कभी-कभी यहां एक ठेले वाला आगरे के पेठे बेचते हुए मिल जायगा जो 'आगरे का पेठा, बाप खाएं और बेटाÓ की आवाजें लगा कर इन्हें बेचता हैं, वरना आजकल तो घर-घर में यह हो रहा है कि जो बाप खाता है, वह बेटा पसंद नहीं करता और जो बेटा खाता है वह बाप नहीं खाना चाहता।
खैर ख्वाजा की दरगाह भी मशहूर जगह है। दुनियाभर के जायरीन यहां सजदा करने आते हैं। दरगाह के बाहर फकीरों का जमावड़ा लगा रहता है। एक बार की बात है कि मैं वहां से निकल रहा था तो मैंने देखा कि एक फकीर ने एक जायरीन से कहा कि ऐ सेठ! दस का नोट दो। जायरीन ने जेब से दो रुपए निकाल कर उसे देने की कोशिश की तो फकीर बोला कि दो नहीं दस रुपए चाहिए। इस पर जायरीन ने उसे कहा कि जब इस शहर का नगर निगम ही यहां आने वाले जायरीन से दो रुपए लेता है तो आपको दो रुपए लेने में क्या एतराज है ? इस बात पर फकीर ने गुस्सा दिखाते हुए कहा कि आपने मुझे क्या नगर निगम की तरह गया गुजरा समझ रखा है ? दरगाह इलाके में आपको कई झोला छाप डाक्टर भी मिल जायेंगे। एक बार मेरी भेंट एक कान के तथाकथित डाक्टर से हो गई। वह अंदरकोट के पास फुटपाथ पर बैठा था। पूछने पर उसने बताया कि मैं कानों का मैल भी निकालता हूं और कान का इलाज भी करता हूं। मैंने उससे कहा कि तू सबके कानों के मैल निकालता है, सरकार के कान का मैल क्यों नहीं निकालता ? इतनी महंगाई, इतनी बेकारी, इतने घोटाले और इतना भ्रष्टाचार, फिर भी वह कान में मैल डाले बैठी हुई है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराने लगा। इतने में ही वहां एक आदमी आया और बोला कि मुझे कम सुनाई देता है, इसका सस्ते में सस्ता इलाज का क्या लोगे ? उसने बताया कि 100 रुपए लगेंगे और आपकी समस्या हल हो जायेगी। वह व्यक्ति सामने ही बैठ गया। उस डाक्टर ने उससे 100 रुपए लेकर एक कागज पर एक स्लिप बनाई, जिस पर लिखा था 'कृपया जोर से बोलो, मुझे ऊंचा सुनाई देता है।Ó और यह स्लिप उसे देते हुए कहा कि इसे अपनी कमीज के पीछे टांग लेना, आपको कोई दिक्कत नहीं आयेगी।
कचहरी रोड यहां की मशहूर सडक है। यहां आपको कई व्यवसायी ऐसे भी मिल जायेंगे जो आपकी हैसियत देखकर ही आपसे चार्ज करेंगे। नजर के चश्मे वाले की दुकान की बात है। नजर टैस्ट के बाद ग्राहक को कहा गया कि लैन्स की कीमत 300 रुपए है और जब देखा गया कि उस पर कीमत का ज्यादा असर नहीं हुआ है तो तुरन्त कहा गया कि यह एक लैन्स की है, दो के हुए 600 रुपए, परन्तु फिर भी उस पर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ तो बताया गया कि फ्रेम के 500 रुपए अलग से होंगे। वह बेचारा हामी भरता गया। कई डैन्टिस्ट भी हैं। एक जगह एक मरीज गया तो डाक्टर साहब ने कहा कि दांतों को देखने की फीस 100 रुपए होगी। मरीज ने अपने दांत दिखाये। जब वह पेमेंट करने लगा तो डाक्टर साहब ने 300 रुपए मांगे। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि आपने तो अपनी फीस 100 रुपए बताई थी और अब आप 300 रुपए मांग रहे हैं तो डाÓक साहब ने कहा कि आपके दांत देखने के 100 रुपए और उस दौरान आपके चिल्लाने से मेरे दो पेशेन्ट भाग गए तो 200 रुपए उनके।
शहर का पड़ाव भी अपना विशेष महत्व रखता है। कभी देश विभाजन के समय यहां शरणार्थी बंधुओं ने पड़ाव डाला था। तभी से इसे पड़ाव कहते आए हैं। लेकिन अब यहां अनाज मंडी है। और उस पर यूपीए सरकार की मेहरबानी से महंगाई ने 'पड़ावÓ डाल रखा है। यहां के लोग भी खुशमिजाज हैं। एक बार मैं वहां से गुजर रहा था कि मेरे एक जानकार दुकानदार ने आवाज लगाई, गोयल साहब, चावल ले जाओ। मैंने उसे मना करते हुए कहा कि नहीं भाई नहीं चाहिये। वह फिर बोला सरजी! ले जाओ, सस्ते हैं। मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया, क्या भाव हैं ? वह बोला, एक रुपए दर्जन। यह सुनते ही मैं गरदन झुकाए झुकाए आगे बढ़ गया।
पास ही चक्कर है। सुन कर आप भी चक्कर खा गए न? लेकिन यही नाम है इस जगह का। यहां आपको हर किसी बात के लिए चक्कर ही लगाने पड़ेंगे। चाहे पानी का बिल जमा कराना हो, चाहे सब्जी लेनी हो और चाहे किसी वकील साहब से मिलना हो। कहते हैं कि अपने चुनाव चिन्ह 'चक्करÓ की वजह से जनता पार्टी ने अपना चुनाव कार्यालय यहीं खोला था, लेकिन एन वक्त पर जनता ने चक्कर दे दिया।
पास ही रावण की बगीची है। कहते हैं कि काफी अर्से से दो जातियों में इसकी मिल्कियत को लेकर देवस्थान विभाग में विवाद चल रहा है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि यह विवाद मुगलों के समय से ही है, जबकि कुछ इसे अंग्रजों के समय का बताते हैं। जिस दिन तारीख होती है उस रोज बैठने से पहले ही अगली तारीख की बातें होने लगती है। इस से भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि इसमें रावण को या उसके किसी वंशज अथवा अनुयायी को पार्टी नहीं बनाया गया है, जबकि उनकी कोई कमी नही है। बाढ़ै खल बल चोर जुआरा, पर धन पर दारा।Ó दोनों ही पक्षों का रावण से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वर्षों से वकीलों की जेबें भर रहे हैं। ऊपर मैंने अजमेर के कुछ ही स्थानों का जिक्र किया है। बाकी फिर कभी बतऊंगा।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मो. 9873706333
पेड़ बनाम कूलर/ए.सी.
धीरे-धीरे पूरे विश्व में गर्मी बढ़ती जा रही है जिसे सब लोग ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते हैं। जिस तेजी से जंगल व पेड़ कटते जा रहे हैं, उसी तेजी से छोटे-बड़े मकान, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, कॉम्प्लेक्स व मॉल्स आदि धरती पर उगते जा रहे हैं। इस तरह पेड़-पौधों के जंगल की जगह सीमेंट-कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। इसके फलस्वरूप वातावरण की गर्मी बढ़ती जा रही है। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलती जा रही है जिससे बहने वाले पानी से समुद्रों का जल स्तर बढ़ता जा रहा है।
इंसान गर्मी से बचने के लिए कूलर, पंखे व ए.सी., फ्रिज जैसे साधनों का उपयोग करता है। वर्तमान में बढ़ती गर्मी के कारण इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। ये साधन अप्रत्यक्ष रूप से वातावरण की गर्मी को और अधिक गर्म करने के कारण बन रहे हैं।
पहले मकानों में नीम, आम जैसे बड़े-बड़े पेड़ उगाये जाते थे जो छाया के साथ-साथ ठंडक भी प्रदान करते थे। घर के बड़े उनकी छाया में अपना समय गुजारते थे, बच्चे उनकी छांव में खेलते थे। आजकल जनसंख्या वृद्धि के कारण घरों का आकार छोटा होता जा रहा है जिनमें बड़े पेड़ों के स्थान पर गमलों में पौधे उगाये जाते हैं। बड़े मकानों में लॉन तैयार किये जाते हैं, जिनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। लॉन से मकान को छाया नहीं मिलती, जबकि बड़े व ऊँचे पेड़ों से छाया व ठंडक दोनों मिलती है। पेडों से हमारा पर्यावरण संतुलन में रहता है। वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा सही बनी रहती है जो सभी जीवों के लिए अति आवश्यक है। पेड़ों के कटते जाने से यह संतुलन असंतुलित होता जा रहा है जिसका प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सबके सामने है।
वर्तमान में गर्मी से निपटने के लिए लोग फ्रिज, कूलर व ए.सी. का सहारा लेते हैं। ये साधन सामने की ओर तो ठंडक देते हैं परंतु पीछे की ओर गर्मी छोड़ते हैं जिससे वातावरण की गर्मी और बढ़ती है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में इनका भी हाथ है। यदि मकानों में बड़े पेड़ लगाये जायें, तो मकानों को इन बड़े पेड़ों की छाया भी प्राप्त होगी और मकान भी कम गर्म होंगे। गर्मी कम होगी तो कूलर या ए.सी. की जरूरत कम महसूस होगी। दिन में कूलर की ठंडी हवा में बैठने की बजाय पेड़ की ठंडी छांव में बैठना बेहतर होगा क्योंकि पेड़ खुद एक प्राकृतिक कूलर होता है। कूलर की ठंडी हवा खाने के लिए उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी डालने की आवश्यकता होती है। यदि यही पानी किसी और कार्य में इस्तेमाल किया जाये तो ज्यादा अच्छा होगा। लॉन को हरा बनाये रखने के लिए उसमें भी काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इससे भी पानी अनावश्यक खपत होती है। इसकी अपेक्षा पेड़ों को कम पानी की आवश्यकता होती है। कूलर या ए.सी. चलाने के लिए बिजली भी आवश्यक है। इससे बिजली की अनावश्यक खपत भी बढ़ती है जबकि पेड़ों से ठंडी हवा प्राप्त करने के लिए बिजली की कतई आवश्यकता नहीं होती है।
वहीं दूसरी ओर पानी की कमी व वर्षा की अनियमितता की वजह से किसान पर्याप्त फसल नहीं उगा पा रहे हैं। वे अपने खेतों को बेचकर दूसरे धंधों की ओर भाग रहे हैं। वहीं दूसरे लोग खेत खरीदकर उस पर मैरिज गार्डन बनाने लग गये हैं, जिसमें घास उगाई जाती है। यदि किसान को पानी व बिजली की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो जाती तो वह उस खेत पर फसल उगाता, जिससे खुद का भी पेट भरता तथा औरों के लिए भी खाद्यान्न उत्पन्न होता, जिससे देश की खाद्यान्न को कमी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन आज मैरिज गार्डन में बदल चुके खेतों पर सिर्फ घास उगती है, जिससे किसी को कोई खाद्यान्न प्राप्त नहीं होता, सिर्फ गार्डन मालिक को लाभ होता है।
अत: शहर के लोगों को प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर अपनी सुविधाओं पर लगाम लगानी चाहिए ताकि दूसरे लोगों को भी असुविधा न हो। बड़े-बड़े लॉन में बहुत सारा पानी खपाने की बजाय यह पानी खेतों को मिलना चाहिए ताकि भरपूर फसल प्राप्त हो सके जिससे किसान के साथ-साथ दूसरों का भी पेट भर सके। इसी प्रकार शहरों में घरेलू बिजली की अनावश्यक खपत रोककर उसे गांवों में भेजा जाये ताकि गांवों का भी विकास हो सके। गाँवों के विकास होगा तो देश का विकास होगा क्योंकि भारत गाँवों में बसता है। पेड़ लगाकर हम शहरों में हो रही पानी व बिजली की अनावश्यक खपत को रोक सकते हैं साथ ही पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
आइये हम सब मिलकर यह प्रण करें कि हर एक घर में एक पेड़ अवश्य लगायेंगे और उसकी पूरी देखभाल करेंगे जिससे समय पर अच्छी वर्षा हो सके और पर्यावरण संतुलन असंतुलित न हो। हम सभी को मिलकर पर्यावरण की गर्मी को कम करने का प्रयास करना होगा ताकि वर्तमान व भावी पीढ़ी चैन की सांस ले सके।
यह लेख कम्प्यूटर टीचर व डिजाइनर श्री प्रवीण कुमार ने भेजा है
इंसान गर्मी से बचने के लिए कूलर, पंखे व ए.सी., फ्रिज जैसे साधनों का उपयोग करता है। वर्तमान में बढ़ती गर्मी के कारण इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। ये साधन अप्रत्यक्ष रूप से वातावरण की गर्मी को और अधिक गर्म करने के कारण बन रहे हैं।
पहले मकानों में नीम, आम जैसे बड़े-बड़े पेड़ उगाये जाते थे जो छाया के साथ-साथ ठंडक भी प्रदान करते थे। घर के बड़े उनकी छाया में अपना समय गुजारते थे, बच्चे उनकी छांव में खेलते थे। आजकल जनसंख्या वृद्धि के कारण घरों का आकार छोटा होता जा रहा है जिनमें बड़े पेड़ों के स्थान पर गमलों में पौधे उगाये जाते हैं। बड़े मकानों में लॉन तैयार किये जाते हैं, जिनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। लॉन से मकान को छाया नहीं मिलती, जबकि बड़े व ऊँचे पेड़ों से छाया व ठंडक दोनों मिलती है। पेडों से हमारा पर्यावरण संतुलन में रहता है। वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा सही बनी रहती है जो सभी जीवों के लिए अति आवश्यक है। पेड़ों के कटते जाने से यह संतुलन असंतुलित होता जा रहा है जिसका प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सबके सामने है।
वर्तमान में गर्मी से निपटने के लिए लोग फ्रिज, कूलर व ए.सी. का सहारा लेते हैं। ये साधन सामने की ओर तो ठंडक देते हैं परंतु पीछे की ओर गर्मी छोड़ते हैं जिससे वातावरण की गर्मी और बढ़ती है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में इनका भी हाथ है। यदि मकानों में बड़े पेड़ लगाये जायें, तो मकानों को इन बड़े पेड़ों की छाया भी प्राप्त होगी और मकान भी कम गर्म होंगे। गर्मी कम होगी तो कूलर या ए.सी. की जरूरत कम महसूस होगी। दिन में कूलर की ठंडी हवा में बैठने की बजाय पेड़ की ठंडी छांव में बैठना बेहतर होगा क्योंकि पेड़ खुद एक प्राकृतिक कूलर होता है। कूलर की ठंडी हवा खाने के लिए उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी डालने की आवश्यकता होती है। यदि यही पानी किसी और कार्य में इस्तेमाल किया जाये तो ज्यादा अच्छा होगा। लॉन को हरा बनाये रखने के लिए उसमें भी काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इससे भी पानी अनावश्यक खपत होती है। इसकी अपेक्षा पेड़ों को कम पानी की आवश्यकता होती है। कूलर या ए.सी. चलाने के लिए बिजली भी आवश्यक है। इससे बिजली की अनावश्यक खपत भी बढ़ती है जबकि पेड़ों से ठंडी हवा प्राप्त करने के लिए बिजली की कतई आवश्यकता नहीं होती है।
वहीं दूसरी ओर पानी की कमी व वर्षा की अनियमितता की वजह से किसान पर्याप्त फसल नहीं उगा पा रहे हैं। वे अपने खेतों को बेचकर दूसरे धंधों की ओर भाग रहे हैं। वहीं दूसरे लोग खेत खरीदकर उस पर मैरिज गार्डन बनाने लग गये हैं, जिसमें घास उगाई जाती है। यदि किसान को पानी व बिजली की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो जाती तो वह उस खेत पर फसल उगाता, जिससे खुद का भी पेट भरता तथा औरों के लिए भी खाद्यान्न उत्पन्न होता, जिससे देश की खाद्यान्न को कमी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन आज मैरिज गार्डन में बदल चुके खेतों पर सिर्फ घास उगती है, जिससे किसी को कोई खाद्यान्न प्राप्त नहीं होता, सिर्फ गार्डन मालिक को लाभ होता है।
अत: शहर के लोगों को प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर अपनी सुविधाओं पर लगाम लगानी चाहिए ताकि दूसरे लोगों को भी असुविधा न हो। बड़े-बड़े लॉन में बहुत सारा पानी खपाने की बजाय यह पानी खेतों को मिलना चाहिए ताकि भरपूर फसल प्राप्त हो सके जिससे किसान के साथ-साथ दूसरों का भी पेट भर सके। इसी प्रकार शहरों में घरेलू बिजली की अनावश्यक खपत रोककर उसे गांवों में भेजा जाये ताकि गांवों का भी विकास हो सके। गाँवों के विकास होगा तो देश का विकास होगा क्योंकि भारत गाँवों में बसता है। पेड़ लगाकर हम शहरों में हो रही पानी व बिजली की अनावश्यक खपत को रोक सकते हैं साथ ही पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
आइये हम सब मिलकर यह प्रण करें कि हर एक घर में एक पेड़ अवश्य लगायेंगे और उसकी पूरी देखभाल करेंगे जिससे समय पर अच्छी वर्षा हो सके और पर्यावरण संतुलन असंतुलित न हो। हम सभी को मिलकर पर्यावरण की गर्मी को कम करने का प्रयास करना होगा ताकि वर्तमान व भावी पीढ़ी चैन की सांस ले सके।
यह लेख कम्प्यूटर टीचर व डिजाइनर श्री प्रवीण कुमार ने भेजा है
रविवार, 1 मई 2011
अवचेतन मन द्वारा चिकित्सा
मन का तीन भागों में श्रेणी विभाजन किया जासकता है-चेतन, अवचेतन तथा अचेतन। अवचेतन तल में जो भी अनुभव होते हैं, उनका संबंध सूक्ष्म शरीर से माना जाता है। यहां होने वाले समस्त अनुभव मानसिक होते हैं। प्रसिद्ध लेखक डा. जोसेफ मर्फी ने अपनी पुस्तक 'आपके अवचेतन मन की शक्तिÓ में इस विषय पर काफी प्रकाश डाला है कि कैसे कोई स्वास्थ्यार्थी इसकी मदद लेकर अपनी चिकित्सा स्वयं कर सकता है।
मशहूर लेखक डेल कारनेगी अपनी पुस्तक 'चिंता छोड़ो सुख से जीओÓ में लिखते हैं कि 70 प्रतिशत मरीज तो ऐसे होते हैं कि जो अपना डर और चिंता दूर कर लें तो वे बिना किसी दवा लिए ही ठीक हो सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि मरीज की बीमारी को वे काल्पनिक नहीं मान रहे है। वह उतनी ही वास्तविक होती है, जितनी दुखती हुई दाढ़। कई बार तो ये बीमारियां इसकी तुलना में सौ गुणा ज्यादा गम्भीर हो सकती हैं, जैसे नवर्सइन्डाइजेशन, अमाशय का अल्सर, हृदय रोग, अनिद्रा, कई तरह के सिर दर्द और कुछ प्रकार के लकवे इत्यादि।
उनका यह भी कहना है कि डर के कारण चिंता होती है, चिंता से तनाव पैदा होता है और आप नर्वस हो जाते हैं। इसके कारण आपके अमाशय की तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं और आपको अल्सर होजाता है। 'नर्वस स्टमक ट्बलÓ पुस्तक के लेखक डा. जोसेफ एफ . मॉन्टेग्यू भी कहते हैं कि आप क्या खाते हैं, इससे अल्सर नहीं होता, बल्कि अल्सर तो आपको उस से होता है, जो आपको खाये जा रही है। एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अस्सी प्रतिशत लोगों को पेट की बीमारियां डर, चिंता, नफरत, कुंठा, स्वार्थ और दुनिया की हकीकत के साथ तालमेल न बैठा पाने के कारण होती हैं। एक और अध्ययन से यह पता लगा कि एक्जीक्यूटिव्ज में एक तिहाई से अधिक लोग हृदय रोग, पेट के अल्सर एवं उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं। एक प्रसिद्ध लोकाक्ति है डा. मरहम पट्टी करता है, ईश्वर घाव भरता है। कोई भी डाक्टर यह दावा नहीं करता कि वह बीमारी ठीक करता है। वह सिर्फ निरोग होने या करने का वातावरण बनाता है। जो ताकत बीमारी को ठीक करती है, जो घाव भरती है या हड्डियों को जोड़ती है, उसके कई नाम है मसलन प्रकृति, आंतरिक चेतना शक्ति, जीवन शक्ति, ईश्वर, रचनात्मक बुद्धिमता एवं आदमी का अपना अवचेतन मन इत्यादि।
डा.जोसेफ मर्फी के अनुसार अवचेतन मन बहुत बुद्धिमान एवं अत्यंत प्रभावशाली है। दैनिक जीवन में हममें से कई उससे काम लेते रहते हैं। मान लें आपको अगले रोज सुबह 5 बजे उठना है और आपके पास कोई साधन नहीं है तो आप रात में सोते समय अपने अवचेतन मन को यह आदेश देकर सोयें कि मुझे कल सुबह 5 बजे उठना है और आप देखेंगे कि सुबह 5 बजे आपकी नींद खुल जायेगी। हांलाकि वह अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करता, लेकिन एक बार आर्डर बुक करने के बाद आपके आदेशों की पालना करने में पीछे नहीं रहता।
जीवन शक्ति या ईश्वर कभी किसी व्यक्ति की जिन्दगी में बीमारी, अस्वस्थ्ता, दुर्घटना अथवा विपत्ति नहीं भेजता। यह हमारे ही कर्म हैं जो हमारे नकारात्मक विचारों, कल्पनाओं पर सवारी कर हमने किए हैं। यह प्रकृति का नियम है कि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा। आंतरिक चेतना अथवा ईश्वर को आपसे कोई गिला नहीं है। यह चेतना आपके खिलाफ भी नहीं है। उलटे जब कभी आपके कहीं चोट लग जाए या हड्डी टूट जाए तो यह तुरन्त उसे ठीक करने के काम में जुट जाती है और यह भी आप जान लें कि यह जीवन शक्ति कभी आपको दंड नहीं देती, बशर्ते कि हम कोई लापरवाही न करें, प्रकृति विरुद्ध कार्य नहीं करें। जीव परमात्मा का ही अंश है, इसलिए उसके खजाने में आपके लिए कोई कमी नहीं है।
ईश्वर इस विश्व के कण-कण में है, शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है और सर्वत्र है। ईष्वर सबके हैं, इसलिए आपके भी हैं और चूंकि सब ईश्वर के हैं, आप भी ईश्वर के हैं। अत: ईश्वर और अवचेतन मन पर पूरा भरोसा रखें। यह अवचेतन मन ही है जो ईश्वर की अदालत में आपका पक्ष रखेगा। सत्य ही ईश्वर है और विश्वास करें कि जो कुछ होगा अच्छा होगा और आपका स्वास्थ्य सुधरेगा, लेकिन इसके लिए आपको अपने अवचेतन मन को अपना वकील बनाना होगा और यह काम करेगा आपका चेतन मन, वह ही अपने विश्वास के आधार पर अवचेतन को निर्देश देगा कि किस तरह स्वास्थ्य लाभ लेना है।
प्रार्थना के विज्ञान को समझिये और उस पर भरोसा करें। संसार के किसी भी धर्म ग्रन्थ को लें, कुछ एक अतिशयाोक्तियों को छोड़ दें तो प्रयत्न के साथ-साथ प्रार्थना पर विश्वास करके सफलता हासिल करने के सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे। प्रकृति कभी-कभी चमत्कार भी करती है। ऐसे ही किसी चमत्कार की आशा आप भी करिए। बाईबिल की यह उक्ति हमेश याद रखिए कि ईश्वर से मांगिये और आपको मिलेगा, ढूंढिये और आपको अवश्य प्राप्त होगा, उसके दर पर दस्तक दीजिए और आप देखेंगे कि उसके पट आपके लिए खुल गए हैं।
आपको करना सिर्फ यह है कि जैसे मकान बनाने से पूर्व उसका नक्शा बनाया जाता है, जो पहले कहीं देखे गए मकान के अनुरूप भी हो सकता है या आपके द्वारा पढ़ी हुई किसी पुस्तक अथवा चित्र या कल्पना पर भी आधारित हो सकता है। साथ ही इस मकान में आप अच्छे से अच्छा बिल्डिंग मेटेरियल्स भी लगाना चाहेंगे, तभी आपके सपनों के अनुरूप आपका मकान बन पायेगा। ठीक इसी तरह आप अपने स्वस्थ्य एवं निरोगी शरीर का नक्शा अपने चेतन मन में बनाइये और सोचिये कि मुझे भी वापस ऐसा ही फुर्तीला बनना है, इसके पहले भी आप बीमार पड़े हैं और ठीक हुए हैं तो कोई वजह नहीं कि आप इस बार भी ठीक नहीं होंगे, जरूर होंगे।
लेकिन इस स्थिति को लाने के लिए आपको आशा, उत्साह, विश्वास, धैर्य, प्रफुल्लता, उमंग रूपी सामान चाहिए, वही चेतन मन के द्वारा आप एकत्रित करके अवचेतन को उपलब्ध कराइये और वहां पहले से ही मौजूद भय, डर, चिंता, अवसाद, कुन्ठा, अभिनिवेश यानि मृत्यु का भय रूपी कबाड़ को निकाल दीजिए। अगर आपने इस फिजूल सामान को नहीं निकाला तो आप अपने स्वास्थ्य को लेकर अपने मस्तिष्क में तनाव, डर और फिक्र के ताने-बाने ही बुनते रहेंगे। इसके बाद एक अच्छा नक्शा और अच्छा सामान आप अपने अच्छे बिल्डर अवचेतन मन को सौंप दीजिए। कोशिश करके देखिए, यह बहुत उपयोगी आयाम है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम्स जेम्स, जो कि अमेरिका में मनोविज्ञान के पितामह माने जाते हैं, का कहना था कि अवचेतन मन, विश्वास पर आधारित एक अच्छे चित्र ब्ल्यू प्रिन्ट एवं अच्छे बिल्डिंग मेटेरियल्स को लेने में देर नहीं करेगा, आप देकर तो देखिए।
फ्रांस की रोसेसु इन्स्टीटयूट के प्रोफेसर चाल्र्स बॉदायन विश्व प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हुए हैं। उन्होंने बताया है कि जब आप रात को बिस्तर पर सोने की तैयारी कर रहे होते हैं, तब आपके अवचेतन मन को अपने चेतन मन के माध्यम से सुझाव देना सबसे उपयुक्त समय है। उसी समय बार-बार दोहराते हुए अपनी निम्न बात रखें- 'मेरा समस्त शरीर, इसके सभी अंग-प्रत्यंग ईश्वर की असीम कृपा एवं अवचेतन मन की विलक्षण बुद्धि ने बनाये हैं। यही जानता है कि मेरा उपचार कैसे किया जाए। यह शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को बदल रही है और मुझे वापस स्वस्थ्य बना रही हैं। मैं इस उपचार के लिए ईश्वर एवं अवचेतन मन को बारम्बबार धन्यवाद देता हंू। हो सकता है कि इस बात को आप को कुछ दिन बार-बार दोहराना पड़े, परन्तु इसमे आपको सफलता अवश्य मिलेगी। ऐसा आप सुबह तत्काल सो कर उठते समय भी कर सकते हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि सोते समय एवं सोकर उठने के तत्काल बाद अर्थात तन्द्रावस्था में आपके अवचेतन मन में कुछ भी उगाने का सबसे अच्छा मौका है क्योंकि इस समय वहां किसी भी तरह के नकारात्मक विचार नहीं होते। हां, इतना अवश्य याद रखें कि उस समय भूल कर भी अपनी बीमारी को याद नहीं करें क्योंकि आपके उस समय दिए गये निर्देशानुसार ही वह रातभर काम करता रहे।
इसके साथ ही प्रेक्षा ध्यान भी किया जाय। जिसके अन्र्तगत किसी भी सुविधापूर्वक आसन में बैठ कर अथवा लेट कर अपने शरीर के प्रत्येक अंग, पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिष्क तक पहुंचा जाए और जब उनींदी अवस्था आने लगे तो यह प्रार्थना की जाए- 'मुझ पर ईश्वर की पूर्ण कृपा हो रही है, मैं पूर्ण स्वस्थ्य हो रहा हूं, मेरा अवचेतन स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन मन तक पहुंचाने का एक और अदभुत तरीका अनुशासित या वैज्ञानिक कल्पना है।. इस कल्पना में अपने आप को पूर्ण स्वस्थ्य मान कर वह सब काम करें जो एक स्वस्थ्य व्यक्ति कर सकता है। ऐसा करने से आपका अवचेतन मन सम्पूर्ण स्वास्थ्य की मानसिक तस्वीर स्वीकार कर लेगा और आप पूर्ण स्वस्थ्य हो जायेंगे।
डा. फिनियास पार्क हस्र्ट का कहना है कि इस उपचार के दौरान स्वस्थ्यार्थी को यह मान कर चलना होगा कि उसकी बीमारी की वजह मानसिक तनाव, दुख, भय, क्रोध, अशांति, निराशा, खिन्नता, उदासी, हलचल, घबराहट, अवसाद, कुंठा एवं अवचेतन मन में गहरी पैठ जमाये हुए नकारात्मक विचार है। असली बीमारी की जड़ यहीं है और अगर उसके सोच में बदलाव आ जाए, वह इनके बजाय आशा, उमंग, उत्साह इत्यादि सकारात्मक बातों पर विश्वास करें तो बीमारी ठीक होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। प्रसिद्ध क्रांतिकारी, विचारक और साहित्यकार स्व. यशपाल का कहना था कि मनुष्य से बड़ा है स्वयं उसका विश्वास, इसी विश्वास के आगे वह नतमस्तक हो जाता है। इसी बात को ध्यान में रख कर आप अपने अवचेतनमन के आश्चर्यजनक प्रभाव का इस्तेमाल कीजिए और जल्दी से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कीजिए।
अपनी चिंता को मिटाने की कोशिश कीजिए। प्रसिद्ध लेखक विलियम ल्यान फेल्प्स के अनुसार चिंता जीवन की राह को कठिन बनाती है। इससे उबरने के तरीके आदमी खुद ही सोचता है। चिंता से मुक्ति पाने के लिए हर समय उत्साह में रहना और धैर्य से समय गुजार देना ही सर्वोतम उपाय है। इस विषय में एक प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका में छपे लेख का आशय है कि जब आपको लगता है कि आपके अथवा आपके परिवार में प्रतिकूल परिस्थिति आई है, तब आपको चिंता होती है, आपके परिवार में तीन चीजें शामिल हैं- 1. आपका शरीर 2. आपके निकट संबंधी, जानकार इत्यादि और 3. आपकी सम्पति। अगर आप जरा गौर से सोचेंगे तो पायेंगे कि इन तीनों के मालिक प्रभु हैं। इन पर प्रभु का नियंत्रण है। ये तीनो चीजें प्रभु के काम आयेंगी, इसके साथ ही यह भी विश्वास करें कि प्रभु का विधान सदैव मंगलकारी होता है। यह दोनो बातें मानते ही आपकी चिंता कम होने लगेगी। इस विषय में डेल कारनेगी सुझाता है कि कभी किसी आशंका से चिंता होने लगे तो उसे मिटाने हेतु ये उपाय कीजिए- सोचें कि बुरे में बुरा क्या होजायेगा ? उस स्थिति को स्वीकार कर लें और अब उस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए, इस पर सोचें, आपकी चिंता घटने लगेगी।
ऐसे ही अवसाद अथवा उदासी को लीजिए अवसाद से बचने का तरीका यही हेै कि हम यह जानले कि जिंदगी कोई्र आसान राजपथ नही हैेे, यह पहाडों की पगडंडी है, बना बनाया रास्ता नही है बल्कि जितना चलोगे उतना रास्ता बनेगा. किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी हरदम सुगम नही होती.
इसी तरह भय अथवा डर है, प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना था कि भय ही समस्त दुश्चिंताओं का कारण है। डरा हुआ आदमी कोई भी सकारात्मक कार्य नहीं कर सकता। इसलिए अपने मन से डर को निकालिए हो सके तो उसका सामना करिए।
प्रसिद्ध लेखक डेविड जे. श्वार्टज अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ा जादूÓ में लिखते हैं कि कई लोग कोई लेख पढ़ कर या किसी का लैक्चर सुन कर ही यह धारणा बना लेते हैं कि मुझे भी यह बिमारी है। कई व्यक्ति हर वक्त अपनी बीमारी के बारे में बात करते रहते हैं, इसलिए अपनी बीमारी के बारे में बात करना तो दूर, सोचना भी छोड़ दीजिए। ऐसा करने से बीमारी का हाल पेड़ की कटी हुई टहनी के समान हो जायेगा, क्योंकि उसको आपके ध्यान और उस पर आधारित तरह-तरह की चिंताओं से खुराक मिलती है। डा.श्वाटर््ज का तो यह भी कहना है कि उनके कई डाक्टर मित्रों ने उन्हें बताया था कि इस दुनिया में पूरी तरह स्वस्थ्य कोई भी नहीं होता, अत: हो सके तो अपना ध्यान बंटाइये, किसी काम में लग जाइये, काम में शरीरिक थकान हो तो लाभ जल्दी मिलेगा। जहां तक हो सके अकेलेपन से बचिए, शाकाहार अपनाइये और योग का सहारा लीजिए। उनका यह भी कहना है कि अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दीजिए। इस प्रसंग में उन्होंने एक व्यक्ति का जिक्र किया, जिसे इस बात का पूरा भरोसा था कि उसका गालब्लैडर खराब है। हांलाकि आठ बार अलग-अलग क्लिनिकों में एक्सरे कराने पर भी उसका ब्लैडर सही दिख रहा था और डाक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ उसके मन का बहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नही है। डा.श्वाटर््ज यह भी लिखते हैं कि अपनी सेहत का बहुत ज्यादा ध्यान रखने वाले कई लोग बारबार ईसीजी कराते रहते हैं। मेरा उनसे यही कहना है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दें।
आपकी सेहत जैसी भी है, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। एक पुरानी कहावत है कि मैं अपने फटे हुए जूतों को लेकर दुखी हो रहा था, परन्तु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही। इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या अच्छा नहीं है, आपको इस बारे में कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या अच्छा है। याद रखें कि जंग लगने से बेहतर है घिस जाना। आपको जीवन मिला है, मजे लेने के लिए, इसे बर्बाद मत कीजिए। कोई हास्य प्रसंग याद कीजिए, कोई चुटकुला याद करे, अपने जेहन में उसकी कल्पना करे मानो चलचित्र रूप में वह कही घटित हो रहा है। उसका आनन्द उठाइये, इससे आपको मुस्कराहट मिलेगी, आपकी मांसपेशियां हिलेंगी, आपका दिल हल्का होगा। आपका मनपसंद संगीत सुनिए। अपने आप को बच्चा समझ कर कोई कार्टून फिल्म देखिए, कॉमिक्स पढिए। जहां तक हो सके बिना किसी दवाई के भरपूर नींद लेने की कोशिश करें। इस कार्य में भी आपके अवचेतन की मदद लें। वह खुद तो जागेगा, लेकिन आपको नींद लेने में आपकी मदद करेगा। विगत जीवन के सुखद क्षणों को याद करें।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75
मशहूर लेखक डेल कारनेगी अपनी पुस्तक 'चिंता छोड़ो सुख से जीओÓ में लिखते हैं कि 70 प्रतिशत मरीज तो ऐसे होते हैं कि जो अपना डर और चिंता दूर कर लें तो वे बिना किसी दवा लिए ही ठीक हो सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि मरीज की बीमारी को वे काल्पनिक नहीं मान रहे है। वह उतनी ही वास्तविक होती है, जितनी दुखती हुई दाढ़। कई बार तो ये बीमारियां इसकी तुलना में सौ गुणा ज्यादा गम्भीर हो सकती हैं, जैसे नवर्सइन्डाइजेशन, अमाशय का अल्सर, हृदय रोग, अनिद्रा, कई तरह के सिर दर्द और कुछ प्रकार के लकवे इत्यादि।
उनका यह भी कहना है कि डर के कारण चिंता होती है, चिंता से तनाव पैदा होता है और आप नर्वस हो जाते हैं। इसके कारण आपके अमाशय की तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं और आपको अल्सर होजाता है। 'नर्वस स्टमक ट्बलÓ पुस्तक के लेखक डा. जोसेफ एफ . मॉन्टेग्यू भी कहते हैं कि आप क्या खाते हैं, इससे अल्सर नहीं होता, बल्कि अल्सर तो आपको उस से होता है, जो आपको खाये जा रही है। एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अस्सी प्रतिशत लोगों को पेट की बीमारियां डर, चिंता, नफरत, कुंठा, स्वार्थ और दुनिया की हकीकत के साथ तालमेल न बैठा पाने के कारण होती हैं। एक और अध्ययन से यह पता लगा कि एक्जीक्यूटिव्ज में एक तिहाई से अधिक लोग हृदय रोग, पेट के अल्सर एवं उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं। एक प्रसिद्ध लोकाक्ति है डा. मरहम पट्टी करता है, ईश्वर घाव भरता है। कोई भी डाक्टर यह दावा नहीं करता कि वह बीमारी ठीक करता है। वह सिर्फ निरोग होने या करने का वातावरण बनाता है। जो ताकत बीमारी को ठीक करती है, जो घाव भरती है या हड्डियों को जोड़ती है, उसके कई नाम है मसलन प्रकृति, आंतरिक चेतना शक्ति, जीवन शक्ति, ईश्वर, रचनात्मक बुद्धिमता एवं आदमी का अपना अवचेतन मन इत्यादि।
डा.जोसेफ मर्फी के अनुसार अवचेतन मन बहुत बुद्धिमान एवं अत्यंत प्रभावशाली है। दैनिक जीवन में हममें से कई उससे काम लेते रहते हैं। मान लें आपको अगले रोज सुबह 5 बजे उठना है और आपके पास कोई साधन नहीं है तो आप रात में सोते समय अपने अवचेतन मन को यह आदेश देकर सोयें कि मुझे कल सुबह 5 बजे उठना है और आप देखेंगे कि सुबह 5 बजे आपकी नींद खुल जायेगी। हांलाकि वह अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करता, लेकिन एक बार आर्डर बुक करने के बाद आपके आदेशों की पालना करने में पीछे नहीं रहता।
जीवन शक्ति या ईश्वर कभी किसी व्यक्ति की जिन्दगी में बीमारी, अस्वस्थ्ता, दुर्घटना अथवा विपत्ति नहीं भेजता। यह हमारे ही कर्म हैं जो हमारे नकारात्मक विचारों, कल्पनाओं पर सवारी कर हमने किए हैं। यह प्रकृति का नियम है कि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा। आंतरिक चेतना अथवा ईश्वर को आपसे कोई गिला नहीं है। यह चेतना आपके खिलाफ भी नहीं है। उलटे जब कभी आपके कहीं चोट लग जाए या हड्डी टूट जाए तो यह तुरन्त उसे ठीक करने के काम में जुट जाती है और यह भी आप जान लें कि यह जीवन शक्ति कभी आपको दंड नहीं देती, बशर्ते कि हम कोई लापरवाही न करें, प्रकृति विरुद्ध कार्य नहीं करें। जीव परमात्मा का ही अंश है, इसलिए उसके खजाने में आपके लिए कोई कमी नहीं है।
ईश्वर इस विश्व के कण-कण में है, शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है और सर्वत्र है। ईष्वर सबके हैं, इसलिए आपके भी हैं और चूंकि सब ईश्वर के हैं, आप भी ईश्वर के हैं। अत: ईश्वर और अवचेतन मन पर पूरा भरोसा रखें। यह अवचेतन मन ही है जो ईश्वर की अदालत में आपका पक्ष रखेगा। सत्य ही ईश्वर है और विश्वास करें कि जो कुछ होगा अच्छा होगा और आपका स्वास्थ्य सुधरेगा, लेकिन इसके लिए आपको अपने अवचेतन मन को अपना वकील बनाना होगा और यह काम करेगा आपका चेतन मन, वह ही अपने विश्वास के आधार पर अवचेतन को निर्देश देगा कि किस तरह स्वास्थ्य लाभ लेना है।
प्रार्थना के विज्ञान को समझिये और उस पर भरोसा करें। संसार के किसी भी धर्म ग्रन्थ को लें, कुछ एक अतिशयाोक्तियों को छोड़ दें तो प्रयत्न के साथ-साथ प्रार्थना पर विश्वास करके सफलता हासिल करने के सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे। प्रकृति कभी-कभी चमत्कार भी करती है। ऐसे ही किसी चमत्कार की आशा आप भी करिए। बाईबिल की यह उक्ति हमेश याद रखिए कि ईश्वर से मांगिये और आपको मिलेगा, ढूंढिये और आपको अवश्य प्राप्त होगा, उसके दर पर दस्तक दीजिए और आप देखेंगे कि उसके पट आपके लिए खुल गए हैं।
आपको करना सिर्फ यह है कि जैसे मकान बनाने से पूर्व उसका नक्शा बनाया जाता है, जो पहले कहीं देखे गए मकान के अनुरूप भी हो सकता है या आपके द्वारा पढ़ी हुई किसी पुस्तक अथवा चित्र या कल्पना पर भी आधारित हो सकता है। साथ ही इस मकान में आप अच्छे से अच्छा बिल्डिंग मेटेरियल्स भी लगाना चाहेंगे, तभी आपके सपनों के अनुरूप आपका मकान बन पायेगा। ठीक इसी तरह आप अपने स्वस्थ्य एवं निरोगी शरीर का नक्शा अपने चेतन मन में बनाइये और सोचिये कि मुझे भी वापस ऐसा ही फुर्तीला बनना है, इसके पहले भी आप बीमार पड़े हैं और ठीक हुए हैं तो कोई वजह नहीं कि आप इस बार भी ठीक नहीं होंगे, जरूर होंगे।
लेकिन इस स्थिति को लाने के लिए आपको आशा, उत्साह, विश्वास, धैर्य, प्रफुल्लता, उमंग रूपी सामान चाहिए, वही चेतन मन के द्वारा आप एकत्रित करके अवचेतन को उपलब्ध कराइये और वहां पहले से ही मौजूद भय, डर, चिंता, अवसाद, कुन्ठा, अभिनिवेश यानि मृत्यु का भय रूपी कबाड़ को निकाल दीजिए। अगर आपने इस फिजूल सामान को नहीं निकाला तो आप अपने स्वास्थ्य को लेकर अपने मस्तिष्क में तनाव, डर और फिक्र के ताने-बाने ही बुनते रहेंगे। इसके बाद एक अच्छा नक्शा और अच्छा सामान आप अपने अच्छे बिल्डर अवचेतन मन को सौंप दीजिए। कोशिश करके देखिए, यह बहुत उपयोगी आयाम है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम्स जेम्स, जो कि अमेरिका में मनोविज्ञान के पितामह माने जाते हैं, का कहना था कि अवचेतन मन, विश्वास पर आधारित एक अच्छे चित्र ब्ल्यू प्रिन्ट एवं अच्छे बिल्डिंग मेटेरियल्स को लेने में देर नहीं करेगा, आप देकर तो देखिए।
फ्रांस की रोसेसु इन्स्टीटयूट के प्रोफेसर चाल्र्स बॉदायन विश्व प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हुए हैं। उन्होंने बताया है कि जब आप रात को बिस्तर पर सोने की तैयारी कर रहे होते हैं, तब आपके अवचेतन मन को अपने चेतन मन के माध्यम से सुझाव देना सबसे उपयुक्त समय है। उसी समय बार-बार दोहराते हुए अपनी निम्न बात रखें- 'मेरा समस्त शरीर, इसके सभी अंग-प्रत्यंग ईश्वर की असीम कृपा एवं अवचेतन मन की विलक्षण बुद्धि ने बनाये हैं। यही जानता है कि मेरा उपचार कैसे किया जाए। यह शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को बदल रही है और मुझे वापस स्वस्थ्य बना रही हैं। मैं इस उपचार के लिए ईश्वर एवं अवचेतन मन को बारम्बबार धन्यवाद देता हंू। हो सकता है कि इस बात को आप को कुछ दिन बार-बार दोहराना पड़े, परन्तु इसमे आपको सफलता अवश्य मिलेगी। ऐसा आप सुबह तत्काल सो कर उठते समय भी कर सकते हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि सोते समय एवं सोकर उठने के तत्काल बाद अर्थात तन्द्रावस्था में आपके अवचेतन मन में कुछ भी उगाने का सबसे अच्छा मौका है क्योंकि इस समय वहां किसी भी तरह के नकारात्मक विचार नहीं होते। हां, इतना अवश्य याद रखें कि उस समय भूल कर भी अपनी बीमारी को याद नहीं करें क्योंकि आपके उस समय दिए गये निर्देशानुसार ही वह रातभर काम करता रहे।
इसके साथ ही प्रेक्षा ध्यान भी किया जाय। जिसके अन्र्तगत किसी भी सुविधापूर्वक आसन में बैठ कर अथवा लेट कर अपने शरीर के प्रत्येक अंग, पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिष्क तक पहुंचा जाए और जब उनींदी अवस्था आने लगे तो यह प्रार्थना की जाए- 'मुझ पर ईश्वर की पूर्ण कृपा हो रही है, मैं पूर्ण स्वस्थ्य हो रहा हूं, मेरा अवचेतन स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन मन तक पहुंचाने का एक और अदभुत तरीका अनुशासित या वैज्ञानिक कल्पना है।. इस कल्पना में अपने आप को पूर्ण स्वस्थ्य मान कर वह सब काम करें जो एक स्वस्थ्य व्यक्ति कर सकता है। ऐसा करने से आपका अवचेतन मन सम्पूर्ण स्वास्थ्य की मानसिक तस्वीर स्वीकार कर लेगा और आप पूर्ण स्वस्थ्य हो जायेंगे।
डा. फिनियास पार्क हस्र्ट का कहना है कि इस उपचार के दौरान स्वस्थ्यार्थी को यह मान कर चलना होगा कि उसकी बीमारी की वजह मानसिक तनाव, दुख, भय, क्रोध, अशांति, निराशा, खिन्नता, उदासी, हलचल, घबराहट, अवसाद, कुंठा एवं अवचेतन मन में गहरी पैठ जमाये हुए नकारात्मक विचार है। असली बीमारी की जड़ यहीं है और अगर उसके सोच में बदलाव आ जाए, वह इनके बजाय आशा, उमंग, उत्साह इत्यादि सकारात्मक बातों पर विश्वास करें तो बीमारी ठीक होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। प्रसिद्ध क्रांतिकारी, विचारक और साहित्यकार स्व. यशपाल का कहना था कि मनुष्य से बड़ा है स्वयं उसका विश्वास, इसी विश्वास के आगे वह नतमस्तक हो जाता है। इसी बात को ध्यान में रख कर आप अपने अवचेतनमन के आश्चर्यजनक प्रभाव का इस्तेमाल कीजिए और जल्दी से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कीजिए।
अपनी चिंता को मिटाने की कोशिश कीजिए। प्रसिद्ध लेखक विलियम ल्यान फेल्प्स के अनुसार चिंता जीवन की राह को कठिन बनाती है। इससे उबरने के तरीके आदमी खुद ही सोचता है। चिंता से मुक्ति पाने के लिए हर समय उत्साह में रहना और धैर्य से समय गुजार देना ही सर्वोतम उपाय है। इस विषय में एक प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका में छपे लेख का आशय है कि जब आपको लगता है कि आपके अथवा आपके परिवार में प्रतिकूल परिस्थिति आई है, तब आपको चिंता होती है, आपके परिवार में तीन चीजें शामिल हैं- 1. आपका शरीर 2. आपके निकट संबंधी, जानकार इत्यादि और 3. आपकी सम्पति। अगर आप जरा गौर से सोचेंगे तो पायेंगे कि इन तीनों के मालिक प्रभु हैं। इन पर प्रभु का नियंत्रण है। ये तीनो चीजें प्रभु के काम आयेंगी, इसके साथ ही यह भी विश्वास करें कि प्रभु का विधान सदैव मंगलकारी होता है। यह दोनो बातें मानते ही आपकी चिंता कम होने लगेगी। इस विषय में डेल कारनेगी सुझाता है कि कभी किसी आशंका से चिंता होने लगे तो उसे मिटाने हेतु ये उपाय कीजिए- सोचें कि बुरे में बुरा क्या होजायेगा ? उस स्थिति को स्वीकार कर लें और अब उस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए, इस पर सोचें, आपकी चिंता घटने लगेगी।
ऐसे ही अवसाद अथवा उदासी को लीजिए अवसाद से बचने का तरीका यही हेै कि हम यह जानले कि जिंदगी कोई्र आसान राजपथ नही हैेे, यह पहाडों की पगडंडी है, बना बनाया रास्ता नही है बल्कि जितना चलोगे उतना रास्ता बनेगा. किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी हरदम सुगम नही होती.
इसी तरह भय अथवा डर है, प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना था कि भय ही समस्त दुश्चिंताओं का कारण है। डरा हुआ आदमी कोई भी सकारात्मक कार्य नहीं कर सकता। इसलिए अपने मन से डर को निकालिए हो सके तो उसका सामना करिए।
प्रसिद्ध लेखक डेविड जे. श्वार्टज अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ा जादूÓ में लिखते हैं कि कई लोग कोई लेख पढ़ कर या किसी का लैक्चर सुन कर ही यह धारणा बना लेते हैं कि मुझे भी यह बिमारी है। कई व्यक्ति हर वक्त अपनी बीमारी के बारे में बात करते रहते हैं, इसलिए अपनी बीमारी के बारे में बात करना तो दूर, सोचना भी छोड़ दीजिए। ऐसा करने से बीमारी का हाल पेड़ की कटी हुई टहनी के समान हो जायेगा, क्योंकि उसको आपके ध्यान और उस पर आधारित तरह-तरह की चिंताओं से खुराक मिलती है। डा.श्वाटर््ज का तो यह भी कहना है कि उनके कई डाक्टर मित्रों ने उन्हें बताया था कि इस दुनिया में पूरी तरह स्वस्थ्य कोई भी नहीं होता, अत: हो सके तो अपना ध्यान बंटाइये, किसी काम में लग जाइये, काम में शरीरिक थकान हो तो लाभ जल्दी मिलेगा। जहां तक हो सके अकेलेपन से बचिए, शाकाहार अपनाइये और योग का सहारा लीजिए। उनका यह भी कहना है कि अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दीजिए। इस प्रसंग में उन्होंने एक व्यक्ति का जिक्र किया, जिसे इस बात का पूरा भरोसा था कि उसका गालब्लैडर खराब है। हांलाकि आठ बार अलग-अलग क्लिनिकों में एक्सरे कराने पर भी उसका ब्लैडर सही दिख रहा था और डाक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ उसके मन का बहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नही है। डा.श्वाटर््ज यह भी लिखते हैं कि अपनी सेहत का बहुत ज्यादा ध्यान रखने वाले कई लोग बारबार ईसीजी कराते रहते हैं। मेरा उनसे यही कहना है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दें।
आपकी सेहत जैसी भी है, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। एक पुरानी कहावत है कि मैं अपने फटे हुए जूतों को लेकर दुखी हो रहा था, परन्तु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही। इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या अच्छा नहीं है, आपको इस बारे में कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या अच्छा है। याद रखें कि जंग लगने से बेहतर है घिस जाना। आपको जीवन मिला है, मजे लेने के लिए, इसे बर्बाद मत कीजिए। कोई हास्य प्रसंग याद कीजिए, कोई चुटकुला याद करे, अपने जेहन में उसकी कल्पना करे मानो चलचित्र रूप में वह कही घटित हो रहा है। उसका आनन्द उठाइये, इससे आपको मुस्कराहट मिलेगी, आपकी मांसपेशियां हिलेंगी, आपका दिल हल्का होगा। आपका मनपसंद संगीत सुनिए। अपने आप को बच्चा समझ कर कोई कार्टून फिल्म देखिए, कॉमिक्स पढिए। जहां तक हो सके बिना किसी दवाई के भरपूर नींद लेने की कोशिश करें। इस कार्य में भी आपके अवचेतन की मदद लें। वह खुद तो जागेगा, लेकिन आपको नींद लेने में आपकी मदद करेगा। विगत जीवन के सुखद क्षणों को याद करें।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75
सदस्यता लें
संदेश (Atom)