कमल गर्ग
अपने यहां परंपरा है की पहली रोटी गाय को और आखरी रोटी कुत्ते को जहां तक सवाल है कुछ ना कुछ सोच विचार कर यह बनाया गया होगा, लेकिन मैं देखता हूं यहां पर कुत्ते रात भर भोंकते रहते हैं और नींद में खलल होती है ।सुबह उठकर देखते हैं तो रैंप के ऊपर ,सीढ़ियों के ऊपर लैट्रिन की हुई होती है साथ ही जैसे ही गाड़ी आकर खड़ी होती है टांग ऊंची करके पेशाब करके गंदगी करते रहते हैं अब क्या कहें हमारे बुजुर्ग सही थे या गलत लेकिन कुत्ता शाला अजमेर में क्यों खोली गई थी, इसीलिए कि आवारा और बीमार कुत्तों को रख सकें और वह आखरी रोटी इकट्ठा करने के लिए कुत्ता शाला से पीपा लेकर एक कार्मिक आया करता था क्या यही व्यवस्था आज नहीं हो सकती नगर परिषद से पिंजरे आया करते थे कुत्तों को पकड कर ले जाते थे। शेर काटते नहीं, कुत्ते के काटे का इलाज नहीं ,लाखों लोग मर जाते हैं
बुधवार, 9 दिसंबर 2020
कुत्ता शाला अजमेर में क्यों खोली गई थी?
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