-नारायण बारेठ-
भारतीय उपमहाद्वीप में दलित, आदिवासी और समाज के वंचित वर्ग के साथ भेदभाव की शिकायतें सुनते रहते हैं, मगर पाकिस्तान में इन वर्गों के लोगों को दोहरे भेदभाव की प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता है.
पाकिस्तान के दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके साथ दोहरा पक्षपात होता है. पहले उनके साथ अल्पसंख्यक होने के नाते भेदभाव किया जाता है, फिर उनके अपने हिन्दू समाज में छुआछूत उनका पीछा नहीं छोड़ती.
ये लोग कहते हैं कि धरती पर खींची गई एक लकीर भले ही हिंदुस्तान और पाकिस्तान को बांटती हो. लेकिन भेदभाव इधर भी है और उधर भी बस इसमें फर्क दर्जे का है.
भारतीय उपमहाद्वीप में दलित, आदिवासी और समाज के वंचित वर्ग के साथ भेदभाव की शिकायतें सुनते रहते हैं, मगर पाकिस्तान में इन वर्गों के लोगों को दोहरे भेदभाव की प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता है.
पाकिस्तान के दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके साथ दोहरा पक्षपात होता है. पहले उनके साथ अल्पसंख्यक होने के नाते भेदभाव किया जाता है, फिर उनके अपने हिन्दू समाज में छुआछूत उनका पीछा नहीं छोड़ती.
ये लोग कहते हैं कि धरती पर खींची गई एक लकीर भले ही हिंदुस्तान और पाकिस्तान को बांटती हो. लेकिन भेदभाव इधर भी है और उधर भी बस इसमें फर्क दर्जे का है.
अर्जुन भील: होटलों में अलग बर्तन
पैंसठ साल के अर्जुन भील पाकिस्तान के पंजाब में बहावलपुर ज़िले में पैदा हुए हैं और हाल ही में हमेशा के लिए भारत आए हैं. वे कहते हैं पाकिस्तान में जो हिन्दू आबाद हैं, उनमें से ज़्यादातर या तो आदिवासी भील हैं या फिर दलित बिरादरी के मेघवाल और कोली है, इन्हीं के साथ बावरी जाती के लोग भी हैं.
हम हिंदुओं के लिए पाकिस्तान के होटलों और चाय-पानी की दुकानों पर अलग से बर्तन रखे होते हैं. हम लोग अपने इस्तेमाल के लिए बर्तन अपने साथ एक थैली में रखते है.
हमें ऐसे बर्तनों को साझा करने का कोई हक़ नहीं है जो बाकी लोग इस्तेमाल करते हैं क्योंकि हम अछूत हैं. हम होटल वाले या दुकानदार से कहते है हमें इसी थैली में खाने पीने का सामान दे दो. अगर हमारे पास बर्तन नहीं हों तो हम जैसे वर्गों के लिए होटलों पर अलग से बर्तन रखे होते है जिन्हें इस्तेमाल के बाद हमें सुरक्षित कोने में धोकर रख दिया जाता है.
पैंसठ साल के अर्जुन भील पाकिस्तान के पंजाब में बहावलपुर ज़िले में पैदा हुए हैं और हाल ही में हमेशा के लिए भारत आए हैं. वे कहते हैं पाकिस्तान में जो हिन्दू आबाद हैं, उनमें से ज़्यादातर या तो आदिवासी भील हैं या फिर दलित बिरादरी के मेघवाल और कोली है, इन्हीं के साथ बावरी जाती के लोग भी हैं.
हम हिंदुओं के लिए पाकिस्तान के होटलों और चाय-पानी की दुकानों पर अलग से बर्तन रखे होते हैं. हम लोग अपने इस्तेमाल के लिए बर्तन अपने साथ एक थैली में रखते है.
हमें ऐसे बर्तनों को साझा करने का कोई हक़ नहीं है जो बाकी लोग इस्तेमाल करते हैं क्योंकि हम अछूत हैं. हम होटल वाले या दुकानदार से कहते है हमें इसी थैली में खाने पीने का सामान दे दो. अगर हमारे पास बर्तन नहीं हों तो हम जैसे वर्गों के लिए होटलों पर अलग से बर्तन रखे होते है जिन्हें इस्तेमाल के बाद हमें सुरक्षित कोने में धोकर रख दिया जाता है.
पूनाराम मेघवाल: दोहरा भेदभाव
पाकिस्तान के सूबा सिंध से आए पूनाराम मेघवाल खुद दलित है और सिंध के सांगड़ ज़िले में उनकी परवरिश ऐसे ही माहौल में हुई है. पूनाराम ने वहां धार्मिक और जातिगत दोनों तरह का भेदभाव अपनी आंखों से देखा है.
वे कहते हैं दलितों और भीलों के साथ ऊंची जाति के हिंदू और मुसलमान दोनों भेदभाव करते हैं. किसी भी की चाय की दुकान या होटल पर जाते ही हमें कहा जाता है कि आपके लिए अलग से बर्तन रखा है, उसे उठाओ काम में लो और साफ़ कर के वापिस रख दो. मुसलमान हमारे साथ मज़हब के आधार पर और हिन्दू जाति के हिसाब से भेद करते थे. ये सब भील, मेघवाल और कोली जातियों के साथ होता है. वहां ऊँची जाति के हिन्दू और मुसलमानों में मेल मिलाप होता है.
वे कहते हैं दलितों और भीलों के साथ ऊंची जाति के हिंदू और मुसलमान दोनों भेदभाव करते हैं. किसी भी की चाय की दुकान या होटल पर जाते ही हमें कहा जाता है कि आपके लिए अलग से बर्तन रखा है, उसे उठाओ काम में लो और साफ़ कर के वापिस रख दो. मुसलमान हमारे साथ मज़हब के आधार पर और हिन्दू जाति के हिसाब से भेद करते थे. ये सब भील, मेघवाल और कोली जातियों के साथ होता है. वहां ऊँची जाति के हिन्दू और मुसलमानों में मेल मिलाप होता है.
लूना बाई: घूंघट की ओट से देखी पक्षपात
लूना बाई क़रीब दो महीने पहले सिंध के मटियारी ज़िले से भारत आईं और फिर जोधपुर में सीमांत लोक संगठन द्वारा संचालित शिविर में पनाह ली है. वो जाति से भील हैं. बातचीत के दौरान लूना बाई का चेहरा परदे में रहा मगर उन्होंने घूँघट की ओट से भी इस भेदभाव को अपनी आँखों में दर्ज किया है. वो कहती हैं उनके साथ हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भेदभाव करते थे. हिन्दुओं में व्यापारिक और शासक वर्ग की जातीयां उनके साथ भेदभाव किया करतीं थीं.
उनके अनुसार, '' 'हमें तो सभी हिक़ारत की नज़र से देखते थे चाहे हिन्दू हो या मुसलमान. हम जहां भी जाते हमसे कहा जाता है आगे चलो. चाहे वो गांव हो या अस्पताल हमसे से दूरी रखी जाती थी. बस में सफर के दौरान भी हमसे दूर बैठने को कहा जाता.
उनके अनुसार, '' 'हमें तो सभी हिक़ारत की नज़र से देखते थे चाहे हिन्दू हो या मुसलमान. हम जहां भी जाते हमसे कहा जाता है आगे चलो. चाहे वो गांव हो या अस्पताल हमसे से दूरी रखी जाती थी. बस में सफर के दौरान भी हमसे दूर बैठने को कहा जाता.
प्रकाश मेघवाल: छोटी जातियों के साथ परेशानी
सरहद के उस पार पाकिस्तान का मीरपुर ख़ास ज़िला है. वहां पले-बढ़े प्रकाश मेघवाल अब भारत की नागरिकता पाने की कोशिश कर रहे हैं. वे कहते हैं उन्होंने अपनी बिरादरी के साथ मज़हब और जाति के आधार पर भेदभाव को शिद्दत से महसूस किया है.
वे कहते हैं, ''छोटी जातियों को हर स्तर पर भेदभाव झेलना पड़ता है. मुसलमान कहते हैं तुम हिन्दू हो, ऊँची जाति के हिन्दू कहते हैं तुम नीची जाति के हो. वहां ये दोहरा भेदभाव महसूस किया है तभी तो यहां आए हैं.चाय की दुकान पर छोटे शहरो में जाते ही जाति के बारे में पूछा जाता है, फिर बताया जाता कि आपके लिए कप वहां रखे हैं. हां बड़े शहरों में ये पता नहीं चलता कि हम किस जाति के हैं इसलिए वहां ये दिक्कत नहीं आती थी.''
वे कहते हैं, ''छोटी जातियों को हर स्तर पर भेदभाव झेलना पड़ता है. मुसलमान कहते हैं तुम हिन्दू हो, ऊँची जाति के हिन्दू कहते हैं तुम नीची जाति के हो. वहां ये दोहरा भेदभाव महसूस किया है तभी तो यहां आए हैं.चाय की दुकान पर छोटे शहरो में जाते ही जाति के बारे में पूछा जाता है, फिर बताया जाता कि आपके लिए कप वहां रखे हैं. हां बड़े शहरों में ये पता नहीं चलता कि हम किस जाति के हैं इसलिए वहां ये दिक्कत नहीं आती थी.''
चेतनराम भील: कारोबार में भी भेदभाव
चेतनराम भील पाकिस्तान के सिंध में हैदराबाद ज़िले में रहते थे. उन्होंने भी हाल ही में भारत का रुख़ किया है. वे वहां दो टेंपो के मालिक थे. वे कहते हैं उनके वाहनों में अगर कोई सवारी बैठती तो कट्टर धर्मिक मिजाज़ के लोग कहते कि काफ़िर की गाड़ी में नहीं बैठना चाहिए. भारत आने के हफ्ते भर पहले उनके पिता का निधन हो गया था. चेतनराम कहते हैं कि उनके पिता के पार्थिव शरीर के लिए दो गज ज़मीन के लिए बहुत मिन्नतें करनी पड़ीं थी.
पाकिस्तान से आए इन दलितों में कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने ने ये कहते हुए अपना दर्द साझा नहीं किया कि ऐसा करने से पाकिस्तान में उनके रिश्तेदारों पर ज़ुल्म ढाया जाएगा.
पाकिस्तान से आए इन दलितों में कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने ने ये कहते हुए अपना दर्द साझा नहीं किया कि ऐसा करने से पाकिस्तान में उनके रिश्तेदारों पर ज़ुल्म ढाया जाएगा.