मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कई बार बसा और उजड़ा अजमेर

तारागढ़
विश्व धरोहर दिवस 18 अप्रैल पर विशेष
आर.डी.कुवेरा
राजस्थान का जिब्राल्टर अजमेर उस प्रमुख मार्ग से जुड़ा हुआ है, जो राजस्थान के मध्य में स्थित है तथा आगरा और दिल्ली को मालवा, गुजरात, दक्षिण भारत तथा उत्तर पश्चिमी राजस्थान व सिन्ध होता हुआ अफगानिस्तान और अरब देशों से जोड़ता है।
एक राजस्थानी कहावत है-अन्न भगवान रो, अर लूण चौहान रो। अर्थात अन्न तो भगवान का और नमक सांभर का। असल में सांभर के नमक का व्यापार कई सदियों तक खच्चरों पर बनजारों के माध्यम से अजमेर होते हुए सारे भारत ही नहीं वरन् खच्चरों के माध्यम से अफगानिस्तान होता हुआ अरब देशों तक होता था। सन् 684 से 709 ई. तक सांभर के राजा रहे सामन्त राज के कार्यकाल में ही सांभर की झील से नमक का व्यापारिक उत्पादन आरम्भ किया गया था। लक्खी बंजारा के वंशज अजमेर होते हुए नमक का व्यापार करते थे। आज भी लक्खी बंजारे की स्मृति में सांभर में स्थान बना हुआ है।
कभी-कभी अजमेर से आगे जाने पर बंजारों को टाटगढ़, भीम व आसपास मेर जाती के लुटेरों द्वारा लूट लिया जाता था। उनसे निपटने और अरब आक्रमणकारियों के सिन्ध तक आ जाने के कारण मिलने वाली किसी भी चुनौती का मुकाबला करने के लिए चौहान राजा अजयपाल ने सन् 730 ई. में अजमेर का नामकरण अजयमेरू कर यहां सैनिक चौकी की स्थापना की तथा तारागढ़ का निर्माण आरम्भ कराया। अजयपाल के पुत्र व उत्तराधिकारी अर्णोराज को यहां अनेक मंदिर स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। इनके कार्यकाल में अजमेर की गणना शक्तिशाली दुर्ग के रूप में की जाने लगी थी। चौहान काल में लगातार युद्धों में रहते हुए भी बीसलदेव ने अजमेर में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्थान के कई उल्लेखनीय कार्य किये। अजमेर की चतुर्मुखी प्रगति हुई। वह साहित्य मर्मज्ञ, कला प्रेमी और शिल्पकला का ज्ञाता था। चौहानों के शासनकाल में अजमेर की स्मृद्धि का अधिकांश श्रेय बीसलदेव को ही जाता है। सरस्वती कंठाभरण महाविद्यालय, बीसलसर जलाशय, आनासागर, और भारी संख्या में देवालय बनवाए, लेकिन उनमें से अधिकतर को मुस्लिम विजेताओं ने धर्मान्धता के कारण नष्ट कर दिए। पृथ्वीराज तृतीय के शासनकाल में मुसलमानों के विरुद्ध संघर्ष निरंतर जारी रहा और चौहानों व गुजरात के चालुक्यों के आपसी संघर्ष के कारण अजमेर का विकास रुक सा गया। मोहम्मद गोरी ने तराई की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हरा कर उसे मार डाला। परिणामस्वरूप अजमेर वासियों को भयंकर लूट-पाट और हिंसा का शिकार होना पड़ा था। नागरिक सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर गए तथा अजमेर का नगरीय विकास अवरुद्ध होना आरम्भ हो गया।
दिल्ली के मुसलमानों के सूबेदारों तथा बाद में कभी मेवाड़ के सिसोदिया, तो कभी मारवाड़ के राठौड़ों के कार्यकाल में नगर की समृद्धि को इतना धक्का लगा कि पन्द्रहवीं सदी के मध्य तक ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मजार के आस-पास जंगली पशु और बाघ घूमते हुए नजर आते थे। सन् 1556 में अजमेर हाजी खां के अधीन था, किन्तु अकबर के सेनापति कासिम खान ने बिना किसी संघर्ष के अजमेर दुर्ग पर अधिकार कर इसे मुगल साम्राज्य का सूबा बना लिया। मुगल काल में यहां कानून और व्यवस्था का राज आरम्भ हुआ। अकबर अजमेर की समृद्धि में अत्यधिक रुचि रखता था। 16वीं तथा 18वीं शताब्दी के मध्य अकबर, जहांगीर और शाहजहां के काल में अन्दरकोट, त्रिपोलिया गेट व तारागढ़ क्षेत्र विकसित हुए। दिल्ली गेट, आगरा गेट और मदारगेट व खाईलैण्ड होते हुए बाहरी चारदिवारी बनाई गई। साथ ही साथ नला बाजार, लाखन कोटड़ी, दरगाह बाजार, पुरानी मंडी, सरावगी मौहल्ला, कड़क्का चौक व आस-पास के इलाके विकसित हुए। शाहजहां के कार्यकाल तक अजमेर में स्थायी विकास कानून और व्यवस्था उद्योग-व्यापार आरम्भ हुए। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि मुगलकाल में यहां अनेक विकास कार्य हुए, जिनके निशान आज भी मौजूद हैं। मुगलों के पतन के बाद सन् 24 जून, 1818 तक अजमेर फिर से जोधपुर के राठौड़ों, मुगलों व ग्वालियर के मराठों के अधीन रहा। मराठों के सूबेदारों के काल में अजमेर में असहनीय अत्याचार, लूट-पाट और हिंसा का बोल-बाला रहा। सिंधिया की फौज ने चौथ वसूली के नाम पर मनमानी रकम वसूली। अजमेर में असुरक्षा एवं अस्थिरता बढ़ी और अधिकांश जनता यहां से दूसरे स्थानों पर चली गई। अजमेर असुरक्षा और दरिद्रता का क्षेत्र बन गया। इसे अजमेर के उजडऩे की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 24 जून, 1818 को अंग्रेजी शासन आरम्भ होने पर अजमेर मेरवाड़ा में शासन का सुदृढ़ीकरण करने के लिए प्रथम सुपरिटेन्डेन्ट बिल्डर ने क्षेत्र में लूट-पाट करने वाली मेर जाति को साम, दाम, दण्ड भेद की नीति अपना कर उन्हें समझौता करने को मजबूर किया। इसके बाद मेरवाड़ा को तिहरी गुलामी करनी पड़ी, जिसमें अंग्रेजी शासन और मेवाड़ और मारवाड़ के नरेशों की सीमाएं लगती थीं। कानून व व्यवस्था में अस्थिरता रहती थी। इसे व्यवस्थित करने के लिए दोनों नरेशों से एक संधि हुई। एक बटालियन का गठन किया गया, उसमें सिर्फ मेर जाति के युवकों को ही भर्ती किया गया, जिसका नामकरण मेरवाड़ा बटालियन रखा गया। मेर जाति की सामाजिक कुरीतियों को मिटाने व मेरवाड़ा में शांति स्थापना का जो कार्य अंग्रेज अधिकारियों ने जिस दृढ़ता, साहस और अपनी कार्यकुशलता से किया, वह उल्लेखनीय है। कर्नल हाल और कर्नल डिक्सन को मुख्य रूप से इसका श्रेय दिया गया। ब्यावर शहर का निर्माण भी डिक्सन की ही देन थी।
विल्डर ने अजमेर का कार्यभार संभाला तब यह नगर एक दम वीरान था। मराठों और पिंडारियों के अत्याचारों और दमन के कारण यहां के निवासियों ने दूसरी रियासतों में शरण ली थी। विल्डर ने अजमेर के लोगों को पुनर्वास में काफी योगदान दिया। शान्ति की स्थापना होते ही लोग तेजी से वापस अपने घरों को लौटने लगे और शासन में विश्वास पुन: जागृत होने लगा। कृषि में भी वृद्धि हुई और पुन: समृद्धि के संकेत दृष्टिगोचर होने लगे।
अंग्रेज अधिकारियों ने राजनीतिक निपुणता और प्रशासनिक योग्यता से अजमेर व मेरवाड़ा में कानून और व्यवस्था भी दृढ़ता कायम की और सम्पूर्ण क्षेत्र में कृषि, उपयोग, व्यापार और पशुपालन में उन्नति के नए सोपान स्थापित किए। मुद्रा के चलन को व्यवस्थित किया। पंचायत व्यवस्था फिर से विकसित की। न्याय व्यवस्था को व्यवस्थित रूप से आरम्भ किया। न्याय और पुलिस व्यवस्था जो पहले सम्मिलित थी, अलग की गई। 1858 में अजमेर और मेरवाड़ा को मिला कर एक जिले का रूप दिया व लगान वसूली व्यवस्थित की गई।
यह स्वीकार करना पड़ेगा कि 18वीं सदी में मुगलों के पतन काल से लेकर अजमेर संघर्षशील शक्तियों के बीच शतरंज के मुहरों की तरह पिटता रहा और हर आक्रांता ने इस पर दांत गड़ाए। इस संघर्ष में यह जिला एक तरह से विनष्ट सा हो चला था और यहां की जनसंख्या कुल मिला कर मात्र 25 हजार ही रह गई थी। अंग्रेजों के आधिपत्य के साथ शांति और स्थाई प्रशासन का युग आरम्भ हुआ तथा जनसंख्या में भी वृद्धि होने लगी। ब्यावर, जो अंग्रेजों के आगमन के समय एक छोटा-सा गांव था, अंग्रेजी शासन-काल में प्रमुख एवं महत्वपूर्ण व्यावसायिक केन्द्र बन गया था। वहां महत्वपूर्ण सूती उद्योग पनपा और उसके व्यापार में पंजाब के फजिल्का के बाद इस का स्थान बन गया था। हालांकि अंग्रेजों ने स्वाधीनता आंदोलन को बेदर्दी से कुचला, लेकिन उन्होंने यहां के विकास का भी पूरा ख्याल रखा। तभी तो आज की बुजुर्ग पीढ़ी को आज के हालात के मद्देनजर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि इससे तो अंग्रेजों का राज की बेहतर था। ऐसी आजादी से तो अंग्रेजों की गुलामी ही अच्छी थी।
सीपीडब्ल्यूडी, सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकण्डरी एज्युकेशन, कलेक्ट्रेट बिल्डिंग, सेन्ट्रल जेल, पुलिस लाइन, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, लोको-केरिज कारखाने, डिविजन रेलवे कार्यालय बिल्डिंग, मार्टिन्डल ब्रिज, सर्किट हाउस, अजमेर रेलवे स्टेशन, क्लॉक टावर, गवर्नमेन्ट हाई स्कूल, सोफिया कॉलेज व स्कूल, मेयो कॉलेज बिल्डिंग, लोको ग्राउण्ड, केरिज ग्राउण्ड, मिशन गल्र्स स्कूल, अजमेर मिलिट्री स्कूल, नसीराबाद छावनी, सिविल लाइंस, तारघर, आर.एम.एस., गांधी भवन, नगर निगम भवन, जी.पी.ओ., विक्टोरिया हॉस्पिटल, मदार सेनीटोरियम, फॉयसागर, भावंता से अजमेर की वाटर सप्लाई, पावर हाउस की स्थापना, रेलवे हॉस्पिटल, दोनों रेलवे बिसिट आदि का निर्माण ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के विजन का ही परिणाम था, जिससे अजमेर के विकास की बुनियाद पड़ी। आज अजमेर का जो स्वरूप है, उस पर अंग्रेजों की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है।
अंग्रेजों के कार्यकाल में ही आर्य समाज व मिशनरीज ने अजमेर में शिक्षा के विकास में अहम भूमिका निभाई। इन संस्थाओं की ओर से संचालित स्कूलों में बच्चों के अनुशासन पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। अंग्रेजी माध्यम की अधिकतर स्तरीय स्कूलें मिशनरीज की ही देन है, यथा एंसलम्स, क्वीन मेरीज व सोफिया। संपन्न घरानों के लोग अपने बच्चों को इन्हीं स्कूलों में ही पढ़ाना पसंद करते हैं। इसी प्रकार आर्य समाज की अनेक शिक्षण संस्थाएं वर्षों से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।
आजादी के बाद देश विभाजन के कारण सिंध प्रांत से आए सिंधियों ने प्रांरभिक समय तो संघर्ष में काटा, मगर जल्द ही उन्होंने व्यापार के क्षेत्र में अपनी धाक जमाई। आज व्यवसाय का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिस पर सिंधी व्यापारियों का वर्चस्व न हो। आज अजमेर जिस प्रकार महानगरीय संस्कृति की ओर बढ़ रहा है, उसमें सिंधियों की अहम भूमिका है। इस लिहाज से अजमेर के विकास में सिंधियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
लब्बोलुआब यह कहा जा सकता है कि जिस तरह दिल्ली कई बार बसी और कई बार उजड़ी, ठीक वैसे ही अजमेर की स्थिति रही, बल्कि उससे भी अधिक खराब रही।

लेखक आर.डी.कुवेरा प्रदेश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं
उनका संपर्क सूत्र है-
जटिया हिल्स, लोहागल रोड़, अजमेर
मो. 9829180180, 9660180180

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