मंगलवार, 10 मई 2011

शुद्ध के लिए युद्ध, महाभारत शैली में

लोकतंत्र की अजनाब खंड यानि भारतवर्ष की जनता पर विशेष कृपा रही है। इस कृपा एवं स्नेह के कारण ही उसने एक रोज जनता जनार्दन को स्वयंमेव चलाकर कहा कि चंूकि अब सरकार एवं मिलावट करने वाले व्यापारियों के बीच तथाकथित 'शुद्ध के लिए युद्धÓ होने वाला है, इसलिए यदि तुम घर बैठे यह नूरा कुश्ती देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हंू। इस पर जनता जनार्दन ने उत्तर दिया कि मैं अपने कुल के एक हिस्से का संहार सीधे ही स्वयं नहीं देखना चाहता हूं। तब लोकतंत्र ने कहा कि मैं संजय रूपी इलैक्ट्रोनिक एवं प्रिन्ट मीडिया को वह दृष्टि प्रदान करता हूं, जिससे वह तुम्हें इस युद्ध के समाचारों को सनसनीखेज बना कर सुना देगा। ऐसा कह कर लोकतंत्र ने मीडिया को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
आगे संजय रूपी मीडिया जनता जनार्दन को इस तथाकथित युद्ध के समाचार दिखाते-सुनाते हुए कहते हैं:- हे राजन! आप द्वारा चुने हुए बुद्धिमान शिष्य मंत्री के द्वारा 'वज्रव्यूहÓ रचना से खड़ी की हुई सरकारी विभागों की बड़ी भारी सेना को देखिए।
हे बुद्धिश्रेष्ठ ! सरकारी अमले में बड़े बड़े पराक्रमी महारथी हैं, जिनके पास नामी अस्त्र-शस्त्र कानून एवं रथ, गाडी-घोड़े हैं, इनकी सेना में कई योद्धा मंत्री हैं, जो बड़े शूरवीर है, किस -किस का नाम लिया जाए? एक योद्धा तो खेलकूद की क्रीड़ाओं में गुरू द्रोण से भी अधिक माहिर माना जाता हैै और उसी में व्यस्त रहता है। दूसरा जो कि अरब शक्करपति है, कहता है कि मैं राज की निस्वार्थ सेवा करता हंू और सिर्फ एक रुपए पगार लेता हंू और राजन! उस गरूर, परिवर्तित नाम, नामक योद्धा का गरूर देखिए, जो कि सुदूर दक्षिण यानि मलयाली प्रदेश केरल से चल कर इस महाभारत में सम्मिलित होने कुरूक्षेत्र के मैदान में आया है। इसी योद्धा ने कभी 'ग्रेट इंडियन नॉवेलÓ में सम्पूर्ण अजनाब खंड को महाभारत बताते हुए कांग्रेस की तुलना कौरवों से कर दी थी। इतना ही नहीं राजन! मजे की बात देखिए, उसने भारतखंड के एक पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू, को धृतराष्ट्र की संज्ञा देते हुए इंदिर ागांधी को प्रियदर्शिनी की जगह प्रियदुर्योधिनी बतला डाला था और अब पाताल लोक की नौकरी छोड़ कर तथाकथित 'भेड़-बकरियों एवं पवित्र लाचार गायोंÓ के देश पर राज करने चला आया। ऐसे और भी कई योद्धा हैं। इनकी मदद हेतु सेना में बड़े-बड़े आईएएस योद्धा हैं। इनको घेरे हुए खडे हंै राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी। हे महाबाहो! युद्ध में विशेष रूप से पारंगत अपनी 2 अक्षौहिणी सेना लिए कई विभागाध्यक्ष भी खडे हैं, जिन्होंने अपने-अपने अतिरिक्त विभागाध्यक्षों इत्यादि को लेकर इस व्यूह की रचना की है। हे कुलश्रेष्ठ! इस वज्रव्यूह में विभिन्न विभागों के जिलाधिकारी अपने अपने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ खड़े है और इनके साथ खड़ी है, उनके इन्सपेक्टरों की चतुरंगिणी सेना, बड़ा ही अद्भुत दृश्य है राजन!
हे प्रजातंत्रश्रेष्ठ! यह इन्सपेक्टरों की एक अक्षौहिणी चतुरंगिनी सेना मन-बुद्धि से तो सामने वाले मिलावटियों के साथ है, लेकिन शारीरिक तौर पर सरकारी अमले के साथ खड़ी है। इसलिए ही बड़ी भारी दुविधा में है और बलहीन है।
हे लोकतंत्रश्रेष्ठ! दूसरी ओर जो बड़े-बड़े व्यापारिक योद्धा हैं, उनको भी देखिए, उन पर ध्यान दीजिए, इनमें बड़े-बड़े मिलावटिये हैं, जिनके घी-तेल में मिलावट के विशाल गोदाम हैं, जहां इनके कारिन्दे नकली माल को हुबहू असली माल की तरह बना कर शानदार पैकिंग कर देते हैं। सिन्थैटिक दूध बनाने वाले योद्धा भी इनके साथ हैं। इनमें से कुछ तो अक्सर धार्मिक कथाओं में आगे बैठे हुए नजर आते हैं और कभी-कभी भावावेश में नाचने भी लगते हैं। इनके गोदामों में चौथ वसूलने वाले सरकारी इन्सपैक्टरों के सिवाय चिड़ा भी पर नहीं मार सकता है।
हे वज्रबाहू! उधर देखिए उस व्यापारी के पास शहर से दूर अनजान जगहों पर विशाल गोदाम है, जिसमें यह भाव बढ़ाने हेतु दालों-शक्कर इत्यादि का जखीरा रखता हैै। इसी सेना के एक छोर पर दवाइयों में मिलावट करने वाले हैं, जिनके पास आम जनता पर वार करने के अमोघ शस्त्र हंै तो दूसरी ओर किरयाने के सामान में मिलावट करने वाले शूरवीर भी हैं। कोई काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाता है, कोई पिसी मिर्च में ईंट को पीस कर मिलाता है। कोई धनिये में घोड़े की लीद मिलाता है। ऐसे कई महारथी हैं और राजन! उधर देखिए उस छोर पर जो योद्धा खड़ा है, वह बड़ा ही पराक्रमी है, जिसने 'मिलावट के एक सौ एक नुस्खेÓ पुस्तक लिख कर उसे खारी बावली, चावड़ी बाजार, दिल्ली से प्रकाशित कराया है। कहते हैं कि इस पुस्तक को कतिपय क्षेत्रों में खूब सराहा गया है। हो सकता है कि इसे इस बार साहित्य अकादमी से कोई पुरस्कार प्राप्त हो जाए। ऐसे असंख्य शूरवीर हैं, किस-किस का वर्णन किया जाए? मैंने तो कुछ का ही वर्णन किया है। हे बुद्धिश्रेष्ठ! थोडे में ही समझना पर्याप्त है, क्योंकि आप तो सबको जानते ही हैं, आखिर यह सब 'एक ही थैली के ....Ó हैं।
जब दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हो गई तो प्रशासन ने गरज कर ढ़पोर शंख बजाया अर्थात 'शुद्ध के लिए युद्धÓ अभियान की घोषणा की। इसके बाद जगह-जगह से वक्तव्य, घोषणाएं, विज्ञप्तियां और सकर््यूलर निकलने लगे। बड़ा शोरगुल हुआ। तत्पश्चात सरकारी अमले के सेनापति मंत्री महोदय अपने रथ, ऐयरकन्डीशन गाडी पर बैठ कर वहां आए और सचिव से बोले कि मुझे दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़ा किया जाए, ताकि मैं इस युद्ध की इच्छा वालों को देख सकंू। जब उन्होंने दोनों ओर की सेनाओं को देखा तो अत्यंत कायरता से युक्त होकर विषाद करते हुए जनता जनार्दन से बोले:-
हे प्रजातंत्र रक्षक! युद्ध की इच्छा रखने वाले इस कुटुम्ब-समुदाय को युद्ध में दोनों ओर उपस्थित देख कर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मुख सूख रहा है तथा मेरे शरीर में कंपकंपी छूट रही है एवं रोंगटे खड़े हो रहे हैं, हाथ से कलम गिर रही है और त्वचा भी जल रही है और मेरा मन भ्रमित हो रहा है, मैं खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहा हूं।
हे जनता जनार्दन! मैं लक्षणों-शकुनों को भी विपरीत देख रहा हूं और इस तथाकथित युद्ध में दोनों ओर खड़े स्वजनों का नुकसान होता देख कर मुझे कोई लाभ नजर नहीं आ रहा है। हे जनता रूपी प्रभु! इनके विरुद्ध कार्यवाही करके मुझे चुनाव रूपी युद्ध में इनके तन-मन-धन की मदद लेनी होगी तो मैं वह कैसे प्राप्त करूंगा? इन लोगों के विरुद्ध युद्ध करने पर तो मुझे पाप ही लगेगा, जबकि हमारा धर्म तो ऐन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना है, हम धर्म विरुद्ध आचरण कैसे कर सकते हैं? ऐसा कह कर मंत्रीजी बाण सहित धनुष का त्याग करके, कलम-कागज त्याग कर, इस युद्धभूमि में सत्तारूपी रथ के मध्य भाग में बैठ गए और यह तथाकथित युद्ध, शुद्ध छदम युद्ध प्रतीत होने लगा।
तब जनता जनार्दन ने उन्हें समझाते हुए कहा हे पृथानन्दन! तुम इस नपुंसकता को ग्रहण मत करो। सरकारी तंत्र, लोकतंत्र का ही हिस्सा है। उसे निष्काम भाव से अपना कर्तव्य कर्म पूरा करना चाहिए। यही यज्ञ है, यही धर्म है, सिर्फ कर्मकांड अर्थात सरक्यूलर निकालना, अपनी फोटुओं सहित अखबारों में करोड़ों रुपए के बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाना, पहले से ही सूचना लीक कर छापे डालना और फिर इन्हीं जमाखोरों के चन्दे से चुनाव लडऩा धर्म नहीं है। हे पार्थ! अब सिर्फ यह नारा लगाना कि हमारा हाथ गरीबों के साथ है, काफी नहीं है, अत: इस हाथ से गांडीव, धनुष, कानून, का इस्तेमाल करें।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है:-
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजिनीयर्स सोसायटी, प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75

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