घटना पुरानी है। एक बार एक इन्सपैक्टर ऑफ स्कूल एक कस्बे में अचानक ही किसी स्कूल का निरीक्षण करने पहुंच गए। वे स्कूल के एक क्लास रूम में गए। वहां पढ़ा रहे मास्Óसाब से उन्होंने पूछा कि आप इस समय बच्चों को क्या पढ़ा रहे हैं? मास्टर साहब ने बताया कि इनको रामायण का ज्ञान कराया है, आज ही समाप्त हुई है। इस बात को सुन कर इन्सपैक्टर साहब बहुत खुश हुए कि चलो कहीं तो देश की संस्कृति की शिक्षा दी जा रही है और उन्होंने विद्यार्थियों की परीक्षा लेने की गरज से एक लड़के से पूछा कि बताओ बेटे! जनक का धनुष किसने तोड़ा? अचानक पूछे गए प्रश्न से लड़का घबरा गया और चुपचाप खड़ा रहा, इस पर इन्सपैक्टर साहब ने उससे पुन: पूछा कि बताओ, धनुष किसने तोड़ा? इस बात पर लडका डर गया और मार पडऩे की भावी आशंका से बचने हेतु उसने अपना सिर दोनों हाथों में छिपा लिया (उस समय अधिकतर बच्चे ऐसे ही किया करते थे) और लगभग मिमियाते हुए उत्तर दिया कि धनुष मैंने तो नहीं तोड़ा, आप चाहे तो किसी को भी पूछ लें। मैं तो जनक को जानता तक नहीं हंू। इस पर इन्सपैक्टर साहब को गुस्सा आ गया और उन्होंने उसी अंदाज में मास्Óसाब की तरफ देखा तो मास्Óसाब ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि सर! मेरे ख्याल से भी धनुष इसने नहीं तोड़ा होगा, यह तो क्लास का सबसे शरीफ लड़का है। यह सुन कर तो इन्सपैक्टर साहब का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह मास्Óसाब और लड़के को लेकर हैडमास्टर के कमरे में पहुंच गए और गुस्से में ही सारी घटना उन्हें बताई। हैडमास्टर साहब धर्म-कर्म को मानने वाले शख्स थे। तिलक छापा लगा कर स्कूल आते थे। यह सुन कर उन्होंने लड़के को डांटते हुए कहा कि सच-सच बता कि धनुष किसने तोड़ा? लड़का अपनी बात पर अड़ा रहा एवं भगवान की सौगंध खाकर बोला कि धनुष मैंने नहीं तोड़ा। इस पर हैडमास्टर ने मास्Óसाब से कहा कि इससे गीता पर हाथ रखवा कर कहलवाओ कि धनुष मैंने नहीं तोड़ा? तब मास्टर साहब ने बताया कि सर! गीता तो आज छुटटी पर है। वह स्कूल नहीं आई है। आप कहें तो किसी और लड़की को बुलवा लूं ? इस पर हैडमास्टर साहब अपना सिर खुजलाने लगे और उधर इन्सपैक्टर साहब को काटो तो खून नहीं। उन्होंने हैडमास्टर साहब से कहा कि यह क्या हो रहा है? हैडमास्टर साहब बोले कि आजकल लड़के बहुत झूठ बोलने लगे हैं। नैतिकता का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। मां-बाप के पास बच्चों को नैतिक शिक्षा देने का समय ही नहीं है। फिर कुछ देर ठहर कर वह बोले 'धनुष तो अब टूट ही गया, जो हुआ सो हुआ, ऐसा करते है कि इम्प्रैस्ट, सरकारी खर्च, से उसे ठीक करवा लेते हैं, बात आई-गई हो जायेगी।Ó
यह सब देख सुन कर इन्सपैक्टर साहब तो भुनभुनाते हुए चले गए, लेकिन हैड मास्टर साहब को चैन कहां? उनको कुछ कुछ याद आया कि एक धनुष का जिक्र रामायण में भी आया था। इस धनुष ने बड़े-बड़े बखेड़े खड़े किए हैं, जाने कब इससे पिन्ड छूटेगा? आज की घटना से हैडमास्टर साहब की चिन्ता बढती जा रही थी। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को फोन पर बता दिया कि सर! ऐसी ऐसी बात हुई है और न तो क्लास के विद्यार्थी और न ही अध्यापक यह बता पाये कि धनुष किसने तोड़ा। इस पर जिला शिक्षा अधिकारी ने जिलाधीश को सूचित कर दिया कि कोई धनुष टूटा है, लेकिन तोडऩे वाले का कुछ पता नहीं पड़ा है, जिन्होंने तत्काल ही जिले में रैड अलर्ट घोषित कर दिया एवं समस्त शिक्षण संस्थाओं में सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। साथ ही इधर उन्होंने शिक्षा अधिकारी से इस बाबत विस्तृत रिपोर्ट मांग ली, उधर शिक्षा सचिव को भी सचिवालय में सूचित कर दिया। उधर सचिवालय में शिक्षा सचिव एक फाइल पर 'मोस्ट अर्जन्टÓ का फ्लैग लगा कर मंत्रीजी के पास पहुंचे और उन्हें किसी धनुष टूटने की खबर बताई। उन्होंने भी तत्काल पहले सीएस को एवं फिर सीएम को मोबाइल पर सूचित कर दिया, जो कि उस समय दिल्ली में बड़ी हुकुम के बंगले पर थे। सीएम ने मंत्रीजी को आदेश दिया कि आप तत्काल 'डिजास्टर मैनेजमेन्टÓ की बैठक बुला कर चर्चा शुरू कर दे। कहीं यह आइएसआई अथवा लश्करे तैयबा का कारनामा न हो? उधर प्रिन्ट एवं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को भी कहीं से खबर लग गई। वह भी सक्रिय होकर सनसनी फैलाने लगे। पूरे सचिवालय विशेष कर गृह मंत्रालय में गहरी चिंता व्याप्त हो गई। वहां कागजी घोड़े, फाइलें, दौडऩे लगे। उसी समय एक फाइल पर गृह मंत्रालय से आई यह टिप्पणी उल्लेखनीय थी कि 'धनुष के टूटे हुए अवशेषों का भी पता लगाया जाए, जिससे यह पता लग सके कि वह कहां का बना हुआ था और उसे बनाने में किस-किस चीज का इस्तेमाल हुआ था। विधि मंत्रालय की यह टिप्पणी भी गौरतलब थी कि त्रेता युग की ऐसी ही घटना का केस उसी समय किसी कचहरी में अवश्य ही दायर हुआ होगा और अब वह कलियुग में तो सुनवाई के लिए लग ही गया होगा। उसका भी पता किया जाए ताकि उसमें 'केविटÓ, अग्रिम अर्जी लगाई जा सके। वैसे भी कलियुग का क्या भरोसा, जाने कब प्रलय हो जाए, क्योंकि वैसे भी कतिपय ज्योतिषी एवं टीवी चैनल सनसनी फैलाते हुए समय-समय पर प्रलय होने की घोषणा करते रहते हैं। ऐसे में पता नहीं उस केस का क्या हश्र हो।
उधर जब स्कूल की छुटटी हो गई तो बच्चे अपने-अपने घर चले गए। जिस विद्यार्थी से सवाल पूछा गया था उसने घर आ कर डरते-डरते यह बात अपने माता-पिता को बताई। इस पर बच्चे के पिताजी ने गुस्से में आकर अपनी पत्नी से कहा कि देखा तुमने, आजकल के मास्टर बच्चों को क्या पढ़ा रहे हैं? उन्हें इतना भी नहीं मालुम कि जनक का धनुष किसने तोड़ा, लाओ महाभारत, मैं अभी उसमें से देख कर बताता हूं और लड़के की मम्मी यह बड़बड़ाते हुए घर में महाभारत ढूंढने चल दी कि जाने किस टांड पर रखी हुई है?
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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