हमारे देश में सोने की बड़ी महिमा है। चाहे वह सोना धातु हो, जिसने सन् साठ के दशक में भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व. मोहनलाल सुखाडिय़ा के समय राजस्थान की छोटी सादड़ी कांड में कई गुल खिलाये थे अथवा आराम का मामला हो, हमारे देश में सोने के भाव हमेशा ही ऊंचे रहे हैं। अब खबर है कि सोने के भाव फिर नई ऊंचाइयां छू रहे हैं और यह हो भी क्यों न यहां तो स्वयं दुनिया के मालिक क्षीर सागर में शेषशैया पर सो रहे हैं तो उनकी प्रजा, जिसको जैसा मौका हाथ लग रहा है, वह वही सो रहा है। मसलन पृथ्वी के दोनों छोरों पर स्थित उत्तरी एवं दक्षिणी धू्रव के कई प्राणी जैसे पोलर बीयर इत्यादि छह-छह महीने सोते हैं। मिश्र के पिरामिडों में ममियां सैकड़ों वर्षों से चिर निद्रा में सो रही हैं तो मेंढ़क इत्यादि प्राणी वर्षा ऋतु के बाद सुषुप्तावस्था में जमीन के अंदर सो जाते हैं। उल्लू दिन में सोते हैं। टिटहरी अपनी टांगें आसमान की तरफ कर के सोती है। देश की भूखी नंगी एवं बेबस जनता का एक हिस्सा बावजूद 'इंडिया शाइनिंगÓ और 'अपना हाथ गरीब के साथÓ के नारों के बीच पानी एवं सीवर के बड़े पाइपों में सोता है। बड़े -बड़े महानगरों में सैकड़ों लोग फुटपाथ और प्लेटफॉर्म पर सोते हैं। और तो और चुनाव हो जाने के बाद हमारे अधिकांश जनप्रतिनिधि तक पांच साल के लिए, जाने कहां जाकर, सो जाते हैं? परन्तु सो जाते हैं यह सच है, जब चारों तरफ सोने का इतना महत्व है तो सोने के भाव बढेंग़े ही।
त्रेताकाल में कुंभकर्ण ने बड़ी तपस्या की। ब्रहमाजी प्रसन्न हो गए. तपस्या करने वालों पर विरन्ची-ब्रहमाजी का वरदहस्त रहता था, सो प्रकट हो गए और कुंभकर्ण से बोले, वत्स! मांग क्या मांगता है? कुंभकर्ण के पास राजपाट, धन-दौलत की तो कोई कमी थी नहीं, भीमकाय शरीर और अतुलित बल था ही, लेकिन मानसिक सोच आसुरी थी तो उसने मांगना तो चाहा एक दिन सोना और 6 महीने जागना, लेकिन ऐन वक्त पर उसकी चाल सरस्वती माता को पता लग गई और वह असुर की जीभ पर आकर बैठ गई नतीजतन कुभकर्ण ने उल्टा मांग लिया कि 6 महीने सोऊं और एक दिन जागूं और इस तरह सोने के बिसर होकर रह गया। जिसने सोने की ठान ली, वह चाहे कुंभकर्ण हो, चाहे प्रशासन उसको जगाना मुश्किल है। आप चाहे तो आजमा कर देख लें। हां, अलबत्ता अन्ना हजारे जैसा आंदोलन चल निकले तो और बात है।
सोनेकी महत्वपूर्ण घटना महाभारत काल में भी हुई है। कौरव एवं पांडव लड़ाई की तैयारी के लिए विभिन्न राजा-महाराजाओं और उनकी सेनाओं को अपनी तरफ करने के लिए रथों पर सवार होकर दौरे कर रहे थे। ठीक वैसे ही जैसे आजकल कई नेता, धार्मिक उन्माद फैलाने और अपना मतलब साधने हेतु सिर पर मुकुट पहन पहन कर रथ यात्राएं निकालते रहते हैं। स्ंायोग से एक दिन अर्जुन एवं दुर्योधन दोनों श्रीकृष्ण के पास पहुंच गए। दुर्योधन थोड़ा पहले पहुंचा, तब श्रीकृष्ण सो रहे थे, इसलिए दुर्योधन उनके सिरहाने जा कर बैठ गया। थोडी देर बाद अर्जुन भी वहां पहुंचा और सोये हुए श्रीकृष्ण के पांवों की तरफ बैठ गया। थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण की नींद खुली तो पहले अर्जुन से दुआ-सलाम हुई और कुशलक्षेम पूछने के बाद उन्होंने सिरहाने की तरफ देखा तो दुर्योधन बैठा था। उससे भी नमस्कार का आदान-प्रदान हुआ। श्रीकृष्ण ने दोनों से ही आने का कारण पूछा। उनके द्वारा बताने पर वे बोले कि चूंकि जागने पर पहले मैंने अर्जुन को देखा है, अत: पहले मांगने का हक उसी का है। अत: या तो वह मुझे मांग ले या मेरी सेना को। दुर्योधन का तर्क था कि चूंकि पहले मैं आया हूं, अत: पहले मांगने का अधिकार मेरा है, लेकिन उस समय श्रीकृष्ण सो रहे थे, इसी सोने की वजह से यह उलटफेर हुआ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा नल देश निकाले पर जंगल में थे। तब अपनी पत्नी दमयंती को सोता हुआ छोड़ कर चल दिये थे। इसी वजह से आगे चल कर उन पर कैसी-कैसी विपत्ति आती है, जबकि भिक्षा में मिली सूखी रोटी तक उनके हाथ से नदी में गिर जाती है। अपनी पत्नी यशोधरा को महल में सोता हुआ छोड़ कर सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) चले गए थे। बाद में इस बारे में वह अपनी सखी से उलाहने के रूप में कहती है:-'सिद्ध हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात, पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा आघात। सखी, वह मुझसे कह कर जाते, तो क्या पथ बाधक ही पाते? (साकेत, मैथिलीशरण गुप्त)
ऐसी-ऐसी सोने की कई घटनाएं हमारे धार्मिक और ऐतिहासिक पन्नों पर अंकित हैं, जिन्होंने इतिहास पलट दिया। कुछ समय पूर्व जयपुर, राजस्थान की घटना है, जिसमें राज्य के खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के कुछ कर्मचारी जब कार्यालय समय में ही ऑफिस में सोते हुए पाए गए तो तत्कालीन खादी मंत्री श्रीमती गोलमा देवी को कहना पड़ा, 'दफतर में सोबो तो चोखी बात कोनी।Ó परन्तु राज्य सरकार ही क्या केन्द्र सरकार का विश्वास भी सोने में ही है। नहीं तो दिन प्रतिदिन इतने घोटाले क्यों उजागर हो रहे है? इतना भ्रष्टाचार क्यों फैल रहा है? काले धन का इतना शोरशराबा क्यों हो रहा है? इसलिए जब सरकार ही सोने को महत्व दे रही है तो सोने का भाव नई ऊंचाइयां छू जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा?
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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