गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

ऐसे थे हमारे हैड साहब !

हमारे दफ्तर के बड़े बाबूजी यानि हैड साहब यथा नाम तथा गुण थे। हैड साहब नौकरी लगने के दिनों से ही हर काम में अपनी दिमागी कसरत किया करते थे। अक्सर सरकारी कार्यालय की परम्परा के अनुसार नए-नए लगे बाबुओं को रिसिप्ट-डिस्पैच पत्र भेजने व प्राप्त करने के कार्य में लगाया जाता है, इसलिए जब हैड साहब को, हालांकि तब वह हैड नहीं थे, इस काम में लगाया गया तो उन्होंने यहां भी अपना दिल दिमाग एक कर दिया। यहां तक कि उसका असर उनके घर पर भी पडऩे लगा।
एक बार वे किसी के निमंत्रण पर सायंकाल का भोजन करने कहीं गए। जाते वक्त घरवाली से कह गए कि तुम खाना खा लेना। जब वह वापस लौटे तो घरवाली भी खाने के काम से निपट चुकी थी। हैड साहब जब सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनका कोई मित्र बाहर से उनके घर आ गया। हैड साहब ने औपचारिकतावश उससे खाने का आग्रह किया और इस बाबत अपनी बीवी से बात की। जब उन्हें मालूम हुआ कि बीबी ने कोई रोटी बचा कर नहीं रखी है तो वे काफी नाराज हुए। उन्होंने चिल्ला-चिल्ला कर सारा पास-पड़ौस इकट्ठा कर लिया। उनका कहना था कि जैसे ऑफिस में पत्रों की 'ओसीÓ अर्थात बचा हुआ पत्र रखी जाती है तो घर में भी रोटियों की 'ओसीÓ रखी जानी चाहिए ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आए।
रिसिप्ट-डिस्पैच के बाद उन्हें कार्यालय की लेखा शाखा के बजट बनाने के काम में लगाया गया था। उन्ही दिनों एक अन्य सैक्शन के ऑफीसर ने उन्हें बुला कर पूछा कि तुम क्या काम करते हो? इस पर इन्होंने तत्काल अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए उत्तर दिया कि सर! मुझे 'बुडजटÓ (बजट) बनाने का कार्य दिया गया है। ऑफीसर 'बुडजटÓ शब्द सुन कर पहले तो थोड़ा अचकाया लेकिन बाद में उसे जब बात समझ आई तो वह मुस्कराए बिना नहीं रह सका और बोला कि अच्छा-अच्छा आप 'बुडजटÓ बनाते हैं।
पहले नौकरी, फिर शादी की सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने बड़े जोश-खरोश से अपने साथियों को दोपहर के खाने पर न्यौता दिया। प्रत्येक को निमंत्रण देते हुए कहा कि कल दोपहर हमारे यहां 'डिनरÓ है, आपको जरूर आना है। इधर दोस्तों ने भी जवाब दिया 'आएंगे भई, जरूर आएंगे. कल आपके यहां 'दोपहर के डिनरÓ पर अवश्य आएंगे।Ó
नौकरी के ही शुरुआती दिनों की बात है। एक बार एक ऑफीसर को किसी सरकारी आदेश की प्रति देखनी थी। उन्होंने अपने हैड साहब को बुला कर कहा कि आप 5 मई 1969 का सर्कुलर लेकर आओ। अब हैड साहब सारे कार्यालय में इधर-उधर खूब घूम लिए लेकिन उन्हें ऐसा कोई भी पत्र नहीं मिला। जो, उनकी समझ से, सर्कुलर यानि गोलाकार हो। सारे सरकारी कागज पत्र आयताकार थे। आखिर हार-थक कर उन्होंने अपनी शंका अपने एक साथी से जाहिर की कि फाइलों में तो सभी पत्र आयताकार है, सर्कुलर तो एक भी पत्र नहीं है, जबकि साहब 5 मई का सर्कुलर मांग रहे हैं। उनके साथी ने मुस्कराते हुए उन्हें समझाया कि सरकार के किसी आदेश विशेष को, जो सब कार्यालयों को भेजा जाता है, उसे सर्कुलर कहते हैं।
एक बार हैडसाहब को बस द्वारा नजदीक ही किसी जगह जाना था। जब उस जगह बस पहुंची, तभी वहां उतरने के लिए वे अपनी सीट से उठे । उसी समय उनके ऑफीसर, जिन्हें अचानक किसी काम से कहीं जाना था। बस में घुसे ऑफीसर ने ज्योंही उन्हें सीट से उठते हुए देखा तो शिष्टाचारवश कन्धा पकड़ क र बैठा दिया कि अरे-अरे बैठो-बैठो। आग्रह के बावजूद ऑफीसर खडे रहे। थोडी देर बाद बस अगले स्टॉप पर पहुंची तो हैड साहब फिर उतरने के लिए अपनी सीट से उठे, लेकिन इस बार फिर ऑफीसर ने उन्हें फिर सीट पर बैठा दिया। जब बस रवाना हुई तो उन्होंने हैड साहब से पूछा, 'आप कहां जा रहे हैं ?Ó इस पर हैड साहब ने बताया, 'मुझे तो पिछले स्टॉप पर ही उतरना था, आपने मुझे जबरदस्ती वापस बैठा दिया।Ó
उन दिनों हैड साहब की पोस्टिंग विभाग के मुख्यालय में थी और विभाग में आमूलचूल परिवर्तन होने वाले थे। विभाग बोर्ड के रूप में बदलने वाला था। जो भी मुख्यालय में आता, बोर्ड की ही चर्चा करता और पूछता कि बोर्ड कब तक बन जायगा। संयोग से उन्ही दिनों मुख्यालय में भंवरलाल नामक कारपेंटर भी काम कर रहा था। उसे चीफ इंजीनियर के कमरे में टांगने हेतु लकड़ी का एक बोर्ड बनाने हेतु कहा गया था। एक रोज बाहर से एक अधिकारी आया और बोर्ड के बारे में पूछने लगाा कि बोर्ड कब तक बनेगा, इस पर हैड साहब ने बताया कि पिछवाड़े भंवरलाल से जाकर पूछ लो कि बोर्ड कब तक बन जाएगा।
हैड साहब अपने ऑफीसरों के आदेशों का पालन करने में बड़े पाबंद थे और अक्षरश: उनका पालन करते थे। एक बार उनके ऑफीसर ने उन्हें किसी दूसरे स्थान से ट्रंक कॉल पर कहा कि मैं बस से आ रहा हंू या तो मैं सायंकाल 6 बजे पहुंचूंगा या रात 9 बजे, इसलिए ड्राइवर को बस स्टैन्ड भेज देना, वह देख लेगा। हैडसाहब ने ड्राइवर को बुला कर आदेश दिया कि तुम्हें साहब को लेने बस स्टैन्ड जाना है तथा साहब ने सायं 6 बजे अथवा रात्रि 9 बजे आने को कहा है। दोनो ही समय जाकर देखना है। ड्राइवर द्वारा यह कहने पर कि मैं 6 बजे साहब को लेने पहुंच जाऊंगा और साहब आ गए तो ठीक वरना 9 बजे जाकर देख लूंगा तो हैड साहब ने उससे कहा कि 6 बजे भी जाना है और 9 बजे भी। चाहे साहब 6 बजे आएं चाहे न आएं। साहब का आदेश है।
समय के साथ साथ हैडसाहब का काम बढऩे लगा। वह अक्सर मिलने-जुलने वालों से कहा करते थे कि मैं आजकल बहुत बूशी (बिजी) हूं।Ó इंगलिश में 'व्यस्तÓ माने 'बिजीÓ इस तरह लिखा जाता है कि कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति उसे 'बिजीÓ की जगह 'बूशीÓ पढ़ सकता है। उन्हीं दिनों उनके मातहत एक बाबू को कार्यालय में मच्छर दिखाई दिए। उसने अपनी शिकायत लिख कर हैडसाहब को भिजवा दी। हैडसाहब ने जब यह नोटशीट देखी तो उस पर कई प्रश्न पूछ डाले। मसलन मच्छर एक था या कई थे? वे आज ही दिखाई दिए या पहले भी दिखाई दिए थे? वे गजेटेड थे या नॉन गजेटेड थे? सीधी भर्ती वाले थे या प्रमोटी थे? वे कही से ट्रांसफर होकर तो यहां नहीं आएं? उनकी ज्वायनिंग रिपोर्ट कहां है? कई प्रश्न उन्होंने पूछ डाले और मसला फाइलों में ही दब कर रह गया।
इसी तरह एक बार कार्यालय के रिकार्डकीपर को कार्यालय में एक चूहा दिखाई दिया। उसने पहले तो मौखिक रूप से हैडसाहब को बताया, फिर लिख कर दिया कि रिकार्ड में एक चूहा दिखाई दिया है। अगर वह ऑफिस का रिकार्ड खा गया तो उसकी समस्त जिम्मेवारी आपकी, यानि हैड साहब की होगी। हैड साहब ने इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने ऑफीसर को नोटशीट पर लिखकर भेजा कि कार्यालय के रिकार्ड में एक चूहा देखा गया है, हो सकता है कि वहां चूहों ने कोई अवैध कॉलोनी बना ली हो, अत: इस बारे में नगर परिषद तथा यूआइटी को तत्काल कार्यवाही के लिए लिखना उचित होगा। हैडसाहब ने सोचा कि एक बार वहां से जवाब आ जाए तो आगे कार्यवाही करें। इधर दूसरे ही रोज सफाई करते हुए रामू सफाई वाले को रिकार्ड रूम में चूहा दिखाई दिया तो उसने अपनी झाडू से तत्काल उसे ठंडा कर दिया।
कार्यालय की चाहरदिवारी पर प्रवेश हेतु एक बड़ा गेट एवं उसके साथ ही एक छोटा गेट भी था। अकसर बड़े गेट से वाहन एवं छोटे गेट से पैदल लोग प्रवेश किया करते थे। एक बार की बात है कि छोटे गेट की चाबी चौकीदार से खो गई, इसलिए वह उसे खोल नहीं पाया, सिर्फ बड़ा गेट ही खुला था। जब हैड साहब कार्यालय आए तो रोज की तरह उन्होंने छोटे गेट से प्रवेश करना चाहा, लेकिन वह बन्द था। उन्होंने चौकीदार को बुलाया और गेट नहीं खुलने का कारण जानना चाहा। जब चौकीदार ने उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि अब लोग अंदर कैसे आएंगे? इस तरह के सैकड़ों किस्से लिए हैड साहब कुछ ही दिनों पूर्व रिटायर हुए हैं।
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

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