शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

जियारत में हास्य


हमारें देष में विभिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न किवदंतियां प्रचलित हैं. मसलन
राजस्थान के हाडौती क्षेत्र के बारें में मषहूर है कि त्रेतायुग में जब श्रवणकुमार अपने
माता-पिता को कांवड में बैठाकर तीर्थयात्रा करवाता हुआ उधर से गुजरा तो उसे झुंझलाहट
आगई. कहते है कि उसने कांवड जमीन पर रखदी और चल दिया लेकिन ज्योंहि वह उस
क्षेत्र के बाहर आया उसे अपनी जिम्मेवारी का अहसास हुआ औेर वह वापस कांवड लेकर
यात्रा पर रवाना हुआ. कई संत यह बात पंचवटी के लिए भी कहते है जहां सतयुग में
भवानी ने षिवजी की बात नही मानी औेर त्रेता में सीता माता ने मारीच प्रकरण में लक्षमण
की बात की उपेक्षा की. कहते है कि यही बात अजमेर षहर के लिए कही जाती हैं कि कोई
भी व्यक्ति चाहे वह यहां तिजारत-व्यापार-करने आएं चाहे जियारत-धार्मिकयात्रा-और चाहे
घूमने वह अपने साथ चंद लहमें मुस्कराहट के लाता भी है और अपनों परायों में बांटने हेतु
यहां से तवर्रूख-प्रसाद-के रूप में ले भी जाता हैंहर
साल यहां प्रसिद्ध सूफीसंत ख्वाजा मोइनुद्धीन चिष्ती का उर्स होता है जिसमें
भाग लेने हेतु दूर दूर से जियारती आते हैं. एक बडा जत्था पाकिस्तान से भी आता हैं जिसे
पुरानीमंडी के एक स्क्ूल में ठहराया जाता हैं. यह बात पाकिस्तान जाकर बताने पर वहां
कइयों को इस बात का गिला-षिकवा रहता है कि भारत की हकूमत हमारें लोगों को नई की
बजाय ‘पुरानीमंडी’ में क्यों ठहराती हैं ?
सन 1965 में भारत-पाक के बीच दूसरा युद्ध हुआ था. उस लडाई में पाकिस्तान
को सबसे ज्यादा नुकसान खेमकरण सैक्टर में हुआ. उसे जान माल का तो नुकसान हुआ
ही भारतीय फौज ने अमेरिका निर्मित उसके कई पैटन टैंक जब्त कर लिए जबकि वहां की
हकूमत ने अवाम को यह बताया कि भारत ने हमारें पैटन टैंक चुरा लिए हैं. खैर, ऐसा ही
एक टैंक अजमेर में बजरंग गढ के नीचे प्रदर्षन हेतु रखा गया हैं. एक बार उर्स के मौकें
पर आया पाकिस्तानी जियारतियों का दल जब बारादरी पर घूमते 2 बजरंग गढ के नीचे से
निकला तो उसे वहां पैटन टैंक दिखाई दिया. उनमें से कइयों का माथा ठनका, अरे !
इन्होंने तो हमारा टैंक चुराकर सरेआम यहां रखा हुआ है, ‘चोरी और सीना जोरी’ चलकर
पुलीस में ‘काबिल तव्वजों इत्तला’ यानि एफआईआर लिखवानी चाहिए. बाद में उस दल के
नेताने उन्हें किसी तरह समझाया कि चोरीकी रपट उस थाने में होती है जहां से माल गया
है अतः रपट यहां नही पाकिस्तान में होगी और पुलीस चाहेगी तो तफसीस-जांच- भी वही
होगी, तब कही वह माने.
यह तब की बात है जब रेडियों ही ज्यादा चलते थे. टीवी का प्रचलन ज्यादा हुआ
नही था. उन्ही दिनों जब एक पत्रकार पाकिस्तान की यात्रा पर गया तो उसने वहां देखा कि
घर घर रेडियों पर दिल्ली स्टेषन चल रहा हैं. पाकिस्तानियों का भारत के प्रति प्रेम देखकर
वह बडा खुष हुआ. उसने जिज्ञासावष एक व्यक्ति से इसका कारण पूछा तो उसने बताया
कि हमारें हुक्मरान का यह कहना है कि हम भारत का वैसे तो कुछ बिगाड नही सकते, इस
तरह दिल्ली स्टेषन बजा बजाकर कम से कम उनकी बिजली तो खर्च करही सकते हैं.
1971 की जंग की बात हेैं. वैसेतो जनरल याहियाखां को पीने पिलाने वगैरह से ही
कहां फुरसत थी फिर भी एक रोज उन्होंने अपना रेडियो सुन लिया तो जनरल टिक्काखां
को फोन लगाया और बोले कि अपना रेडियो ये क्या खबरें दे रहा है कि भारत की दो
राजधानियों में दहषत बैठी हुई है ? इस तरह की गलतियों से हमारी जगहंसाई होती हैंइस
पर टिक्काखां ने उत्तर दिया ‘आपने ही स्टेंडिग ऑर्डर दे रखा है कि दुष्मन का
नुकसान बताते वक्त दो से गुणा कर दिया करोजब
टीवी का जमाना आया तो षुरू षुरू में पाकिस्तान में अधिकतर की यह ख्वाइष
थी कि ‘कष्मीर की कली’ पिक्चर देखने को मिल जाय क्योंकि वैसे तो इस जंम में कष्मीर
की झलक देखने को मिलना मुष्किल ही हेै इस बहाने कम से कम कष्मीर तो देख ही लेंगेवैसे
भी भारत सरकार हमें कष्मीर का वीजा तो कभी देती नही जबकि हमारें नौजवान जो
पीओके के मुजफराबाद, गिलगित और चित्राल के कैम्प अटैन्ड करके आएं हेै, हमेषा कहते
रहते है कि कष्मीर जाने के लिए वीजा की नही ऐके 47 की जरूरत होती हैं, हमतो वही
लेकर आते-जाते हैंउर्स
के दौरान दरगाह के आस पास के इलाकों में होटलें, रेस्टोरेन्टस दिनरात खुले
रहते हैं. इनकी खास बात यह है कि इनमें खाने का ‘मीनू’ होटल के अंदर कार्ड पर नही
दुकान के बाहर लगे बोर्ड परही लिखा रहता हैं. एक बार कुछ पाकिस्तानी जायरीन बाहर
बोर्ड पर ‘कष्मीरी पुलाव’ लिखा देखकर होटल मकीना पहुंचें. पहले उन्होंने एक प्लेट ‘मटन
पुलाव’ का आर्डर दिया. जब बैरा ‘मटन पुलाव’ लेकर आया तो उन्होंने देखा कि उसमें
सिर्फ चावल ही चावल है, मटन का एक भी दाना नही हैं. जायरीनों ने बैरे से इसकी
षिकायत की तो वह बोला कि इसको यहां ‘मटन पुलाव’ ही कहते हैं. आप नाम पर मत
जाइये, अगर आप कष्मीरी पुलाव मंगायेंगे तो इसका मतलब यह थोडे ही है कि मैं उसमें
आपको कष्मीर डालकर ला दूंगा. कष्मीर को लेकर यहां भी उन जायरीनों को बडी निराषा
हुई. यहतो बाद में नयाबाजार से उन्होंने एक के दो देकर जब तथाकथित ‘कष्मीरीषाल’
खरीदी तब उन्हें लगा कि पाकिस्तान जाकर बताने के लिए कष्मीर नामकी कोई चीज तो
मिली.
यह तबकि बात है जब तक अमेरिका ने पाकिस्तान की फौजी छावनी एबटाबाद में
ओसामा बिन लादेन का ‘षिकार’ नही किया था. हुआ यहकि उर्स में लंगरखाने की गली
स्थित होटल सकीना में जायरीन बैठे हुए थे. खाना-पीना चल रहा था. संयोग की बात है
कि उस होटल में एक षामलाल नामक बैरा भी काम करता था. जब जायरीन खा-पी चुके
तो वह लोग उठकर मैनेजर के पास गए और पेमेंट बाबत पूछने लगे तो मैनेजर ने वही से
बैरे को आवाज लगाई ‘ओ सामा बिल लादें’ उसका इतना कहना था कि होटल में
अफरा-तफरी मच गई. कोई इधर भाग रहा है कोई उधर. जब कुछ देर बाद लोगों को
असल बात समझ आई तब षांति हुई. पुलीस तो इस घटना के काफी देर बाद आईपाकिस्तान
का एक मषहूर बैंक है हबीब बैंक. एक बार उनके एक अधिकारी दरगाह
की जियारत करने आए. उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि लाहौर में हबीब प्लाजा स्थित
उनके बैंक की रीजनल षाखा में एक क्लर्क बदली होकर आया. उसके पहले वह ग्वालमंडी,
अनारकली, कलमा चौक इत्यादि षाखाओं में काम कर चुका था. रोजाना घर से खाना
बनवाकर लेजाना और दोपहर में अपनी ब्रांच में कही बैठकर खाना खा लेना, यही उसका
रूटिन था. जब रीजनल ऑफिस में ट्ंासफर होगया तो खाना खाने के लिए वह ऑफिस के
कैम्पस में एक पेड की ब्रांच पर बैठकर ही खाना खाता था क्योंकि ब्रांच पर खाना खाने की
आदत हो गई थी, तभी तो कहते है कि आदमी की आदत आसानी से छूटती नही हैं. उसी
अधिकारी ने यह भी बताया कि यहां की हकूमत हमारें साथ भेदभाव बरतती हैं. जब हम
उन्हें हमारें एक सौ रू. देते है तो बदले में वह हमें यहां के पचास रू. देती हैं.
क्वेटा से आए एक बुजुर्ग खां साहब चाय पीते अपने अनुभव एक खादिम से अपने
घर गृहस्थी की बातें करने लगे. बोले, उम्रेदराज होने से याददाष्त कमजोर हो रही हेै, जब
रवाना हो रहा था तब बेगम को जरूरी 2 बातें बतानी थी. परन्तु अखबार वालें का बिल
नही मिल रहा था तो खादिम सैयद हुसैन ने पूछ लिया कि खां साहब ! वहां क्या
अखबारवालें बिलों में रहते है ? लाहौर का ‘डॉन’-इंगलिष डेली-पहले तो ऐसा नही था,
अब क्या होगया हैं ? कहते है कि ‘जीओ’ टीवी भी काफी हिम्मतवाला हैंउर्स
पर जहां दूर दूर से किन्नर, जेबकतरें, फकीर आते है वही बनारस के ठग भी
पीछे नही रहते. इनके अलग अलग क्षेत्रों के लाखों के ठेकें छूटते हैं, जैसे मदारगेट, रेलवें
स्टेषन, बस स्टैन्ड, इंदरकोट एरियां इत्यादि. एक बार मदारगेठ पर चम्पासराय के पास एक
जायरीन घंटाघर को देख रहा था तभी एक ठगने उसके पास आकर पूछा, ‘...भाईजान !
कहां से तषरीफ लारहे हो ?’ ‘...अहमदाबाद से आएं हैं.’ जायरीन बोला.
...अहमदाबाद में कहां ?
...दरियापुर.
...क्या काम करते हो ?
...कपडा मार्किट में अपुनकी दुकान है. ख्वाजाकी मेहरबानी से सब मजे में हैंे
...घंटाघर पसंद आया ?
इस पर जायरीन ने हां भरी तो ठग बोला कि अंग्रेजों के जमाने का हैं. आजकल
ऐसी चीजें मिलती कहां है ? नक्की-पूरें-135 फुट का हैं. खरीदोंगे ? सस्ता लगा देंगेजाय
रीन ने कहा कि ठीक भाव लगाओंगे तो लेलेंगे, पर नाप कर देना पडेगा. भाव तय
होजाने पर जायरीन ने उसे पैसे दे दिए और वह रकम लेकर जाने लगा तो जायरीन ने उसे
कहा नपवायें बिना क्यंाति जाओछो ? इस पर ठग ने कहा कि मैं फीता लेकर आता हूं तब
तक तुम यही रहना, ऐसा नही हो कि पीछे से कही चले जाओ. जायरीन मान गया लेकिन
काफी इंतजार के बाद भी ठग वापस नही लौटाजाय
रीन समझ गया कि वह ठगा गया है फिर भी वह दोतीन रोज और ठहरकर
रोज वहां आता और लोगों से पूछताछ करता लेकिन कोई फायदा नही हुआ. संयोग से एक
दिन वह ठग फिर संचेती होटल के पास दिखाई दे गया. जायरीन ने उसे पकडा और बुरा
भला कहा तो ठग बोला कि उस रोज मैं फीता लेकर आया तब तक आप जा चुके थे. मैं
तो अब भी घंटाघर नापकर देने को तैयार हूं परन्तु आज भी मेरें पास फीता नही हैं. इस
पर जायरीन ने कहा कि ऐम करो तमे यांति ठहरो अणे हूं फीतो लेर आउंछू. ठग उसकी
बात मान गया. कहते है कि उसके बाद दोनों की मुलाकात आजतक नही हुई, उधर घंटाघर
भी उनका इंतजार कर रहा हैं.
एक बार उर्स के मौकें पर कुछ निजि प्रयास से प्रदर्षनी का आयोजन किया गयाआय
ोजकों ने सस्ती दरों पर खाने-पीने के पंडाल एवं दर्षकों को निःषुल्क प्रवेष देने की षर्त
पर नगर परि द से नाममात्र के षुल्क पर पटेल मैदान लेलिया. बाद में उन्होंने ‘मैनेज’
करके प्रर्दषनी में प्रवेष षुल्क लगा दिया. अगली साल जब उन्होंने फिर प्रदर्षनी लगााने हेतु
आवेदन किया तो परि द ने एतराज किया और कहा कि आपको लिखकर देना होगाा कि
प्रवेष मुफत होगा. खैर आयोजकों ने लिखकर दे दिया और प्रदर्षनी चालू होगई. समय रखा
गया दोपहर 3 बजे से रात्रि 11 बजे तकलेकिन परि द अधिकारियों का आष्चर्य का ठिकाना
नही रहा जब उन्होंने देखा कि आयोजकों ने इस बार प्रवेष षुल्क की बजाय बाहर निकलने
का टिकट रखा हैं. अब दर्षकों के सामने दो ही विकल्प रहते थे, यातो रात्रि 11 बजे तक
अंदर ही रहकर कुछ खाया-पीया जाय या टिकट खरीदकर बाहर आया जाय. हां अलबत्ता
उन्होंने इतनी मेहरबानी जरूरकी कि जो कोई खरीदकर कुछ खा-पी लेगा उसे बिल दिखाने
पर ऐक्जिट टिकट नही खरीदना पडेगापाकिस्तान
लौटकर जानेवालें लोग अकसर अपने देष में ही षिकायत करते मिल
जायेंगे कि औरों की तो क्या कहें हमारें अपने आदमी हमसे अच्छा सलूक नही करते. अब
आप देखें जब वापसी में हम दिल्ली हवाई अडडें पर पाकिस्तानी एयरलाइन्स के काउंटर पर
पहुंचे तो वहां लिखा था ‘पीआइये’. जब हम पी आएं तो उहोंने हमें बोर्डिंग पास देने में
आनाकानी की. अब किससे गिला षिकवा करें और किससे नही करें ?
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

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