मन उदासह्रदय व्यथित
इतना करा,इतना सहा
फिर भी क्यों होता नहीं कोई खुश?
सारी इच्छाएं
सारे सपने ,सारे लक्ष्य
क्यों होते हैं सब ध्वस्त?
सारी प्रार्थनाएं ,पूजा पाठ
क्यों सब होते हैं व्यर्थ ?
क्यों सुनता नहीं इश्वर?
कब तक रोना है ?
खुश दिखना है
क्यों बताता नहीं कोई ?
सारी हिम्मत,सारे होंसले
क्यों लेते नहीं विराम ?
निरंतर चलते रहने का
करते रहने का
क्यों जाता नहीं विचार?
क्यों कम नहीं होती ?
जीने की इच्छा
कम नहीं होता
मोह अपनों का
छूटता नहीं संसार
क्यों मानता नहीं ये मन?
ना मिला जब उत्तर
किसी को
कैसे मिलेगा मुझको?
क्यों समझाता नहीं कोई?
हंसू या रोऊँ
या फिर चुपचाप सहूँ
जब ऐसे ही जीना है
ऐसे ही जाना है
समझ नहीं आता
फिर भी
क्यों व्यक्त करता हूँ ?
कुंठा अपनी
क्यों लिखता हूँ सब ?
कब ,कैसे और किससे
पता चलेगा ?
क्यों होता है सब ?
क्या ये ही काफी नहीं?
क्या फर्क पड़ता है ?
गर मेरे चेहरे पर
तुम्हारा नाम नहीं
पढता कोई
मेरे दिल में
तुम्हारी तस्वीर नहीं
देखता कोई
मेरे जहन में बसे
तुम्हारे ख्याल को
समझता नहीं कोई
मेरी हर साँस से
जुडी तुम्हारी साँस का
अहसास किसी को नहीं
मेरे तुम्हारे एक होने को
महसूस करता नहीं कोई
तुम मेरे लिए
मैं तुम्हारे लिए जीता हूँ
क्या ये ही काफी नहीं?
इस झूठ
प्रपंच की दुनिया में
कोई खुश नहीं किसी से
हर मन में प्रश्न
हर ह्रदय व्यथित
दूसरों के कार्यकलापों से
सुनना नहीं चाहता
सच कहना चाहता
मन के विचारों को
चुप हो जाता
कह ना पाता
कहीं हो ना जाए रुष्ट
यह सोच कर
करता है प्रपंच
कहता है वही बात
जो उसके मन को भाये
चेहरे से मुस्काराता
ह्रदय में आग जगाता
घूम रहा हर चेहरा
चेहरे पर चेहरा चढ़ाए
काट रहा है जीवन
मन में पीड़ा बसाए
हर मन में प्रश्न
हर ह्रदय व्यथित
कोई खुश नहीं
किसी से
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
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