गुरुवार, 5 नवंबर 2015

वादे ! ......क्या अाएंगे 'अब'अच्छे दिन ?

'बेटी बचाओ' क्या सिर्फ 'नारा' ही है,
'नन्ही हथेलियाँ'', हो रहीं लहूलुहान हैं ।
नहीं लग रही अब,कोई कहीं लगाम है,
दिनों-दिन आदमी हो रहा यों हैवान है।
घूस, अपहरण और बलात्कार यहाँ वहाँ
हर रोज बनता 'फोकस' खबरों का जहां।
पीड़ित तो पीड़ित, परिजन होते शर्मसार,
रक्षकों की बातकरें,नहीं बदल रहेआसार।
भूखे भेड़िये से, गुंडे मिजाज गर्माते हैं,
जेल जाते भी अब, नहीं कतई शर्माते हैं।
समाज की तो , बडी निराली है रीत ही,
पचडों से दूर ही रहना,बन गया गीत है।
ना धर्म, न शर्म है, कर्म की बात क्या कीजे,
कलजुग है घोर,कहते शर्मिंदा होत दिन तीजे।
भृष्टाचार अक्सर, आ सामने खडा होता है,
बडा ऊंचा समझता, पडा जहाँ छापा होता है।
अस्पतालों की तो,बात ही मत कीजिए सर,
महंगी दवा और डॉक्टर ,जरा कसिये तो 'पर'।
दाल भात,तेल और, बिजली चढ़ रहे ऊँचे है,
गंगा मैली, कचरे के ढेरों पर बैठे गली कूँचे हैं।
आदमी तो खा रहा , रोज महगाई के कोडे़ है,
जनता के पसीने से,नेता खारहे तले पकौडे है।
काला धन, भला कैसे स्वदेशी हो जाएगा,
राज आपका , दाऊद क्यों मरने आएगा ?
दिल्ली से देश तक, हवा जो कभी तन जाए
रोक लीजिए पहले, कि 'धूंआ' आग बन जाए।
मोदी जी अब, सैल्फी से जरा बाहर आ जाईये,
"मन की बात" है, अच्छे दिन,अब ले हीआईये।
~~~~~~~~ ~~~~ * शमेन्द्र जड़वाल

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