शनिवार, 7 नवंबर 2015

सांई बाबा: भक्त भले ही भगवान मानें, अन्य क्यों?

हिंदू मंदिरों में सांई बाबा की मूर्ति स्थापित करने पर तो विवाद होगा ही
शुक्रवार 6 नवम्बर 2015 को आजतक न्यूज चैनल पर रात्रि के समय साईं बाबा को लेकर एक दिलचस्प/गंभीर व धर्म में किसे भगवान कहा जाए, के मुद्दे पर बहस देख कर यह लगा कि हम भगवान और धर्मावलम्बियों के दायरे को ध्यान में रखे बिना ऐसी बहस कर रहे हैं, जिसका रिजल्ट हमें सही व सम्यक नहीं मिल सकता। 
बहस का विषय था कि सांई बाबा भगवान हैं कि नहीं। उत्तर तो हमें बहुत सीधा व सम्यक मिल सकता है, मगर यह तभी मिलेगा, जब यह बहस स्याद्वाद (अपेक्षा के सिद्धांत) के सिद्धान्त पर आधारित हो, न कि अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर।
बहस में शामिल मुस्लिम धर्म के पैरोकार ने कहा कि हमारे मजहब में तो हमें पैगम्बर मोहम्मद साहब को भी खुदा का दूत माना गया है, खुदा नहीं। खुदा एक है ही है, जो निराकार है। ऐसे में साईं बाबा को खुदा या भगवान कैसे माना जा सकता है। वे तो केवल एक फकीर थे।
साईं बाबा को भगवान मानने वालों के यहां जो साहित्य / धर्म ग्रंथ हैं, चाहे वे अभी लिखे गए हों या 100 वर्ष पूर्व में, उनके आधार पर साईं बाबा भगवान हैं। ऐसे में अगर साईं भक्त उन्हें भगवान मानें तो किसे एतराज है, मगर उनकी मूर्ति हिंदू मंदिरों में स्थापित करने को लेकर विवाद है, क्योंकि अधिसंख्य हिंदू उन्हें भगवान नहीं मानते। 
जैन धर्म में भगवान की व्याख्या पूरी तरह से अलग है व सभी धर्मों से हट कर है। उनके धर्म ग्रन्थ में भगवान का वह रूप है ही नहीं, जो अन्य धर्मों में है। उनके धर्म ग्रंथ कहते हैं कि भगवान का अर्थ है, वह भव्य आत्मा जो राग-द्वेष से मुक्त होकर अपने स्वभाव में विराजमान हो गई है, जिसे संसार से किसी प्रकार का काई लेना-देना नहीं है और वह जन्म-मरण के बन्धन से भी मुक्त हो गई है। वे मानते हैं कि भगवान या अन्य कोई शक्ति ऐसा कुछ नहीं कर सकती, जिससे दूसरे का हित-अहित हो सकता हो। यह धर्म अकर्तावादी सिद्धांन्त अर्थात भगवान किसी का कुछ नही कर सकता, को मानता है। इसके मानने वाले अपने धर्म / मजहब को मान कर खुश हैं उन्हें इस बात से कोई ऐतराज नहीं है कि अन्य कोई किसको भगवान मानता है या नहीं। उन्हें इस बात में भी कोई एतराज नहीं है कि आपके भगवान आपके रक्षक हैं या आपकी झोली भरने वाले हैं। जैन धर्म सिखाता है कि मैत्री भाव रख कर ही चला जाना चाहिए। उनका धर्म कहता है कि यदि तू धर्म का राही बनना चाहता है, अपनी आत्मा का उद्धार करना चाहता है तो दूसरों की ओर दृष्टि मत कर- किसने क्या माना है, क्या सोचा है, तू तो अपनी ओर देख, अपना लोटा छान कर पी, सबको छना पानी पिलाने की मत सोच। लोटा तो छन जाएगा सबके चक्कर में कुआं नहीं छनेगा।
सनातनधर्मी निराकार ईश्वर के अवतारों को भगवान मानते हैं। अब तक तेईस भगवान अवतार ले चुके हैं और चौबीसवें भगवान कल्कि अवतार लेंगे। 
अब उनकी इस मान्यता पर किसे एतराज होना चाहिए। ये सब निजी मान्यताओं की बात है, अपने-अपने पुराण, धर्म ग्रंथों की बात है। इसमें विवाद कब पैदा होता है, जब हम अन्य की मजहबी मान्यताओं में दखल देने का प्रयास करते हैं। आज सिख सम्प्रदाय में गुरु ग्रंथ साहब ही उनके सर्वोपरि व भगवान तुल्य हैं, उनकी अवमानना पर वे उतना ही क्षुब्ध होते हैं, जैसे भगवान की अवमानना हो गई हो। 
भारत जैसे देश में अनेक धर्म और धार्मिक मान्यताएं हैं, उन मान्यताओं पर न तो विवाद होना चाहिए, न इन पर बहस होनी चाहिए। मूल बात जो ध्यान में रखनी चाहिए वह है कि हमें एक दूसरे की सीमा में प्रवेश नहीं करना चाहिए अथवा एक दूसरे के क्षेत्राधिकार में दखल नहीं देना चाहिए।
आप अपने घर में किसी की भी पूजा करें मुझे क्या एतराज है परन्तु मेरी मान्यता के साथ अपनी मान्यता को ठूसने का प्रयास ही कलह की जड़ है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भगवान की मूर्तियों के साथ साईं बाबा को बैठाने का प्रयास करोगे तो बात नहीं बनेगी, कलह होगी ही होगी। यह छोटी सी बात है मगर है बड़ी गूढ़।  साईं के मंदिर में साईं बाबा बैठें, किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए मगर साईं मंदिर में अन्य सम्प्रदाय / धर्म की मूर्तियां लगाने / रखने में तो ऐतराज व कलह होगी ही।
किसी भी बात का अतिरेक नुकसानदायक होता है। अब साईं को हरिद्वार के मंदिरों में जहां हिन्दू देवताओं के मंदिर हैं, उनमें बैठाने से तो कलह होगी ही।
मैं तो एक बात और भी कहना चाहता हूं, भगवान शब्द का प्रयोग हर किसी के लिए या हर किसी संदर्भ में नहीं होना चाहिए। कभी आगे चल कर सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहना भी कलह पैदा करने का कारण बन सकता है।
विवाद का अन्त होना श्रेयकर हैं, विवाद का स्थान तो किसी भी धर्म में नहीं है।
-एन.के. जैन सीए
मो. 9414004270

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