कुछ वर्षों पूर्व तक सभा सोसायटियों के किसी भी उत्सव अथवा शादी-विवाह में कोई जिमणार होती थी तो सब मिल बैठ कर पंगत में खाना खाते थे। वह जमाना 'आर्ट ऑॅफ गिविंगÓ का था यानि लेने की बजाय देने में ज्यादा जोर दिया जाता था और कहा जाता था कि 'जब खाओ सब खाओÓ परन्तु इक्कीसवीं सदी के उदारीकरण के इस दौर में सब कुछ बदल गया है। अब फंडा है 'पहले आओ पहले खाओÓ । शादी विवाह से लेकर सरकारी हलकों तक में, सब जगह, यही हो रहा है और अगर खाने वाला कोई 'राजाÓ भी हो और मंत्री भी हो तो फिर कहना ही क्या? सोने में सुहागा या कह लीजिए 'अपना हाथ जगन्नाथÓ वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। राजा कई तरह के होते हैं। पहले कभी चन्द्रवंशी और सूर्यवंशी राजा होते थे, जो प्रिवीपर्स के साथ ही निबट गए। कई लोग लाड-प्यार में अपने छोटे बच्चों को राजा कह कर पुकारते है तो कई वयस्क भी अपने प्रियजन को राजा संबोधित करते हैं। जैसे फिल्म 'ज्वैल थीफÓ में नायिका अपने नायक देवानन्द को एक गाने में कहती है 'ओ मेरे राजा! देर से आई, फिर भी आई, वादा तो निभाया...Ó वगैरह वगैरह।
हम सब यह भी जानते हैं कि दूल्हे को भी कुछ समय के लिए राजा माना जाता है, चाहे उसे अधिकतर चीजें इधर-उधर से व्यवस्था करके पहनाई हुई होती हैं। एक राजा 'मनका राजाÓ होता है। यह राजा अपनी मनमानी करता है। जो मन में आया सो किया। ऐसे राजा हर जगह मिल जायेंगे। कहने का तात्पर्य यह कि राजा राजा ही होता है, जो कर दे वह कम है, इसलिए हम सब को बुरा नहीं मानना चाहिए कि इस बार दक्षिण के 'राजाÓ ने यह कर दिया, वह कर दिया।
अरे भाई! उनका कहना है कि उसने जो कुछ किया है 'जनता के हित में किया है और पहले जैसा होता आया वैसे किया है। यह कोई आज से थोड़े ही हो रहा है। अकबर-बीरबल के जमाने से होता आया है। आप 'आइने अकबरीÓ उठा कर देख लें। अकबर बादशाह के जमाने की बात है। बादशाह को अपने एय्यारों से पता पड़ा कि उनका एक मुलाजिम बहुत भ्रष्ट है, लेकिन वह किसी बेगम का रिश्तेदार भी है, फिर भी बादशाह 'मजबूरÓ नहीं थे, मजबूत थे इसलिए उस मुलाजिम को उन्होंने बंगाल के सूबेदार के पास भेज दिया और कहा कि इसे ऐसी जगह रखो जो सुनसान हो। सूबेदार ने उसे समुद्र के किनारे पोस्टिंग दे दी और कहा कि तुम वहां जाकर समुद्र की लहरें गिनो। उस कारिन्दे ने बिना आनाकानी के समुद्र के किनारे जाकर अपना चार्ज संभाल लिया। आजकल के कारिन्दों की तरह अड़ा नहीं कि मिनिस्टर की डिजायर लिखवा लाये। खैर थोड़े दिन तो उसे नई जगह जमने और स्थिति का जायजा लेने में लगा, लेकिन फिर उसने अपनी कारगुजारी चालू कर दी। वह उधर से निकलने वाले जहाजों से चौथ वसूली करने लगा। उसका उन्हें कहना था कि चूंकि मैं जनता के हित के लिए, सल्तनत की तरफ से, तैनात हूं और समुद्र की लहरें गिन रहा हूं, लेकिन आपके जहाजों के आने से लहरों की चाल गड़बड़ा गई है, इनकी गिनती में खलल पड़ गया है। अब मैं बादशाह को क्या जवाब दूंगा? आपको भारी हर्जाना देना पड़ेगा. इस बात पर जहाज का कप्तान घबरा जाता और लिफाफे अथवा ब्रीफकेस में कुछ ले देकर मामले को रफा-दफा करता। कहने का तात्पर्य यह है कि वह पानी का राजा था। उसने मामला पानी की लहरों से अपना हिसाब कर लिया। अब इस युग में हवा की लहरों, टूजी स्पैक्ट्म का मामला था। इस राजा ने सब कायदे-कानून हवा में उड़ा कर 'पहले आओ पहले खाओÓ की तर्ज पर सब को निबटा दिया। वैसे भी पांच तत्वों में हवा का महत्व पानी से उपर ही है, नीचे नही है। आप किसी जानकार से पूछ कर देख लें। 'पहले आओ पहले खाओÓ की थ्योरी पर भूतपूर्व एनडीए एवं वर्तमान यूपीए दोनों ही सरकारें एकमत हैं। इस मत को अटलबिहारी जी की सरकार ने चलाया। उसे इन्होंने आगे बढ़ाया। दोनों ने ही जी-जी यानि टूजी स्पैक्ट्म के ठेके इसी प्रणाली को आधार मान कर दिए। अब दोनों एक दूसरे को दोष दे रहे हैं। रही बात उन दरबारियों की, जिनका यह कहना है कि इस घोटाले से देश को कोई हानि नहीं हुई, तो ऐसे दरबारी तो मुगलों के जमाने में भी थे और अब भी हैं। कुछ भी हो जाए यह यहीं कहेंगे कि राजकोश का कुछ नहीं बिगड़ा और इसी बात की इनकी 'फीसÓ है।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
मो. 9873706333.
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