वो क्या है कि सन साठ के दषक में बनी एक फिल्म में फोटों को लेकर
नायक-नायिका के बीच कव्वाली के माध्यम से मीठी मीठी तकरार चलती है जिसके बोल है
‘क्या करोगेगे तुमुम मेरेरी तस्वीर लेकेकर’ बहुत देर तक तकरार होती हेैं, गिलें षिकवें होते हेैंतब
भी बात नही बनती. उस समय कव्वाली को लेकर मेरें मन में कई बार अपनी फोटों
ख्ंिाचवाने की तलब हुई कि अगर मुझसे ‘कोई’ इस तरह फोटों मांगें तो मैं तो तत्काल देदूं
लेकिन उस वक्त किसी ने मांगी ही नही. बात मन की मन में रह गईपहले
पहल मैंने अपनी फोटों तब खिंचवाई थी जब मुझे हाई स्कूल की परीक्षा का
फार्म भरना था. मैं सजधजकर हुलसा हुलसा पुरानी मंडी में सडक किनारें स्थित कैलाष
फोटों स्टूडियों गया. दुकानदार ने मुझे कैमरें के सामने रखें स्टूल पर बैठाकर दो चार बार
मेरी गरदन दांये, बांये, उपर नीचे की और फिर मेरी फोटों खैंचदी. वही मैंने परीक्षा फार्म
पर चिपकादी.
परीक्षा के समय जब मैं दूसरी स्कूल स्थित परीक्षाकेन्द्र पर गया तो कुछ देर बाद
वही फोटों लगा फार्म लेकर एक परीक्षक वहां आया और बार बार कभी मुझे और कभी
परीक्षाफार्म को देखते हुए बोला कि क्या आपही .......गोयल है ? मेरें द्वारा हामी भरे जाने
पर वह बोला कि आपकी षक्ल फोटों से 100 परसेंट नही मिलरही हैं. इस पर मैंने जवाब
दिया कि कोई बात नही, जितनी मिल रही हेै उतनी मिलादें. अगर 33 परसेंट भी मिल
जायगी तो भी ‘पास’ तो हो ही जाउंगा न ? वैसेभी उससे ज्यादा नम्बर तो मेरें किसी
सब्जेक्टमें आज तक कभी आए ही नही. माध्यमिक षिक्षा बोर्डभी तैतीस परसेंटवालों को
पास करता ही हैं.यह सुनकर वह मुझे ऐसे घूरनेलगा जैसे पुलीसवाला अपराधी को घूरता हैंहाईस्कूल
और फिर डिप्लोमा करने के बाद कुछ दिन यूंही घूमता रहा तो बेकारी में
सबसे सरल रास्ता नेतागिरी लगा. मैं सफेद कुर्ता पायजामा पहनने लगा और जोडतोड
लगाकर एक राजनीतिक दल की हमारी गली की षाखा-कृपया कोई इसे आरएसएस की
षाखा ना समझलें वर्ना दिगविजयसिंहजी पीछे पडने में देर नही करेंगे-का अध्यक्ष बन गयासदा
की भांती उस साल भी वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण का बडा हल्ला मचा. वन विभाग के
आंकडें तो खैर लाखों-करोडों को पार कर गए लेकिन हमारा उद्धेष्य सीमित था. हम लोग
तो हाथाजोडी करके पंचकुंड स्थित नर्सरी से कुछ पौधें ले आए और ले देकर स्थानीय
अखबारों में वृक्षारोपण महोत्सव का खूब प्रचार करवाया. नतीजतन कुछ लोग गली के
इकटठे होगए, कुछ राह चलते लोग और कुछ स्कूल जाते बच्चें वहां रूक गए. हमने एक दो
प्रेसफोटोग्राफर एवं पत्रकारों से भी अनुनय-विनय की तो वह भी आगए. उसी समय मैंने
देखा कि घटनास्थल से कुछ दूरी पर गाएं, बकरियां भी खडी थी जो ललचाई नजरों से
लगनेवालें पौधों को देख रही थीपहले
मैंने लिखित भाषण दिया. अधिकांष में तो मैं वही बोला जो मुझे लिखकर
दिया था लेकिन जहां मैंने अपनी तरफ से कुछ मिलाया वही हो हल्ला होगया जोकि लिखित
भाषणवालों के साथ होता आया हैं. यूपी इत्यादि जगहों में आजभी हो रहा हैं. आप आए
दिन अखबारों में पढ ही रहे होंगे. खैर, भाषण समाप्त होने व तालियां बजने के बाद मैंने
एक पौधा लगाया. हालांकि इस काम में मेरे सफेदझक कपडों पर कुछ मिटटी लग गई
जिसका मुझे बहुत अफसोस रहा लेकिन इससे भी ज्यादा मलाल इस बात का रहा कि
ऐनवक्त पर फोटोग्राफर के कैमरे का क्लिक नही होपाया और मेरी फोटों नही छपीउन्हीं
दिनों एक बार पुष्कर मेले में जाने का मौका मिला. वहां दडें पर एक चलते
फिरते स्टूडियोंवाले ने हाथोंहाथ फोटों खैंचने की दुकान लगा रखी थी. उसके पास एक पर्दा
भी था जिसमे एक हवाईजहाज का चित्र लगा हुआ था तथा उसमें बैठने का स्थान कटा
हुआ था ताकि जिसे हवाईजहाज में बैठे हुए फोटों खिंचवानी हो वह पर्दें के पीछे बैठकर
फोटों खिंचवायें तो उसकी फोटों हवाईजहाज में बैठे हुए दिखलाई देगी. मैंने भी इस पोज में
अपनी फोटों खिंचवाई और कइयों को दिखलाई कि ‘किंग फिषर एयरलाईन’ में बैठा हूं
लेकिन लगा कि किसी पर भी प्रभाव नही पडाकुछ
समय बाद जब नौकरी हेतु अर्जी दी तो फार्म के साथ साथ अपनी फोटों भी
भेजी. वहां से यह लिखा हुआ आया कि आप फोटों में अपनी उम्र से दस वर्ष बडे लग रहे
हैं. कही आप ‘ऐजबार’ यानि अधिक उम्र तो नही हैे ? मैंने उनको उत्तर भेजा कि वैसे तो
मेरी उम्र अधिक नही है लेकिन वह फोटों दस वर्ष बाद की लगती है तो इसे सुरक्षित रखलें
क्या पता आपको दस वर्ष बाद अखबारों इत्यादि में देने हेतु मेरी फोटों की जरूरत पड
जाय तब आपको दुबारा मेरी फोटों नही ढंूढनी पडेगीनौकरी
लगते ही रिष्तेदारों तथा षादी करवानेवालें आसपास मंडराने लगे. उनको यह
गंवारा नही कि कोई कुंवारा- कुंवारा ही क्या कुंवारी भी- दो दिन सुख चैन से रहलें. खैर,
दुबला पतला तो था लेकिन फिर भी एक जगह रिष्ता तय होगया. एक रोज सालीजी का
पोस्टकार्ड आयाकि आपकी फोटों भिजवायें. उन दिनों मोबाइल वगैरह तो क्या घरपर भी
फोन की सुविधा नही थी. मैंने अपनी फोटों भिजवाई तो तुरन्तही सालीजी का जवाब आगया
कि हमने आपसे फोटों मांगी थी लेकिन आपने भूलसे अपनी एक्सरे भिजवादी लगती हैं. मैंने
जब अपनी सहेलियों को वह दिखाई तो वे सब हंस पडी और खूब मजाक बनाया. मुझे
काफी षर्मिन्दा होना पडा. जीजाजी ! प्लीज अपनी एक्सरे नही, फोटों भेजिये और इस
चिटठी को ‘तार’ समझियें-मेरा मानना है कि आजकी इस पीढी के अधिकांष लोगों को इस
‘तार’ षब्द का मतलब षायद ही पता होकुछ
वर्षों बाद किसी के उकसावें में आकर हास्य-व्यंग्य संग्रह की एक किताब
छपवाली. जब उसका विमोचन हो रहा था तो वहां एकत्रित हुई भीड में से किसी ने एक
नोटबुक मेरे आगे करदी. यहां मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं हिन्दी-इंगलिष में दिल्ली
से प्रकाषित ‘षंकर्स वीकली का वर्षों पाठक रहा और मुझें उस पत्रिका का प्रतीक चिन्ह, जो
कि एक गधा था, बहुत अच्छा लगता था. हास्य-व्यंग्य का माहौल देखकर मैंने उस व्यक्ति
की नोटबुक पर गधे का स्कैच खैंच दिया तो प्रषंसा करने की बजाय वह बोला सरजी ! मैंने
फोटोग्राफ नही ऑटोग्राफ मांगा था. अब आपही बतायें मैं उसे क्या कहता ?
एक बार एक निकट के रिष्तें की षादी में जाना हुआ. वहां एक मौकें पर बार बार
मेरी फोटों खैंची जाने के लिए बहुत आग्रह किया जाने लगा तो मैंने भी हर बार इठलाकर
कहा कि नही नही क्या करोगे मेरी फाटों खैंचकर ? तो पीछे से किसी ने आवाज लगाई
‘बच्चों को डरायेंगे’.
अब भी जब कोई मुझसे फोटों की मांग करता है तो सोचता हूं कि मैं उसे अपनी
फोटों भिजवातो दूं लेकिन क्या करूं आजकल बच्चें-बडें जो फोटुएं खैंचते है उन कैमरों में
रील नही होती, तो बिना रील की फोटों कैसी आयेगी और केैसे मैं किसी को भेजूंगा ? लेने
वालें भी ऐसी फोटों का क्या करेंगे ? इसीलिए मेरा कहना यही है कि ‘क्या करोगेगे तुमुम मेरेरी
तस्वीर लेकेकर’.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
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