मंगलवार, 3 जुलाई 2012

धरती पकड़ नहीं, इस बार आसमान पकड!

चुनाव के इस मौके पर आज फिर रह रहकर धरती पकड की याद आ रही है और क्यों न आए? उन्होंने ही हर चुनाव को रोचक बनाया था। उन्हें चुनाव में खड़ा होने का शौक था और हर बार जब भी मौका मिलता वह चुनाव दंगल में कूद जाते। उस समय अधिक से अधिक एक फार्म ही तो भरना होता था, परन्तु बाद में सरकार ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए संविधान में संशोधन कर फार्म के साथ 50 प्रस्तावक-एमपी अथवा एमएलए- एवं 50 समर्थक वोटर आवश्यक कर दिए तो वहां उनका स्कोप खत्म हो गया। वह रह रहकर उस घड़ी को कोसते रहते थे। इधर देश भी उनकी सेवाओं से वंचित रह गया।
उनका नाम धरती पकड़ कैसे पड़ा यह एक खोज का विषय है। कुछ लोगों का अनुमान है कि चूंकि वह हर चुनाव में खड़े हो जाते थे और फिर नतीजे में धरती पकड़ लेते थे, इसलिए कालांतर में वह धरती पकड़ कहलाए, जबकि कुछ अन्य लोगों का कयास है कि नाम तो इनका शुरू से ही धरती पकड़ था लेकिन चुनाव में यह आसमान पकडऩा चाहते थे, लेकिन हर बार चित्त होकर वापस धरती पकड़ लेते थे इसलिए धरती पकड़ के नाम से मशहूर हो गए।
वैसे चुनावों में तरह तरह की हस्तियां मैदान में आ चुकी हैं। एक बार एक ऐसे सज्जन आए जो किसी न किसी तरह मीडिया की चर्चा में रहना चाहते थे। यह उनका शौक था और आप जानो शौक में आदमी क्या नहीं करता?
एक हस्ती ऐसी भी उम्मीदवार बनती रही है, जिन्होंने साहित्य में घुसपैठ की है और ऐसा उन्होंने किया है एक किताब लिख कर, जिसका शीर्षक है हाउ टू क्रियेट प्रोब्लम यानि समस्याएं कैसे पैदा या खड़ी की जाएं? इस विधा में उन्हें बडा मजा आता है। ऐसा करके वह न केवल अपनी पार्टी के लिए बल्कि स्वयं अपने और अपने परिवार के लिए भी जब तब समस्याएं खड़ी करते रहते हैं, मजा जो आता है!
उम्मीदवारों की लिस्ट लम्बी है। कोई कहां तक गिनवाएं? एक सज्जन यशपाल की एक कहानी के उस पात्र की तरह थे, जो अखबारों में अपना नाम छपवाने की गरज से एक बार एक सड़क पर जानबूझ कर एक वाहन से टकरा गए ताकि दूसरे रोज उनका नाम छप जाए, लेकिन मीडिया वाले भी अजब गजब हैं। नगर संवाददाता ने इस घटना पर सिर्फ यह लिख दिया कि कल दिन में एक अनजान व्यक्ति आगरा गेट के बाहर एक वाहन से टकरा गया। उसे अस्पताल में भरती कराया गया है। इधर अस्पताल में शैया पर पड़े पड़े यह खबर पढ़ते हुए उन्हें अपनी चोट का दुख कम और यह दुख ज्यादा सता रहा था कि हाय! हाथ-पांव भी तुड़वाये और नाम भी नहीं छपा। इससे तो धरती पकड़ ही अच्छा रहा, कम से कम नाम तो छपता था।
एक बार एक उम्मीदवार अपने शहर की नगर परिषद के चुनाव में अपने वार्ड से खड़े हो गए। जितना जोर लगाना था लगा दिया और जब चुनाव का नतीजा आया तो पता लगा कि इन्हें सिर्फ एक वोट मिला है। खैर, चुनाव तो हो गए लेकिन फिर उनके घर-बाहर चर्चा शुरू हो गई। मियां बीबी ही क्या आस-पास वाले सब शक करने लगे कि सिर्फ एक ही वोट कैसे? कम से कम दो वोट तो होने ही चाहिए, या तो मियां ने स्वयं को ही वोट नहीं दिया या बीबी ने नहीं दिया। लोग बाग महीनों इसकी खोजबीन में लगे रहे लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
इ. शिव शंकर गोयल
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