बुधवार, 4 जुलाई 2012

पचास से अधिक जिलों में फैली है डायन प्रथा

भारत में कानून की हुकुमत और सामाजिक चेतना के बावजूद डायन प्रथा और उसके हिमायती हार मानने को तैयार नहीं है. राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक भारत में विभिन्न प्रदेशों के पचास से अधिक जिलों में डायन प्रथा सबसे ज्यादा फैली है. इन जिलों में ऐसी औरतों की सूची लंबी है जो डायन करार दे दी गई और जुल्मों का निशाना बनी. ये सिलसिला अब भी जारी है. भारत के गांव-देहातों और छोटे कस्बों में अब भी कोई ओझा, भोपा और तांत्रिक किसी सामान्य औरत को कभी भी डायन घोषित कर रहा है. औरत की विडम्बना ये है कि इसमें उसके अपने घर परिवार और रिश्तेदार भी शामिल हो जाते है.
दर-दर की ठोंकरे
राजस्थान में टोंक जिले की कमला मीना तीन बच्चो की माँ है. पति ने ताउम्र साथ निभाने का वादा किया था.मगर एक दिन उसने कमला को डायन करार दे दिया और दूसरी शादी कर ली. कमला ने जब अपना दर्द बयान किया,गला भर आया. कुछ आंसू दामन पर गिरे,कुछ भीतर दिल के दालान पर. कमला ने कहा, � दस साल हो गए मुझे दर-दर की ठोकरें खाते हुए. पति बदला तो पीहर भी बदल गया. जिसके भी दरवाजे पर दस्तक दी, खाली हाथ लौटा दी गई. कसबे में कोई मकान तक किराये पर नहीं देता. जैसे ही पता चलता है ,मुझे मकान खली करने के लिए कह दिया जाता है�. कमला बताती है कैसे उसे आधी रात को घर से निकाल कर मारा पीटा गया, उसने अपने जिस्म पर उभरे कुल्हाड़ी की मार के जख्म के निशान भी दिखाए. कमला कहती है, �मेरी जान खतरे में है, न उसे पुलिस ने न्याय मिला न किसी इंसाफ के मंदिर से.�. इन औरतों के लिए कोई खाप पंचायत खड़ी नहीं होती.कोई रहनुमा भी मदद नहीं करता.
पति मरा,जिंदगी खत्म
हिमाचल प्रदेश की निर्मल चंदेल को उस वक्त सहारे की दरकार थी जब अकस्मात पति का निधन हो गया. इसके बाद जमाना बेदर्द निकला. निर्मल बताती हैं, � उस समय मेरी उम्र चौबीस साल थी, तब भी लोगों ने कहा इसने ही ऐसे कर्म किये जिससे पति की मौत हो गई. मुझे ही इसके लिए जिम्मेदार बताया गया.� निर्मल अब ऐसी ही प्रताड़ित औरतों के लिए काम करती है. वह बताती हैं, �जब मेरे भाई की शादी होने लगी तो सब लोगों ने कहा इसे दूर रखना ,मगर मेरे भाई ने इसे नहीं माना. दिक्कत ये है कि बाकि लोग इस तरह सामने नहीं आते जैसे मेरे भाई खड़े हुए.�
ओझा अपराधी
महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकरता विनायक तावडे़ और उनका संगठन कई सालों से डायन प्रथा के विरुद्ध अभियान चला रहे है. तावडे़ के मुताबिक आदिवासी इलाकों में ये प्रथा एक बड़ी समस्या बनी हुई है.वह बताते हैं कि कैसे एक ओझा गाव में एक महिला को डायन करार देने का उपक्रम करता है. तावड़े उदहारण देते हैं, �जैसे गांव में कोई बीमार हो गया,तो कुछ लोग जवार के दाने बीमार के ऊपर सात बार घुमाकर ओझा के पास ले जाते है. ओझा एक दाना इस तरफ, एक उस तरफ रख कर मन्त्र बोलना शुरू करेगा,कहेगा हाँ, .उसे डायन ने खाया है. उस डायन का घर नाले के पास है, उसमे पेड़ है, इतने जानवर है.आम के पेड़ है, महू का पेड़ है ,इतने बच्चे है, � वह आगे बताते हैं, �इनमे जो बातें अनुमान से किसी पर लागु हो जाऐ, उस औरत को डायन करार दिया जाएगा. हमने ऐसे ही एक ओझा को गिरफतार करवाया है. � राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य निर्मला सावंत प्रभावलकर ने स्वीकार किया, � देश के पचास से साठ के बीच ऐसे जिले है जहाँ इस कुप्रथा का बड़ा जोर है. कही महिला को डायन, कही डाकन, तेनी या टोनी, पनव्ती ,मनहूस और ऐसे ही नामों से लांछित कर उसे बहिस्कृत किया जाता है� प्रभावलकर के अनुसार ये समस्या शिक्षित वर्ग में भी है. जब कोई महिला राजनीती में आती है तो लोग कहने लगेगे ये जहां भी हाथ लगाएगी, नुकसान हो जायेगा. आप चुनाव हार जायेगे, ऐसा कह कर लांछित किया जाता है. पीड़ित महिलाओं में ज्यादातर दलित, आदिवासी या पिछड़ा वर्ग से है. सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलुवालिया ने राजस्थान में आदिवासी बहुल इलाकों में ऐसी पीड़ित महिलाओं की मदद की है. वह बताती है, �कोई 36 ऐसे मामले मेरे पास है जिनमें औरत को डायन घोषित कर दिया गया. मगर पुलिस ने कोई मदद नहीं की. फिर बताये कैसे इस कुप्रथा पर लगाम लगेगी. इन पीड़ित औरतों में कई इस कद्र टूट चुकी हैं कि जीने की ललक कम होने लगी है. �
डायन विरोधी कानून जरूरी
अहलुवालिया ने कहा, � ये समय है जब डायन विरोधी कानून बनना चाहिए. अकेले भीलवाड़ा जिले में ही कोई ग्यारह स्थान ऐसे है जो औरत के शरीर से डायन निकालने के लिए जाने जाते है. वहां हर सप्ताह भीड़ लगती है. इन औरतों के साथ हर तरह की हिंसा होती है�. दक्षिण राजस्थान की सुन्दर बाई विधवा है. उन्हें उनके भतीजे ने ही डायन घोषित कर दिया. सुन्दर बाई बताती हैं, � पहले मुझे डायन करार दिया,फिर एक दिन मृत घोषित कर पेंशन बंद करा दी. क्योंकि वो मेरी सम्पति हड़पना चाहता है. पेंशन वापस शुरू हो गई है.मगर अब भी मैं डरी हुई हूँ.�
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से बीबीसी से जुड़े हैं

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