अच्छी खबर है कि अब केन्द्र की यूपीए सरकार भ्रष्टाचार मिटाने हेतु कमर कसने वाली है। वर्षों पूर्व जब केन्द्र में एनडीए सरकार थी, तब वह भी एक बार भ्रष्टाचार मिटाने पर 'तुलÓ गई थी। फर्क सिर्फ इतना ही है कि वह सरकार भ्रष्टाचार को मिटाने हेतु 'तुलÓ गई थी और यह सरकार उसी मसले पर कमर को 'कसÓ रही है। आपको याद होगा, कई साल पहले की बात है। तब दिल्ली विधानसभा के
लिए चुनाव होने वाले थे। उस समय राजधानी में गन्दगी का अहम मसला था। बीजेपी ने चुनाव में घोषणा की कि शासन में आते ही दिल्ली को स्वच्छ बना देंगे। लोगों ने उनकी बात मान ली और बीजेपी वहां सत्ता में आ गई। उन्होंने आते ही पहला काम यह किया कि दिल्ली की सड़कों के डिवाइडर पर लगे खम्बों पर जगह-जगह तख्तियां लगवा दीं, जिस पर लिखा था 'स्वच्छ दिल्लीÓ। ठीक ऐसी ही बात तब हुई जब दिल्ली में कांग्रेस का शासन आया। उनके सामने कानून व्यवस्था की समस्या थी। उन्होंने तख्तियों की बजाय जगह-जगह पोस्टर चिपका दिए, जिस पर लिखा गया 'सुरक्षित दिल्लीÓ। एक ही झटके में सारी दिल्ली स्वच्छ भी हो गई और सुरक्षित भी हो गई। इसलिए यह कहना तो सही नहीं है कि दोनों प्रमुख दल एक ही तरीके से काम करते हैं। दोनों के तरीके भिन्न-भिन्न हैं। मसलन देश में जब कम्प्यूटर युग आया, तब राजस्थान में भी कांग्रेस के समय जलदाय विभाग के बिल हाथ से बनाने की बजाय लाल स्याही में कम्प्यूटर से बनाये जाने लगे। कुछ समय बाद जब वहां बीजेपी का शासन आया तो यही बिल, लाल की जगह नीली स्याही से बनाये जाने लगे। इतना ही नहीं, वहां कांग्रेस के राज्य में जब कभी बिजली चली जाती थी, तो बिजली विभाग वाले टेलीफोन पर पूछने पर जबाब देते थे कि पीछे से पावर नहीं आ रही है और जब बीजेपी का शासन आया तो ऑपरेटरों को कहा गया कि पूछने पर यह बताया जाए कि पावर आगे से नहीं आ रही है। कांग्रेस के राज में सदा से 'सुविधा शुल्कÓ ऊपर से लेने की प्रथा रही है। और यह इतना प्रचलित हो गया था कि सब कोई इसे 'ऊपर की कमाईÓ के नाम से जानने लगे थे। बीजेपी ने इसमें बदलाव किया और यह शुल्क टेबल के ऊपर से लेने की बजाय नीचे से लिया जाने लगा और दावा किया जाने लगा कि हमारे राज में ऊपर की कमाई जैसी बात है ही नहीं, हां बंगारू जी की बात अलग थी। संसद में सवाल पूछने को लेकर जब मीडिया ने संसद सदस्यों का स्ंिटग ऑपरेशन किया तो पता लगा कि जहां कांग्रेस वाले महात्मा गांधी के चित्र के नीचे सुविधा शुल्क ले रहे हैं, वही बीजेपी वाले गुरूजी अथवा डा. हेडगेवार के चित्र के नीचे यही सब कर रहे हैं। अत: आपको मानना ही पड़ेगा कि दोनों की कार्य प्रणाली में अंतर तो है। अब रही बात भ्रष्टाचार की तो जब केन्द्र में एनडीए का शासन था तो उन्होंने सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार मिटाने हेतु जगह जगह तख्तियां लगवा दीं, जिन पर लिखा था 'रिश्वत देना-लेना अपराध हैÓ। उनका विश्वास था कि इससे सारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जायेगा। अब वर्तमान यूपीए सरकार भी भ्रष्टाचार के उन्मूलन हेतु गम्भीरता से सोच रही है। हां, इनका तरीका बीजेपी से अलग है। ये चाहते हैं कि भ्रष्टाचार मिटाने हेतु, दक्षिण भारत की तर्ज पर, देश के अन्य बड़े षहरों में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए जाएं, जिसमें 'राजपरिवारÓ के कुछ सदस्यों के चित्र के साथ-साथ प्रधानमंत्री, विभागीय मंत्री अथवा संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के चित्र हों। इसके अतिरिक्त सरकारी खर्च खाते से अखबारों में बड़े- बड़े विज्ञापन निकलवाये जायेंगे। ऐसे बोर्ड तथा विज्ञापनों में तरह-तरह के नारे लिखे जायेंग।े मसलन 'अब हम भ्रष्टाचार को सहन नहीं करेंगेÓ, 'घोटालों के दोषियों को बख्शा नहीं जायेगाÓ, 'कानून अपना काम करेगाÓ इत्यादि। शहरों में स्थित विभिन्न पार्कों, चौराहों इत्यादि पर जगह-जगह भ्रष्टाचार के बुत खड़े किए जायेंगे। इसके लिए उत्तर प्रदेश का विशेष ध्यान रखा जायेगा, क्यों कि वहां सारा खेल ही बुतों का है। भ्रष्टाचार और घोटालों को लेकर सरकार एक श्वेत पत्र प्रकाशित करने की सोच रही है क्योंकि इस बाबत कुछ विरोधी दलों की भी मांग रही है। सरकारी मुद्रणालय के एक अधिकारी ने नाम न प्रकट करने की शर्त पर बताया है कि यह पत्र प्रकाशित तो होगा ऑफवाइट पेपर पर लेकिन यह कहलायेगा वाइट पेपर ही। जानकारों का कहना है कि इस परिपत्र में सरकार की यह राय झलकेगी कि भ्रष्टाचार 'ग्लोबल फिनामिनाÓ यानि अंतर्राष्ट्रीय समस्या है, इसलिए ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नही है। चूंकि आजकल, सरकारी हलकों में, अधिकांश समस्याओं के हल हेतु 'जीओएमÓ यानि मंत्रीमंडलीय उपसमिति बनाने का फैशन चल पड़ा है, अत: सरकार के पास एक विकल्प यह भी है कि भ्रष्टाचार मिटाने तथा घोटालों को रोकने के लिए सुझाव देने हेतु एक जीओएम बना दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक 'भ्रष्टाचार मिटाओ आयोगÓ का गठन भी किया जा सकता है। यह भी एक कारगर उपाय है। आजादी के बाद से लेकर अभी तक सैकड़ों ऐसे आयोग बनाये गए हैं। सरकारी हलकों के आसपास फलने फूलने वाली कुछ एनजीओ इत्यादि को उकसा कर बड़े-बड़े शहरों में मैराथन दौड़ों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें कतिपय लोग तरह-तरह के नारों की टीशर्ट पहन कर सुबह सुबह दौड लगायेंगे। राजधानी में यह दौड़ राजपथ पर होगी। इससे भी भ्रष्टाचार मिटाने में बहुत मदद मिलेगी। राजधानी के अलावा कई प्रान्तों की राजधानियों में मानव श्रंखला बनाई जायेगी तथा जगह-जगह जुलूस निकाले जायेंगे। बताते हैं कि पिछले दिनों ऐसी ही एक 'महंगाई घटाओÓ रैली में एक नेता, रिश्वतखोर सरकारी अफसर एवं कर्मचारी तथा वहीं भीड़ में खडे एक जमाखोर व्यापारी ने आपस में एक-दूसरे से नजरें मिलाते हुए एक साथ नारा लगाया था 'आवाज दो, हम एक है!Ó सरकार का यह भी इरादा है कि भ्रष्टाचार उन्मूलन वर्ष मनाया जाए। उस साल देश में जगह-जगह बुद्धिजीवियों की विचार गोष्ठियां आयोजित की जाएं, सम्मेलन किए जाएं, भ्रष्टाचार की परिभाषा तय की जाए, हो सके तो भ्रष्टाचार शब्द को ही डिक्शनरी में से निकलवाने की सम्भावना खोजी जाए क्योंकि आप तो जानते ही हैं कि 'न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरीÓ। 'गरीबी हटाओÓ की तर्ज पर 'भ्रष्टाचार मिटाओÓ अभियान चलाया जायगा। सरकार का विश्वास है कि उसके इन गम्भीर प्रयासों से देश में फैले भ्रष्टाचार में कुछ कमी आयेगी। वह अब अपने आपको उतनी 'मजबूरÓ महसूस नहीं करेगी और इस मामले में अभी जो विश्व में देश का 87वां रेंक है, उसमें कुछ सुधार होगा।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75
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