ग्राम सभा की ताकत समझी और चल पड़ी बदलाव की ओर
इन्होंने घूंघट त्यागा, रूढि़वादी विचारों को त्यागा, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ा, बैठक की, महिलाओं को संगठित किया, शिक्षित हुई, अपने अधिकारों को जाना और आज ग्राम पंचायत में भागीदारी सुनिश्चित कर गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। हालांकि ये सब आसानी से नहीं हुआ, दहलीज लांगी तो समाज के बुजुर्गों ने बंदिशे लगाई, पतियों ने मारपीट की, देवली (देऊ) बाई के पति ने तो कुल्हाडी से उसके सिर पर वार कर दिया। आंखों के आगे घूंघट रूपी पर्दा तो पीढिय़ों से पड़ा ही था उनके, जो उजाले की ओर बढऩे नहीं देता था। बढ़ती भी तो ढोकर खाकर गिर जाती या गिरा दी जाती थी। पर्दे ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाए रखा। लेकिन इन महिलाओं पर तो जुनून सवार था बदलाव का सामाजिक संगठन के संपर्क में आई, शिक्षित हुई और ग्राम सभा व ग्राम पंचायत की ताकत को समझा। फिर पंचायतीराज व आरक्षण का लाभ लिया, वो न सिर्फ प्रयासों में सफल रही है बल्कि अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित की। देवली बाई कहती है कि लोग देखे तो भले देखे, मैं तो ग्राम सभा में जो कहना होता है बिना घूंघट के खुलकर कहती हूं, मैं घूंघट नहीं निकालती हूं, घूंघट निकालूं तो बोल नहीं पाती हूं।
उदयपुर से 20-25 किलोमीटर दूर के पई गांव की आदिवासी समुदाय की 5 महिलाएं (देवली बाई, कडौली बाई, चौखी बाई, रोड़ी बाई व सोमुदी बाई) बदलाव के लिए सतत प्रयास कर रही है। दो दशक पूर्व वे एक सामाजिक संस्था से प्रेरणा लेकर, बंदिशों से आजाद हुई और चुप्पी तोड़कर घर से बाहर निकली। वर्तमान में पांचों महिलाएं पई ग्राम पंचायत में वार्ड पंच है। देवली बाई 3 बार, कडौली बाई 3 बार, रोड़ी बाई 2 बार, चौखी बाई 4 बार तथा सोमुदी बाई 2 बार वार्ड पंच रह चुकी है। कडौली बाई तो पंचायत समिति सदस्य भी चुनी गई। इन महिलाओं ने अन्य महिलाओं को भी आगे लाने का प्रयास किया। इस बार वेलकी बाई को भी वार्ड पंच का चुनाव लड़वाया। ग्राम पंचायत में इनकी पूर्ण भागीदारी नजर आती है। कोरम में इनका बहुमत है। सभी एक सूर में गांव के विकास के लिए प्रस्ताव रखती है।
देवली बाई कहती है गांवों में पुरूषों की राजनीति थी, पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहूंच भी जाती थी तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थी। जब हम पहली बार चुनाव लड़ी तो लोगों ने कहा कि ''क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर।�� नयाफला गांव के भैरूलाल का कहना है कि वार्ड पंच महिलाओं का यह ग्रुप सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक पहूंचाने में कार्य कर रहा है। ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी भी रखती है। अन्य दिनों में गांवों में जाना, लोगों की समस्याओं को जानना एवं कोरम में उन समस्याओं के निराकरण करवाना ही इनका मुख्य कार्य है।
असाक्षर थी, साक्षरता कार्यक्रम से जुड़कर पहले खुद अक्षर लिखना-पढऩा सीखी और फिर गांवों की महिलाओं को पढऩे के लिए प्रेरित किया, बच्चे बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। संघर्ष किया और ज्ञापन दे दे कर आंगनबाडिय़ा व स्कूल खुलवाए। जनसमस्याओं के समाधान करना ही इनका मुख्य ध्येय बन गया है। यहीं कारण है कि क्षेत्र की करीबन 3000 महिलाएं इनसे जुड़ी हुई है। इन सभी ने मिलकर शराबबंदी का महत्वपूर्ण कार्य किया है। वन भूमि अधिकार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार जैसे मुद्दों पर पांचों महिला पंचों ने सक्रिय भूमिका निभाई है। देवली बाई ग्राम पंचायत व पंचायत समिति से सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं लेती रहती है। देवली बाई पूरजोर से सूचनाएं मांगती है वो कहती है कि सूचना दो, अगर नहीं देते हो तो लिखकर दो कि सूचनाएं नहीं दे सकता। उसके सवाल सुनकर अधिकारी भी झेंप जाते है। वो कहती है कि सूचना लेने का हमारा अधिकार है, सूचना देनी ही पड़ेगी। कई बार तो उसके आवेदन लेने से ही इंकार कर दिया गया, दो मर्तबा आवेदन की रसीद नहीं दी। विकास अधिकारी ने तो कह दिया कि सूचना लेकर क्या करोगी ? लेकिन देवली बाई की तर्कसंगत बहस एवं जागरूकता के आगे अधिकारियों को झूकना पड़ा और उन्होंने आवेदन लिए और सूचनाएं भी दी। देवली बाई ने हाल ही में 27 फरवरी को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके सूचना मांगी है कि ''उदयपुर से सराड़ा तक कितने लोगों की जमीन अवाप्त की गई है?��
देहाती वेशभूषा में देवली बाई जब वन भूमि अधिकार के पट्टों आदि के आंकड़े बताती है तो हर कोई चकित रह जाता है। बताती है कि पात्र 103 लोगों को पट्टे दिलवाए है, लगभग 400 आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है। पेंशन योजनाओं के लाभ दिलवाने में सराहनीय कार्य इन्होंने किए है। पात्र महिलाओं के आवेदन करवाए। 2000 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा था, इन्होंने बैठक की और जिला कलक्टर को अवगत कराया, संघर्ष की बदौलत उन्हें रोजगार मिला।
सरकार के 'प्रशासन गांव के संग अभियान�� की तरफदारी करते हुए कड़ौली बाई कहती है इस अभियान के तहत आयोजित शिविरों में लोगों के प्रशासन से संबंधित अधिक से अधिक कार्य करवाए जा सकते है। देवली बाई ने बताया कि गांव वालों की समस्याओं के समाधान करने में इस प्रकार के अभियान महत्वपूर्ण है। हमने इस कार्यक्रम के तहत लोगों की राशनकार्ड, जॉब कार्ड, पेंशन, प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन, जमीन संबंधीत समस्याओं के समाधान करवाए है।
सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों पर निगरानी का कार्य भी करती है। गांव में प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक समय पर नहीं आते थे तथा पूरे समय पर विद्यालय में नहीं रूकता था। देवली बाई को गांव की महिलाओं से जब ये जानकारी मिली तो शिविर में इस मुद्दे को उठाया। शिविर प्रभारी ने उस अध्यापक को हटाकर दूसरे अध्यापक को नियुक्ति करवा दी। उसके बाद से विद्यालय समय पर खुलता है और अध्यापक भी पूरे समय विद्यालय में रूकता है। इसके अलावा वो आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषाहार व विद्यालयों में मिल डे मिल का अवलोकन भी करती है। यहीं नहीं इन महिला पंचों ने साझे प्रयास कर पिपलवास, कुम्हारिया खेड़ा, सूखा आम्बा, निचलाफल, पाबा, किम्बरी में प्राथमिक विद्यालय भी खुलवाए है। विद्यालय खुलवाने के लिए बार-बार ज्ञापन दिए, जिला अधिकारियों से पैरवी की।
ग्राम पंचायत के वार्ड नम्बर 8 में विद्यालय भवन नहीं है, अध्यापक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाता है, वहीं इस वार्ड में 30 से अधिक बच्चे है लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। आजकल पांचों महिला पंच विद्यालय भवन व आंगनबाड़ी केंद्र के लिए भवन की मांग कर रही है। हाल ही में 14 फरवरी को उन्होंने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर भवन निर्माण की मांग की है। भ्रष्टाचार की घोर विरोधी है ये पांचो पंच। इन्होंने सूचना के अधिकार का उपयोग कर पई ग्राम पंचायत द्वारा किए गए फर्जीवाड़े को उजागर किया। फर्जीवाडे के जानकारी मिलने बाद इन्होंने सामाजिक अंकेक्षण करवाने का प्रस्ताव रखा। सामाजिक अंकेक्षण किया और पाया गया कि ग्राम पंचायत द्वारा नाली निर्माण नहीं करवाया जबकि नाली निर्माण के नाम फर्जी बिल बाउचर का संधारण कर लाखों रुपयों का गबन कर दिया गया।
कडौली बाई कहती है कि जब हम पहली बार वार्ड पंच बनी तो लोग कहते थे ये क्या कर लेगी घाघरी वाली। लेकिन हमनें जो काम अब तक किए है उन्हें देखकर अब वहीं लोग हमें र्निविरोध वार्ड पंच बनाने लगे है। देवली बाई 3 बार वार्ड पंच रह चुकी है इस बार उसे र्निविरोध वार्ड पंच बनाया गया। रोड़ी बाई का कहना है कि हम किसी से नहीं रूकने वाली है। हम ग्राम पंचायत में न तो कुछ गलत करती है और ना ही गलत होने देती है।
इन महिलाओं को यह डगर सामाजिक संगठन आस्था के कार्यकर्ताओं ने कोई 25 वर्ष पहले दिखाई थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर यह सामाजिक संगठन नहीं होता तो इन महिलाओं के जीवन में परिवर्तन शायद ही संभव हो पाता। संस्था के लोगों ने इन्हें इनके अधिकारों की जानकारी दी, पंचायतीराज की जानकारी दी और साथ दिया। आज ये महिलाएं पंच बनकर ग्राम का विकास करवा रही है। ये महिलाएं घर की दहलीज पार कर चुकी है, इन्होंने रूढि़वादी विचारधाराओं को तोड़कर मिसाल कायम की है। ऐसा लगता है कि - अब ना मूंडेगी, ना रूकेगी ये उड़ चली है खुले गगन में . . .
Lakhan Salvi
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