गत कुछ महीनों में संपूर्ण भारतवर्ष में जिस तरह का माहौल बना है और दिन प्रतिदिन राग-द्वैष, आरोप-प्रत्यारोप, भक्त-देशद्रोही,विकासपुरूष-घोटालेबाज़,सेक्युलर-सूडो सेक्युलर,बीफ-दादरी,असहिष्णुता-अवार्ड वापसी, अच्छे दिन-महंगे दिन, वगैरह-वगैरह की लड़ाई भक्त बनाम गैर भक्तो में जिस प्रकार से सोशल मीडिया पर चल रही है बड़ी ही दिलचस्प है। मैं क्या सही और क्या गलत है के चक्कर में ना पड़ के सीधे मुद्दे पर आता हूँ। किसी पर विश्वास करना बड़ी ही अच्छी बात है मगर बिना किसी विवेकपूर्ण तर्क के अन्धविश्वास करना और जो वो करे उसे ही सत्य मान के औरों को अनसुना करना या उनके द्वारा कुछ कहने या बोलने पर गाली गलौच कर मार्क ज़ुकेरबर्ग के प्लेटफार्म को दूषित करना अत्यंत ही दुःख की बात है। सोशल मीडिया का आरम्भ अपने परायों से जुड़े रहने और ज्ञान एवं सुचना के आदान प्रदान के लिए हुआ था पर विगत वर्षो में इसे राजनैतिक पार्टियो ने एक बड़े ऑनलाइन समुदाय को भ्रमित एवं प्रभावित करने का माध्यम बना लिया है। आज ये सोशल मीडिया राजनितिक अंध भक्तो के लड़ने का अखाड़ा बन चूका है। और सबसे बड़ी बात ये है की लोग अपने सोचने समझने की शक्ति भूल कर जो भी प्रायोजित तरीके से पोस्ट और शेयर आ रहे है उन्हें गीता और रामायण की तरह अटल सत्य मान कर अपना नजरिया बना रहे है। उन्हें ये नहीं मालूम की कौन व्यक्ति या समूह किस प्रयोजन के लिए क्या प्रोपेगंडा रच रहा है। क्या सत्य है क्या मिथ्या किसी को कुछ नहीं लेना देना। एक समय था जब हमारे बुजुर्ग सिर्फ अपने देखे और सुने पर ही यकीं करते थे और 'जो देखा वो सत्य, बाकि सब मिथ्या' वाली नीति का अनुसरण करते थे। परन्तु आजकल जो किसी ऑफिसियल या फ़र्ज़ी पेज या अकाउंट से कुछ भी शेयर होता है सब उसे पत्थर की लकीर मान लेते है। आधुनिक भारत में अफवाह उड़ाने का, घृणा फ़ैलाने का, सोशल मीडिया से बढ़िया प्लेटफार्म और कहा मिलता।
पुनश्च : झूठ को सौ बार चिल्ला चिल्ला के बोलो तो लोग सच मान लेते है, जैसा की आजकल हर चुनाव में होता है। जीतने के लिए येन केन प्रकारेण वाली नीति चुनते है। मुद्दो को विकास से शुरू कर धर्म और असहिष्णुता पर ख़त्म करते है। और चुनाव के बात यही विदूषक मौन साध लेते है। अतः सभी बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि किसी भी प्रायोजित पोस्ट और शेयर को देखते ही विश्वास करने के बजाय अपने विवेक से काम ले और सोशल मीडिया को राजनैतिक अखाड़ा ना बनाये। किसी ने सत्य ही कहा है 'दिखावे पर न जाए,अपनी अकल लगाये ' ।
Bhupendra Singh
पुनश्च : झूठ को सौ बार चिल्ला चिल्ला के बोलो तो लोग सच मान लेते है, जैसा की आजकल हर चुनाव में होता है। जीतने के लिए येन केन प्रकारेण वाली नीति चुनते है। मुद्दो को विकास से शुरू कर धर्म और असहिष्णुता पर ख़त्म करते है। और चुनाव के बात यही विदूषक मौन साध लेते है। अतः सभी बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि किसी भी प्रायोजित पोस्ट और शेयर को देखते ही विश्वास करने के बजाय अपने विवेक से काम ले और सोशल मीडिया को राजनैतिक अखाड़ा ना बनाये। किसी ने सत्य ही कहा है 'दिखावे पर न जाए,अपनी अकल लगाये ' ।
Bhupendra Singh
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें