सोमवार, 14 नवंबर 2011

बाल दिवस कैसे मनाता ?

जाने क्या सोचकर 14 नवम्बर से कुछ पहले हमारी कॉलोनी के बच्चें मेरे पास आए
ओैर कहा कि अंकल इस बार हम बाल दिवस मनाना चाहते हेैं. मैंने उन्हें कहा कि मनाओ,
खूब मनाओ, किसने मना किया हेै ? आजकल तो मुक्त व्यापार व्यवस्था में हर रोज ही
कोई न कोई दिवस मन ही रहा हैं. फिर बाल दिवस तो हमारे देष में वैसे भी एक
महत्वपूर्ण दिवस है. इस पर वह बोले कि नही अंकल हम जो बाल दिवस मनाना चाहते है
उसमें आपको मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं.
यह सुनकर मैं चौंका. मुझे आज तक किसी ने मुख्य अतिथि तो क्या साधारण
अतिथि के लायक भी नही समझा. मैं स्वयं अपनेआप ही किसी समारोह में चला गया होउॅ
तो और बात हेैं. वहां गया, कुछ देर पीछे की कोई खाली सीट देखकर बैठ गया और जब
उपदेषात्मक भाषण से जी उकता गया तो उठकर चल दिया. खैर, मैंने उन्हें कहा कि आप
लोग मुझे बाल दिवस का मुख्य अतिथि बनाना चाहते है परन्तु मेरे सिर पर बाल तो है ही
नही फिर मैं बाल दिवस का मुख्य अतिथि बनकर क्या करूंगा ? इस पर बच्चें हंसने लगे
औेर एक साथ बोल पडे अंकल यह बाल दिवस सिर के बालोंवाला नही चाचा नेहरू के
जंमदिवसवाला बालदिवस हैं. तब कही जाकर मेरे को बात समझ में आईपहले
जब कोई परीचित कुछ अर्सें बाद मिलता तो पूछता था कि ‘बाल बच्चों के
क्या हाल है ?’ लेकिन अब उम्र के इस पडाव पर ऐसा मौका आने पर पूछता है ‘बच्चें
क्या कर रहे है ?’ यानि हालचाल पूछने में ‘बालों’ की कोई बात ही नही करताआपतो
जानते ही है कि सिर के बालों का सीधा संबंध नाई से भी हैं. पहले मैं बाल
कटवाने हर माह नाई की दुकान जाता था. लेकिन जबसे अमिताभ बच्चन का ‘कौन बनेगा
करोडपति’ ऐपिसोड चला हेै तब से ही नाइयों ने भी धूम मचा दी हैं. वे लोग ऐपीसोड की
तर्ज पर बाल काटने की दरें पहले दुगनी फिर चौगुनीवाली रफतार से बढाते जा रहे हेैं मानो
कांग्रेस और मनमोहनसिंहजी से पुरानी दुष्मनी निकाल रहे हो. जब ऐसा हुआ तो मैंने
उनकी दुकान पर जाने की ‘फ्रिक्वेन्सी’ कम करदी. मैंने सोचा कि मनमोहनसिंहजी अथवा
मॉन्टेकसिंहजी तो आक्सफोर्ड तथा हार्वर्ड यूनिवरसिटी की अपनी पढाई और विष्वबैंक के
अपने कार्यकाल के अनुभव से महंगाई कम करेंगे तब करेंगे क्योंन इसे कम करने की यह
तरकीब आजमाई जाय ? चाहे तो आपभी आजमाकर देखलें, बडे काम का नुस्खा हैंमहंगाई
का कारगर ढंगसे सामना करने का जो एक और गुर मेरे एक मित्र ने मुझे
बताया है वहभी लगे हाथ आपको बता देता हूं. उनके पास एक स्कूटर है. एक बार मैंने
उनसे पेट्ोल-डीजल के बढते दामों की चर्चा की तो बोले मैं तो जबभी पेट्ोलपम्प जाता हूं
तो सेल्समेन से कहता हूं कि सौ रू. का पेट्ोल डालदो. ऐसा पिछले कई सालों से कर रहा
हूं. मैंने तो आज तक एक नया पैसा ज्यादा नही दिया. कौन कहता है कि पेट्ोल महंगा हो
गया ? आपभी चाहे तो आजमा सकते हैंमैं
जिस सैलून पर बाल कटवाने जाता हूं वह नाई मेरे कुर्सी पर बैठते ही ‘मनोहर
कहानियां’ या ‘सत्य कथाओं’ में से कोई सनसनीखेज किस्सा ढंूढकर मुझे सुनाने लगता हैं
अथवा टीवी की विषेष चैनल चला देता है जिसमें छोटी छोटी बातों की भी सनसनी फैलाई
जाती है तथा बादमें बाल काटता हैं. एक बार जिज्ञासावष मैंने उससे पूछा कि वह ऐसा क्यों
करता है ? तो उसने जवाब दिया कि ‘अंकल ! आपके बाल बहुत कम और छोटें है, ऐसे
किस्सें सुनाने से बाल खडे होजाते है जिससे उन्हें काटने में सहुलियत होती है’ मैं इस
रहस्योदघाटन से आष्चर्यचकित रह गयाहालांकि
इससे पहले एक दो बार मैंने नाई से कहाभी कि मेरे तो बाल कम है अतः
कम रेट लगनी चाहिए तो उल्टे वह बोलाकि अंकल मैं तो लिहाज के मारे बोलता नही हूं
वर्ना आपके तो और भी ज्यादा पैसें लगने चाहिए क्योंकि एक एक बाल को ढूंढ ढूंढकर
काटना पडता है. जब मैंने उसकी यह दलील सुनी तो रेट के बारे में उसे कहना ही छोड
दिया क्या पता उसे फिर याद आजाय और वह दाम बढादे तो मेरी महंगाई का सूचकांक तो
उपर चला जायगा न, फिर कौनसा सरकार उसी हिसाब से मेरी पेंषन बढा देगी ? भुगतना
तो मुझे ही पडेगाइसलिए
मैंने तो कॉलोनी के बच्चों को मना कर दिया कि मैं बाल दिवस का मुख्य
अतिथि बनने लायक नही हूं. मेरे को बख्ष दे और किसी नेता को पकडेई.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें