बुधवार, 16 नवंबर 2011

आवश्यकता से अधिक मिलना विनाशकारी होता


घर के आँगन में
एक पौधा उगा
चेहरा
मुस्कान से भरा
मन में आशाओं का
संसार जगा
एक दिन
फूलों से लदेगा
सारा घर महकेगा
निरंतर
अतिवृष्टी ने हाहाकार
मचाया
पौधा सह ना पाया
समय से पहले
काल कवलित हुआ
मन निराशा में
डूब गया
भूल गया
हर सपना पूरा
नहीं होता
आशा निराशा का
साथ होता
आवश्यकता से
अधिक मिलना
विनाशकारी होता

एक लम्हा वफ़ा का दे दे कोई

आरजू दिल में बसी
एक लम्हा वफ़ा का
दे दे कोई
बीमार -ऐ-दिल को
दवा दे दे कोई
मोहब्बत का जवाब
मोहब्बत से दे दे कोई
टूटे हुए दिल को जोड़ दे
मेरी तरफ नज़रें कर ले
किश्ती को
किनारे लगा दे कोई
दिल को सुकून दे दे
मेरी इल्तजा सुन ले
कोई

मेरा मौन

उनके
अप्रतिम सौन्दर्य से
अभिभूत था
उनसे मिलने से पहले
मन में
सैकड़ों सपने संजोता
क्या क्या कहना है
मष्तिष्क में
सूची बनाता
मिलने पर जुबान को
लकवा मार जाता
मुंह से एक शब्द नहीं
निकलता
उनका निश्छल सरल
व्यवहार
निरंतर मेरे उनके
बीच में आता
मन का मनोरथ
मन में रहता
प्यार ह्रदय में दबा
रहता
मुझे एक शब्द भी
कहने ना देता
केवल मेरा मौन मेरा
साथ देता


तुम्हें देखा तो नहीं

तुम्हें देखा तो नहीं
फिर भी तुम्हें देखा सा
लगता मुझको
पास होने का
अहसास होता मुझको
तुम्हारा नाम मेरे
जहन में रहता
लबों से बुदबुदाता
रहता
ख्यालों में चेहरा
अंदाज़ से बनाता
रहता
नहीं जानता
कब मिलोगे मुझसे
पर निरंतर ख्याल तुम्हारा
सुकून देता मुझे
तुम्हें देखा तो नहीं
फिर भी तुम्हें देखा सा
लगता मुझको

क्षणिकाएं -2

हँसी
हँस तो लिए
हँसाया क्यों नहीं ?
ये भी सोचा कभी
"मैं"
मेरी "मैं" ने
मुझ को मारा
ख्याल करो
तुम्हारी "मैं"
तुम्हें मारेगी
सत्य विचार
सत्य होता है
इसलिए विचार आते हैं
सत्य नहीं होता तो
विचार भी नहीं आते
रोना
आंसूओं का
आँखों से
क्या लेना देना
अंधे भी रोते हैं
भावनाएं
भावनाएं आंसू
बन कर बहती हैं
मनोस्थिती
दर्शाती हैं
सत्य -झूठ
सत्य के बिना
झूठ अर्थहीन
झूठ के बिना
सत्य अर्थहीन
एक दूसरे के बिना
दोनों अस्तित्वहीन

बड़ा चतुर होता है,बाल सुलभ मन

बड़ा चतुर होता है
बाल सुलभ मन
माँ डांटे तो
पिता की गोद में
पिता डांटे तो
माँ की गोद में
दोनों डांटे तो
दादा दादी की
गोद में
जा छुपता है
बाल सुलभ मन
मीठी बातों से
लुभाता है
इच्छाएं पूरी क
रवाता है
बड़ा चतुर होता है
बाल सुलभ मन
बड़ा चंचल होता है
बाल सुलभ मन

अन्धेरा

हम घर
में
चिराग नहीं
जलाते
अन्धेरा
होने पर
उन्हें अपने
घर
बुला लेते
हैं

मेरे मन की जान लो

तुम्हें
कभी देखा नहीं
फिर भी तुम से
प्यार है
पता नहीं
कभी मिलूंगा भी
या नहीं
फिर भी
मन मानता नहीं
निरंतर
तुम्हारे लिए
व्याकुल रहता
कुशलता के लिए
प्रार्थना करता
मेरे मन की
जान लो
बस इतना सा
ख्याल कर लो
कभी मिलो तो
पहचान लेना
मुस्करा कर
देख लेना

वो शादी शुदा थी ,दोनों बच्चों की माँ थी

दर्द बढ़ने लगा
उम्मीद जाने लगी
हसरतों की अर्थी
सजने लगी
उनसे मिलने की
ख्वाइश
दम तोड़ने लगी
तभी वो आ गयी
दोनों बच्चों के साथ थी
हमारी सांसें फिर से
चलने लगी
पूछने पर कहने लगी
वो शादी शुदा थी
दोनों बच्चों की
माँ थी

देवता से दिखते ,गर नाक सीधी होती तुम्हारी (हास्य-प्रेरणास्पद कविता)

ना करो बुराई किसी की
ना दिखाओ आइना
गर कह दिया किसी को
नाक टेढ़ी उसकी
हो जाएगा नाराज़ तुमसे
फिर भी रह ना पाओ
कहना चाहो
तो समझ लो कैसे कहो
नाक टेढ़ी उसकी
ललाट चौड़ा ,काया कंचन सी
केश काले ,रंग गंदुमी ,
चाल ढाल राजाओं की
चेहरा अभिनेताओं सा
लगता तुम्हारा
देवता से दिखते सबको
गर नाक सीधी होती तुम्हारी
(काने को काना मत कहो
काना जाएगा रूठ
बस चुपके से पूछ लो
कैसे गयी थी फूट )


(काने को काना मत कहो

काना जाएगा रूठ

बस चुपके से पूछ लो
कैसे गयी थी फूट )


{शारीरिक कमी,कुदरत की देन होती है,इस पर कटाक्ष करना उचित नहीं }

हम जानते तुम्हारी तकलीफ क्या है
हम जानते तुम्हारी
तकलीफ क्या है
निरंतर मुस्काराता
चेहरा मुरझाया हुआ
क्यूं है ?
दर्द-ऐ दिल से परेशाँ
हो तुम
अपने साहिल से दूर
हो तुम
हम भी गुजर रहे इसी
मुकाम से
दूर हैं अपने साहिल से
फर्क इतना सा है
हमें पता है
हमारे साहिल का
तुम अनजान उस से हो
अब देख नहीं सकते
तुम्हें बदहाली में
बताना ही पडेगा
राज़-ऐ-दिल तुम्हें
तुम्ही हो मंजिल
तुम्ही साहिल हमारे
जब जान ही गए हो
रंजों गम दूर कर लो
हमें कबूल कर लो


ऐ ज़िन्दगी इतना ना झंझोड़

ऐ ज़िन्दगी
इतना ना झंझोड़
जीने का अर्थ ही
ना जान पाऊँ
भूल जाऊं
संसार में आया हूँ
जब से
हिम्मत से लड़ता
रहा हूँ
समझ नहीं सका
अब तक
कैसे हँसते मन से ?
अब तो थम जा
थोड़ा सा
मुझे भी हँसा
जीने का अर्थ
मैं भी समझ जाऊं
कहीं ऐसा ना हो
लड़ना ही भूल जाऊं
समय से पहले ही
थक ना जाऊं
ऐ ज़िन्दगी
इतना ना झंझोड़
जीने का अर्थ ही
ना जान पाऊँ
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
Mobile:09352007181

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