शनिवार, 12 मई 2012

ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं!


उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक प्रसिद्ध मिठाई वाले की दुकान पर एक बोर्ड टंगा है, जिस पर लिखा है, ठग्गू के लड्डू, ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं। इस दुकान के लड्डू खाकर अब मैंने भी अपनों परायों को ठगना शुरू कर दिया है। आपको सब कुछ तसल्ली से बताता हूं।
कुछ दिनों पहले की बात है। मैं इंडिया गेट घूमने गया था। एक स्थान पर पानी में कुछ बतखें तैर रही थीं। मैं उन्हें देखने लगा, तभी वहां पुलिस जैसी वर्दी पहने एक आदमी आया और मुझे टोका, ...क्या तुम्हें पता नहीं है कि यहां बतखों को देखने के पैसे लगते हैं। तुमने कितनी बतखें देखी हैं?
पुलिस को देखते ही मैं घबरा गया, फिर भी ऊपर से हिम्मत दिखाते हुए मैंने उसे कहा, जी दस, मैंने सिर्फ दस बतखें देखी हैं। उसने मेरे से कहा कि दस बतखों के पचास रुपए निकालो और वह मेरे से पचास रुपए लेकर चला गया। घर लौट कर मैंने अपनी पत्नी को बतलाया कि आज मैंने एक पुलीस वाले को ठग लिया। जिज्ञासावश उसने पूछा, वह कैसे? मैं बोला, मैंने इंडिया गेट पर पन्द्रह बतखें देखी थीं, लेकिन पुलिस वाले को दस ही बताई और इस तरह पच्चीस रुपए बचा लिए। ये पुलिस वाले सबको ठगते हैं, आज मैंने उन्हें ठग लिया।
ऐसा नहीं है कि मैंने पुलिस वाले को ही ठगा हो। एक बार रेलवे वालों को भी चकमा दिया। हुआ यह कि मैंने किसी को कह कर दिल्ली से मुंबई का सैकंड क्लास स्लिीपर का रिजरवेशन करवाया, लेकिन मैं गया ही नहीं। रेलवे वाले मुझे अब तक ढूंढ़ रहे होंगे। एक बार घरवाली ने सब्जीमंडी से नींबू लाने के लिए कहा। बोली जो भाव वह बताएं, उससे कम कराना। मैं हुलसा हुलसा वहां गया और सब्जीवाले से पूछा कि नींबू क्या भाव दिए तो वह बोला कि बीस रुपए के चार। मैंने उसे कहा कि कुछ कम करो तो वह मुस्कराते हुए बोला कि बीस के तीन ले जाओ। मैंने तीन नींबू छांटे और बीस रुपए पकड़ा कर सरपट चलता बना। सोचा, कही वह बाद में मुकर न जाए। वह ठगा सा देखता रह गया।
मैं रेडीमेड कपड़े नहीं पहनता हूं, इसलिए एक रोज बाजार से 250 रुपए में शर्ट का कपड़ा खरीदा और एवन टेलर के यहां पहुंचा। वहां मास्साब ने नाप लेकर एक सप्ताह बाद आने की कहा। जब एक सप्ताह बाद मैं शर्ट लेने गया तो उसने कहा कि सिलाई के 300 रुपए हुए। मैं उस समय तो किसी तरह बहाना बना कर वहां से आ गया। सोचा, 250 रुपए का कपड़ा और सिलाई के 300 रुपए? मैं दुबारा वहां गया ही नहीं और 300 रू. बचा लिए। वह टेलर मेरा इंतजार ही कर रहा होगा।
इस तरह मेरे द्वारा लोगों को ठगने और चकमा देने के कई किस्से हैं। रही बात किसी और के द्वारा मेरे को ठगे जाने की तो वह मैं आपको नहीं बताऊंगा क्योंकि राजस्थान में एक कहावत है, जिसके अनुसार पिटा हुआ ठाकुर और ठगा हुआ बिनया किसी को बताता नहीं है, तो मैं आपको क्यों बताऊं?
सरकार को चाहिए कि देश में इस ठग इंडस्ट्री की बढ़ोत्तरी को देखते हुए पिंडारी श्री, पिंडारी विभूषण तथा ठग श्री इत्यादि राष्ट्रीय पदवियां प्रदान करने की परम्परा चालू करे। हास्य-व्यंग्य सम्मेलन आयोजित करने वाले अब धर्त सम्मेलन का आयोजन कर सकते हैं ताकि वहां कतिपय नेताओं, बाबाओं और रक्षा सौदों के दलालों को सम्मानित किया जा सके।
-ई. शिव शंकर गोयल
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75
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