पिछले कुछ सालो में भारत आये करीब 5,000 हिन्दू जोधपुर में पनाह लिए हुए है और भारत से नागरिकता के लिए विनती कर रहे है.
भारत विभाजन के 65 साल बाद भी विस्थापन का दर्द इंसानियत का पीछा नहीं छोड़ रहा है.पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक आबादी के लोग लगातार भारत आ रहे है. वो पनाह की मुराद लेकर आते है.
राजस्थान के जोधपुर में ऐसे कोई 5,000 पाकिस्तानी हिन्दू है,जो अपना गांव घर छोड़ कर भारत चले आए. वे भारत से अपनी नागरिकता के लिए गुहार कर रहे है.
भारत में हर सप्ताह ऐसे पाकिस्तानी हिदुओ की आमद दर्ज हो रही है,जो पाकिस्तान में धार्मिक भेदभाव की शिकायत करते है और वापस लोटने से इंकार कर देते है.
यूँ थार एक्सप्रेस हर सप्ताह दो मुल्को के बिछुडो को मिलाती है.मगर अब रिश्तो की ये रेल अपनी सर जमीन से उखड़े परिवारों को भारत लाने का जरिया बन गई है.
राज्य के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले तीन माह में कोई 333 पाकिस्तानी हिन्दू भारत आए. मगर उनमे से 203 ने वापस लोटने से इंकार कर दिया.
पश्चिमी राजस्थान में 7,000 लोग
पिछले कुछ सालो में भारत आये ऐसे कोई 5,000 हिन्दू जोधपुर में पनाह लिए हुए है और भारत से नागरिकता के लिए विनती कर रहे है. सीमान्त लोक संघटन के मुताबिक,पश्चिमी राजस्थान में ऐसे 7,000 लोग है,जो पाकिस्तान के हिन्दू अल्प्ल्संख्य्क है और वहां की नागरिकता को तिलांजली दे चुके है.
पाकिस्तान के सूबा सिंध और पंजाब से हर हफ्ते हिन्दू भारत का रुख कर रहे है.पिछले सप्ताह ही सिंध के रीनमल अपने बारह परिजनों के साथ धार्मिक यात्रा के नाम पर भारत आये और फिर सीधे जोधपुर चले आये.
कहने लगे पुरखो के घर को भीगी पलकों निहारा और फिर पीछे मूड कर देखने की हिम्मत नहीं हुई.
वीजा में अहतियात
भारत ने अब पाकिस्तान के हिन्दुओ को वीजा जारी करने में अहतियात बरतनी शुरू कर दी है.लिहाजा अब लोग हरिद्वार जैसे सथानो की धार्मिक यात्रा के नाम पर इस देश का रुख करते है और फिर शरण के लिए फरियाद करते है.
तीजा बाई पर्दा नशीं है.वो सिंध के टंडो अलियार में रहती थी. कोई दो सप्ताह पहले ही तीजा अपने छह बच्चो के साथ भारत चली आई. तीजा के पति इतने खुसनसीब नहीं थे कि उन्हें भी भारत का वीजा मिलता.
सकुचाई तीजा के बोल नहीं फूटे कि कैसे वो अपना दर्द बयां करे. नई जगह नए लोग,पुराने मुल्क में पति पीछे छूट गये. जोधपुर में पाकिस्तानी हिन्दुओ ने शहर के बाहर बसेरा किया है.
इनमे ज्यादातर दलित है या फिर आदिवासी भील. कहने लगे भारत हो या पाकिस्तान ,दर्जा तो हमारा दोयम ही है. पाकिस्तान से आये किशन कहते है ''यहाँ सुकून है,आज़ादी है ,सविंधान है,हम अपनी बात कह सकते है.''
दिलीप मेघवाल पाकिस्तान के पंजाब में रहते थे. कुछ समय अपने दो बच्चों और सास के साथ भारत चले आये. दिलीप मेघवाल कहते हैं, ''हाल के वर्षो में हिन्दुओ का जीना दुश्वार हो गया,जब से तालिबान का उभार हुआ है,जीवन और भी नारकीय हो गया.बहिन बेटियों का घर से निकलना कठिन हो गया,कभी भी अपहरण हो जाता है और धर्म बदलने के लिए दबाव मामूली बात है.''
आसान नहीं राह
पर भारत में भी उनकी राह आसांन नहीं रही. सरकार ने दिलीप को भारत छोड़ने का नोटिस दे दिया. उनका कहना है, ''वापस जाना मतलब जिन्दगी का खतरा दुगना,हम यहाँ जान दे देगे मगर वापस नहीं जायेंगे, अभी अदालत ने हमारी गुहार सुनी और स्थगन दे दिया.''
सीमान्त लोक संगठन के हिन्दू सिंह सोधा इन हिन्दुओ के लिए आवाज उठाते रहे है. वे कहते है, ''भारत ने अब तक ऐसे उत्पीडित लोगो के लिए कोई नीति नहीं बनाई है. लोग लगातार आ रहे है.भारत को इसे द्विपक्षीय वार्ता में उठाना चाहिए. पाकिस्तान को भी अपने अल्पसंख्यको के लिए कोई नीति घोषित करनी चाहिए,अगर ये लोग भारत नहीं आयेगे तो कहाँ जायेंगे.'' वे खुद भी पाकिस्तान से पलायन कर भारत आये है.
सोधा ने कहा, ''पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरवादी समूहो के ताकतवर होने के बाद अल्पसंख्यको के लिए राह कठिन हो गई है.सबसे बड़ी समस्या महिलाओ के लिए है,उनके अपरहण और फिर जबरन धर्म बदलने की घटनाओं ने पुरे हिन्दू समुदाय को चिंतित कर दिया है.''
पाकिस्तान से आए अजित दलित है. वे कहते है दलितों से जिमींदार या वडेरे जबरन मशकत कराते है और मजदूरी भी नहीं देते. ''हम चारपाई पर नहीं बैठ सकते,सार्वजनिक सथानो पर मटके से पानी नहीं पी सकते,स्कूलों में बच्चो को इस्लामी तालीम के लिए बाध्य किया जाता है,अब आप ही बताइए भारत नहीं आते तो कहाँ जाते.''
भारत ने कुछ साल पहले ऐसे कोई 13,000 हिन्दुओ को अपनी नागरिकता प्रदान की थी.
अपनी जड़ो से उखड़ने का दर्द बहुत गहरा होता है.इस वेदना को या तो डाल से टूटा पत्ता समझ सकता है या नीड से बेदखल कोई परिंदा.मगर सरहदों की सियासत इसे क्यों समझेगी.
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े हैं।
भारत विभाजन के 65 साल बाद भी विस्थापन का दर्द इंसानियत का पीछा नहीं छोड़ रहा है.पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक आबादी के लोग लगातार भारत आ रहे है. वो पनाह की मुराद लेकर आते है.
राजस्थान के जोधपुर में ऐसे कोई 5,000 पाकिस्तानी हिन्दू है,जो अपना गांव घर छोड़ कर भारत चले आए. वे भारत से अपनी नागरिकता के लिए गुहार कर रहे है.
भारत में हर सप्ताह ऐसे पाकिस्तानी हिदुओ की आमद दर्ज हो रही है,जो पाकिस्तान में धार्मिक भेदभाव की शिकायत करते है और वापस लोटने से इंकार कर देते है.
यूँ थार एक्सप्रेस हर सप्ताह दो मुल्को के बिछुडो को मिलाती है.मगर अब रिश्तो की ये रेल अपनी सर जमीन से उखड़े परिवारों को भारत लाने का जरिया बन गई है.
राज्य के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले तीन माह में कोई 333 पाकिस्तानी हिन्दू भारत आए. मगर उनमे से 203 ने वापस लोटने से इंकार कर दिया.
पश्चिमी राजस्थान में 7,000 लोग
पिछले कुछ सालो में भारत आये ऐसे कोई 5,000 हिन्दू जोधपुर में पनाह लिए हुए है और भारत से नागरिकता के लिए विनती कर रहे है. सीमान्त लोक संघटन के मुताबिक,पश्चिमी राजस्थान में ऐसे 7,000 लोग है,जो पाकिस्तान के हिन्दू अल्प्ल्संख्य्क है और वहां की नागरिकता को तिलांजली दे चुके है.
पाकिस्तान के सूबा सिंध और पंजाब से हर हफ्ते हिन्दू भारत का रुख कर रहे है.पिछले सप्ताह ही सिंध के रीनमल अपने बारह परिजनों के साथ धार्मिक यात्रा के नाम पर भारत आये और फिर सीधे जोधपुर चले आये.
कहने लगे पुरखो के घर को भीगी पलकों निहारा और फिर पीछे मूड कर देखने की हिम्मत नहीं हुई.
वीजा में अहतियात
भारत ने अब पाकिस्तान के हिन्दुओ को वीजा जारी करने में अहतियात बरतनी शुरू कर दी है.लिहाजा अब लोग हरिद्वार जैसे सथानो की धार्मिक यात्रा के नाम पर इस देश का रुख करते है और फिर शरण के लिए फरियाद करते है.
तीजा बाई पर्दा नशीं है.वो सिंध के टंडो अलियार में रहती थी. कोई दो सप्ताह पहले ही तीजा अपने छह बच्चो के साथ भारत चली आई. तीजा के पति इतने खुसनसीब नहीं थे कि उन्हें भी भारत का वीजा मिलता.
सकुचाई तीजा के बोल नहीं फूटे कि कैसे वो अपना दर्द बयां करे. नई जगह नए लोग,पुराने मुल्क में पति पीछे छूट गये. जोधपुर में पाकिस्तानी हिन्दुओ ने शहर के बाहर बसेरा किया है.
इनमे ज्यादातर दलित है या फिर आदिवासी भील. कहने लगे भारत हो या पाकिस्तान ,दर्जा तो हमारा दोयम ही है. पाकिस्तान से आये किशन कहते है ''यहाँ सुकून है,आज़ादी है ,सविंधान है,हम अपनी बात कह सकते है.''
दिलीप मेघवाल पाकिस्तान के पंजाब में रहते थे. कुछ समय अपने दो बच्चों और सास के साथ भारत चले आये. दिलीप मेघवाल कहते हैं, ''हाल के वर्षो में हिन्दुओ का जीना दुश्वार हो गया,जब से तालिबान का उभार हुआ है,जीवन और भी नारकीय हो गया.बहिन बेटियों का घर से निकलना कठिन हो गया,कभी भी अपहरण हो जाता है और धर्म बदलने के लिए दबाव मामूली बात है.''
आसान नहीं राह
पर भारत में भी उनकी राह आसांन नहीं रही. सरकार ने दिलीप को भारत छोड़ने का नोटिस दे दिया. उनका कहना है, ''वापस जाना मतलब जिन्दगी का खतरा दुगना,हम यहाँ जान दे देगे मगर वापस नहीं जायेंगे, अभी अदालत ने हमारी गुहार सुनी और स्थगन दे दिया.''
सीमान्त लोक संगठन के हिन्दू सिंह सोधा इन हिन्दुओ के लिए आवाज उठाते रहे है. वे कहते है, ''भारत ने अब तक ऐसे उत्पीडित लोगो के लिए कोई नीति नहीं बनाई है. लोग लगातार आ रहे है.भारत को इसे द्विपक्षीय वार्ता में उठाना चाहिए. पाकिस्तान को भी अपने अल्पसंख्यको के लिए कोई नीति घोषित करनी चाहिए,अगर ये लोग भारत नहीं आयेगे तो कहाँ जायेंगे.'' वे खुद भी पाकिस्तान से पलायन कर भारत आये है.
सोधा ने कहा, ''पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरवादी समूहो के ताकतवर होने के बाद अल्पसंख्यको के लिए राह कठिन हो गई है.सबसे बड़ी समस्या महिलाओ के लिए है,उनके अपरहण और फिर जबरन धर्म बदलने की घटनाओं ने पुरे हिन्दू समुदाय को चिंतित कर दिया है.''
पाकिस्तान से आए अजित दलित है. वे कहते है दलितों से जिमींदार या वडेरे जबरन मशकत कराते है और मजदूरी भी नहीं देते. ''हम चारपाई पर नहीं बैठ सकते,सार्वजनिक सथानो पर मटके से पानी नहीं पी सकते,स्कूलों में बच्चो को इस्लामी तालीम के लिए बाध्य किया जाता है,अब आप ही बताइए भारत नहीं आते तो कहाँ जाते.''
भारत ने कुछ साल पहले ऐसे कोई 13,000 हिन्दुओ को अपनी नागरिकता प्रदान की थी.
अपनी जड़ो से उखड़ने का दर्द बहुत गहरा होता है.इस वेदना को या तो डाल से टूटा पत्ता समझ सकता है या नीड से बेदखल कोई परिंदा.मगर सरहदों की सियासत इसे क्यों समझेगी.
लेखक श्री नारायण बारेठ राजस्थान के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें