यूपीए सरकार ने सत्ता में तीन साल पूरे होने के उपलक्ष में इस देश की आम जनता को कभी ना भूला जाने वाली सौगात दे डाली. शाम को पार्टी में यूपीए के घटक दलों के नेताओ व सांसदों को बिरयानी खिलाई और अगले ही दिन "सुबह सवेरे जनता का पेट्रोल (तेल) निकाल दिया". ऊपर से शाम होते-होते दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के वित्त मंत्रीजी ने इस पर एक तडकता-भड़कता डायलोग दे मारा - "हमारे (सरकार के) हाथ में कुछ नहीं है, हम कुछ नहीं कर सकते. कीमतें तेल कम्पनियाँ तय करती हैं." बाय गोड हमने इतने जिगर वाले वित्त मंत्री आज तक नहीं देखे, जो खुद कबूल कर ले की - हमारे हाथ में कुछ नहीं है. खैर, जनता बेचारी किस्मत की मारी (सॉरी, मिसटेक हो गयी) "जनता बेचारी यूपीए के पेट्रोल की मारी", उस दिन को कोसकर चुपचाप सो गयी - जिस दिन उन्होंने पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी खरीदी थी. जनता व विपक्षी दलों ने सरकार को कोसना व घेरना शुरू कर दिया. सरकार ने अपनी तीन साल की उपलब्धियां गिनाते-गिनाते अपनी मजबूरियाँ गिनना शुरू कर दिया.
तभी, मुझे याद आया की हमरी सरकार के प्रधानमंत्रीजी तो दुनिया के सबसे बढ़िया वित्त मंत्रियों में से एक रह चुके हैं और उनकी अर्थशास्त्र का लोहा तो अच्छे-अच्छे मानते हैं. उनका साथ देने के लिए दादा प्रणब मुखर्जी , पी. चिदंबरम व कपिल सिबल सरीखी गुणी-विद्वानों की फ़ौज है. फिर भी हमारी और हमारे देश की अर्थव्यवस्था की यह हालत कैसे? चारों ओर महंगाई मूंह फाड़ रही है, सोने के भाव माथे पर चढ़ कर बैठे हैं, शेयर बाजार औंधा पड़ा है, रुपया बेचारा गिरता ही जा रहा है, पेट्रोल तोह आये दिन मूंह चिड़ाता रहता है - क्या इनका जवाब भी सरकार के पास यही है - हमारे हाथ में कुछ नहीं है.
भाईसाहब, सब्जी या फल-फ्रूट लेने जाओ तो ऐसा लगता है, मानो दुकानदार इनके भाव बताकर इस देश के आम नागरिक की माली हालत की हंसी उड़ा रहा हो. दूधवाला जब दूध का भाव बताता है तो खुद उसमे पानी मिला कर पीने का मन करता है. दालो-मसालों के भाव तो मानो मिर्ची लगाते प्रतीत होते हैं. आम आदमी तो चलो जैसे-तैसे जुगाड़ कर के दिन-पर-दिन गुजार रहा है, मगर गरीबों का हाल तो पूछो ही मत. हमारे देश में रोजाना ना जाने कितने ही लोग भूखे सोते हैं, मगर हमारे देश की धरती जो सोना उगलती है (अनाज) वो खुले में पड़ा सड़ रहा है. सरकार अनाज को खुल्ले में सड़ने देगी, बारिश में भीगने देगी, बोरियों के आभाव में गलने देगी - मगर इस देश की अभागी व भूखी जनता को नहीं देगी. ख़ैर, वित्त मंत्री साहब ने समझाया ना - सरकार के हाथ में कुछ नहीं है.
पहले ही महंगाई इस देश के आम आदमी का खून STRAW लगा-लगा कर चूस रही है. ऊपर से रुपया भी डॉलर के सामने सरेंडर हो चुका है. अब भैया, रूपये का भाव गिरेगा तो हिंदुस्तान का भाव कैसे बढेगा - समझाइये भला.रूपये का भाव गिरेगा तो भैया इलेक्ट्रोनिक आइटम्स, कच्चे तेल, मोबाइल, फ्रिज, टीवी इत्यादि के भाव तोह बढेंगे ही. उसके भी ऊपर, यदि पेट्रोल का भाव बढेगा तो भैया - अपनी तो टाय-टाय फिस्स. पेट्रोल के भाव के बढ़ते ही ट्रांसपोरटेशन कास्ट बढेगी जिससे आना और जान महंगा होगा, माल की आवाजाही महंगी होगी - फिर आम आदमी की जरुरत की हर चीज़ महंगी होगी. कल टीवी पर एक अंकलजी बोल रहे थे - "यह पेट्रोल किसने बनाया था? और बनाया भी तो बनाते ही उसमे आग क्यों नहीं लगा दी?" अब, उन अंकलजी को कौन समझाए की अगर पेट्रोल को बनाते ही उसमे आग लगा दी जाती, तो हमारी सरकार हमें कैसे चिढाती ? पेट्रोल (के भाव) में आग लगाने का काम तो सरकार का है, अंकलजी.
खैर, भैया यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पल्स-पोलियो की खुराक की तरह पेट्रोल की खुराक भी दो बूँद में ही नसीब होगी - क्यूंकि उससे ज्यादा खरीदने की तो हैसियत नहीं रह जायेगी ना. पेट्रोल के भाव इसी तरह बढेंगे तो पोलियो रविवार की तरह पेट्रोल रविवार मनाने के दिन दूर नहीं रह जायेंगे. तब भैया, आप और हम पेट्रोल पम्प जाकर कहेंगे - "भाईसाहब, आज दिल बहुत खुश है और किसी महंगी चीज़ पर पैसे उड़ाने का मन कर रहा है इसलिए - दो बूँद पेट्रोल की टपका दो".
सादर अपील:- यदि लेख अच्छा लगा हो तो शाबाशी की जगह थोडा सा पेट्रोल भिजवा दें कम से कम गाडी तो चल जायेगी.
साकेत गर्ग लेखक, युवा ब्लोगर व सीए,सीएस के विद्यार्थी हैं
इ-मेल: sketgarg@gmail.कॉम / ब्लॉग: gargsaket.blogspot.com
तभी, मुझे याद आया की हमरी सरकार के प्रधानमंत्रीजी तो दुनिया के सबसे बढ़िया वित्त मंत्रियों में से एक रह चुके हैं और उनकी अर्थशास्त्र का लोहा तो अच्छे-अच्छे मानते हैं. उनका साथ देने के लिए दादा प्रणब मुखर्जी , पी. चिदंबरम व कपिल सिबल सरीखी गुणी-विद्वानों की फ़ौज है. फिर भी हमारी और हमारे देश की अर्थव्यवस्था की यह हालत कैसे? चारों ओर महंगाई मूंह फाड़ रही है, सोने के भाव माथे पर चढ़ कर बैठे हैं, शेयर बाजार औंधा पड़ा है, रुपया बेचारा गिरता ही जा रहा है, पेट्रोल तोह आये दिन मूंह चिड़ाता रहता है - क्या इनका जवाब भी सरकार के पास यही है - हमारे हाथ में कुछ नहीं है.
भाईसाहब, सब्जी या फल-फ्रूट लेने जाओ तो ऐसा लगता है, मानो दुकानदार इनके भाव बताकर इस देश के आम नागरिक की माली हालत की हंसी उड़ा रहा हो. दूधवाला जब दूध का भाव बताता है तो खुद उसमे पानी मिला कर पीने का मन करता है. दालो-मसालों के भाव तो मानो मिर्ची लगाते प्रतीत होते हैं. आम आदमी तो चलो जैसे-तैसे जुगाड़ कर के दिन-पर-दिन गुजार रहा है, मगर गरीबों का हाल तो पूछो ही मत. हमारे देश में रोजाना ना जाने कितने ही लोग भूखे सोते हैं, मगर हमारे देश की धरती जो सोना उगलती है (अनाज) वो खुले में पड़ा सड़ रहा है. सरकार अनाज को खुल्ले में सड़ने देगी, बारिश में भीगने देगी, बोरियों के आभाव में गलने देगी - मगर इस देश की अभागी व भूखी जनता को नहीं देगी. ख़ैर, वित्त मंत्री साहब ने समझाया ना - सरकार के हाथ में कुछ नहीं है.
पहले ही महंगाई इस देश के आम आदमी का खून STRAW लगा-लगा कर चूस रही है. ऊपर से रुपया भी डॉलर के सामने सरेंडर हो चुका है. अब भैया, रूपये का भाव गिरेगा तो हिंदुस्तान का भाव कैसे बढेगा - समझाइये भला.रूपये का भाव गिरेगा तो भैया इलेक्ट्रोनिक आइटम्स, कच्चे तेल, मोबाइल, फ्रिज, टीवी इत्यादि के भाव तोह बढेंगे ही. उसके भी ऊपर, यदि पेट्रोल का भाव बढेगा तो भैया - अपनी तो टाय-टाय फिस्स. पेट्रोल के भाव के बढ़ते ही ट्रांसपोरटेशन कास्ट बढेगी जिससे आना और जान महंगा होगा, माल की आवाजाही महंगी होगी - फिर आम आदमी की जरुरत की हर चीज़ महंगी होगी. कल टीवी पर एक अंकलजी बोल रहे थे - "यह पेट्रोल किसने बनाया था? और बनाया भी तो बनाते ही उसमे आग क्यों नहीं लगा दी?" अब, उन अंकलजी को कौन समझाए की अगर पेट्रोल को बनाते ही उसमे आग लगा दी जाती, तो हमारी सरकार हमें कैसे चिढाती ? पेट्रोल (के भाव) में आग लगाने का काम तो सरकार का है, अंकलजी.
खैर, भैया यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पल्स-पोलियो की खुराक की तरह पेट्रोल की खुराक भी दो बूँद में ही नसीब होगी - क्यूंकि उससे ज्यादा खरीदने की तो हैसियत नहीं रह जायेगी ना. पेट्रोल के भाव इसी तरह बढेंगे तो पोलियो रविवार की तरह पेट्रोल रविवार मनाने के दिन दूर नहीं रह जायेंगे. तब भैया, आप और हम पेट्रोल पम्प जाकर कहेंगे - "भाईसाहब, आज दिल बहुत खुश है और किसी महंगी चीज़ पर पैसे उड़ाने का मन कर रहा है इसलिए - दो बूँद पेट्रोल की टपका दो".
सादर अपील:- यदि लेख अच्छा लगा हो तो शाबाशी की जगह थोडा सा पेट्रोल भिजवा दें कम से कम गाडी तो चल जायेगी.
साकेत गर्ग लेखक, युवा ब्लोगर व सीए,सीएस के विद्यार्थी हैं
इ-मेल: sketgarg@gmail.कॉम / ब्लॉग: gargsaket.blogspot.com
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