शुक्रवार, 29 जून 2012

पानी इत्थे आहे?

खबर है कि सारे उत्तरी भारत और विषेषकर देष की राजधानी में इन दिनों पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. हर कोई पूछ रहा है कि पानी कहां है?, पानी कित्थै आहे? दिल्ली सरकार के नुमाइंदे इसके लिए हरियाणा को दोष दे रहे हैं तो हरियाणा वाले दिल्ली सरकार को, ताकि इस दोषारोपण में किसी तरह टाइमपास हो जाए और तब तक मानसून आ जाए. मजे की बात है कि दिल्ली सरकार बार बार अनाउंस कर र्रही है बूंद बूंद पानी बचाइये. जनता पूछ रही है कि छह छह रोज में तो प्रानी आ रहा है तब कोई क्या पीये और क्या बचाये? कहा भी है कि .....क्या नहाये और क्या निचोड़े?
कुछ लोगों ने खोजबीन की है और उन्होंने विश्वस्त सूत्रों से पता लगाया है कि पानी तो पोस्ट आफिस में रखे तथाकथित गोंद के डिब्बों में है। वहां गोंद है ही नहीं सिर्फ पानी है. वह खुद यह देखकर आए हैं, चाहे तो आपभी जाकर पता कर लें। कुछ पानी की मात्रा कतिपय राजनीतिक दलों ने अपने अपने कार्यालयों में इक_ी कर रखी है. बताते हैं कि वह यह पानी देश के कुछ क्षेत्रों में अब तक हुई प्रगति पर पानी फेरने के काम में लेंगे. मसलन देश में वर्षों बाद साम्प्रदायिक सौहार्द बनने लगा है. लोगों ने मंदिर-मस्जिद विवाद में दिलचस्पी लेना कम कर दिया है. भाषायी उन्माद थमा हुआ है. प्रांतीयता का हव्वा सिवाय मुंबई के और जगह नदारद है, प्रंातों का सीमा विवाद ठंडे बस्ते में है, लेकिन यह तत्व मौके की तलाश में रहते हैं और अवसर मिलते ही फिर इस स्थिति पर पानी फेर सकते हैं और इसके लिए पानी तो चाहिएगा न? वही इन्होंने स्टोर कर रखा है। कुछ पानी की मात्रा कोल्ड ड्रिक तथा बोतल बंद पानी का व्यापार करने वालों ने अपने यहां एकत्रित कर रखा है, जिसे यह लोग जरीकेन और बोतलों में भरकर तरह तरह के नामों से बेचकर एक के चार कर रहे हैं. मजे की बात है कि यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है. किसे फुरसत है कि इस पानी की रसायनिक जांच-टीडीएस इत्यादि की जांच-हो. उन्हें निहित स्वार्थों के हितों की चिंता है या आम जनता की?
बताने वाले तो यहां तक बता रहे हैं कि चुनाव की संभावना भांप कर जब से सरकार ने विभिन्न कच्ची बस्तियों के नियमन का ऐलान किया है तबसे ही लालचवश पानी की कुछ मात्रा उन्होंने भूमाफियों के मुंह में देखी है. राम जाने कहां तक सही है? वैसे होने को पानी देश की अधिकांश गरीब और असहाय जनता की आंखों में भी है, जब वह सुनती है कि एक तरफ तो 60 प्रतिशत जनता टायलेट की सुविधा से वंचित है, वही दूसरी ओर हमारा हाथ गरीब के साथ कहने वाली सरकार की नाक के नीचे योजना आयोग सिर्फ दो टायलेट पर 35 लाख रुपए खर्च करता है.
आजादी के 65 साल बाद भी सिर पर मैला ढ़ोने की प्रथा चालू है. हर वर्ष लू, शीत लहर और बाढ़ से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी क्यों हो रही है ? पानी नारी की आंखों में भी हैं. अभिनेता आमिर खां के सत्यमेव जयते में दिखाये जाने वाले विभिन्न एपिसोड से वह बात फिर सिद्ध हो रही है, जो एक प्रसिद्ध कवि ने वर्षों पूर्व इन पंक्तियों में लिख दी थी-नारी जीवन हाय तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी. अब यह बात समाज और सरकार पर है कि वह नारी को उसका उचित सम्मान दिलाए. रही बात पानी की मात्रा की तो उसकी कही कोई कमी नहीं है, सवाल है 'नदी जोड़ो योजना पर पुन: विचार कर उसे, टुकड़ों टुकड़ों में ही सही, शुरू करें और फिलहाल उपलब्ध पानी को सिर्फ लुटियन जोन वालों को ही न लूटने दें और पानी का उचित वितरण करें.
-ई. शिव शंकर गोयल
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