शुक्रवार, 22 जून 2012

बना दे बहरा मुझे भगवान, बना दे बहरा!

शहर के कई मंदिरों एवं देवालयों में आजकल यह भजन अकसर सुनने को मिल रहा है. इसमें भक्तगण माईक लगाकर जोर जोर से समवेत स्वरों में ईश्वर से यह मांग करते है कि तू हमें बहरा बना दे. इन भक्तों में उम्र के दूसरे पड़ाव के वह लोग भी शामिल हैं, जिनके सिर पर हालांकि बाल नहीं हैं लेकिन उनकी मांग है कि हे परमेश्वर! हमें बहरा बना दे. बिना बालों के मांग? थोडा अजीब तो लगता है लेकिन मांग है तो है। खैर, ऐसे भजन कीर्तन में जाकर बैठने से कई गुर की बातें पता पडी. बिना कोई स्टिंग आपरेशन अथवा सीबीआई जांच किए कई रहस्योदघाटन हुए.
मसलन यहां बताया गया कि बहरा बनने की मांग के पीछे स्वान्तह सुखाय अर्थात खुद का सुख का सिद्धांत भी है और यह भी कि जो सुख चावै जीव को तो बुद्धु बन कर रह. थोडी देर के लिए मान लीजिए कि भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली तो सबसे बड़ा फायदा तो आपको अपने घर में ही होगा. बीबी आप पर लाख चिल्लायें, झल्लायें लेकिन आप पर उसका कोई असर नही होगा, उल्टे आप मुस्कराते रहेंगे. इससे आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा वह आपको सब्जी लाने के लिए कुछ कहती रहेगी, लेकिन आप झूठ-मूठ समझने की ऐक्टिंग करते हुए गरदन हिलाते रहेंगे. यह बात दीगर है कि भलेही आप बाजार से अपनी मन मरजी या दुकानदार की इच्छा से आलू की जगह प्याज या प्याज की जगह टमाटर उठा लाएं, आखिर सब्जी ही तो बननी हैं.
घर में सास-बहू दोनों इस फंडे पर चलने लगें तो सोने में सुहागा वरना दोनों में से कोई एक भी इसे अपना ले तो कलह धीरे धीरे कम होते होते समाप्त प्राय: हो जायेगी. मुझे यह रहस्य जिस व्यक्ति ने बताया उसका दावा था कि यह नुस्खा आजमूदा है अर्थात आजमाया हुआ है. उसने तो यहां तक दावा किया कि भगवान तो सुनेगा जब सुनेगा आपतो आजसे ही यह मानकर चले कि आपको कम सुनाई देता है. फिर देखना आप इसका आनंद!
कीर्तन मंडली में बैठे एक अन्य सज्जन, जो हाव-भाव से सरकारी अफसर-कर्मचारी लग रहे थे, हमारी बातचीत के बीच में ही कूद पडे और बोलें, आप क्या बात करते हैं? बहरा बनने का सबसे बडा फायदा जनसेवा से जुड़े सरकारी विभाग के लोगों को है. यह लोग इस फंडे पर बिलीव करते है कि लोगों का काम है शिकायत करना, करते रहेंगे. शहर में पानी नहीं आ रहा है, बार बार पावर कट हो रहा है, नगर में गुंडागर्दी बढ़ रही है इत्यादि और न जाने क्या क्या समस्याएं हैं, जिनके लिए दफतर में टेलीफोन आ रहे हैं, लोग दफतरों के चक्कर लगा रहे है, धरना-जुलूस हो रहे हैं, परन्तु आपको इससे क्या? आपको तो कुछ सुनाई ही नहीं देता, है ना?
इतना ही नहीं पास ही बैठे एक बुजुर्ग से सज्जन ने तो यह रहस्योदघाटन तक कर दिया कि मैं तो इस थ्योरी पर विश्वास करता हूं, जिसमें कहा गया है कि नशा करै तो ऐसा कर, जैसे पीली भंग. घर के जाणै चला गया आप करै आनंद।
बुद्धिमानों, जानकारों की कहीं कोई कमी नही हैं. षासकीय हलकों से जुड़े एक सज्जन, जो कीर्तन में जोर जोर से ताली बजा रहे थे, हालांकि आंखें मूंदे हुए थे लेकिन कभी कभी कनखियों से मेरी तरफ देख लेते थे, बोले कि अधिकांश जनप्रतिनिधि, मंत्री, पार्षद इत्यादि भी उस फार्मूले पर काम करते हैं, जिसका वर्णन एक कवि-श्री कृष्ण कल्पित- ने अपनी निम्न कविता में किया है:-
राजा रानी प्रजा मंत्री, बेटा इकलौता,
मां से सुनी कहानी जिसका अंत नहीं होता.
...............................
राजा राज किया करता था,
राजा राज करै प्रजा
भूख मरा करती थी,
प्रजा भूख मरै मैं
भी अब इस कहानी का दर्द नही सहता. राजा रानी....
और इस फंडे पर तब ही काम किया जा सकता है जब कि हम बहरे बन जाएं और जब तक भगवान हमारी सुने कम से कम तब तक हम बहरा बनने का नाटक तो करें। मैंने उन्हें कहा, नहीं, नहीं वह सबकी सुनता है, अत: आपकी भी सुनेगा आप तो गाते रहिए-बना दे बहरा मुझे भगवान, बना दे ....
ई. शिव शंकर गोयल
फलेट न. 1201, आई आई टी
इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट न. 12,
सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें