मंगलवार, 27 सितंबर 2011
कुछ कुंठाएं जीवन भर दबी रहती
कुछ कुंठाएं
जीवन भर दबी
रहती
बुल बुले सामान
उठती फूटती रहती
निरंतर मन को
विचलित करती
कैसे बाहर निकले?
कोशिश चलती रहती
कोई पथ दिख दे
मन की बात समझ ले
इच्छाएं पूरी करा दे
आँखें निरंतर
खोज में लगी रहती
कुंठा रहित
जीवन की इच्छा
अंतिम सांस तक
समाप्त नहीं होती
कुछ कुंठाएं
जीवन भर दबी
रहती
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" (डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com
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