आपतो जानते ही है कि आजकल नौकरियां आसानी से मिलती नही
इसलिए नई नई बन रही वैध-अवैध कॉलोनियों में मकान भी बन रहे है और
खूब दुकानें भी खुल रही है. संयोग की बात देखिए ऐसी ही एक नई बसने
वाली कॉलोनी में एक छोटा सा मार्केट बनना षुरू हुआ और उसमें नुक्कड से
छठंे नम्बर की दुकान में एक दूधवाले ने अपना काम धन्धा षुरू किया. धीरे-धीरे
वह मषहूर होने लगा और कॉलोनीवाले भी उसे छठे नम्बर की दुकान से जानने
लगे. कई लोगबाग, गृहस्थी की महिलाएं अक्सर ही अपने बच्चों को यह कह
कर दूध लेने भेज देती कि जा, छठी का दूध लेआ. हालांकि छठी का दूध याद
आ जाना मामूली बात नही है बहरहाल दुकानदार की दुकान चलने लगी तो पास
पडौसवालों ने सलाह दी कि दुकान का साइनबोर्ड बनवालो. रोज रोज की
टोकाटोकी से तंग आकर कुछ दिन बाद दुकानदार ने एक साइनबोर्ड बनवाने की
सोची जिस पर यह लिखा जाना था
‘हमारे यहां षुद्धुद्ध एवं ताजा दूध्ूध मिलता है’ै’
उसने पेंटर से बात की, पेंटर बोला लिखने को तो मैं आप जो कहोगे वह
लिख दूंगा लेकिन आपने दूध की दुकान खोली है तो दूध बेचोगे ही कोई खैरात
तो बांटोगे नही इसलिए मेरी राय में तो ‘मिलता है’ षब्द की जगह ‘बिकता है’
लिखवाये ंतो ज्यादा सही रहेगा, आगे जैसी आपकी इच्छा. दुकानदार को पेंटर
की सलाह जंच गई और उसी के अनुसार नया बोर्ड बनकर टंग गया जिस पर
लिखा था ‘हमारे यहां षुद्धुद्ध एवं ताजा दूध्ूध बिकता है’ै’
लेकिन जैसा कि आप जानते है भाई लोगों को किसी तरह भी चैन नही
है. आप दुनियां में चलकर देख लीजिए, जैसेही बोर्ड टंागा गया पास पडौसवाले
मांगे-बिन मांगे तरह तरह के सुझाव सलाह देने लगे. ऐसे ही एक सज्जन आए
और दुकानदार से कहा ‘मियां ! आपने यहां मार्केट में दुकान खोली है यह बात
सबको मालुम है और आप यहां दूध बेच रहे है यह भी सब जानते है फिर
आपने बोर्ड पर यह ‘हमारे यहां’ षब्द क्यों लिखवाया है ? जो कुछ है आपके
यहां ही है. कही और थोडेही है इसलिए मुझे तो यह अनावष्यक जान पडता हैकृ
पा करके ‘हमारे यहां’ं’ षब्द को हटवादे तो अच्छा रहेगादुकानदार
को यह बात जंच गई. उसने पेंटर को बुलाकर कहा ‘भाईजान
! इस साइनबोर्ड पर से ‘हमारे यहां’ षब्द को हटादेंपेंटर
अब बोर्ड पर लिख लाया ‘षुद्धुद्ध एवं ताजा दूध्ूध बिकता है’ै’
कुछ दिन ग्राहक आते जाते रहे. बोर्ड की तरफ देखते और मुस्कराते. एक
दिन इनमे से एक ग्राहक से रहा नही गया तो सौदा लेने के बाद उसने
दुकानदार से कहा कि यहां मार्केट में जितने भी दुकानदार है सभी अपना2 माल
बेचते है ऐसे ही आप भी दूध बेचते है कोई फोकट में तो देते नही फिर इसमे
लिखने जैसी क्या बात है ? दुकान परतो चीजें बेची ही जाती है अतः आप मेरी
मानो तो बोर्ड परसे ‘बिकता है’ षब्द हटवादें, नाहक ही इतना बडा बोर्ड बनवा
लिया है उल्टा भद्धा और लगता हैदुकान
मालिक भ्रम में पड गया. इतनी बडी सलाह और वह भी बिना
मांगे मुफत में, ऐसा तो मेरे देष में ही हो सकता हैं. उसने उसी समय पेंटर को
बुलाकर सारी बात समझाई और अब नया बोर्ड बनकर आ गया जिस पर लिखा
था ‘षुद्धुद्ध एवं ताजा दूध्ूध’
एक बात ओैर, आजकल हर कॉलोनी में कई छोटे मोटे छुटभैये नेता
कुकरमुत्तें की तरह पैदा होगए है. यह लोग आए दिन हर समस्या पर अखबारों
में स्टैटमेन्ट देते रहते है. हर किसी को तरह तरह की सलाह देना भी इनका
काम है. ऐसे ही एक नेता इस कॉलोनी में भी हैं. एक रोज वह दूध की इस
दुकान पर आ पहुंचें और दुकानवाले से बोले ‘भाई साहब ! आपने अपनी दुकान
पर लगे बोर्ड पर ‘दूध्ूध’ षब्द के पहले यह ‘षुद्धुद्ध एवं ताजा’ षब्द क्यों लिखवाया
है ? इससे तो उल्टा लोगो को षक हो रहा है कि गोया यह षख्स दुकानदार
षुद्ध एवं ताजा दूध ही देता हैे या इसका इरादा कुछ और ही हैे ? मेरी मानो तो
इस बोर्ड परसे ‘षुद्ध एवं ताजा’ षब्दों को हटवादें वरना खामेखा लोगों को षक
होगाअब
दुकानदार घबराया. उसे लगा कि नेताजी ठीक ही कह रहे होंगे
इसलिए उसने तुरन्त बोर्ड को उतरवाया और स्वयं ठेले पर लादकर पेंटर के
पास ले गया और इस बार जो बोर्ड लाकर टांगा गया उस पर लिखा था सिर्फ
एक षब्द ‘दूध्ूध’
अब ग्राहक आते और पहले दुकान के उपर झांकते जहां बोर्ड पर लिखा
था ‘दूध’ ओर उधर नीचे दुकानदार दूध बेच रहा होता. एक बार उसके पडौसी
ने उसे समझाया कि भाई साहब ! यह क्या नाटक कर रहे हो ?
क्यों क्या हुआ ? दूधवाले ने कहा
उपर बोर्ड पर आपने लिखा हुआ है ‘दूध्ूध’ और इधर नीचे आप दूध बेच
रहे है. सबको दिख रहा है, इसमें बोर्ड पर लिखवाने जैसी क्या बात है ? मेरी
मानो तो दूध षब्द लिखवाने की जरूरत ही नही हैइस
पर दुकानदार ने दूध षब्द ही क्या बोर्ड ही हटवाने का ईरादा बना
लिया क्योंकि बिना कुछ लिखवायें बोर्ड टंगवाता तो और किसी के षक के घेरें में
आता. इस तरह लोगों ने बेचारे का पूरा साइनबोर्ड ही हटवा दियाकुछ
दिनों तो ऐसे ही चला लेकिन पब्लिक कहां चुप बैठने वाली थी.उनमे
से कुछ ने पहले कानाफूसी की फिर दुकानदार से कहाकि मियां दुकान पर बोर्ड
तो लगवाइये बिना बोर्ड के दुकान का ‘षो’ नही आता. ग्राहकों को पता नही
पडता कि आपकी दुकान में क्या क्या बिकता है ?
अब आप ही बतायें कि बेचारा दुकानदार क्या करें ?
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें